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रविवार, 6 सितंबर 2015

My reward : a sweet message from our reader....

 काफी समय पहले , इंटरनेट पर हिंदी से जुडी सामग्री और मार्गदर्शन के आभाव की पूर्ति हेतु मैंने ब्लॉग/पेज  बनाया पर लिखने लगा।  इस दौरान मुझे सैकड़ो मित्रो से बातचीत का अवसर मिला , संवाद हुआ। कभी कभी कुछ अनजान लोग भी , बहुत सुन्दर प्रतिक्रिया देते है तब बहुत अच्छा FEEL होता है।  कल मुझे एक मैसेज मिला। मेरे लघु प्रयास को ऐसे प्रोत्साहन से महती संबल मिलता है। साथ में जुड़ने के लिए सभी को पुनःश्च शुक्रिया।



आदरणीय आशीष सर,

मैं नहीं जानता आप कौन हो ? जब मैनें सर्च इंजिन में 'आईएएस हिंदी' खोजा तो आपका पेज खुल गया ! पेज को स्कीप करने ही वाला था कि मेरी नज़र एक पोस्ट जिसमें इकॉनोमिक्स के 'इम्पोर्टेंट टॉपिक' पर पड़ी ! मैनें उल्लेखित उन सारे अध्यायों की सूची पढ़ी ! पढ़कर खुशी इस बात की हुई की आपका चयन बिल्कुल सटीक है और दु:ख इस बात का कि काश: मैं आपके पेज को पन्द्रह दिन पहले पढ़ लेता तो इस वर्ष की प्रांरभिक परीक्षा का एक प्रश्न जिसके बारे में मैनें कहीं नहीं पढ़ा था "बासल- 3" सही हो जाता (यानी 2.67 अंक का फ़ायदा) !
यहाँ उल्लेखनीय है कि महोदय, मैनें इसी वर्ष स्नातक किया है और महज दो महीने की गभींर तैयारी (स्वाध्याय) से इस साल की सिविल सेवा की प्रांरभिक परीक्षा में प्रविष्ट हुआ और मेरा स्कोर 92 (जीएस पेपर में, कैटेगिरी- ओबीसी) बन रहा है ! मुझे नहीं मालूम प्रा. परीक्षा उतीर्ण कर पाऊँगा कि नहीं पर मेरी यह धारणा पहले से अधिक प्रबल हो गयी है कि "हाँ, मैं कर तो सकता हूँ !"
महोदय, आपका कार्य नि:संदेह बेहतरीन और सराहनीय है ! हिंदी माध्यम के छात्रों के लिए उपयोगी सामग्री और लक्ष्योन्मुखी मार्गदर्शन का आज भी अभाव है ऐसे समय में आपका कार्य और भी श्रेयस्कर हो जाता है ! जिस तरीके से आप लिखते हो, साहित्यिक पृष्ठभूमि झलक रही है ! हाँ, इतनी गंभीर मानवीय संवेदनाएं, परिपक्व अनुभव, चयनात्मकता और विश्लेषित मार्गदर्शन साहित्य ही दे सकता है ! महोदय, मैं साहित्य से तो नहीं हूँ पर सिविल सेवा के मुख्य परीक्षा के लिए मेरा यही विषय है ! बहुत लगाव है हिंदी रग-रग में बसती है ! सिविल सेवा एकमात्र लक्ष्य है, सामर्थ्य भी है (बोर्ड परीक्षा में राजस्थान टॉपर रह चूका हूँ) और जूनून भी है मगर पारिवारिक और आर्थिक परिस्थितियां बहुत विपरित है ! मेरे माता-पिता नरेगा में दिहाड़ी-मजदूरी कर परिवार चलाते है ऐसे में बहुत बार किताबें खरीद पाना भी मुश्किल हो जाता है !
खैर, सफ़लता कोंचिग फ़ैक्टियों और भारी भरकम स्टडी मैटेरियल की भी मोहताज़ नही होती, सीमित संसाधनों में भी अक्सर अवसर तलाश लिए जाते है ! मौलिक बुद्धि और आंतरिक ऊर्ज़ा का दोहन अत्यावश्यक है ! "जब निकल पड़ा है प्यासा तो ये ज़रूरी नहीं है कि हर जगह शुष़्क जमीं ही आए, दरिया भी ज़रूर आयेगा !" महोदय, आपसे विनम्र प्रार्थना रहेगी कि आप हमारा सतत् मार्गदर्शन करते रहें और जामवंत की भूमिका निभाते रहे ! अाख़िर में आपके नि:स्वार्थ कार्य और मार्गदर्शन के लिए धन्यवाद और एक बड़ा सारा सलाम ! - विकास कुमार लम्बोरिया गाँव- खरसण्डी, त. नोहर, जिला- हनुमानगढ़ (राज.)

गुरु की कहानी

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