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मंगलवार, 6 नवंबर 2018

Story of a Murderer



अतीत का एक गहरा राज 

आशीष कुमार

आर. के. नारायण की एक बहुत प्रसिद्ध कहानी है - an astrologer day . जिसमें  हत्यारा एक ज्योतिषी होता है और संयोग से उसकी एक दिन उस व्यक्ति से मुलाकात होती है , जिसकी हत्या का उस पर आरोप होता है। एक दिन मेरी भी एक ऐसे  व्यक्ति से मुलाकात हुयी जो अपने अतीत में बहुत गहरे राज छुपाये था।  


छात्र जीवन में विशेषकर जब नौकरी पाने के लिए जूझने वाला दौर होता है तब बहुतायत लोग ज्योतिष आदि पर भरोसा करने लगते है। चिंतक जी के बारे शायद आपको पहले कभी यह भी बताया हो कि उनका ज्योतिष पर बहुत गहरा विश्वास शुरू से रहा है। व्यक्ति इलाहाबाद ( माफ़ करना प्रयागराज ) से हो तो यह बड़ी ही स्वाभाविक बात है।  भागीदारी भवन लखनऊ के दिनों से मैं चिंतक जी इस कारगुजारी से परिचित था।  इतने पहुंचे  हुए थे कि भूले भटके कभी कोई आईएएस / pcs अगर अकादमी में आ गया तो वो उनकी नजर केवल अधिकारी के हाथ पर रहती। संयोग से अगर उस अधिकारी का  हाथ खुला दिख गया तो बस उनका काम हो गया। अधिकारी क्या टिप्स दे रहा , इससे उनका कोई लेना देना न था.  इन दिनों वो शादी के लिए लड़की तलाश रहे है तो सबसे पहले लड़की के हाथेलियों की तस्वीर मगवाते है और ख़ारिज पर ख़ारिज करते जा रहे है। कभी उन्हें लड़की चरित्रहीन लगती है तो कभी उनका ज्योतिष बताता है कि लड़की छत से कूद कर आत्महत्या कर लेगी। उनके प्रसंग बहुत लम्बे है उन्हें रहने देते है।  

 उनकी  संगत का असर मुझ पर  पड़ना स्वाभाविक था। सूर्य रेखा , मौत की  रेखा , चन्द्रमा , उठे पहाड़ आदि का ज्ञान थोड़ा बहुत सीखा और बस मजे एक लिए ही हाथ देखने लगा। यह ऐसी चीजें है जिनमे अनायास रूप में ख्याति बहुत तेजी से फैलती है। उन्नाव में जहाँ किराये पर रहता था , उसी मकान में एक अंकल भी किराये पर रहते थे। अपनी पत्नी व अकेले बेटे के साथ रहते थे। एक स्कूल में चौकीदार थे। सीधी साधी आम जिंदगी। बड़े मजाकिया थे। बड़ी मजेदार वाकये बताया करते थे। अब यह कहानी लिखते वक़्त उनकी कुछ और कहानियाँ भी याद आ गयी है मसलन एक अनपढ़ की बढ़िया शादी ( जल्द उस पर लिखूंगा )।  

एक रविवार वो छत पर वो धुप  खा रहे थे , मैं भी एक किताब लिए , आँगन के जाले पर लेटकर धुप के मजे ले रहा था। अंकल पास आये और बोले "मेरा भी हाथ देखो।" मैं मुस्कराया और बोला " अरे , बस ऐसे ही टाइम पास करता हूँ " . हाथ पकड़ा पर वो बोले  " नहीं देखो , कुछ भी बताओ " . मैंने हाथ पर नजर डाली और ऐसे ही बातें बताने लगा। वो काफी गंभीर थे बोले- " नहीं तुम कुछ भी नहीं बता पर रहे हो।  देखो इसमें कही लिखा है कि मैंने मर्डर किया है " . एक पल को मैं सन्न रह गया। अंकल मेरे पास और खिसक आये और गुप्तगू करने लगे।

लगभग 10 पहले एक मर्डर की कहानी बताने लगे। चम्बल इलाके के किसी गावँ से थे। उनके गावं में कुछ दबंग लोग रहा करते थे और इन्हें आय दिन परेशान करते थे। उसी परिवार में कोई मलेट्री में नौकरी पा गया तो उस परिवार की दबंगई और बढ़ गयी। ऐसे ही किसी मौके पर अंकल की और उनके परिवार की शरेआम खूब पिटाई की होगी। उसी रात अंकल ने कहीं से देशी असलहे की व्यस्था की और मलेट्री मैन और उसके भाई को गावं में दौड़ा दौड़ा कर मारा। उसके परिवार के साथ साथ सारे गांव वाले हैरान थे कि अंकल जैसा सीधा साधा आदमी ऐसा कर सकता है। पर जब आदमी हर तरफ से परेशान होता है तो उसको कुछ सूझता नहीं।

मर्डर करके वो जंगल तरफ भाग गए। वो सोचते थे कि किसी डाकू के गैंग में शामिल होकर बाकि जीवन उन्हीं साथ काटेंगे। अंकल को काफी खोजने के बाद भी कोई गैंग मिला नहीं। कुछ रोज जंगल में काटी और एक दिन पुलिस में जाकर सरेंडर कर दिया। इसके बाद उनके परिवार ने जमीन बेचना शुरू किया। उनकी जमानत आदि में लगभग सारी जमा पूंजी खत्म हो गयी। बहुत लम्बी कहानी है , काफी दिन तक किसी जज के घर माली /नौकर बने पड़े रहे।  फिर  किसी संस्था के शिविर में महीनों रहे । फिर इस स्कूल में चौकीदार के रूप में ड्यूटी करने लगे।  उन्हीं दिनों हम से मुलाकात हुयी थी। कुछ साल बाद जब हम वापस उनसे मिलने गए तब वो वहाँ नहीं थे। उन्हें मर्डर करने का बहुत अफ़सोस था। मुझे आज वो शब्द याद हैं - " जोश में आकर कभी किसी  मर्डर न करना चाहिए। आदमी बिक जाता है मुकदमे आदि में।"  उनको अपने एकलौते बेटे की भी चिंता रहा करती थी। क्या पता उसकी जान के लिए , इस तरह से मेरे शहर में छुप कर रह रहे हो।   

एक और बड़ी रोचक बात याद आ रही है। वो बहुत ज्यादा पढ़े लिखे न थे पर उनको  जीवन के तमाम अनुभव थे.  उन दिनों मुझे नावेल पढ़ने का बड़ा शौक था। अंकल मेरे हाथ में मोटी मोटी किताबें देखते तो कहते कि तुम्हारी नौकरी जरूर लगेगी। मैं मुस्करा कर कहता - यह किताबें तो बस टाइमपास है। बेरोजगारी के दौर में एक छोटी सी सरकारी नौकरी , बहुत ही बड़ा ख्वाब हुआ करती थी। नावेल पढ़ते पढ़ते कब विपिन चंद्र , मजीद हुसैन व  लक्ष्मीकांत को पढ़ने लगा पता ही न लगा। खैर , आज पलट के देखता हूँ तो लगता है उनके शब्दों में सरस्वती थी।

( कहानी की तरह पढ़े। किसी भी जीवित या मृत व्यक्ति से इसका कोई लेना देना नहीं है )

© आशीष कुमार , उन्नाव , उत्तर प्रदेश। 

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