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गुरुवार, 19 सितंबर 2019

Story of a disciplined man


एक सिद्धांतप्रिय व्यक्ति 

आप अगर पहली बार पढ़ेंगे तो शायद आपको अजीब लगे पर यह मेरे लिए नया नहीं है। इससे पहले इसी तरह की तीन घटनाएं लिख चुका हूँ। 

यह घटना अनायास ही पता चली थी। यह अपने पूर्व विभाग यानि कस्टम एंड एक्साइज , अहमदाबाद  की बात है. एक दिन एक सीनियर से एक पुराने अधीक्षक सर के बारे  में बड़ा दुखद पता चला।  

जहाँ मेरी सबसे पहले पोस्टिंग हुयी थी। वहाँ से बगल की रेंज में मेरा ट्रांसफर हो गया था। उस बिल्डिंग में एक डिवीज़न व 5 रेंज थी। मैं पहले से पांचवी में चला था। पहली रेंज में नए साहब आये उनके बारे में पहले अपने साथी मित्र से बातचीत किया करता था , बाद में सीधा सर से ही बात होने लगी थी। बड़े सैद्धांतिक व्यक्ति थे। उनके अपने बड़े गहरे विचार हुआ करते थे। शायद उनके बेटे ने  iit का एग्जाम दिया था , कभी कभी वो मुझसे रिजर्वेशन की बात किया करते थे कि बड़ा गलत है , मेरे बेटे के इतने नंबर है पर उसका न हुआ , अमुक कटैगरी में इतने पर ही हो गया। मैं ऐसे मसलों पर कभी तर्क करने की भूल नहीं करता हूँ , हमेशा ही उनसे सहमत रहता था। इसलिए वो खुश रहते थे। एक दिन बताया कि मेरा बेटा बिल्डिंग के नीचे वाले कार स्कूल में कार सीखने आता है। मैंने पूछा कौन सी  कार है आपके पास , बोले अभी कोई न है जब सीख लेगा तो कार भी ले लूंगा। मुझे थोड़ा अजीब ही लगा क्योकि विभाग में उनकी पोस्ट पर नौकरी करने वाले लोग आम तौर पर पूरी तरह से सेटल होते थे , कार तो बड़ी मामूली बात थी।  

खैर , अब कई सालों बाद उनके व्यक्तित्व की तमाम बातें याद नहीं आ रही है पर इतना याद है कि अगर उनके केबिन में जब भी जाना हुआ तो पकड़ कर बैठा लेते थे और अक्सर कोई न कोई मुद्दा उठाकर गरमा गर्म बहस छेड़ दिया करते थे। एक बात याद आती है। उनका जो इंस्पेक्टर था वो मेरा सबसे पहला कलीग था। हम दोनों ही इंस्पेक्टर के और पर पहली रेंज में कुछ दिन साथ रहे थे। ये जो साथी इंस्पेक्टर थे , वो भी बड़े दुर्लभ किस्म के इंसान थे। उनके बारे में पूरा का पूरा एक ग्रन्थ लिखा जा सकता है आज थोड़ा इशारा करके बढ़ते है। 

ये इंस्पेक्टर बिहार से थे , पहले मुंबई में टैक्स असिस्टेंट थे। उनको देखकर मुझे बिहार से जुडी वो कहानियाँ /लड़के याद आते जो रात दिन पढ़ाई करके अपनी किस्मत लिखते है। अगर आप उनसे मिले तो सोचेंगे कि यह इंसान किस समय में जी रहा है। बहुत ज्यादा ही सीधे , मासूम, मंद ( कार्य करने की गति ) व पिछड़े ( इसे जाति से न जोड़े , वो ज़माने से बहुत पीछे चल रहे थे ) थे। ऊपर जिन साहब की बात की है वो इनको तमाम तरह के काम सौंपते। जिसे मुझे याद आ रहा है कि एक बार उन्होंने इनसे हिंदी से जुडी रिपोर्ट तैयार करने को बोली। यह फील्ड के लिहाज से रेगुलर कार्य न था। अब इंस्पेक्टर साहब ने धीरे धीरे काम करना शुरू किया और कई हफ्ते तक उसी में व्यस्त रहे। कई साल पुरानी फाइल से हिंदी में लिखे  लेटर निकाले गए और उनका क्रमवार विवरण तैयार किया गया। दरअसल उस रेंज में कार्य न के बराबर था , इसलिए बड़े साहब इस तरह के कार्य खोजते व इंस्पेक्टर साहब अपनी मंथर गति से कार्य करते रहते। अन्य प्रकरण याद नहीं , यह भी याद आ रहा है कि उन्हें यह पता था कि मैंने upsc का इंटरव्यू दे रखा है, इसलिए वो मुझे तमाम तर्क करना चाहते थे. 

ऊपर जो अनायास वाली बात लिखी है वो इसलिए है। उस विभाग में अंतिम समय मैं ऑडिट में पोस्टेड था। वो मंथर गति वाले इंस्पेक्टर साहब भी साथ ही पोस्टेड थे। उन सीनियर से बातों बातों में पुराने साहब का जिक्र छिड़ा तो सर ने बताया कि उन्होंने तो सुसाइड कर लिया था। मैं सन्न रह गया। मेरे सामने उनका चेहरा कौंध गया। सर ने बताया कि एक रात (शायद सर्दियों की ) सुबह ४ बजे अपनी स्कूटर पर पत्नी के साथ वो साबरमती नदी ( अहमदाबाद ) के पुल पर गए, स्कूटर एक तरफ खड़ी करके पति पत्नी ने छलांग लगा दी। मेरी तरह आप सोच रहे होंगे वजह क्या रही होगी। सर के अनुसार अपने बच्चों की अनुशासनहीनता , बात न सुनने की वजह।  तमाम बार वो पढ़ाई -लिखाई को कहते पर शायद बच्चों को उनकी बात का ज्यादा फर्क नहीं पड़ता था। शायद उनके पैतृक निवास में माँ ( निश्चित नहीं ) आदि बीमार रहा करती थी। यही  मिश्रित कारण थे।

आप भी हैरान होंगे पर मैंने बाद में धीरे धीरे यह महसूस किया कि उक्त  बातें ही रही होंगी। कितनी विडंबना की बात है , संतान अपने माता पिता को कितना दुःख देती है , यह शायद ही वो कभी समझ सके। आत्महत्या से जुड़ी यह चौथी कहानी है जो पिछले दिनों अचानक याद आयी और रह रहकर बाध्य करती है कि इसको शब्दरूप में जरूर ढालों।  

( कृपया उक्त विवरण को काल्पनिक रूप में लिया जाय , किसी भी  जीवित या मृत व्यक्ति से इसका कोई लेना देना नहीं है।)

दिनांक - 19 सितंबर 2019                                                                                          ©    आशीष कुमार , 
                                                                                                                               उन्नाव उत्तर प्रदेश।

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