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रविवार, 6 सितंबर 2015

My reward : a sweet message from our reader....

 काफी समय पहले , इंटरनेट पर हिंदी से जुडी सामग्री और मार्गदर्शन के आभाव की पूर्ति हेतु मैंने ब्लॉग/पेज  बनाया पर लिखने लगा।  इस दौरान मुझे सैकड़ो मित्रो से बातचीत का अवसर मिला , संवाद हुआ। कभी कभी कुछ अनजान लोग भी , बहुत सुन्दर प्रतिक्रिया देते है तब बहुत अच्छा FEEL होता है।  कल मुझे एक मैसेज मिला। मेरे लघु प्रयास को ऐसे प्रोत्साहन से महती संबल मिलता है। साथ में जुड़ने के लिए सभी को पुनःश्च शुक्रिया।



आदरणीय आशीष सर,

मैं नहीं जानता आप कौन हो ? जब मैनें सर्च इंजिन में 'आईएएस हिंदी' खोजा तो आपका पेज खुल गया ! पेज को स्कीप करने ही वाला था कि मेरी नज़र एक पोस्ट जिसमें इकॉनोमिक्स के 'इम्पोर्टेंट टॉपिक' पर पड़ी ! मैनें उल्लेखित उन सारे अध्यायों की सूची पढ़ी ! पढ़कर खुशी इस बात की हुई की आपका चयन बिल्कुल सटीक है और दु:ख इस बात का कि काश: मैं आपके पेज को पन्द्रह दिन पहले पढ़ लेता तो इस वर्ष की प्रांरभिक परीक्षा का एक प्रश्न जिसके बारे में मैनें कहीं नहीं पढ़ा था "बासल- 3" सही हो जाता (यानी 2.67 अंक का फ़ायदा) !
यहाँ उल्लेखनीय है कि महोदय, मैनें इसी वर्ष स्नातक किया है और महज दो महीने की गभींर तैयारी (स्वाध्याय) से इस साल की सिविल सेवा की प्रांरभिक परीक्षा में प्रविष्ट हुआ और मेरा स्कोर 92 (जीएस पेपर में, कैटेगिरी- ओबीसी) बन रहा है ! मुझे नहीं मालूम प्रा. परीक्षा उतीर्ण कर पाऊँगा कि नहीं पर मेरी यह धारणा पहले से अधिक प्रबल हो गयी है कि "हाँ, मैं कर तो सकता हूँ !"
महोदय, आपका कार्य नि:संदेह बेहतरीन और सराहनीय है ! हिंदी माध्यम के छात्रों के लिए उपयोगी सामग्री और लक्ष्योन्मुखी मार्गदर्शन का आज भी अभाव है ऐसे समय में आपका कार्य और भी श्रेयस्कर हो जाता है ! जिस तरीके से आप लिखते हो, साहित्यिक पृष्ठभूमि झलक रही है ! हाँ, इतनी गंभीर मानवीय संवेदनाएं, परिपक्व अनुभव, चयनात्मकता और विश्लेषित मार्गदर्शन साहित्य ही दे सकता है ! महोदय, मैं साहित्य से तो नहीं हूँ पर सिविल सेवा के मुख्य परीक्षा के लिए मेरा यही विषय है ! बहुत लगाव है हिंदी रग-रग में बसती है ! सिविल सेवा एकमात्र लक्ष्य है, सामर्थ्य भी है (बोर्ड परीक्षा में राजस्थान टॉपर रह चूका हूँ) और जूनून भी है मगर पारिवारिक और आर्थिक परिस्थितियां बहुत विपरित है ! मेरे माता-पिता नरेगा में दिहाड़ी-मजदूरी कर परिवार चलाते है ऐसे में बहुत बार किताबें खरीद पाना भी मुश्किल हो जाता है !
खैर, सफ़लता कोंचिग फ़ैक्टियों और भारी भरकम स्टडी मैटेरियल की भी मोहताज़ नही होती, सीमित संसाधनों में भी अक्सर अवसर तलाश लिए जाते है ! मौलिक बुद्धि और आंतरिक ऊर्ज़ा का दोहन अत्यावश्यक है ! "जब निकल पड़ा है प्यासा तो ये ज़रूरी नहीं है कि हर जगह शुष़्क जमीं ही आए, दरिया भी ज़रूर आयेगा !" महोदय, आपसे विनम्र प्रार्थना रहेगी कि आप हमारा सतत् मार्गदर्शन करते रहें और जामवंत की भूमिका निभाते रहे ! अाख़िर में आपके नि:स्वार्थ कार्य और मार्गदर्शन के लिए धन्यवाद और एक बड़ा सारा सलाम ! - विकास कुमार लम्बोरिया गाँव- खरसण्डी, त. नोहर, जिला- हनुमानगढ़ (राज.)

गुरु की कहानी

मंगलवार, 9 जून 2015

वो भूरी आखो वाला लड़का

वो भूरी आखो वाला लड़का

HIGH SCHOOL  में मेरे सबसे कम अंक ENGLISH  में आये थे और इंटर में सबसे ज्यादा अंग्रेजी में तो इसकी वजह मेरे अंग्रेजी के सर थे जिनके पास मैंने अंग्रेजी की कोचिंग की थी। ये वो दौर था जब मुश्किल  से लोग प्रथम पास होते थे। सारा साल मै कहता रहा कि अंग्रेजी में कोई ५० अंक से ज्यादा लाये  तो वो RECORD तोड़ देगा।
लघु कथाः गिरगिट
जब रिजल्ट आया तो मै सेकंड डिवीज़न पास हुआ पर मेरे अंग्रेजी में ६८ मार्क्स थे और ये सारी क्लास में सबसे ज्यादा था। सच कहु जैसा कि सर ने बताया इतने अंक पिछले कई सालो में नही आये थे। मै इसे अपने सर का आशीर्वाद ,मानता हूँ। मेरे वो आइडियल थे मुझे साहित्य में रूचि  उनसे ही पैदा हुई थी। मौरावां की LIBRARY  में कितनी ही शाम नावेल   गुजरी थी।
अगले साल सर ने  अपनी कोचिंग में इसके लिए मुझे PRIZE  दिया गया। यह के कांच के बॉक्स में  क्रत्रिम फूल थे।  उन दिनों यही GIFT चलते थे। जब मैने गिफ्ट ले कर वापस बेंच में आकर बैठा तभी किसी ने बोला “ बेटा , तुमने बस एक अंक से   मुझे पिछाड़ दिया , वरना ये प्राइज मेरा था। “ ये वो लड़का था जो सारा साल TEST में TOP   करता रहा पर असली एग्जाम में सिर्फ १ अंक से हार गया था। उसकी आँखे भूरी थी। गोरा था। उसकी WRITING बहुत अच्छी थी। हमेशा अपने आप को अच्छा दिखाने की कोसिश करता था। शायद जब वो ११ कक्षा में था   तभी से टूशन पढ़कर खर्च निकला करता था। उन दिनों सब गरीब थे चाहे हम हो  या वो।

इंटर करने के बाद मै दूसरी जगह चला आया और सारे दोस्त खो गए। बस कभी कभार किसी से कुछ पता चल जाता तो अच्छा लगता। मै उसे अक्सर मिस करता वजह शायद उसकी पतिद्वन्दिता थी। ये जानने का मन होता कि वो कहा होगा और क्या करता होगा।
FOR UNSUCCESSFUL PERSON
आप ने मेरी एक पुरानी पोस्ट पढ़ी होगी “आप एक्सेल के बारे में क्या  जानते है” जिसमे मै डेल्ही में एक पुराने दोस्त में मिलता हूँ काफी सालो के बाद। वहीं मुझे कुछ पता चला उस भूरी आँखो वाले साथी के बारे में। जिस दोस्त के पास रुका था वो उस लड़के का बहुत करीबी था उसने मुझे यूँ पूछा कि  तुम्हे वो याद है ? मै बहुत बेकरारी से बताया मै उसे बहुत याद करता हूँ। सच कहु मुझे उसकी बातें बहुत याद आती थी।पर उसके आगे की कहानी जानकर मुझे बहुत गहरा झटका लगा। दिमाग शून्य पड़ गया।

आगे की कहानी जैसा मेरे दोस्त में मुझे बताया

इंटर करने के बाद भूरी आँखो लड़का , KANPUR अपने भाई के पास चला गया। जहाँ वो दोनों भाई टूशन पढ़ा पढ़ा कर जीवन में आगे बढ़ने के लिए जूझ रहे थे। मेरा सहपाठी पहले से ही बहुत खूबसूरत था पर कानपुर आकर वो और भी ज्यादा निखर गया। कसे मसल , भूरी आँखे , घुंघराले बाल और बहुत बहुत गोरा रंग। मतलब कि उस पर कोई भी लड़की फ़िदा हो सकती थी। जैसा कि दोस्त ने बताया वो अब बदल चूका था अब वो बहुत स्मार्ट लगता था और उन चीजो में पड़ गया जिनमे नही पड़ना चाहिए।

एक रोज DELHI वाले दोस्त , के पास ये भूरी आँखो वाला , एक विवाहित महिला ( उससे करीब १५ साल बड़ी ) को लेकर पहुंच जाता है , इस गुजारिश के साथ कि उससे कुछ रोज रुकने दे। ये क्या हुआ , कैसे हुआ और क्यों हुआ इसके जबाब कभी नही खोजे जा सकते है। बस प्रेम हो जाता है वरना जिस लड़के के पीछे खूबसूरत से खूबसूरत लड़कियां पीछे पड़ी हो वो अपने से उम्रदराज , शायद २ या ३ बच्चो के माँ के साथ प्रेम क्यों करेगा। उसने फसा लिया , फस गया , भगा लाया , भाग आया कुछ भी समझो बस दोस्त दरवाजे पर खड़ा था और मदद करनी ही थी। इस तरह के केस में पोलिस में केस भी दर्ज होता है। उधर उसका पति , उस महिला के बच्चे परेशान रहे होगे। मै बहुत हैरान था यह सब जानकर मुझे यकीन नही हो रहा था। हम दोनों ने कुछ अनुमान भी लगाये।
इलाहाबाद : पूर्व का आक्सफोर्ड वाला शहर
मसलन उस औरत का पति  पत्नी को TIME नही देता रहा होगा। ये शायद उसके बच्चो को पढ़ाता था। जहाँ तक उनके घर पर ही किराये पर रहता था। दुःख दर्द बाटते बाटते करीब आ गयी होगी। LOVE IS BLIND मुझे उसकी कहानी सुनकर महसूस हो रहा था। कोई सामाजिक नियम की परवाह नही , समझ नही आता था कि उन दोनों ने अपने पीछे छोड़े गए संसार की CARE क्यों न की।
जैसा कि अंदेशा था एक रोज पोलिस आयी उन दोनों को वापस कानपुर  ले गयी। वो भूरी आँखो लड़का बहुत जिद्दी और क्रोधी था। शायद किसी ने उसको कोई ताना मारा होगा। उसने फिनायल पी ली। जब उसकी तबियत बिगड़ी तो उसे HOSPITAL में भर्ती कराया गया। वो डेल्ही वाला लड़का , ENGLISH वाले सर सब लोग उसको अस्पताल  मिले और खूब समझाया। लड़का ठीक हो कर घर आ गया। पर कुछ रोज बाद  फिर उसने फिनॉल पी और इस बार बच न सका।
घटनाओ में कुछ इधर उधर  हो सकता है क्युंकि किसी तीसरे से सुनी है। यह SUICIDE की तीसरी घटना है जिसको मैंने शेयर किया और पहले भी लिखा था कि आत्महत्या करने वालों के साथ उनके राज चले जाते है बाकि सिर्फ अनुमान और कयास लगाये जाते है। मै स्तब्ध इसके बारे में सुनता रहा जब मैंने FEEL किया कि अब वो भूरी आँखो लड़का से कभी मुलाकात न हो पायेगी मुझे बहुत दुःख हुआ।  


एक प्रेरणादायक विचार

© आशीष कुमार    

गुरुवार, 21 मई 2015

जयपुर में एक दोपहर

गर्मी के  सीजन में अगर आप का टिकट कन्फर्म है तो बहुत सकून की बात है पर आपकी यात्रा के एक सप्ताह पहले आपका प्लान बदल कर कुछ दिन पहले जाना पड़ जाय तो .....
जाना २९ अप्रैल को था . ट्रेन में वातानुकूलित टिकट कन्फर्म थी पर कुछ वजह ऐसी बनी कि २५ अप्रैल को ही निकलना पडा . लम्बे समय बाद घर जाना हो तो समान भी काफी होता है . प्लेन के टिकट वैसे तो काफी सस्ते हो गये पर उसमे में अंतिम समय में टिकट लेने का मतलब अच्छा खासा खर्च .
इधर गुजरात , राजस्थान , देल्ही में स्लीपर  बसो  का खूब चलन है . रेड बस से टिकट बुक करायी और रात में १० बजे जयपुर जाने वाली एक बस में बैठ गया . सुबह ११ बजे जयपुर में था . यहाँ से शाम 7 बजे बस थी  कानपुर के लिए . इसलिए जयपुर में मेरे पास काफी समय था घूमने के लिए . फेसबुक से काफी मित्र जुड़े है जयपुर के , बहुत लोगो ने जयपुर आने के लिए  बोला भी था पर जब वक्त आया तो मेरे पास किसी का नंबर मौजूद नही . कुछ दिनों से जयपुर के एक  मित्र से बात भी हो रही थी पर मेरी लापरवाही , उनका नंबर सेव नही किया . काफी खोजा पर .......
गर्मी बहुत थी सामान भी काफी था . मै वहां उतरा था जहाँ पोलो विक्ट्री है . पास में एक शाकाहारी भोजनालय था . उस दोपहर मै बहुत स्वादिस्ट खाना खाया . १५० रूपये में अच्छा खासा खाना था . काफी दिनों बाद दाल मखानी  खायी बहुत लजीज थी .
अब कहाँ जाऊ , हवामहल के लिए बस जा रही थी पर गर्मी में हिम्मत न हुई . पास में पता किया कोई सिनेमाघर हो तो फिल्म ही देख लू . किसी ने राज मंदिर का नाम लिया तो मुझे कुछ याद आ गया , मैंने बचपन में इसके बारे में कुछ पढ़ा था शायद यह भारत का सबसे खुबसुरत सिनेमाघर है .
वहां भी नही गया क्युकि पता चला कि पोलो विक्ट्री , जहाँ मै था वो खुद एक सिनेमाघर था . सिंगल स्क्रीन में बहुत दिन बाद पिक्चर देखने जा रहा था . इस सप्ताह  बहुत बकवास फिल्म रिलीज हुई  थी . फिल्म लगी थी इश्क के परिंदे   . उसका पोस्टर देख लगा राजस्थानी फिल्म है  .
फिल्म की टिकट २. ३० बजे मिलनी  थी पर अभी १ ही बजा था . उपर कोई भी नही था . इतना सन्नाटा ..... एक चेयर खाली पड़ी थी . थिएटर शायद उपर था . मै नीचे ही हाल में अकेला बैठा था . रोमिंग में होने की वजह से किसी से फ़ोन पर बात करके भी  टाइम  नही काटा जा सकता था . व्हाट एप तो चल रहा था पर वहा भी कोई नही था ..जब मै किसी को वक्त नही देता तो भला मेरी बोरियत को कौन मिटाए . पर मुझे चरित्र मिल ही जाते है . कुछ लोग धीरे धीरे आने लगे थे . तभी मैंने कुछ सुना साला आज १५ , २० साल बाद फिल्म देखने आया हूँ .”  मै समझ गया आ गया कोई आस पास है जो अपने मतलब का है . पास में ही दो लोग खड़े थे . एक कसे बदन का ३५ – ३६ साल का इन्सान था . मैंने भी बात करने की गरज से पूछा “ऐसा क्या हुआ जो अपने  इतने सालो से पिक्चर नही देखी . बस उस बातूनी आदमी को छेड़ने ने की जरूरत थी वो शुरू हो गया और तब तक शुरू रहा जब तक हम सिनेमाघर के अंदर नही गये .
वो पहले CISF में जॉब करता था . फिर जॉब छोड़ थी . अब कोई कोचिंग चला रहा था और ठेकेदारी शुरु करने वाला था .  आज मुझे माफ़ करना वजह उस इन्सान के व्यक्तित्व को दिखाने के लिए मुझे कुछ सीमाये तोडनी पड़ेगी .
सिनेमाघर में शा  4 -5   जोड़े भी फिल्म देखने आये थे . उसमे हैरानी की बात बस इतनी थी कि महिलाये शादीशुदा थी और उनके साथ जो लड़के थे वो बहुत कम उमर के  थे . यह दूर से ही समझा जा सकता था कि वो सब पति पत्नी नही थे .  बातूनी आदमी इस बात को बहुत नोटिस कर रहा था . वो सारा ज्ञान दिखाने लगा . उसने बताया कि अमुक शहर में इससे ज्यादा ऐसा चलन है ... फिर उसने कुछ और ज्ञान बताया जैसे केरल की महिलाये का चेहरा अच्छा होता है पर रंग काला और जम्मू – कश्मीर की तरफ  रंग साफ होता है पर चेहरा लोटे की तरह होता है पूर्व में तो परी जैसी लड़कियाँ  रहती है ..बस कयामत ..मुझे उसके सारे शब्द नही याद आ रहे थे पर उसका ये ज्ञान मुझे बहुत मजेदार लग रहा था . वो इस जगहों पर जॉब कर चूका था . उसने बोला उधर असम में जहाँ परी जैसी लडकियाँ रहती है वहां कोई चक्कर नही शुरु कर सकते वरना तुमको उनसे जबरदस्ती शादी करनी पड़ेगी और यह मत सोचना कि शादी के बाद उनको  तुम अपने घर ले आओगे . मैंने पूछा की अपने यहाँ का भी कुछ बता दीजिये तो बातूनी आदमी में तुरंत बोला अपने यहाँ सब मिक्स है . बातूनी आदमी अपने पुरे रंग में था . इतना रोचक बाते कि मेरे आस पास करीब ५ -६ लोग घेरा बना कर खड़े बात सुनने लगे .  अब सारी  बाते बताने लायक नही है .
जब टाइम हो गया तो हम सभी सीढियों पर चढ़ कर उपर गये . उपर जो गैलरी थे वो बहुत ही भव्य थी . अपने जवानी के  दिनों में यह सिनेमाघर भी क्या लगता रहा होगा . न जाने कितनी ही प्रेम कथाये इसमें पनपी होंगी . चोरी चोरी कितने ही इश्क के परिंदे इस खुबसूरत सिनेमाघर में प्रेम के दाने चुगे होंगे .
 उपर भी बातूनी आदमी शुरु था . जहाँ वो कपल थे उनके पास जाता और जोर जोर से कुछ सुनाता . ऐसा लग रहा था कि वो जो चोरी से फिल्म देखने आये थे उनको और नर्वस करना उसको बड़ा आनंद दे रहा था। मुझे अक्षय कुमार पर फिल्माया वो गाना  याद आ गया “ लड़की देखी मुँह से सिटी बजी हाथ से ताली
Ladki dekhi munh se seeti baje haath se taali - 2

Saala aila usma aiga pori aali aali.......

Chaahe Ghadwaal ki ho, ya Nainitaal ki ho

Chaahe Punjab ki ho ya phir Bangaal ki ho

Lovely haseen koi bheed se dhoondenge - 2
Not permanent, temporary dhoondenge re “


. अन्दर जा कर मुझे कुछ और भी पता चला . अंदर जो बातूनी टाइप, सिटी बजाने वाले आदमी थे उनको हाल के एक तरह बैठाया गया और जो कपल थे उनको दूसरी तरफ  सबसे पीछे . शायद हाल वाले कपल की भावनाए समझते थे .
पोस्ट काफी लम्बी हो चुकी है इसलिए इसे यही से खत्म समझ सकते है बाकि मेरी स्टाइल तो पता ही है ....मेरी कहानियाँ कभी पूरी नही होती .....

© आशीष कुमार ( पिछले दिनों मेरी पोस्ट चुरा कर किसी ने अपनी बता कर पोस्ट की है ...कृपया ऐसा न करे . आप जैसे कुछ लोगो की वजह से लिखने का मन नही होता है ....काफी दिनों बाद कुछ लिखा है .....आशा है पसंद आयेगा  )


शुक्रवार, 10 अप्रैल 2015

भाई कुछ लगा लो ?


           New car लेकर kanpur जाना हुआ।  एक शॉप पर रुक कर कुछ खरीद रहा था।  एक आदमी पास आया और बोला " आपकी कार बहुत चमक रही है। " मै मुस्कराया और बोला "अभी जल्दी ही निकली है तो चमकेगी ही"।  वो कुछ बेचैन लग रहा था।  वो बोला "भाई साहब , कार में कुछ लगा लीजिये , बहुत चमक रही है कही नजर न लग जाये।  कुछ कालिख पोत लीजिये। मै हँसने लगा और बोला कालिख तो मिल नही रही है आप कहो तो एक black पालीथीन पीछे एंटीना में लटका लूँ । हँसी मजाक करने की मेरी भी बहुत आदत है।  

           खैर वहां  से मै निकल कर बेनाझाबर रोड तरफ आ गया।  कार में कुछ सजवाना चाहता था।  नयी कार थी। Road पर डर लग रहा था कही कोई खरोच न मार दे। अचानक मेरी नजर अपने कार में अगले दरवाजे पर गयी मेरा दिल धक से रह गया।  वाइट कलर पर निशान तुरंत पता चल जाते है।  मैंने दुखी मन से दरवाजे पर हाथ फिरा कर देखा तो मुस्कुरा उठा।  निशान न थे।  वो काली ग्रीस थी जो किसी  न जाने कब पोत थी। 

शनिवार, 3 जनवरी 2015

PART: 3 सफेद सूट वाली लडकी ?

PART: 3

सफेद सूट वाली लडकी   ?


मुझे पता नही क्या हुआ और मैंने ऐसा DECISION क्यू लिया बस  उस SATURDAY  कॉलेज से लौट कर घर जाने का मन न हुआ।  दिल ने कहा  ये घुटन भरी LIFE अब मै नही जी सकती।  एक ऐसी जिंदगी जिसमे मेरी कोई सहमति नही बस मॉम , डैड की मर्जी के अनुसार चलना। मै क्या करना चाहती हूँ उन्होंने कभी जानना ही नही चाहा।  दिल ने कहा  बस  इस उबन भरी जिंदगी से कही  दूर चली जाऊ जहां मै अपनी शर्तो पर जी सकु , 
स्कूटी STAND पर ही लगी रहने दी।  ऑटो पकड़ कर RAILWAY STATION चली गयी। मुझे पता नही था जाना कहा है।  बस पहले प्लेटफॉर्म पर पहली जो गाड़ी खड़ी थी उसी में चढ़ ली।  COACH के बाहर मैंने ऐसे सीट देख ली थी जहाँ  आसानी से कुछ देर बैठा जा सकता था।  मेरे पास TICKET नही था और चालाकी क्या होती है जानती भी नही पर जब आप अपनी धुन में होते है रास्ते अपने आप सूझने लगते है।  

सीट पर जाकर देखा एक लड़का बैठा था। मुझे देखते ही उसने  मेरे लिए आधी  सीट छोड़ दी।    ज्यादा तो नही पर मुझे इतनी समझ तो  आ  ही गयी थी कि  चिपकू लड़को से कैसे बचा जाय।  सीट पर बैठने से पहले अपना APPLE PHONE कान में लगा कर झूठे ही  फुसफुसाने लगी। इससे दोहरा असर होता एक उसको मुझसे जान पहचान करने का अवसर न मिलता दूसरा मै जताना चाहती थी कि  वो मेरे फ़ोन का SILVER C  वाला एप्पल का लोगो देख ले और समझ ले कि मै  कोई मामूली लड़की नही हूँ। आप सोच रहे होंगे मै किस तरह की लड़की हूँ।    आप मुझे गलत मत समझईये प्लीज जो सच्चाई है वही  बता रही हूँ।  
ये मेरी उम्मीद से परे  थे मुझे सीट पर बैठे ५ मिनट हो गए थे अभी तक उस लड़के ने  एक  बार भी  मेरे चेहरे पर नजर नही डाली थी।  मै अब अपने फ़ोन पर गेम खेलने लगी थी।  मै  चाहती थी कि  मै  व्यस्त दिखू  ताकि वो मुझसे चिपके नही। वो  अच्छी कद और शक्ल  का था।  उसकी एथलेटिक बॉडी को देख कर ऐसा  लगा   कि  किसी आर्मी या पोलिस में जॉब करता है।  कॉलेज के लड़को जैसा नही था।  कोई फैशन नही जैसे किसी छोटे शहर का हो।  मैंने एक  दो बार जब भी चोरी से उस पर नजर डाली वो मेरी ड्रेस  को घूर रहा था। वैसे मेरी ड्रेस घूरने लायक थी आज कॉलेज में BEAUTY CONTEST  था।  उसके लिए मैंने  वाइट कलर का FROCK SUIT पहना था। मेरी ड्रेस इतनी अच्छी थी कि  मै  बता नही सकती।  आम तौर पर मै  JEANS TOP पहनना पसंद करती हूँ।  मै  कम्पटीशन में जीत गयी थी।  मन में इतनी उलझन थी कि DRESS  चेंज किये बगैर मै  अपनी उस जिंदगी से भाग ली।

ये  कैसी उलझन थी ? मै  चाहती थी कि  उसका ध्यान  मेरी तरफ भी  जाये  और  मै  उदासीनता भी दिखा रही थी। उसकी ख़ामोशी अखरने लगी थी।  ट्रैन के कोच की SIDE SEAT पर एक स्मार्ट लड़के एक साथ सीट शेयर कर रही थी और वो लड़का मेरी ड्रेस और बालो में ही उलझा रहे।  मै बात करने के लिए बेचैन हो रही थी।  पागल एक बार मेरे चेहरे पर भी नजर डाल  तो सही मेरी काली गहरी आखो में डुंब न जाये तो कहना।  न जाने कितने लड़को ने मुझसे बात करनी चाही पर मैंने उन्हें कभी भाव न दिया और आज जब मै तुम्हारे बारे में जानने के लिए बेचैन हो रही हूँ तब तू चुप बैठा है। मै  सच में बहुत ज्यादा उत्सुक हो रही थी आखिर ये शक्स है कौन ? 

शायद मै  ही पहल कर उस लड़के से बात शुरू  देती पर तभी  एक और घटना हो गयी।  मेरी  सीट के पास  एक   शख्स आ कर खड़ा हो गया। उसका चेहरा लोहे जैसा सख्त दिख रहा था। BLACK COAT और हाथ में ब्रीफ़केस लिए वो अजनबी किसी विलेन जैसा लग रहा था।  आते ही उसने मुझे सीट से उठा दिया।  मै अपना   बैग उठा कर आगे बढ़ आयी।  मेरे पास कोई विकल्प नही था।  रिजर्वेशन की बात छोड़ो  मेरी पास तो टिकट भी नही थी।  

मुझे  बहुत शर्मिदगी हो रही थी।  उस सहयात्री ने मेरे बारे में क्या सोचा होगा ? मै  कितनी घटिया लड़की हूँ  जो झूठ मूठ  ही उसकी सीट पर अपना अधिकार जता रही थी।  मै कोच में आगे बढ़ आई दरवाजे के पास अपना PHONE  चार्ज करने लगी।  TRAIN में बहुत भीड़ थी।  दिवाली की छुट्टी में सभी अपने अपने घर जा रहे थे।  और एक मै  थी जो अपना घर छोड़ कर जा रही थी।   मै  उस बारे में अधिक सोचना नही चाहती थी।  बस  मैंने जो निर्णय लिया था वो सही था मैंने अपने आप को समझाया।  

रात  के १२ बज रहे थे।  फ़ोन तो चार्ज हो गया था  खड़े खड़े मेरे पैर दुखने लगे थे पर मै  क्या करती मेरे पास उसी जगह खड़े रहने के सिवा  दूसरा विकल्प न था। गाड़ी रुक रही थी शायद कोई STATION आ रहा था।  तभी मैंने देखा मेरा सहयात्री , उस अजनबी साथ मेरी  ओर  चले आ रहे थे।  मै  घूम कर खड़ी हो गयी मै  उसकी नजरो का सामना कैसे करती  ?  

वो दोनों उतर  रहे थे। समझ नही आ रहा था कि  वो दोनों  परिचित है या अपरिचित।  दोनों में कोई बातचीत नही।  बस  अजनबी के पीछे मेरा सहयात्री चला जा रहा था।  मेरी SIXTH SENSE ने कहा  ' कुछ तो गड़बड़ है। '  मैंने अपना CHARGER  निकाल  कर बैग में रख लिया। मै  भी उस स्टेशन पर उतर रही थी।     
       
STORY OF A REAL HERO

( कहानी जारी है >>>>>>>) © आशीष कुमार

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सोमवार, 7 जुलाई 2014

Think freely , Get extraordinary success

टॉपिक 41 

जरूरी है स्वतंत्र निर्णय 



LIFE में कई बार ऐसे मुकाम आते है जब आपको कुछ महत्वपूर्ण निर्णय लेने पड़ते है। आप से कोई AGREE नही होता है न घर न परिवार न यार न RELATIVE । सभी आपको को आसान, परम्परागत रास्ता चुनने को कहते है सलाह देते है। परम्पराओ को तोडना आसान नही होता है। अगर आप लीक से हटकर OPTION को चुनते है तो आपको बहुत सा विरोध , तरह तरह कि बाते सुनने को मिलती है। आप के सामने या पीठ पीछे कहा जाता है कि पगला गया है , दिमाग खराब हो गया है, सटक गया है ( अवधी में) . और अंततः आप का COURAGE  खत्म हो जाता है। चाह कर भी आप अपने तरीके से नही जी पाते है। प्राय : दूसरो की WISHES का पालन करने में ही LIFE समाप्त हो जाता है।


 Rousseau ने लिखा है कि मनुष्य स्व्तंत्र पैदा होता है पर हमेशा जंजीरो में जकड़ा रहता है। हममे से कुछ लोग ही इन जंजीरो को तोड़ पाने का साहस जुटा पाते है। कभी ऐसे इंसान से आप मिले जिसने हमेशा परम्पराओं को तोडा हो। वह आपसे हमेशा यही कहेगा कि पहले पहल आपका खूब विरोध होगा पर जब आपके निर्णय सही साबित होने लगेगें सब आप के साथ आ जायगें।

एक उम्र तक हम अपने माता पिता के DISCIPLINE  में रहते है और रहना भी चाहिए। हमे पता नही होता है कि क्या उचित है और क्या अनुचित ? पर एक समय के बाद आपके विचारो में टकराव होना शुरू हो जाता है। पिता कहते है कि बेटा तुमसे न हो सकेगा ( गैंग्स ऑफ़ वसेपुर के रामधीर सिंह कि तरह ) .आप मन ही मन सोचते है कि तुम अभी देखना मै क्या कर दिखाऊगां।
Paulo coelho लिखते है कि आप तब तक स्व्तंत्र है जब तक आप विकल्प नही चुनते। एक बार आप ने विकल्प को चुना आप कि स्व्तंत्रता खत्म हुई। विकल्प कैसा ही हो आप को उसे सही PROVE करना ही होगा।
वो जो लीक पर चल रहे है या चलने जा रहे है उनसे सहानुभूति जतायी जा सकती है। और वो जो परम्पराओ को तोड़ कर , सबकी बातो ,सलाहो को अनसुना कर अपने अनुसार , अपनी शर्तो पर , अपने बनाये नियमों पर , चल रहे है या चलने जा रहे है उनसे क्या कहा जाय। …… दोस्त जिंदगी तो आप ही जी रहे हो बाकि तो सब केवल जिंदगी काट रहे है।



(खेद है  पोस्ट पुरानी है कुछ लोग इस पोस्ट को पहलें पढ़ चुके है [पर आशा करता हूँ आपको पसंद आएगी।  काफी वयस्त हूँ इसलिए कुछ नया न लिखा पा रहा हूँ।) 

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