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मंगलवार, 17 जनवरी 2017

Nagmti ka virh

नागमती विरह वर्णन

हिंदी साहित्य में जायसी के पद्मावत में जैसा विरह वर्णन मिलता है वैसा अन्योक्त उपलब्ध नही । इन लाइन्स का आशय यह कि नागमती  कौवे और भवरें को संबोधित करते हुए कहती है कि आप मेरे प्रियतम से जाकर मेरी व्यथा कहो उनसे कहना कि  आपकी प्रियतमा , आपके वियोग में सुलग रही है और उसके धुएं से ही हम काले हो गए है ।

कितनी सरस,मार्मिक व रसमय व्याख्या है कि नागमती जल नही वरन सुलग रही है । अगर कोई चीज जलती है तो उससे धुँवा नही निकलता। नागमती तो तिल तिल मर रही है ।
एक और विशेष बात गौर करने वाली है , सूरदास ने भी गोपियों के विरह का वर्णन किया है जिसमे वह भी दिखलाते है कि गोपियं भी पेड़ो से बात करती है उनको धिकारती है ,
मधुवन तुम कत रहत हरे ,,,,,

पर यह उतना मार्मिक नही । इसीलिए नागमती का विरह वर्णन को रामचंद्र शुक्ल जी हिंदी की अमूल्य निधि माना है ।

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