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सोमवार, 6 मई 2024

Unnao ki Yaden

 उन्नाव की कुछ यादें

 

 

अतीत बड़ा सम्मोहक होता है। यूँ तो उन्नाव को छोड़े बरसों बीत गए। पहले अहमदाबाद के दिनों में कानपुर होते हुए घर जाना होता तो उन्नाव में एक दो रात रुकना हो जाता था। अब जब छुट्टी ही एक दिन की मिलती है तो सीधा गाँव वाले घर में आराम फरमाना सबसे सुकूनदायक लगता है। 

 

कल शाम एक पार्टी में जाते हुए , उन्नाव की दिनों यादें आने लगी। सबसे पहले याद आयी कचहरी वाली अंजलि स्वीट्स की दुकान , उसके समोसे , खस्ता और आलू की सब्जी। उसके जैसा स्वाद कहीं न मिला। मुझे ऐसा लगता है व्यक्ति के स्वाद का उसके परिवेश , क्षेत्र का काफी असर होता है। जब कभी टूशन पढ़ाकर लौटे और भूख लगी तो दो खस्ते खा लिए।  डिमांड इतनी की हर वक़्त , गरमा गर्म मिल जाते थे। उसके बगल में एक बहुत छोटा सा ढाबा भी हुआ करता था , जिसमे मटर पनीर और तंदूरी रोटी , मेरा हमेशा का आर्डर होता था।

 

एक दुकान GIC स्कूल के सामने अंण्डे वाले की थी। जिसका ऑमलेट बहुत डिमांड में रहता , उसकी टमाटर वाली चटनी के लिए लोग काफी दूर से आते थे। चुकि मै उन दिनों केवटा तालाब में रहा करता था और अंडे वाले का घर पास में ही था। उसके घर को देख लोग कहा करते थे कि बहुत पैसे छाप रहा है।

 

एक पानी के बताशे की दुकान राजकीय पुस्तकालय के ठीक पास लगती थी , जिसके दही वाले बताशे बहुत डिमांड में रहते थे। दरअसल एक रिश्तेदार जिन्हे हम लोग काफी बड़े (तथाकथित एलीट ) मानते थे , उनको वह पानी पूरी खाते देखा तो काफी हैरानी हुयी। दरअसल स्ट्रीट फ़ूड लगता था आम लोगों के लिए ही होता है, उन दिनों पानी के बताशे , दाल फ्राई फालतू चीजें लगती थी। अब दोनों ही चीजे मेरी पर्सनल fov है। 

 

एक दुकान  एग्गरोल वाले की थी नाम शायद सुरुचि एग्गरोल कार्नर था। पहले पहल जब एगरोल खाया मजा आ गया। उसके यहाँ शाम को ही दुकान खुलती थी और बहुत देर रात तक खुली रहती थी। लाइन में लोग अपनी बारी का वेट करते थे। साफ सफाई का वो विशेष ध्यान रखता था। बाद के दिनों में वहां एक अंकल , ने प्रॉपर नॉन वेज का ठेला खोला। उनकी बिरियानी मेरा कई रातों का डिनर बना।

उन्नाव रेलवे स्टेशन के ठीक सामने बस अड्डे के पास बाबा होटल हुआ करता था जो शाकाहारी भोजन के लिए बहुत अच्छा था। एक लोहे के जीने से ऊपर चढ़कर जाना पढ़ता था पर यहां भी बहुत भीड़ हुआ करती थी। पुदीने वाली चटनी और प्याज के साथ गर्म गर्म तंदूरी रोटी और पनीर , बहुत संतुष्टिदायक होता था। 

 

मनोरंजन स्वीट्स काफी पुरानी दुकान थी , मेरे ख्याल से जोकि उन्नाव के सबसे पहले रेस्टोरेंट में गिनी जा सकती थी। काफी भीड़ होती थी , कई बार गया भी पर उनकी कोई विशेषता याद न आती है।

 

एक नॉनवेज की और दुकान आ रही थी जो पेट्रोल टंकी (राजा शंकर स्कूल के सामने ) छोटी दुकान में चलती थी। उसका स्वाद आज भी जुबान पर याद है। 

और अंत में जोकि इन सबमे सबसे बाद जुड़ा - छपरा वाला होटल , कहचरी उन्नाव। इनकी चाय , कचौडी अति डिमांड में रहती। असली स्वाद चाय का था जोकि शुद्ध दूध , चाय पट्टी को पत्थर वाले कोयले पर बनती थी। उस चाय शोधापन बहुत मुश्किल  से मिलता है। 


अब ये सब दुकानों का अस्तित्व है या नहीं मुझे पता नहीं। शहर काफी बदल गया होगा। हर दुकान की अपनी एक कहानी बन सकती है पर कोशिस कि यादों का दबाव कम से कम समय में सब समेट ले। ये कहानी 2003 से 2010 के बीच की है। दरअसल ये अड्डे है जहाँ स्वाद की ललक बार बार ले जाती थी। बेरोजगारी के दिनों , ये सब लक्ज़री से कम न था। समय के साथ शहर बदले , लखनऊ , अहमदाबाद से अब दिल्ली पर उन्नाव के सिवा अड्डे जैसे कही और न बन सके। मुझे ऐसा लगता है हर व्यक्ति जिससे अपना शहर पीछे छूट गया , उनको भी अपने शहर की ऐसी ही यादें जेहन में आ ही जाती होंगी। 

 

©आशीष कुमार , उन्नाव।

6 May 2024.

 

 

 

 

 

 

 

गुरुवार, 3 जून 2021

Second wave Of corona

कोरोना की दूसरी लहर (01)

यह 25/26 अप्रैल की शाम के लगभग 4 बजे की बात होगी। ADM सर के पास बैठा चाय पी रहा था, सर फोन पर बात कर रहे थे कोई oxygen bed  के लिए कह रहा था, सर कह रहे थे कि देख रहा हूँ, पर मुश्किल है। ठीक इसी वक्त मेरा फोन बजा, मनोज नोएडा... ये मनोज श्रीवास्तव,उन्नाव से मेरे बहुत अजीज साथी थे, लगा कि उनको किसी के लिए बेड चाहिए होगा तभी याद किया।

फोन के दूसरी तरफ कोई महिला थी जो रोते हुए पूछ रही थी कि भैया आप आशीष बात कर रहे है ..मैंने कहा हाँ..आप मनोज की वाइफ बात कर रही हैं.. वो बोली हाँ भैया..प्लीज् भैया इनको बचा लीजिये..ये पलवल में भर्ती है ऑक्सिजन घट गई है 73.. प्लीज भैया इनको वेंटीलेटर वाला बेड दिला दीजिये दिल्ली में प्लीज्..

यह कोरोना की दूसरी लहर का पीक टाइम था, अस्पताल 100%भर चुके थे, लोग ऑक्सीजन बेड के लिए तड़प रहे थे..ऐसे में वेंटीलेटर बेड.. खैर जहाँ 2 हो सकता था पता किया ..पर कुछ न कर पाया..समझ में न आ रहा था कि अब इस वक़्त पलवल से दिल्ली कैसे आएंगे ..हरियाणा वाले कुछ sdm मित्र थे..उनसे कहूँ ..

इस बीच अपने excise के एक पुराने मित्र रविन्द्र यादव को भी बताया ..वो भी मनोज के परिचित थे.
वो भी मनोज के बारे चकित थे..अपने स्तर पर वो भी प्रयास करने लगे..मेरी हिम्मत पलट कर फ़ोन करने की न हुई कि मनोज की तबियत कैसी है..

उसी शाम 8 बजे के करीब रविन्द्र का ही फोन आया कि मनोज अब इस दुनिया में नहीं रहे.. पूरी रात नींद न आयी.. उसकी wife ने बताया था कि इनकी कोविड रिपोर्ट negative थी। 

सुबह उठकर मैं max वैशाली गया, मेरी तबियत भी 1 हफ्ते से खराब थी, कोविड पिछले अगस्त में ही हो गया था, इस बार कोविड टेस्ट नेगेटिव था पर मनोज की मौत से डर लगा कि CT स्कैन करा डाला, तमाम blood test भी। खैर सब ठीक रहा..2 दिन बाद एम्स के डायरेक्टर का व्यक्तव्य आया कि ct स्कैन , x रे से 300 गुना घातक है..यार समझ न आ रहा था , उन दिनों क्या चल रहा था.

मनोज अगर मैं कहूँ कि मेरा best friend था तो गलत न होगा। एक लंबा कालखंड रहा है.. 2006-07 का टाइम रहा होगा, उन्नाव की राजकीय पुस्तकालय जोकि कचहरी के पास है के रीडिंग रूम से मनोज से पहली मुलाकात हुई थी..दोनों ही स्ट्रगल कर रहे थे.. Cycle से घर घर ट्यूशन पढ़ाने जाया करते थे, साथ ही कंपीटीशन की तैयारी भी..

बाद में उसने अपने घर पर कोचिंग देना शुरू दिया, कुछ टाइम बाद उसने गांधीनगर, उन्नाव में रेंट पर जगह लेकर बड़ी कोचिंग खोल दी, मनोज क्लासेस के नाम से ..उसकी math बहुत अच्छी थी. इन्ही दिनों एक लड़की उसके पास पढ़ने आयी(जो बाद में उसकी वाइफ बनी, जिसने मुझे फ़ोन किया था)।

उससे इतनी यादें जुड़ी है कि 100 पन्ने भी कम पड़ेंगे..उन्ही दिनों एक शाम वो मेरे रूम अपने दोस्त के साथ आया , SSC Graduate level 2008 के फाइनल रिजल्ट आया था। उन दिनों मैं केवटा तालाब, उन्नाव में एक बहुत छोटे से कमरे में किराये पर रहा करता था, मनोज का चयन ऑडिटर पद पर हो गया था, मैंने भी exam दे रखा था, उसने कहा रिजल्ट चेक करो चल के बहुत कम मेरिट गयी हैं, उसके साथ एक और लड़का आया था उसका भी selection हो गया था। खैर हम साथ कैफे गए, मुझे जरा भी उम्मीद न थी पर मेरा भी ऑडिटर पद पर चयन हो गया था। उस शाम हमने बढ़िया पार्टी की..उन दिनों के हिसाब से बढ़िया पार्टी का मतलब अंजलि स्वीट्स जाकर समोसे, खस्ता और एक राजभोग ..शायद एक एक cold drink भी था।  पैसे  मनोज के शिष्य (अरविंद गौतम, जिसे मनोज छोटा ऑडिटर कहा करता था, अरविंद का चयन पहले प्रयास में हो गया था) ने दिए थे। ऑडिटर में मुझे लखनऊ, मनोज को मेरठ, अरविंद को इलहाबाद मिला था।

एसएससी ग्रेड्यूट 2010 मेरा व मनोज का चयन एक्साइज इंस्पेक्टर पद के लिए हो गया। दोनों ने अहमदाबाद में जॉइन किया, 23 जनवरी 2012 को। दोनों लोग उन्नाव से साबरमती एक्सप्रेस से एक साथ ही अहमदाबाद गए थे। 7 सोनल सोसाइटी, मेमनगर में एक कमरा किराये पर लिया गया औऱ यहाँ मनोज 2 साल तक मेरा रूम पार्टनर रहा। 

आज सोचता हूँ वो हमारे सबसे बढ़िया दिन थे,मनोज के अंदर ऐसी जिंदादिली व ताजगी थी जो बड़ी जल्दी किसी को पसंद आ जाती. वो ऐसे इंसानो में था जिनके भीतर जरा भी कलुषता नही होती। 

उन्हीं दिनों एक शाम हम बाहर खाना खाने गए तब हार्दिक ठक्कर से मुलाकात हुई। जो बाद में बढ़िया मित्र बन गए। यही पर एक रोज रणधीर को मनोज साथ लेकर रूम आया और मेरी मुलाकात कराई थी, ( दुर्भाग्य से हार्दिक की 2/3 मई को, रणधीर की 15 मई के करीब कोरोना से ही death हो गई, इस पोस्ट के दूसरे व तीसरे हिस्से में कुछ उनकी भी यादें)।

बाद में मनोज ट्रांसफर लेकर नोएडा चला आया, मैं अहमदाबाद ही रह गया। उसकी शादी एक तरह से love marriage था, उसे हमेशा से नौकरी वाली ही लड़की चाहिए थी, आज यह भी राज खोल दूँ। जिस लड़की से उसकी शादी हुई, वो कुछ दिन उसके पास कोचिंग पढ़ने आयी थी। वही मेमनगर,अहमदाबाद वाले रूम से मैंने उसके लिए एक love letter लिखा, जिसे उसने facebook से लड़की को मैसेज कर दिया। जबाब नकारात्मक आया तो उसके साथ मुझे भी दुख हुआ क्योंकि मैंने कहा था कि मैं बढ़िया प्रेमपत्र लिखूंगा। लगभग एक साल बाद लड़की का जबाब सकारात्मक तौर पर आ गया, और उसकी शादी हो गयी। उसकी शादी में मैं, कुंदन भाई(झारखंड) अहमदाबाद से आये थे।

जब से मनोज नोएडा आया ( शायद 2015/16) संपर्क कम से हो गया, वो फोन अक्सर किसी के भी नही उठाता था। मेरा 2017 में upsc चयन हो गया। 2019 की पहली जनवरी से मैं भी अहमदाबाद से दिल्ली आ गया। मनोज से सम्पर्क किया और यही वक़्त था जब उसका no मनोज नोएडा के नाम से सेव किया। 
वो एक सुखद जीवन जी रहा था। वाइफ bank में, एक flat भी ले लिया,एक बेटी भी हो गयी। बेटी काफी मुश्किलों से हुई थी। मेरी बात कम हो पाती पर जब होती लंबी होती। वो नोएडा कस्टम में था, बढ़िया posting थी, अक्सर उसकी कहानी सुनाया करता था। 

उसकी बेटी का मुंडन था, उसने बुलाया और मैं गया भी, नोएडा में। वो मेरी आखिरी सामने से मुलाकात थी। उसके बाद 1 ..2 बार फोन पर बात हुई थी। फिर उस शाम अचानक से उसकी वाइफ का फोन.. फिर उसकी असमय मृत्यु..

बहुत सोचता हूँ काश वो शुरू में जब बीमार पड़ा था तब ही दिल्ली के लिए बोल देता.. काश ऐसा होता काश वैसा होता..

रविंद से बात हुई थी कि किसी दिन अगर मौका मिला उसके घर जाएंगे, उसकी बेटी के लिए जो सके करेंगे ..सच कहूँ मेरी उस रोज से हिम्मत न हो रही सम्पर्क करने की ..
मनोज आपको सादर श्रद्धाजंलि 💐💐


-आशीष कुमार, उन्नाव।
4 जून 2021।


गुरुवार, 19 मार्च 2020

My introduction with libraries

दो शब्द पुस्तकालयों के संदर्भ में 

पुस्तकालय से पहला परिचय मौरावां में हुआ, मेरे इंग्लिश की कोचिंग वाले रितेश सर ( गुड्डू भैया ) ने मुझे वहाँ की सदस्यता दिलवा दी। शायद 50 रुपए सदस्यता शुल्क था। बात कक्षा 11 की थी। इसके पहले गांव में यहाँ वहां से इधर उधर की किताबें जुटा कर पढ़ा करता था जिसमें प्रायः  मेरठ से छपने वाले सस्ते उपन्यास हुआ करते थे। वेद प्रकाश, ओम प्रकाश, रीता भारती, गुलशन नंदा आदि आदि। गांव में ये किताबे कौन लेता पता न चलता पर आदान प्रदान के जरिये पूरा गांव पढ़ा करता था। गर्मी की दोपहरी में दुछत्ती पर चारपाई में लेटकर पढ़ने का सुख, रात में चोरी से किरोसिन के दीपक में इन प्रेम, रहस्य, रोमांच, अपराध, मार धाड़ से लबरेज किताबों में डूबने के सुख को वही समझ सकते है जो इसे भोग चुके हैं।

मौरावां में भैया ने सदस्य बनवाने के साथ तमाम किताबे सुझाई जिनमें मंटो, शरत चन्द , इस्मत चुगताई जैसे कुछ नाम याद आते हैं। दो साल उस कस्बे में रहा और मेरे ख्याल से 200 से 250 किताबें पढ़ी होंगी। पिता जी ने पहले डॉट लगाई थी फिर बाद में वो भी मेरे कार्ड पर किताबें निकलवाने लगे, कई शाम हम दोनों किसी मोटी किताब लिए अपने अपने में डूबे रहते। इसका परिणाम मेरे 12वी के अंकों पर पड़ा, गणित में बस 100 में बस 37 अंक। खैर इससे फर्क क्या पड़ता था, पिता जी इसमें खुश थे कि पास हो गए यही क्या कम है।

इसके बाद उन्नाव के जिला मुख्यालय में स्नातक के लिए जाकर रहना शुरू हुआ। वहाँ जिला पुस्तकालय में सदयस्ता लेने के लिए बड़ी जहमत उठानी पड़ी,तमाम चीज़ो के साथ कचहरी से एफिडेविट भी मांगा गया। मुझे पढ़ने का इतना नशा कि उसी दिन दौड़ भाग कर सारी खाना पूर्ति की। शाम तक दो किताबें मेरे हाथ में थी, सोचो कौन सी ? देवकीनंदन खत्री कृत चंद्रकांता के दो भाग। वहां के तमाम किस्से , अलग अलग टुकड़ो में पहले लिख चुका हूँ। एक कार्ड पर दो किताबें निकलती थी, बाद में मैंने अपने दो कार्ड बनवा लिए और ताबड़ तोड़ ( सच में ) किताबें पढ़ी, शायद 300 से 400 के बीच।

उन्नाव में एक गांधी पुस्तकालय भी है जो शाम व सुबह के समय ही खुलता है शिवाय सिनेमा के पास। बाद में यह मेरे लिए ज्यादा अनुकूल पढ़ने लगा। शाम को ट्यूशन पढ़ाकर लौटते वक्त अपनी साइकिल वही रुकती और पुस्तकालय बन्द होने तक वही रहता। मेरी साईकल के हैंडल पर एक कैरियर लगा होता जो विशेषतौर पर इन्हीं किताबों के लिए लगवाया गया था। यहाँ भी दो कार्ड बने 200 से 300 किताबें पढ़ी गयी। बाद में कार्ड भाईयों को दे दिया और वो निकलवा कर पढ़ते रहे।

फिर अहमदाबाद में अलग अलग जगहों पर पुस्तकालय गया। मेमनगर वाली सरकारी लाइब्रेरी,शुभ लाइब्रेरी, स्पीपा की लाइब्रेरी, विवेकानंद लाइब्रेरी, राणिप, और आखिरी वो जहां से आखिरी अटेम्प्ट देना हुआ। यहाँ पर साहित्य की एक भी किताब न पढ़ना हुआ। सब में अपनी किताबें ले जाकर पढ़ना होता था। 2012 से 2019 तक अहमदाबाद के पुस्तकालयों में सिविल सेवा की ही किताबें पढ़ी गयी।

इसके बाद दिल्ली आना हुआ,  मेरी अकादमी का सरदार पटेल नाम से एक समद्ध पुस्तकालय हैं।यहाँ फिर से साहित्य पढ़ना शुरू हुआ। अब अपनी मन की किताबें यहाँ बोल कर ख़रीदवाई जा सकती थी। कुछ महत्वपूर्ण किताबे जो पढ़ने से रह गई, वो लिस्ट बना कर दे दिया। सब खरीदी गई। जब भी उधर जाना होता, इंचार्ज बोलते कि पढ़ तो बस आप ही रहे हो। अब मोटे उपन्यास की जगह पत्रिकाओं ने जगह ले ली, शायद समयाभाव।

इस लंबे चौड़े अतीत लेखन का उद्देश्य पोर्ट ब्लेयर के अनुभव को लिखना मात्र था।दरअसल अभी तक सभी पुस्तकालयों में किताबें लेने के लिए तमाम ताम झाम , मगजमारी करनी पड़ती थी। पोर्ट ब्लेयर में समय कट न रहा था। नेट स्पीड की मध्यम गति से परेशान , समय काटे न कटे। पुस्तकालय का ख्याल आया पर लगा कि मेंबर बनना काफी तामझाम रहेगा। 

खैर एक रोज पहुँच गए, परिचय दिया। इतना काफी था बड़ी गर्म जोशी के साथ स्वागत और यह छूट कि आप को जो भी, जितनी भी किताबें पढ़नी है निकलवा लीजिए। "आप लोगों के लिए अलग रजिस्टर है  नाम व मोबाइल no दे दीजिए बस" 
ऐसे समय में अपने पद व उसके साथ मिलने वाले इस तरह के विशेषाधिकार बड़े सुखद अनुभूति देते हैं, कहाँ तो वो दिन कि जब 2 किताबें के लिए दुनिया भर की कागजी कार्यवाही और अब ये दिन।

ऊपर दूसरे फ्लोर पर किताबें तलाश रहा था और साथ आया बन्दा, वहाँ बैठी सहायक को निर्देश देकर गया कि साहब की चुनी किताबें, लेकर नीचे साथ आना। यद्यपि मैंने उस सहायक को विनम्रतापूर्वक  अपनी किताबें उठाने से मना कर दिया तथापि पोर्ट ब्लेयर के मुख्य पुस्तकालय के कर्मचारियों की गर्मजोशी सदैव के लिए मानस पटल पर अंकित हो गयी।

© आशीष कुमार, उन्नाव 
दिनांक 19 मार्च, 2020
(हैडो, पोर्ट ब्लेयर)


शुक्रवार, 6 दिसंबर 2019

Unnao : a sad truth

उन्नाव

उन्नाव फिर से चर्चा में है, मेरी व्यथा यह है कि यह हर बार अपराध के लिए ही राष्टीय स्तर पर चर्चा में आता है। कहते है जन्मभूमि स्वर्ग समान होती है, अपनी मिट्टी से बड़ा लगाव होता है। मेरी तमाम तरह से कोशिश होती है कि उन्नाव , पूरे भारत में बढ़िया चीजों के लिये जाना जाय। मेरी पोस्ट के अंत में हर बार जो उन्नाव का जिक्र देखते है उसके पीछे की मंशा उक्त ही है।
कलम व तलवार की धरती उन्नाव को न जाने कब अतीत वाला गौरव मिलेगा। प्रताप नारायण मिश्र, निराला, रामविलास शर्मा व चन्द्रशेखर आजाद की धरती को न जाने किसकी नजर लग गयी है। तमाम बार जब लोग पूछते है कि उन्नाव कहाँ पड़ता है तो कुछ भी बताओ तो लोग शायद ही समझ पाए पर अगर चर्चित रेप कांड का नाम ले लो या फिर वो बाबा के सपने में 1000 टन सोने की खुदाई वाली घटना का नाम ले लो फिर सब समझ जाते है। है न अजीब पर सत्य यही है। यह चीजें इसलिए कह रहा हूँ कि मुझे तमाम बार काफी बड़े मंचो व अति प्रतिष्ठित लोगों से मिलने पर बड़े गर्व से बताना होता है कि मैं उन्नाव से हूँ।
खैर
अच्छी उम्मीदों के साथ,

आपका ही
आशीष, उन्नाव।
7 दिसंबर, 2019

#unnao #Nirala #azad

सोमवार, 11 अप्रैल 2016

STRANGE BUT IT IS TRUE

है न यह विचित्र बात 

जैसा कि आपको पता है कि मै अपने मूल जिले से काफी दिनों से दूर रहता आ रहा हूँ . अक्सर जब कही परिचय देना होता है तो मै बताता हूँ कि मेरा जिला कलम व तलवार दोनों का धनी है . उन्नाव  से  सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला जी , प्रसिद्ध आलोचक राम विलास शर्मा जी , चित्रलेखा जैसे कालजयी नावेल के लेखक भगवती चरण वर्मा जी जैसे लोग जुड़े रहे है . यह चन्द्रशेखर आजाद की भी धरती है . ऐसा बहुत कुछ गर्व से बतलाता हु पर बहुत कम लोग इससे मेरे जिले को पहचान पाते है . मेरे पाठक भी शायद इस unnao  नाम से अनजान हो पर आज आपको ऐसी बात बताने जा रहा हूँ जो निश्चित ही आप ने सुना होगा . 

आपको याद है २०१३ में एक जगह पर एक साधू ने सपने में देखा था कि जमीन में १००० टन सोना दबा है . इस खबर की चर्चा सारे भारत के साथ वैश्विक स्तर पर हुई थी  . सोना तो नही मिला पर मुझे बड़ी आराम हो गयी है . अब लोगो से इतना ही कहना होता है कि उसी जिले से हूँ जहाँ पर सोना खोदा जा रहा था . 

है न यह विचित्र बात जानना किस चीज से चाहिए पर जानते किस चीज से है . 

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