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सोमवार, 9 दिसंबर 2019

Story : A Vegetable seller in delhi

                धनिया पत्ती

बात कुछ पहले की है अब उतने महत्व की भी न रही पर लिख ही डालते है। कुकिंग बहुत बहुत पहले से करने लगा था, ज्यों 2 बड़ा हुआ त्यों 2 कुकिंग और ज्यादा व्यवस्थित होती गयी। धीरे 2 समझ आया कि धनिया पत्ते के बगैर तो कुछ भी बना हो स्वाद आता ही नहीं। कहने के मतलब कुछ भी हो धनिया पत्ते के अभाव में सब्जी न बनेगी।

पाठकों में पता नहीं कितने लोग सब्जी लेने जाते है या नहीं पर मुझे यह काम फिलहाल तो खुद ही करना पड़ता है। जब रूम पार्टनर थे तब यह उनकी जिम्मेदारी हुआ करती थी। सब्जी खरीदना भी बड़ी कला है पर मुझसे न होती है। अपन तो कपड़े भी 10 मिनिट में खरीद के निकलने वालों में है फिर सब्जी में कौन जांच परख में दिमाग लगाए। रुकते है वरना सब्जी खरीद शास्त्र लिख डालूंगा, धनिया पत्ते पर आते हैं।

पिछले दिनों मालूम है धनिया पत्ता के दाम कहाँ थे। 400 रुपये किलो यानी 10 रुपये की 25 ग्राम। आम तौर पर धनिया मिर्चा लोग फ्री में डलवा लेते हैं। उन दिनों भूल से भी ऐसी मांग नही की जा सकती थी। सब्जी वाले भड़क उठते थे। अगर आशंका होती कि फ्री में मांगेगा तो अक्सर बोल देते की है ही नहीं।

जैसा कि लोग कहते है कि विक्रेता गाड़ी देख के दाम बताते हैं, तमाम लोग इसी होशियारी में गाड़ी दूर खड़ी करके , फल खरीदने पीछे आते हैं। कुछ ऐसे भाव रहे होंगे जब मैंने उससे वैसी बात की।

उस दिन जब एक ठेले वाले से पूछा -
कि भाई धनिया पत्ती कैसे दिए ?
"40 की 100 ग्राम " उसने सर तक न उठाया , उसके सामने तमाम ग्राहक थे।
" यार कल तो उस ठेले वाले ने तो 30 रुपये में दिया था, क्या गाड़ी देख के दाम बता रहे हो ?" प्रसंगवश मैं रॉयल एनफील्ड से गया था।

" घर में दो दो खड़ी हैं...." ठेले वाले से कुछ ऐसे ही बड़बोले जबाब की ही उम्मीद मैंने की थी, आखिर मैं दिल्ली में खड़ा था।

" भाई, अब तीसरी भी जल्द खड़ी होने वाली है तेरे घर ..." मैंने मुस्कुरा कहा।
"क्या मतलब " सब्जी वाले ने अब सर उठाया।

" कुछ नहीं , तुम अमिधा ही समझ सकते हो, लक्षणा, व्यंजना तुम्हारे बस की बात नहीं" उस सब्जी वाले को, जिसके घर दो दो बुलट खड़ी थी, थोड़ा उलझन में डालकर आगे बढ़ आया।

उसको क्या खबर कि इस दिल्ली में किराए के पैसे से ऐश, मजे करने वालों के बीच ठेठ ग्रामीण परिवेश से आये भी लोग रहते है जो कितना ऊपर उठ जाए, उनसे बेफजूली खर्च चाहकर न हो पाती है।

( रेल सफर के बीच रचित )

9 दिसम्बर, 2019
© आशीष कुमार, उन्नाव, उत्तरप्रदेश।

मंगलवार, 3 मई 2016

Funny Hindi Story : Shodhk Ji





वैसे आप शोधक जी के बारे में पहले भी पढ़ चुके है पर उस समय उनका नाम मैंने नही बताया था . पुराने पाठकों को याद होगा एक बार मै इलहाबाद गया था तो एक दोस्त के पास ठहरा था . वह दोस्त सारी रात महेश वर्णवाल वाली भूगोल की किताब पढ़ते रहे थे . याद आया ...

तो वही  मित्र है शोधक जी . इनसे भी अपनी मुलाकात भागीदारी भवन में हुयी थी . जब पहली बार इनसे मिला तो कुछ खास नही दिखा मुझे . शोधक जी कुछ ज्यादा ही सावले थे और हमारी सामान्य सी फितरत होती है कि अक्सर हम गौर वर्ण को स्मार्ट और चतुर समझते है . मेरी एक आदत है जो शायद बुरी है पर मै उसे बहुत अच्छी मानता हूँ वो है चीजो को हलके में लेना .
Funny  Hindi  Story  by  ias ki preparation hindi me
शोधक जी को भी हल्के में ले लिया फिर क्या था शोधक जी अपने विराट व्यक्तित्व से मुझ जैसे मूढ़ बालक से परिचय करवाया . वो इतिहास विषय में इलहाबाद विश्विद्यालय के topper थे . फिर उन्होंने मुझसे कुछ प्रश्न इतिहास के पूछे - जैसे गाँधी जी को जिस रिवाल्वर से मारा गया उसका कोड क्या था ? गाँधी जी किस जहाज से गोलमेज सम्मेलन में भाग लेने गये थे ? गाधी जी ने कब से लंगोटी पहनना शुरु किया ( आशय यह कि कब से एक कपड़े पर रहने लगे ) .

जिस दिन मुझसे यह प्रश्न पूछे गये उसी दिन मै समझ गया कि यह गुरु जी भी अपने काम के आदमी है . आपको पता ही है 16 - 17 की आयु से मेरी कुछ चीजे प्रकाशित होने लगी थी . सोचा और गुरु जी मजाक मजाक में कह भी दिया एक दिन आप पर मै कहानी लिखुगा और सारी दुनिया आपको पढ़ेगी .

इतिहास में बहुत से वाद चलते है यथा - मार्क्सवाद , राष्टवाद ,साम्राज्यवाद . इसी को ध्यान में रखते हुए मैंने गुरु जी से कहा आप ने एक नये दृष्टिकोण से इतिहास को पढ़ा है इसलिए आपको लंगोटीवाद का प्रणेता घोषित करता हूँ . और जब तक मै भागीदारी भवन में रहा गुरु जी को लंगोटीवाद के नाम पर परेशान करता रहा . 

अगर आप को कभी लंगोटीवाद के बारे में पूछा जाये तो आप भी समझ लीजिए और समझा दीजियेगा . लंगोतिवाद वाद का सरल शब्दों में आशय यह है कि इतिहास को बहुत बारीकी से पढना खासतौर पर तथ्यों पर बहुत ज्यादा जोर देना . इसे शोधक जी ने विकसित किया है . 



( Dear readers hope u like this post .  Keep reading . In future you will read more post on Shodhk ji . ) 


रविवार, 17 जनवरी 2016

STRANGE HOUSE : UNCLE'S FLOWER POT


"घास वाले अंकल"


प्रिय मित्रो .. आपको मेरी के पुरानी  POST  याद होगी लडकी जो भगवान खाती थी ..उसमे मैंने बताया था कि वो घर सच में अजूबा था .. कुछ ५ MEMBER  थे परिवार में और सब विलक्ष्ण .... आज परिवार के मुखिया ..यानि अंकल जी कहानी ..वैसे वास्तविक मुखिया तो औंटी जी थी 
.
अंकल जी सरकारी महकमे किसी छोटी पोस्ट पर थे .. सीधे साधे गौ जैसे ... उनके PERSONALITY  का वर्णन करने में मेरी लेखनी सक्षम नही है इसलिए उनके व्यक्तिव को रहने देते है सीधे STORY  पर आते है ..

उनकी छत पर कुछ गमले रखे थे ...उन गमलो कभी फुल रहे होंगे पर इन दिनों सूखे थे ..उसे गमले में न जाने कहाँ से घास उग आई . यह दूब थी जो काफी लम्बी होती है .. गमले में दूब बढती रही बढती रही और इतनी बढ़ी की रेलिंग से लटकने लगी . आम तौर पर लोग अपने बगीचे से दूब को खर पतवार समझ कर निकलते रहते है पर .. अंकल जी की सोच .. उनका नजरिया ..माशा अलाह ..
.
मैंने एक दिन अपने कमरे से देखा अंकल जी नहाने के बाद उपर गमले में पानी डालने गये है ... कुछ दिनों में पता चला कि दूब की तेजी से बढने के पीछे अंकल जी मेहनत है उसको खाद पानी दे कर अंकल जी तेजी से बड़ा कर रहे थे ..

दूब सच में बहुत ज्यादा बड़ी हो गयी थी ..वह रेलिंग से लटक कर बहुत  नीचे  आ गयी थी . एक रोज मैंने अंकल जी कहा कि बहुत लम्बा पौधा हो गया है लगता है WORLD RECORD बनेगा..”..मै उसे दूब कहकर  अंकल जी FEELINGS HURT  नही करना चाहत था . अंकल जी मुग्ध हो गये और बगैर कुछ बोले रेलिंग से लटकती दूब को सहलाने लगे .

उनका घर तो छोटा ही था पर कमरे कई थे ...औंटी जी किसी भी कमरे में हो उनमे खास शक्ति थी ..उनके कान बहुत तेज थे  . अंदर से बोली ...तुम भी आशीष मजाक कर रहे हो ...फालतू में घास बढती जा रही है ..मै किसी दिन उसको हटाने वाली हूँ ..” . बस इतना कहना था कि अंकल जी अपने दुर्लभ रूप नजर आये .. इतनी जोर से चिल्लाये कि घर के पीछे पीपल से २ ३ कौवे उड़ के भाग खड़े हुए .... उस दिन अंकल जी औंटी को बहुत सी बाते सुनाते हुए  सख्त हिदायत दी कि खबरदार उस पेड़ ( दूब)  को हाथ भी लगाया . वैसे तो औंटी जी की हमेशा चलती थी उस घर में . पर उस रोज अंकल जी का गुस्सा देख लगा कि मर्द कितना ही मरगिल्ला हो ..दब्बू हो .. उसको कभी अंडर वैल्यूएशन नही करना चाहिए .

मै वहां लगभग २० महीने रहा ..दूब बढती रही ..गर्मी में जब धुप बहुत प्रबल होने लगती उस गमले को जुट के टुकड़े से ढक कर रखा जाता .. दूब छत से लटक नीचे जमीन पर आ कर फैलने लगी थी .

अगर आप यह कहानी पच न रही हो तो दोष मेरा नही है ... वो पूरा घर ही विलक्ष्ण था ... वैसे आप सोच रहे होंगे कि दूब का अंत में हुआ क्या ? तो आप जिज्ञासा शांत कर दू ..
उनके घर को छोड़ने के कुछ महीनों बाद जब मै उधर गया तो देखा कि उनके घर में घास रेलिंग पर नही लटक नही रही है . अंकल ने  बातचीत में उस पौधे के दुखद अंत .. और गौरवशाली विदाई के बारे में बताया ( वो कहानी फिर कभी ..) 


मंगलवार, 12 जनवरी 2016

when people become stone ! funny story

जब लोग पत्थर के बन गये                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                चाट बेचने वाले की दुखद कहानी याद है . मैंने बताया था उस घर में सैकड़ो stories छुपी है . अचानक ये याद आ गयी . अमूमन पढाई करने वाले लडके देर रात तक पढ़ते है और सुबह देर से उठते है . एक morning जब सोकर उठा तो पाया मोहल्ले के women का जमघट सुबह ही लग गया है . आम तौर पर यह दोपहर में खास तौर पर जब light चली जाती थी तब लगता था . ये ऐसी चौपाल होती थी जिसमे महिलाये अपने घरो के बाहर बनी staris पर बैठ कर गप्पे लड़ाया करती थी .
जब बाहर निकला तो बगल वाली चाची ने तुरंत ही टोक दिया कैसे घोड़े बेच कर सो रहे थे . night में कितनी आवाज लगाई पर तुम उठे ही नही . मैंने पूछा कि क्या हुआ था . तो चाची ने कहा कि night में लोगो के फ़ोन आये थे कि सोना मत आज रात में बारह बजे सब लोग पत्थर बन जायेगे , इसलिए सब लोगो ने अपने अपने relatives को फ़ोन करके बता रहे थे कि सोना मत . सारी लोग जागते रहे . बहुत से लोग बाहर सडक तक चले गये थे . उनकी बात सुनकर मुझे बहुत हसी आयी लगा कि joke कर रही है . but she was right .
मेरी आदत रात में फ़ोन  switch off करके सोने कि है . फ़ोन on किया तो कई लोगो के message  पड़े थे . कुछ ही देर में एक दो फ़ोन आ गये कि रात में वो जगाने के लिए फ़ोन किया था . मैंने कहा शुक्रिया . मैंने पूछा कि कोई पत्थर बना कि नही . वो भडक गये  कि तुम से तो बात करना ही बेकार है .
खैर  धीरे धीरे पता चला कि सारी रात हंगामे में कटी थी . चाहे kanpur हो या delhi , गोरखपुर , नोयडा लगभग सभी जगह लोग सारी रात जगते और जगाते रहे . ये खबर पेपर में भी आयी थी .
दिमाग में कुछ चीजे यूँ ही याद रह जाती है , इस खुराफात की शुरुआत कहाँ से हुई थी यह आज भी राज है मुझे पता नही किसने बताया था कि ये सारी कलाकारी शुक्लागंज से शुरू हुई थी पर यह जरूरी नही कि सच ही हो . 

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