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मंगलवार, 25 अक्टूबर 2016

How to audit your life ?

अपनी जिंदगी का लेखा जोखा कैसे करे ?

By Asheesh kumar

           शायद पिछली पोस्टों में बताया होगा कि इन दिनों मैं ऑडिट में काम कर रहा हूँ । ऑडिट यानी लेखा जोखा । कम समय में ज्यादा चीजों का निरीक्षण करना । mistakes को जल्दी पकड़ना यही है लेखा जोखा ।

जैसा कि मैं बहुत बार कह चूका हूँ thoughts मुझे सोने नही देते । हर night मैं न जाने क्या क्या सोचते हुए सोता हूँ । एक रोज ख्याल आया कि हर किसी को अपनी life का भी ऑडिट करते रहना चाहिए ।

मेरे ज्यादातर पाठक, दोस्त 20 से 25 वर्ष वाले उम्र के है । मेरी नजर में यह जिंदगी का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा होता है । 20 की आयु से आप कुछ प्रयोग करना शुरू कर देते है और 25 तक आप को अपने प्रयोगों के results आना शुरू हो जाते है ।
हमारी लाइफ एक है और जिंदगी में करना बहुत कुछ । मसलन पढ़ाई, सामाजिक सम्बन्ध , भावनात्मक सम्बन्ध , पर्यटन , अपनी पहचान बनना, धन कमाना आदि आदि । करना बहुत कुछ और समय बहुत थोडा ।

जिंदगी का सबसे बड़ा सबक मेरी नजर यही है कि आप संतुलन कैसे साधते हैं ? एक वाकया जोकि एक मित्र ने ही बताया , संक्षेप में बताता हूँ । उनके कोई मित्र 40 साल की आयु में SDM बने और इच्छा कि marriage करेंगे तो किसी षोडसी यानी 16 साल की बाला से । समझा जा सकता है कि उनकी ऐसी चाहत क्यू हुयी होगी । सारी उम्र पढ़ने में ही खत्म कर दी । पता नही उनका क्या हुआ पर अगर उनकी desire पूरी भी हो गयी होगी तो उनकी दशा प्रेमचंद की कहानी " नया विवाह " के पात्र लाला डंगामल जैसी ही होगी ।

अब एक प्रश्न उठता है कि संतुलन कैसे बनाये । इस प्रश्न को कभो आराम से विचार करेंगे आज आपको आपकी जिंदगी का ऑडिट करने का तरीका बताते है ।

आप अपनी dairy ( मेरे सभी पाठक डायरी जरूर लिखते होंगे यह अपेक्षा रखता हूँ ) में अपनी आयु लिखे ।
15 वर्ष से पहले
15- 25
25-40 वर्ष

आप अपने तरीके से इसे बाट सकते है और इनके सामने दो कॉलम बनाये । आप को क्या करना था और आप ने क्या किया । सभी बाते बिंदुवार लिख ले । देखे कि आप ने क्या खोया और क्या पाया ?

विषय अच्छा है और मेरे पास विचार भी बहुत अच्छे अच्छे है पर मैं सफर में हूँ और रात के 12 . 30 हो गए है इसलिए विराम लेता हूँ । अंत एक मजेदार वाकये से - भागीदारी भवन लखनऊ में बहुत से पढ़ाकू और टेलेंट लड़के मुझसे एक चीज से काफी परेसान रहते थे वजह मैं सबसे एक ही बात कहता था कि मैंने छोटी उम्र में ही खूब मजे कर लिए और उनके चेहरों पर उदासी छायी रहती कि वो पढ़ाई से इतर कुछ भी न कर पाये । कहने कि जरूरत नही कि वो मजे का मतलब प्रेम प्रसंग से लिया करते थे जबकि मेरा सन्दर्भ आपने विविधता भरे, बहु आयामी अनुभवों और नई नई चीजों में दक्ष होने से हुआ करता था । जैसी जिसकी सोच- बागा(तारक मेहता का उल्टा चश्मा )

कॉपीराइट - asheesh kumar

* l m thankful to my special readers , who remind me that सर बहुत दिन हो गए लिखा नही अपने कुछ अच्छा सा, अलग सा ।






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