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मंगलवार, 4 अक्तूबर 2022

बचपन

बचपन 


पता नहीं आप में किस किस ने बचपन में वो कहानी पढ़ी है या नहीं जिसमें एक छोटा बच्चा अपने पिता के साथ कहीं घूमने जा रहा होता है, रास्ते में उसे दूरी बताने वाले पत्थर पर लिखे अंको को लेकर जिज्ञासा होती है तो उसके पिता अंको का ज्ञान सिखाते हैं. यात्रा के आखिर में वो बच्चा सभी अंको को सीख लेता है। मुझे ये कहानी बहुत प्रेरित करती कि आखिर कैसे... खैर वो बच्चा आगे चल कर भारतीय इतिहास के एक प्रसिद्ध हस्ती बना...
भला बताओ वो कौन था? 

अतीत तो हमेशा ही सुखद लगता है वो भी क्या दिन थे। बच्चे पिता की अंगुली पकड़ कर लंबी दूरी घूमते थे और सफर में ही गिनती सीख लिया करते थे। 

© आशीष कुमार, उन्नाव।

शनिवार, 3 अप्रैल 2021

खजोहरा

खजोहरा 

होली के अभी कुछ दिन ही बीते हैं, खजोहरा का विचार होली वाले दिन आया था। दरअसल एक गुरु जी सामने पड़ गए थे तो याद आया कि ये तो बहुत पीटने वाले अध्यापक थे अपने जमाने में। शिक्षक तो अभी भी हैं पर पता नहीं अब पहले की तरह से क्लास में पिटाई करते हैं कि नहीं। 

खजोहरा बचपन में किसी बड़े रहस्य की तरह था। क्लास के कुछ खुरापाती छात्र अक्सर इसके बारे में बात किया करते थे। खजोहरा के बारे में कहा जाता था कि जो कोई उसे छुएगा, उसे बहुत ज्यादा खुजली होने शुरू हो जाएगी। खुजलाते खुजलाते अंग लाल पड़ जायेगा।


Class में पीछे बैठने वाले छात्र, जिन पर हर गुरु जी कुछ ज्यादा ही पीटने के लिए उत्सुक रहा करते थे, अक्सर ऐसे plan बनाया करते थे कि किसी दिन खजोहरा लाकर गुरु जी की कुर्सी पर डाल देंगे, फिर गुरु जी की खुजली कर करके जो हालत पतली होगी, वो दर्शनीय होगी।

जैसा कि सार्वभौमिक तथ्य है कि क्लास में आगे बैठने वालों और पीछे बैठने वालों में कभी नहीं बनी, मेरी भी उनसे कभी नहीं बनी। गुरु जी के प्रिय विद्यार्थियों में हमेशा रहा पर खजोरहा के लिए न जाने क्यों उत्सुकता बनी रही।

हमेशा सोचा करता कि कैसा होता होगा खजोहरा। शायद एक बार गांव के पास जंगल में घूमते हुए किसी ने खजोहरा का पेड़ दिखाया था। कुछ काले भूरे रंग की रोयेंदार फली थी, बताया गया कि यही खजोरहा है। मैंने सोचा कि लोग इसको कैसे लेते होंगे, मान लो उसको खुद ही लग गया तो ? 

खैर खजोरहा के साक्षात प्रयोग तो न देखे पर उससे जुड़ी stories बहुत सुनता रहा कि अमुक को किसी ने खजोरहा डाल दिया था तो ऐसा हुआ वैसा हुआ ..आदि आदि। 

होली में अक्सर यह कयास लगाये जाते कि अमुक मोहल्ले वाले लड़कों के पास खजोरहा है, उनसे रंग नहीं खेलना, उनसे बचके रहना...हालांकि यह कयास कभी सच न साबित हुआ।

आज यह post लिखते वक्त भी यह संदेह हो रहा है कि वास्तव में खजोहरा जैसी कोई चीज सच में होती भी है या फिर यह किदवंती मात्र है। 

© आशीष कुमार, उन्नाव।
03 अप्रैल, 2021।

सोमवार, 11 मई 2020

story of Crane

" सारस"

आज  प्रीतम सिंह की फेसबुक पोस्ट में सारस के जोड़े की तस्वीर  देखी तो मन फिर village की ओर लौट गया। वर्षो से सारस न दिखी, वैसे वर्षो से गांव से नाता भी टूट सा गया है। साल में 10 से 15 दिन से ज्यादा जाना न होता है। हालांकि जब भी घर जाना होता है, खेत तरफ जरूर जाता हूँ।
पहले सारस बहुतायत दिख जाते थे। सारस के बारे में कहा जाता है कि वो अकेले नही दिखेगा। अगर एक साथी मर गया तो दूसरा भी अपने प्राण त्याग देता है। 

खेतों के पास एक छोटा सा जंगल था। उससे लगता एक pound था उसे वीरा का ताल कहते थे। वैसे वो एक गहरा खेत था। कभी जब ज्यादा बारिश हुई तो उसमें 2- 3 फ़ीट पानी भर जाता था। उस समय कभी कभी सिंघाड़े की खेती भी कर ली जाती थी। उसके पास में तमाम तरह के साग मिल जाता करता था।

 मुझे ठीक से याद है एक बार उसमें सारस ने eggs दिए थे। जोड़े ने लकड़ी, खर पतवार से जमीन पर उसी तालाब के बीचों बीच अपना घोंसला बनाया था। उस समय तालाब में पानी सूख गया था। तालाब की सतह पर कीचड़ के बजाय घास रहा करती थी।

(चित्र : प्रीतम सिंह, उन्नाव )


बचपन में उत्सुकता बहुधा चरम पर होती है। उसी के चलते उसके घोंसले के पास अंडे देखने का मन हुआ करता था। सारस हमेशा उसी के पास रहते। कितनी ही बारिश हो, उनमें एक हमेशा अंडो पर बैठी रहती थी। एक grandfather अपनी भैंसे उधर चराया करते थे। एक बार वो गलती से उसके घोंसले के पास चले गए, सारस ने उन्हें दौड़ा लिया। अपने बच्चों के लिए किसी भी मां की तरह सारस किसी से भिड़ सकती थी।

मुझे याद आता है कि सारस अक्सर धान की फसल के समय दिखायी पड़ते थे। कभी 2 वो कई जोड़ो में दिखते। शाम को जब वो वापस लौटते दिखसई पड़ते तो देखने से लगता वो काफी नीचे उड़ रहे है। उस समय धेले से उनको मारने का असफल प्रयास भी किया.. पर वो बस देखने मे ही लगता कि नीचे है बाकी वो काफी ऊपर उड़ा करते थे। सारस India के कुछ सबसे बड़े पक्षियों में एक है। उत्तर प्रदेश में इसे विशेष पहचान दी गयी है। यह अलग बात है अब के समय इनको रूबरू कम लोग ही देख पाते हैं ...

बात पक्षियों की हो रही है तो यह बात जरूर साझा चाहूंगा कि मैंने गिद्ध (अब विलुप्त के कगार पर ) भी देखा है. गाँव में इन दिनों जहां अब cricket खेला जाता है, पुराने दिनों में वहां गांव के मरे जानवर डाल दिये जाते थे, पहले कस्बे से कुछ खाल निकलने वाले लोग आकर खाल निकाल ले जाते तब गिद्ध बड़ी संख्या में दिखते.. पिछले सालों तक वहां जो एक सूखा पेड़ था, जिसे  क्रिकेट के खिलाड़ियों ने हटा दिया ( वजह उसकी वजह से तमाम छक्के , चौके रुक जाते थे ) उसी में वो झुंड बना कर बैठे रहते थे। अगर अपने प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी की है तो आपको यह प्रश्न जरूर मिला होगा कि गिद्ध कैसे विलुप्त हुए ..वो इंजेक्शन भी गाँव में खूब बिका करता था, उसे भैसों को लगा कर दूध निकला जाता था..

पोस्ट जरा लम्बी हो रही है पर तमाम बातें याद आती चली जा रही है..नाना के घर में छत के पीछे दीवाल के पास peacock का घोसला व अंडो को भी मैंने देखा है..मैंने अपने महुए के पेड़ के पुराने कोटर में parrot के अंडो, बच्चों को देखा है। मैंने बबूल के पेड़ों में तमाम बगुलों को खूब जोर से आवाज करते देखा है, उनके पेड़ो के नीचे की जमीन ऐसे सफेद होती जैसे कि उस पर चुना किया गया हो 

नीलकंठ का नाम सुना व देखा जरूर होगा। साल में कोई दिन होता है जिस दिन उसको देखना बहुत शुभ माना जाता है। उस दिन हम अपनी टोली के साथ निकलते.. जिन साथी ने ये शुभ वाला ज्ञान दिया था, उस पक्षी को देखते  अपनी आँख बंद करके अपना हाथ पक्षी की ओर दिखा कर चूमा करते..मैं भी देखी देखा ऐसा करता। उनसे पूछता कि क्या मांगा तो बोलते अपनी मन्नत बताई नही जाती। मैं उन दिनों बस यह मांगा करता कि आज जो ऐसे घर में बिना बताए घूम रहे हैं उसके लिए घर जाकर में कुटाई न हो..उन दिनों upsc के सपने न थे , इसलिए मन्नतों में upsc कभी न रहा 😁😉

बाकी फिर कभी ...

© आशीष कुमार, उन्नाव
12 मई, 2020 ( पोर्ट ब्लेयर) 



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