काफी दिनों बाद माँ से बात हुयी तो पता चला कि पड़ोस वाले खेत में बाड़बंदी हो गयी है। स्टील वाले तारों से पड़ोसी ने अपने खेत सुरक्षित कर लिए है। मैंने पूछा उनके खेत में क्या बोया गया है तो माँ बोली गेहूं ही है। यह बात जरा चकित करने वाली थी क्योंकि मैं गेहूं को वैसी फसल नही मानता था जिसके लिए स्टील के तार लगवाने पड़े। फिर मुझे कुछ याद आया ऐसा क्यू हुआ होगा ?
पिछली बार जब मेरा गांव जाना हुआ तो मैंने एक बात नोटिस की थी। रोड के किनारे , बागों में बाड़बंदी स्टील के तारो से करा दी गयी है। ये स्टील के तार बहुत तेज थे इनमें दोहरी धार थी। यह भी पता चला कि किसी की भैस इन तारों में फस कर मर गयी है। मान लो सड़क से कोई मोटर साइकिल में जा रहा व्यक्ति अपना संतुलन खो दे और इन तारो में जा फसे तो मर ही जायेगा।
इन चीजो के तह में गया तो एक बड़ा पहलू नजर आया। मेरा जिला घोषित / अघोषित तौर पर चमड़े का उत्पादक जिला है। दही चौकी में कई ऐसी फैक्ट्री है जो पशुओं का मांस निर्यात करती है। सुनने में आता है कि इन फैक्ट्री में काफी सशक्त लोगों की हिस्सेदारी है। जब से गाय पर प्रतिबंध लगा तब से चीजे बदली। वैसे भी इन फैक्ट्री में कटने ले लिए , पशु ट्रकों में लद कर रात में आते थे पर अब सख्ती के चलते बहुत बार ट्रक में पशु पकड़े गए तो वो पशु आवारा छोड़ दिए गए। धीरे धीरे पुरे शहर और गांवो में इस तरह के आवारा पशुओं की तादाद बढ़ने लगी।
पहले ये मरियल , कमजोर पशु थे पर अब ये खेतों में आवारा रूप से चरने लगे। अब खूब तगड़े और बड़े झुण्ड खेतों में दिखने लगे। ये न केवल खड़ी फसल चरते थे बल्कि जिस खेत से गुजरते है पूरा खेत चौपट हो जाता है। इस समस्या में बहुत से पहलू है। जो लोग इससे पीड़ित है उनके पास कोई हल नही है। सुनने में यहाँ तक आ रहा है कि यह मुद्दा यूपी के चुनाव में बड़ा असर डालेगा। कभी कभी दबी जुबान में लोग इसकी चर्चा भी करते है।
अभी हाल में मैंने पढ़ा कि राजस्थान में इस तरह के आवारा पशु की समस्या से निपटने के लिए , ट्रैकिंग id लगाई जाएँगी जोकि एक अच्छा विकल्प हो सकता है। एक प्रश्न उठता है कि जब तक पशु दूध दे तक तो किसान उसे पालता है पर गैर दुधारू पशु को खुला छोड़ देना या कटने के लिए दे देना कहा तक सही होगा।
इन सब चीजो में किसानी , खेती की बड़ी हानि हो रही है। वैसे भी खेती में लागत दिनों दिन बढ़ती जा रही है। सरकार कृषि को सर्वोच्च प्राथमिकता दे रही है। तरह तरह की योजनाए चलाई जा रही है पर इस तरह के पहलू पर कौन ध्यान देगा। हर कोई बाड़बंदी नही करा सकता है काफी लागत लगती है और यह रिस्की भी है।
फुटनोट :- टीपू की कहानी
टीपू की उम्र ज्यादा न होगी पर बड़ा सयाना हो गया है। उसके बाल पुरे भूरे है अंग्रेज जैसे। शुरू के दिनों में इस चीज का काफी मजाक उड़ाया जाता था कि उसके बाल ऐसे कैसे हो गए है। उसके सयानेपन का एक उदाहरण देता हूँ। आज से ६ साल पहले जब मेरे पिता जी की डेथ हुयी थी तो टीपू मुश्किल से ७ या ८ साल का रहा होगा। मेरे पास आकर बोला " अब आपके पापा तो मर गए है अब तुमको ही सब देखना है। " इस तरह के बहुत से उदाहरण है आप सुने तो हैरान हो जायेंगे उन पर फिर कभी।
टीपू ने ऊपर वर्णित आवारा पशुओ में एक गाय का छोटा बच्चा पकड़ लिया। दरअसल अब उन झुंडो में ऐसे भी पशु है जो उपयोगी भी हो सकते है। टीपू ने सोचा इसे पाल पोश ले तो दूध भी मिलेगा और बाद में उसे बेच कर कुछ रूपये मिल जायेगे। उसकी मम्मी और भाई ने मना भी किया पर माना नही। कुछ दिन तो वो बच्चा रहा पर एक दिन जब टीपू उसे चराने ले गए तो उसने टीपू पर हमला कर दिया। टीपू को बुरी तरह घायल कर , वो जंगल में भाग गया।
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