होली के अभी कुछ दिन ही बीते हैं, खजोहरा का विचार होली वाले दिन आया था। दरअसल एक गुरु जी सामने पड़ गए थे तो याद आया कि ये तो बहुत पीटने वाले अध्यापक थे अपने जमाने में। शिक्षक तो अभी भी हैं पर पता नहीं अब पहले की तरह से क्लास में पिटाई करते हैं कि नहीं।
खजोहरा बचपन में किसी बड़े रहस्य की तरह था। क्लास के कुछ खुरापाती छात्र अक्सर इसके बारे में बात किया करते थे। खजोहरा के बारे में कहा जाता था कि जो कोई उसे छुएगा, उसे बहुत ज्यादा खुजली होने शुरू हो जाएगी। खुजलाते खुजलाते अंग लाल पड़ जायेगा।
Class में पीछे बैठने वाले छात्र, जिन पर हर गुरु जी कुछ ज्यादा ही पीटने के लिए उत्सुक रहा करते थे, अक्सर ऐसे plan बनाया करते थे कि किसी दिन खजोहरा लाकर गुरु जी की कुर्सी पर डाल देंगे, फिर गुरु जी की खुजली कर करके जो हालत पतली होगी, वो दर्शनीय होगी।
जैसा कि सार्वभौमिक तथ्य है कि क्लास में आगे बैठने वालों और पीछे बैठने वालों में कभी नहीं बनी, मेरी भी उनसे कभी नहीं बनी। गुरु जी के प्रिय विद्यार्थियों में हमेशा रहा पर खजोरहा के लिए न जाने क्यों उत्सुकता बनी रही।
हमेशा सोचा करता कि कैसा होता होगा खजोहरा। शायद एक बार गांव के पास जंगल में घूमते हुए किसी ने खजोहरा का पेड़ दिखाया था। कुछ काले भूरे रंग की रोयेंदार फली थी, बताया गया कि यही खजोरहा है। मैंने सोचा कि लोग इसको कैसे लेते होंगे, मान लो उसको खुद ही लग गया तो ?
खैर खजोरहा के साक्षात प्रयोग तो न देखे पर उससे जुड़ी stories बहुत सुनता रहा कि अमुक को किसी ने खजोरहा डाल दिया था तो ऐसा हुआ वैसा हुआ ..आदि आदि।
होली में अक्सर यह कयास लगाये जाते कि अमुक मोहल्ले वाले लड़कों के पास खजोरहा है, उनसे रंग नहीं खेलना, उनसे बचके रहना...हालांकि यह कयास कभी सच न साबित हुआ।
आज यह post लिखते वक्त भी यह संदेह हो रहा है कि वास्तव में खजोहरा जैसी कोई चीज सच में होती भी है या फिर यह किदवंती मात्र है।
© आशीष कुमार, उन्नाव।
03 अप्रैल, 2021।