दिल्ली में आज बारिश बहुत हो रही है, ऐसे में गुलजार की ये शब्द
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शनिवार, 11 सितंबर 2021
बुधवार, 19 मई 2021
RAIN
बारिश
न जाने कितने कवि, लेखक इसको महसूस कर क्या सुंदर रचनाये दी है। बारिश प्रकृति के सौंदर्य को सबसे खूबसूरत रूप होता है।
©आशीष कुमार, उन्नाव।
19 मई 2021।
गुरुवार, 6 मई 2021
RAIN
बेमौसम बारिश
बेमौसम बारिश
हुई
ठीक वैसे ही
एक शाम
तुम मेरे जीवन
में आ गयी।
©आशीष कुमार, उन्नाव
6 मई, 2021।
सोमवार, 22 मई 2017
First rain
पहली वर्षा
बारिश शुरू से ही लेखन के लिए पसदींदा विषय रहा है। मैंने भी इस पर लगभग हर वर्ष कुछ न कुछ लिखता रहा हूँ। दरअसल पहली बारिश बहुत अनुभूतिक विषय होता है। तपते दिनों से परेशान मन में स्वतः उल्लास उमड़ता है।
इस शहर में रहते 5 वर्ष हो गए। यह मेरा आखिरी साल है शायद अब इस शहर में न रहूं। पर जाते जाते एक यादगार बारिश से मुखातिब होकर जाऊंगा। दरअसल कल ही काफी मौसम खराब हो गया था। काफी दिनों से कही निकलना न हुआ था। मन सुबह से कह रहा था कि अब कहीं घूम कर आओ वरन यह ऊबन तुम्हारी उत्पादकता को प्रभावित करेगी। दोपहर में एक मित्र का फ़ोन आया कि शाम एक मित्र की शादी है अगर खाली हो तो चले। मन की मुराद अक्सर पूरी होती रही है यह संयोग कोई विशेष न लगा।
शाम को पार्टी में जाते बहुत मौसम खराब हो गया। अभी मानसून आने में समय है फिर भी खूब आंधी , तूफान , धूल। लगा कि जाना कैंसिल कर दू पर दोस्त ने जोर दिया तो निकल लिया। बारिश तो कहने को हुयी पर बिजली बहुत कड़की। रात ११ बजे लौटते वक़्त सब कुछ साफ हो चूका था।
पिछले कुछ दिनों से मन में एक विचार आ रहा था कि कितना वक़्त हुआ ओले न देखे बारिश में। आज अचानक शाम को मौसम सुहाना हुआ और खूब तेज आंधी आने लगी। पहले पानी की बड़ी बड़ी बुँदे फिर तेज बारिश। अचानक ओले भी गिरने लगे और खूब जमकर गिरे। मै अभी तक सोच रहा हूँ कि क्या वाकई ओले गिरे है ? ओले गिरे और उन्हें उठाकर चखा न जाये तो फिर आप बारिश का मतलब नहीं समझते है। बारिश यानि बचपन में जाना (जगजीत सिंह भी कह चुके है वो कागज की कश्ती और बारिश का पानी ) .
बाहर खड़े थे तो एक मित्र ने चलो चाय और दाल बड़ा ( गुजराती ) खा कर आते है। यह तो सबसे अच्छी पेशकश थी। बारिश में चाय -पकोड़े किसी को पसंद नहीं आते। साथी ने कुछ ज्यादा ही प्रसिद्ध और व्यस्त दुकान ले गए। दूर से ही दिख गया कि सारा शहर ही दाल बड़ा खाने के लिए टूट पड़ा है. 2 दर्जन आदमी की लाइन लग चुकी थी। साथी की बड़ी गाड़ी , काफी देर पार्किंग खोजते रहे। जैसे तैसे सड़क पर ही पार्क कर , पैदल दुकान गए। तय हुआ कि अब दाल बड़ा तो मिलने से रहे , बड़ा पाव खा कर काम चलाया जाय।
इस चार रास्ते की चाय सबसे प्रसिद्ध है ऐसा दोस्त ने बोला। मन और जिव्हा विचार करने लगी ऐसा क्या है चाय फेमस है। चाय में भीड़ थी पर यह दुकान काफी व्यवस्थित थी।दरअसल चाय पुदीने वाली थी। 15 रूपये में यह निश्चित ही उत्तम कही जा सकती है। अभी भी जुबान पर टेस्ट बरकरार है। मुझे अब इस बात पर ज्यादा विचार नहीं करना कि ऐसा कैसे होता है कि जो सोचते है वो हो जाता है , मसलन बारिश और ओले वाली बात। शुक्र है मैंने पाओ कोहलो की अलकेमिस्ट पढ़ रखी है।
आशीष कुमार
उन्नाव , उत्तर प्रदेश।
मंगलवार, 19 जुलाई 2016
Every rainy season reminds us something .......
हर बारिश कुछ याद दिलाती है .........
हमारी संस्कृति व् साहित्य में बारिश का
मौसम बहुत ही खास माना गया है . यु तो जब से अहमदाबाद में रहने लगा तब से बारिश के
आनंद से वंचित सा रहने लगा हूँ पर इस साल हमारे शहर में खूब बारिश हो रही है . आगे
बढ़े से पहले नीरज जी वो प्रसिद्ध लाइन्स याद आ गयी
अबकी सावन में यह शरारत मेरे साथ हुयी
मेरे घर को छोड़ सारे शहर में बरसात हुयी
मुझे बारिश में लिखने का बहुत दिनों से मन हो रहा था पर टालता
रहा , पर आज रविवार ,
शाम जब सारा दिन पढ़ते पढ़ते उब गया तो
लगा अब कुछ रच ही लिया जाय . यह अच्छा संयोग है कि बेडरूम की बालकनी वाला दरवाजा
खुला है सामने जोर से बारिश हो रही है .
साहित्य में बारिश के मौसम को उद्दीपन के तौर पर देखा गया है
यानि कि इस मौसम में अपने आप ही कुछ होने लगता है .मुझे लिखने का मन होने लगा .
बहुतायत प्रेम पीड़ा से ग्रस्त लोग भी इसे बरसात का असर मानते है . जायसी ने
पद्मावत में बारिश को विरह से जोड़ कर लिखा है .
बरसे मघा झकोरी झकोरी ...............
उस दिन ऑफिस से जब लौट रहा था मैंने रास्ते में कुछ अनोखा देखा
. आगे एक्टिवा में २ लडकियाँ थी . पीछे बैठी लडकी बारिश में सेल्फी ले रही थी .
आगे एक और एक्टिवा में एक लडकी जा रही थी उसमे भी यही चल रहा था बारिश बस कहने को
हो रही थी यानी वो लडकियाँ सेल्फी खीच कर बारिश का लुफ्त के रही थी . अब
इसमें सोचने वाली बात यह है कि मुझे इसमें विचित्र क्या दिख गया . क्या करू कमबख्त
अपनी नजर ही कुछ ऐसी है जो सामान्य चीजो में असामान्य चीजे देख लेती है . मै हैरान
इसलिए था कि वो इस बात की परवाह क्यू न कर रही थी कि उनका फ़ोन खराब भी हो सकता है
पर क्या फर्क पढ़ता है .. दूसरा यह कि वो सेल्फी ले कर क्या करेगी फेसबुक में या
व्हाट एप पर डालेगी . अगर अज्ञेय जी संवत्सर निबंध पढ़े तो यह सब विचित्र ही लगेगा
. बारिश में भीगना ज्यादा महत्वपूर्ण है या सेल्फी के रूप में उन पलों को कैद करना
......
भीगने से अपने एक प्रयोगधर्मी मित्र याद आ गये जो अक्सर बारिश
में भीगने को इस तरह से वर्णित करते कि किसी का भी मन बारिश में जा कर भीगने का
होने लगे . जब भी बारिश होती वो बाइक पर निकल जाते सडक के किनारे गर्म चाय पीते .
पिछले साल की बात है . वस्त्रापुर लेक पास एक पुस्तकालय से
वापस आ रहा था कि बारिश होने लगी . मै हमेशा बारिश से बचता हूँ पर उस दिन मित्र का
वर्णन याद आ गया इसलिए बाइक रोकी नही चलता रहा . मेमनगर तक मुश्किल से २ किलोमीटर
की दुरी रही होगी पर .... . बारिश के साथ हवा भी चलने लगी मै एक सिंपल हाफ टी शर्ट
में था . मुझे उस दिन जो ठण्ड लगी हमेशा याद रहेगी . हाथ पैर दांत सब कपने लगे .
हिम्मत न हो रही थी कि बाइक रोक दूँ क्यूकि अगर रुकता तो उस दिन घर पहुचने मुश्किल
हो जाता . तब से मुझे बारिश में भीगने का मन नही होता है . हा बारिश आते ही मन
भीगने लगता है . कुछ याद आता . याद आते है गाव में बिताये दिन .
खेतो में पानी भर जाता . बड़े बड़े मेढक निकलते और जोर जोर से
आवाज लगाते . मिट्टी से बहुत सोधी सोधी खुसबू आती . इसी समय बहुत से त्यौहार होते
है . मुझे गुडिया का त्यौहार बहुत पसंद था क्यूकि इस दिन घर से छुट मिलती तालाब
में जाकर नहाने की . मेरे गावं में एक ही बढिया तालाब था जिसे बाबा का ताल कहते थे
. उसमे मैंने घर से छुप छुप कर खूब नहाया है . छुपने की वजह यह थी आस पास के गाव
में बहुत बार लडके तालाब में नहाते वक्त डूब कर मर गये थे इसलिए घर वाले कभी नही
चाहते थे कि तालाब में जाकर कलाबाजी करू . अब वो तालाब सूख गया है . उसके पास एक
खेल का मैदान है जिसमे साल में एक दो क्रिकेट के टूनामेंट होते है .
बारिश के दिनों में ही आम गुठली से छोटे छोटे पौधे
निकलना शुरु होते थे . उनसे हम सीटी बनाते थे . पता नही आज वो सिटी बनती है या नही
. इसमें भी डाट मिलती थी क्युकि बहुत बार आम की गुठली में सांप का बच्चा निकल आता
पर नही सांप ही होता या केचुआ पर घरवाले सतर्क रहते .
जब मै कक्षा ९ पहुचा तो पढने के लिए १० किलोमीटर दूर पहाडपुर
नामक गाँव जाना पड़ा . रास्ता बहुत खराब होता उन दिनों . बीच में बहुत जगह पर पानी
इस कदर भर जाता था कि साइकिल अनुमान से ही चलानी पडती थी . इस अनुमान में बहुत बार
हम रास्ते के बगल में बनी खायी में साइकिल सहित घुस गये है . जब हम घुसे तो और
दोस्त मजा लेते जब वो जाते तो हमे भी खूब मजा आता . हमारे बस्ते में एक बड़ी सी पोलीथिन
होती जो पडोस के आंगनबाड़ी से ली गयी होती जिसमे पजीरी आती . पजीरी आती गर्भवती
महिलाओ, बच्चो के बाटने के लिए होती थी पर वो अक्सर ब्लैक में बिक जाती
जिसे लोग अपनी गाय भैस को खिलाते . बहुत लोगो का दावा था कि इससे दूध में अपार
वर्धि होती है .
तो पाठकों ,
बारिश से मुझे यह सब याद आता है
................अब जब बारिश बंद हो गयी है तो हम भी लिखना बंद कर दे वरना मेरे
पास तो किस्सों की कमी नही आप भी कहेगे की बहुत समय खा गया हूँ .
all rights reserved .Ⓒ asheesh kumar
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