उस रोज शाम को टहलते समय सामने पेड़ पर निगाह गयी तो लगा कि जैसे कि तमाम इमली लटक रही हो। हालांकि यकीन न हो रहा था कि इतनी दूर , यहां की जलवायु में भी इमली का पेड़ भी हो सकता है।
दूसरे दिन सुबह देखा तो यह इमलियाँ ही थी। कुछ तलाश करने पर कुछ पकी इमली भी पड़ी मिल गयी। उन इमली को ज्यों स्वाद के लिए मुख में रखा, मन बचपन की में खो गया।
मेरी बाग में इमली का बहुत पुराना पेड़ था।उसका तना बहुत मोटा था। मेरे दुबले पतले हाथों में वो क्या ही आता पर उसके बावजूद में मैं उस पर चढ़ जाता था। दरअसल इमली के पेड़ की डालियाँ बहुत ही ज्यादा मजबूत होती हैं। डाल पकड़ कर उल्टा होकर चढ़ना, किसी करतब से कम न था।
उसमें चढ़कर सबसे ऊपर जाकर मैं बैठ जाता था। वहाँ से सामने रोड साफ साफ नजर आती। इसमें कच्ची इमली बहुत लगती थी। उनको नमक के साथ खाना बड़ा स्वादिष्ट लगता था। पेड़ में कुछ रोग लग गया था। उसमें पकी हुई इमली शायद ही कभी अच्छी मिली हो। पकने के साथ ही वो इमली अजब तरीक़े से सूख जाती ।
बाद में पेड़ सूख गया। जब मेरी बी.एड.की फीस जमा करनी थी। पिता जी ने एक करीबी रिश्तेदार से 20 हजार रुपये उधार लिए थे। वैसे तो वो रिश्तेदार काफी सम्रद्ध थे पर उनसे इतंजार न हुआ। पिता जी ने कहा था कि जब मेरी fd टूटेगी तब वो रुपये लौटा देंगे। अगर दुनिया में रिश्तेदार इतने ही बढ़िया होते तो उन पर इतने मजाक क्यों बनाये जाते..
हमारे रिश्तेदार अपवाद न थे, इतना चरस बोया कि पेड़ कटवा कर बेच दिए गए और उनके रूपये चुका दिए गए। इस तरह इमली का सूखा पेड़, मेरी पढाई की भेंट चढ़ गया।
अब कहने वाले कहते है कि मैं बड़ा घमंडी हो गया हूँ, किसी रिश्तेदार, नातेदारों से बात नहीं करता .. सच में.. ?
अक्सर लोग पर्दे के पीछे का सच जाने बगैर ही अपने मत/ अनुमान स्थापित कर देते हैं। वैसे इमली के पेड़ पर चढ़ने के सुख किसने किसने भोगा है ?
© आशीष कुमार, उन्नाव
3 मई, 2020 ( पोर्ट ब्लेयर)