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सोमवार, 28 मई 2018

Some more books



पिछले दिनों कुछ और किताबे पढ़ी गयी। दरअसल कई वर्षो बाद , अब फिर से वही पुरानी आदत यानि नावेल पढ़ना को समय दे पा रहा हूँ। 

१. दो मुर्दो के लिए गुलदस्ता - सुरेंद्र वर्मा का लिखा नावेल है। विषयवस्तु में दो नायक भोला और नील की कहानी है जो बॉम्बे में चलती है। दोनों दिल्ली छोड़ कर बॉम्बे जाते है और वहाँ की महानगरीय जिंदगी जीने के लिए बाध्य होते है , जिसमें धन है पर सकूँन नहीं है। नील पुरुष वेश्या बन जाता है और पारुल वाले प्रकरण के चलते उसकी हत्या कर दी जाती है। इससे पहले वर्मा का मुझे चाँद चाहिए नावेल पढ़ा था। वह स्तरीय था। उसमें वर्षा वशिष्ठ  की कहानी थी। मेरे कमिश्नर सर ने यह नावेल दिया था और हम दोनों का नावेल पढ़ने के बाद एक निष्कर्ष निकला था कि लेखन में कामुकता , नग्नता का पुट डालना शायद बाजार की मांग सी हो गयी है। कुछ पल को मुझे लगा कि मैं लुगदी साहित्य की परम्परागत कथा पढ़ रहा हूँ। भाषा जरूर स्तरीय है पर विषय वस्तु , हमेशा से दोहराई जाने वाली।  

२. मदारी - वेद प्रकाश शर्मा - इस सप्ताहांत मदारी को नेट से डाउनलोड करके पढ़ा। वेद प्रकाश को पहले खूब पढ़ा है। जीवन की तमाम दोपहर उनके नावेल पढ़ने में बीती है।  मदारी में राजदान नामक एक व्यक्ति अपनी मौत के बाद अपने बुने जाल में फसा कर, अपने कातिलों का जीना हराम कर देता है।

3. आखिरी शिकार - सुरेंद्र मोहन पाठक -  यह भी कल (रविवार ) नेट से डाउनलोड करके पढ़ा। सुनील सीरीज का नावेल है। घटनाक्रम लन्दन का है। रहस्य और रोमांच से भरपूर , पढ़ाकर मजा आ गया।  


-आशीष कुमार 
उन्नाव , उत्तर प्रदेश।  












रविवार, 20 मई 2018

Experience

2 साल तक न्यूज़पेपर तक नहीं पढोगे

एक ips मित्र ( 2014 , up कैडर) से , अपनी सफलता के बाद हाल में ही अहमदाबाद में मिलने का अवसर मिला। उन्होंने तमाम बातों के साथ एक बड़ी अनुभव की बात कही।बोले अब दो साल तक न्यूज़पेपर तक पढ़ने का मन न होगा।

बड़ी पकी हुई बात थी। 11 अप्रैल को interview के बाद से कुछ भी न पढ़ा। रिजल्ट 27 अप्रैल को आया, उसके बाद न्यूज़पेपर भी बंद करा दिया वजह सब पेपर खोले तक न गए थे।
समय समय की बात है ,वरना मैं लगतार योजना, कुरुक्षेत्र मैगज़ीन तक लेने वाला व्यक्ति हूँ, आम तौर पर लोग इन्हें रेगुलर नही लेते।fully updated रहता था। अब तमाम ताम झाम में व्यस्त हूँ, देश दुनिया मे क्या हो रहा है, मुझे न के बराबर जानकारी है। खैर , फर्क क्या पड़ता है।

वैसे मैं इस बीच मे अपना पुराना नशा , नावेल पढ़ने की आदत को फिर से जीवित कर रहा हूँ और हाथ मे 'मुझे चाँद चाहिए' फेम सुरेन्द वर्मा का नया नावेल " दो मुर्दो के लिए गुलदस्ता" पढ़ रहा हूँ जो मेरे कमिश्नर साहब ने पढ़ने के लिए दी है।

आशीष, उन्नाव।।

शनिवार, 29 अक्तूबर 2016

विश्रामपुर का संत

श्री लाल शुक्ल द्रारा रचित " राग दरबारी " से काफी पहिले से ही परिचय हो गया था . यह  novel मुझे बहुत बहुत ज्यादा प्रसंद है . इसे न जाने कितने बार पढ़ा हूँ . इसको पढ़ कर ही शुक्ल जी अन्य रचनाये पढने की इच्छा लम्बे समय से पनप रही थी . मैंने काफी जगह खोजा पर Raag Darbari  के आलावा कोई दूसरी रचना book store पर उपलब्ध नही रहती . शुक्ल जी रचनाये मुझे lucknow के भूतनाथ मार्किट में यूनिवर्सल बुक डिपो में जा कर मिली . अच्छी बात यह थी उनकी सभी चर्चित किताबे एक साथ , एक ही जगह मिल गयी . यह बहुत ही खुशी की बात थी . 
पहले जल्दी जल्दी सभी बुक को देख लिया पर आराम से पढने का अवसर लखनऊ से डेल्ही आते हुए मिला . कुछ भाग गुवाहाटी से आने वाली राजधानी में पढ़ा ओर बाकि नई डेल्ही के waiting room  में . एक बेहद उमस भरी दोपहर में , पसीने से तर लोगो का हुजूम वेटिंग रूम को किसी मेले का आभास देता हुआ प्रतीत हुआ . मै शुक्ल जी के दुसरे प्रसिद्ध नोवल " विश्रामपुर का संत " के सानिध्य में ५ घंटे बिताये . मेरा प्लान इस तरह से था कि ५ घंटे के गैप में मुखेर्जी नगर जा कर कुछ लोगो से मिलना था पर इस नावेल की रोचकता के चलते , चुपचाप वेटिंग रूम में गुजार दिए . 
जिस तरह से " राग दरबारी " में क्रेद्रिय वक्तित्व के रूप में " वैद जी " है उसी तरह से विश्रामपुर के संत में एक पूर्व जमीदार , सेवा मुक्त राज्यपाल कुवँर जयंती प्रसाद है . भारत में आजादी के बाद पतनशील समाज , विविध योजनायों की खामियों के बारे में बेहद चुटीली भाषा में नावेल की रचना की गयी है . नावेल में एक रहस्यमयी नारी " सुन्दरी " के बारे में बीच बीच में जो वर्णन है वह नावेल को रोचक ओर प्रवाह बनाये रखने में सफल रहता है 
आप ने भूदान आन्दोलन , ग्राम दान के बारे में जरुर सुना होगा . यह विनोबा भावे द्वारा शुरू किये गये थे . आजादी के बाद , यह सबसे महत्वपूर्ण आन्दोलन माने गये . पर इससे जुडी विसंगति , भ्रस्टाचार , आडम्बर , छलावे के बारे जानने के लिए उक्त उपन्यास पढना सबसे अच्छा रहेगा . 
कुछ चीजे मेरे लिए भी इसमें वाकई नई ओर सोचने पर बाध्य करने वाली मिली . जब भी मौका मिले इनको पढना जरुर . बाकि किताबो के बारे में भी लिखुगा पर पहले उन्हें पढ़ तो लू . 

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