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मंगलवार, 8 अगस्त 2017

WOMEN SECURITY : ANALYSIS


 महिला सुरक्षा : एक विश्लेषण 

चंडीगढ़ में एक आईएएस की बेटी के साथ हुयी घटना , उस पर पुलिस की ढीली कार्यवाही से एक फिर भारत की परम्परागत , रूढ़िगत सोच दिखाई दे रही है। निश्चित ही उस लड़की ने बेहद साहस दिखाते हुए पुलिस में रिपोर्ट दर्ज करवाई। आमतौर पर इस तरह की पीछा किये जाने की , गंदे कमेंट करने की गतिविधि एक भारतीय लड़की के लिए आम बात है। प्रायः लड़कियों को इस तरह के मामलों को अनसुना करने की हिदायत दे दी जाती है। पुलिस के पास , आम नागरिक कतराता है वजह पुलिस का असहयोग और उदासीनता का रवैया। चंडीगढ़ के उक्त मामले में भी पुलिस ने दबाव में कार्यवाही में शिथिलता बरती। वास्तव में पुलिस अक्सर सही धारा में केस नहीं दर्ज करती। रिपोर्ट में सारे खेल छुपे होते है। लड़की ने अपहरण के प्रयास के तहत रिपोर्ट दर्ज करानी चाही पर पुलिस ने सिर्फ छेड़खानी का मामला दर्ज किया। इससे केस कमजोर पड़ गया और आरोपी को जमानत मिल गयी। अपहरण के केस में उसे जमानत न मिलती।  पुलिस को कई CCTV  में कोई भी फुटेज न मिली। पुलिस की इसी तरह की गतिवधियों के चलते उनकी समाज में छवि खराब हुयी है। पुलिस सुधार के लिए बनी कई समितियों में यह कहा गया है कि उसे राजनीतिक दवाब में काम नहीं करना चाहिए। यहां पर यह जान लेना उचित है कि पुलिस , राजनीतिक दबाव में कार्य क्यू करती है ? उत्तर है कि  पुलिस अधिकारियों के कार्यकाल की कोई निश्चित सुरक्षा नहीं है। सुप्रीम कोर्ट ने भी पुलिस सुधार पर चर्चित मामले प्रकाश सिंह में इस दिशा में कई महत्वपूर्ण निर्देश दिए थे जिनका अनुपालन नहीं किया गया। 

किसी भी राष्ट की प्रगति के लिए जरूरी है कि वहां पर महिलाओं की सभी तरह की गतिविधिओं में समान भागीदारी बढ़े। भारत का मानव विकास सूचकांक , ग्लोबल जेंडर गैप इंडेक्स में बेहद निम्न स्थान है। इसका के बड़ा कारन , भारत में महिलाओं की सुरक्षा की लचर स्थति है।  केवल आर्थिक विकास ही , भारत के लिए महत्वपूर्ण नहीं है। सरकार को समाजिक विकास पर भी ध्यान देना होगा। इस तरह की घटनाओं में ही नहीं वरन सभी घटनाओ में जहाँ न्याय की अवहेलना होती हो , सक्रिय भूमिका निभानी होगी। समाज में इस तरह की घटनाये न हो , इसके लिए केवल पुलिस या सरकार का ही दायित्व नहीं है। आमजन को भी अपनी परम्परागत सोच में बदलाव लाना होगा। हमें पितृसत्तामक सोच से निकलना होगा। महिलाओं के लिए सामान अधिकारों की बात करनी होगी। तभी समाज में शांति व स्थिरता आएगी और देश सम्पूर्ण , समावेशी प्रगति के पथ पर गतिमान हो सकेगा।  

आशीष कुमार 
उन्नाव , उत्तर प्रदेश।   

शनिवार, 3 जून 2017

World Peace Index


विश्व शांति सूचकांक 

इंस्टिट्यूट ऑफ़ इकोनॉमिक्स एंड पीस ने हाल में विश्व शांति सूचकांक जारी किया है। इसमें पहला स्थान आइसलैंड तथा अंतिम स्थान गृहयुद्ध , आतंकवाद से ग्रस्त  सीरिया को मिला है। 161 देशों की इस सूची में भारत को 137 स्थान दिया गया है। इससे पता चलता है कि भारत को इस विषय पर गंभीरता से सोचने की जरूरत है। 
भारत को आंतरिक चुनौती यथा नक्सलवाद , आरक्षण को लेकर हरियाणा , गुजरात , आंध्र प्रदेश तथा महाराष्ट्र में गंभीर हिंसा का सामना करना पड़ा है। इसके साथ सीमा की रक्षा के लिए हर वर्ष सकल घरेलू उत्पाद का एक बड़ा हिस्सा रक्षा उपकरणों पर ख़र्च करना पड़ता है। विश्व शांति सूचकांक के माध्यम से ऊपर वर्णित सस्थान विश्व को यह बतलाता है कि वैश्विक हिंसा के चलते देश अपनी पूरी क्षमता के साथ विकास नहीं कर पा रहे है। अगर हिंसा पर रोक ला दी जाय तो सैन्य ख़र्च कम होगा जिसका इस्तेमाल खाद्य सुरक्षा , स्वास्थ्य , जलवायु परिवर्तन , गरीबी के उन्मूलन में किया जा सकता है। 

आशीष कुमार ,
उन्नाव , उत्तर प्रदेश।   

गुरुवार, 1 जून 2017

World Bank Report : Women Workforce in India

विश्व बैंक रिपोर्ट : भारतीय कामकाजी महिला की दशा और दिशा 

हाल में जारी के विश्व बैंक की महिलाओं पर जारी एक रिपोर्ट में भारत को 131 देशों की सूची में 120 वा स्थान , भारत की कामकाजी महिलाओं का अर्थव्यस्था में निम्न योगदान दिखलाता है। रिपोर्ट के अनुसार भारत में रोजगार में महिलाओं की भागीदारी 2005 से हर साल काम होती जा रही है। भारत में महिलाओं के लिए सेवा के क्षेत्र में 20 प्रतिशत से कम रोजगार उपलब्ध है।महिलाओं के लिए कृषि क्षेत्र में ज्यादा रोजगार उपलब्ध है।  

चीन व ब्राजील की अर्थव्यस्था में महिलाओ की भागीदारी की उच्च दर ( 65-70 प्रतिशत) के चलते वहां पर विषमता कम है साथ ही विकास दर भी तेज है।भारत में यह दर मात्र 27 प्रतिशत है। विश्व बैंक के अनुमान के  अनुसार , अगर भारत अपनी रोजगार में महिलाओ के लिए भागीदारी बढता है तो इसकी विकास दर दो अंको में जा सकती है।  
भारत को इसके लिए शिक्षा ,स्वाथ्य जैसे सामाजिक क्षेत्र में काफी निवेश करना होगा। भारत में कामकाजी महिला को दोहरी जिम्मेदारी उठानी पड़ती है। उसे नौकरी के साथ साथ घर पर भी सारी जिम्मदारी उठानी पड़ती है।कार्यस्थल पर उसके लिए अभी भी कई तरह की समस्याएं है यद्पि इस दिशा में सरकार ने कई कानून बनाये है। भारत वैश्विक स्तर पर अपनी पहचान के लिए कई तरह के प्रयास कर रहा है पर उसकी  इन आकांक्षाओं पर इस तरह की रिपोर्ट में निम्न स्थान कई मायनो में सबक देने वाला रहता है। एक चीज और भी ध्यान में रखनी चाहिए कि कोई भी सुधार मात्र सरकार की जिम्मेदारी नहीं है, क्रन्तिकारी बदलाव के लिए हमे अपने बीच से शुरआत करनी होगी। समय है समाज में महिलाओं के प्रति अपनी जीर्ण मानसिकता में बदलाव लाने की।  

आशीष कुमार , 
उन्नाव , उत्तर प्रदेश।  

रविवार, 28 मई 2017

Tejas Express : Some issue regarding our social behavior


तेजस एक्सप्रेस का पहला सफर 

पिछले दिनों मुम्बई से गोवा के लिए हाई स्पीड ट्रैन 'तेजस ' को लांच किया गया। विविध अत्याधुनिक सुविधाओं से लैस इस ट्रैन के पहले सफर ने यह साफ जतला दिया कि अभी भी भारत में ऐसे लोग भरे पड़े है जो निम्न सोच, स्वार्थ व  निकम्मेपन के आदी है। ट्रैन के सफर के बाद पता चला कि कुछ सीट से हाई क्वालिटी के हेड फ़ोन ( high quality headphone )  गायब है , कुछ स्क्रीन में स्क्रैच है, बायो टायलेट चोक कर गए है। निश्चित ही इस तरह की घटनाएं हमारे सभ्य समाज पर धब्बा है।  

हम विकसित देश बनने की आकांक्षा रखते है पर जब तक हम अपनी सोच को नहीं बदलेंगे कितनी भी उन्नति कर ले चीजे नहीं बदलेंगी। भारत के किसी भी शहर में रोड पर आप बहुतायत लोगों को बगैर हेलमेट , सीट बेल्ट लगाए देख सकते है। सड़क , सरकारी कार्यालय में पान की पीक , सार्वजनिक शौचालय की गंदगी , रोड को कूड़ेघर बना देना , भारत के लिए आम बात है। 

दरअसल इस तरह की चीजों को  कानून का सहारा लेकर ठीक नहीं किया जा सकता है। इसके लिए जरूरी है अपनी सोच व् व्यवहार में बदलाव लाया जाय। इसको शिक्षा भी से नहीं जोड़ा जा सकता है आख़िरकार तेजस में सफर करने वाले लोग आम , निम्न , अशिक्षित लोग नहीं है फिर इस तरह की तुच्छ चीजों के प्रदर्शन से हमे यह विचार करने पर विवश कर देती है कि क्या शिक्षा लोगो को सभ्य नहीं बनाती। शायद इस तरह की घटनाओं से निपटने के लिए हमारी शिक्षा में नैतिकता का समावेश करना , समकालीन समय की महती जरूरत बन गयी है।  

आशीष कुमार 
उन्नाव , उत्तर प्रदेश।    

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