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रविवार, 23 दिसंबर 2018

That dainty


वो अनोखा प्रसाद 


यह १० अप्रैल २०१८ की बात है , अगले दिन मेरा सिविल सेवा का इंटरव्यू था। शाम को महर सिंह का फ़ोन आया। पाठक , महर सिंह से परिचित होंगे। काफी पहले उनकी कहानी लिखी थी। एयरफोर्स में जॉब करते हुए सिविल सेवा की परीक्षा पास की थी और मेरी जानकारी में महर , हिंदी माध्यम से इंटरव्यू में 200+ अंक पाने वाले गिने चुने लोगो में से एक है। 

वो भारतीय सुचना सेवा के अधिकारी (२०१२ ) है और मेरे कुछ करीबी व अंतरंग मित्रों में एक। मैं इंटरव्यू के लिए गुजरात भवन में रुका था। सिविल सेवा में चयनित कुछ अन्य मित्रों से बात हुयी थी कि दिल्ली आना हुआ है  मुलाकात करते है। अब सिर्फ दो दिन बचे थे , किसी से मुलाकात न हुयी थी।  महर सिंह ने फ़ोन पर कहा कि "यार काफी व्यस्त था इसलिए मिलने न आ सका पर कल सुबह संघ लोक सेवा आयोग के बाहर मिलने आ रहा हूँ।"  

यह एक प्रकार से मेरे लिए  संजीवनी थी। कोई सफल मित्र न केवल मिले बल्कि आपके मनोबल को बढ़ाने के लिए आयोग के गेट पर भी आ जाये , इससे बढ़िया क्या हो सकता था। मैं बहुत खुश था। 

अगली सुबह मैं , अंकित जैन के साथ संघ लोक सेवा आयोग के बाहर खड़ा था। अंकित जैन से इंटरव्यू के ठीक पहले टेलीग्राम से सम्पर्क हुआ था। वो बागपत, उत्तर प्रदेश से थे , उनके भैया IRS-IT थे। अंकित हमारे विभाग से थे। इसलिए विभाग/मूल प्रदेश  से जुडी तैयारी के चलते काफी चर्चा परिचर्चा हो चुकी थी।  तमाम बातों के बीच एक उल्लेखनीय बात का जिक्र करना आवश्यक है वो है उनकी सर्विस  प्रेफरेंस- आईपीएस > आईएएस > दानिप्स।  कहने का मतलब उन्हें वर्दी से बढ़ा लगाव था और यूनिफार्म सर्विस की उम्मीद कर रहे थे।  

महर भाई आये  और बड़ी गर्मजोशी से अपनी मुलाकात हुयी। उन्होंने एक छोटा सा डिब्बा खोला और बोला - "भाई प्रसाद ले लो। वैसे तो मैं मंदिर ज्यादा आता -जाता नहीं पर आज आपके लिए चला गया था। " मैंने प्रसाद लिया उस वक़्त मन में तमाम विचार चल रहे थे कि आज जहाँ लोगो के पास समय की घनघोर कमी है कोई आपके खातिर मंदिर तक जाये और प्रसाद लेकर आये। अंकित ने भी प्रसाद  लिया। 

इसके बाद आयोग के नाम के साथ फोटो खिचवाने की परम्परा का निर्वाह किया गया। मै पहले भी दो बार इंटरव्यू के लिए यहाँ आ चुका था तब यह ताम झाम फालतू से लगे थे। चूँकि यह मेरा आखिरी  अवसर था तो सोचा "यार पिक्स ले ही लेते है " महर सिंह वहाँ तब तक खड़े रहे जब तक मैं भीतर न गया। अंदर के प्रकरण फिर कभी। 

रिजल्ट आया तो मैं और अंकित दोनों ही अंतिम रूप से सफल थे। कहने की बातें अलग है कि पर सच यही है कि  मैं रिजल्ट से पहले इस दशा में था कि सोच रहा था कि " भगवान , मुझे वेटिंग लिस्ट में भी सबसे आखिरी स्थान भी दिलवा दो तो भी बड़ी बात होगी ". भगवान ने हमे उससे कही ज्यादा दिया। उधर अंकित जैन ( रैंक 222 ) के साथ अपनी ड्रीम जॉब आईपीएस के लिए चुने गए। 

मैंने काफी पहले आस्था पर कुछ लिखा था आज भी वही दोहरा रहा हूँ कि यह आप निर्भर है कि आप मानो तो भगवान है न मानो तो पत्थर। क्या पता उस दिन महर सिंह की आस्था व  प्रसाद ने ही सबकुछ किया हो। ( वैसे मुझे यह मत पूछना कि महर सिंह किस मंदिर गए थे , क्योंकि यह मुझे भी नहीं पता है ) 

© आशीष कुमार , उन्नाव , उत्तर प्रदेश। 

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