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मंगलवार, 14 फ़रवरी 2017

A thank u mail from my dear reader.......




कहते है नेकी कर और नदी में डाल . मैंने अपने  facebook page pr जो profile pic लगा रखी है वो आप जरुर पढना बहुत जोश दिलाने वाली है . अपने काफी व्यस्त दिनचर्या से समय निकल कर आने की एक खास वजह है . कुछ रोज मुझे एक विशेष मेल मिला मेरे ही शहर से था , मुझे काफी हैरानी हुयी कि वहां का भी कोई मुझे पढ़ता है . उन्होंने एक उत्तर लिख कर भेजा था यह वाकई बहुत खास बात थी , मुझे १००० से अधिक मेल तो मिले ही होंगे पिछले ४ सालो में पर सब आलतू फालतू ही मसलन किताब बता दो , कोचिंग बता दो आदि आदि ईमानदारी से कहूँ तो मै इस तरह के मेल के जबाब देता हूँ पर पुरे मन से नही  . मैंने कई बार चाहा है कि लोग आंसर लिखे उन्हें मै देखू और रिव्यु दू . वास्तव में यह मेरे से कुछ सीखने का सबसे अच्छा तरीका है . मुझे इसमें खुशी होगी पर यह काम काफी कठिन है . 

उक्त वर्णित मेल में एक बहुत ही खुबसुरत लिखावट में पीडीऍफ़ में एक उत्तर लिखा था और अपेक्षा की गयी थी कि मै देख लू . प्रिय पाठको , इस तरह की स्थिति मेरे लिए वाकई बहुत ही सुखद होती है . ऐसा लगता है कि मेरा लिखना सफल हो रहा है सच कहूँ तो लगता है कि लोक सेवा करने के लिए जरूरी नही कि आईएएस ही बना जाये . अपनी असफलता में भी सार्थकता महसूस होती है . खैर लम्बी बात करने का वक्त नही है . पढ़ते रहिये , साथ जुड़े रहिये . आपके लिए उनके उतर पिक में उपलब्ध करा रहा हूँ . अगर लिखावट पसंद आये तो आप भी दो शब्द लिख कर आनंद कुमार जी का मनोबल जरुर बढ़ाना .  साथ में नीचे उनका मेरा नाम मेल भी है . साभार 







सर आपने मेरे मेल का उत्तर दिया , इसके लिए कोटिशः धन्यवाद॥
सर मैं आपके फेसबुक पेज "IAS की प्रिपरेशन हिंदी में" के माध्यम से आपसे जुड़ा रहा हूँ। सर आपको उन्नाव में , बीघापुर क्षेत्र में कौन नहीं जानता । अगर थोड़ा भी सीरियस एस्पिरेन्ट है तो वो आपके ब्लॉग और फेसबुक पेज दोनों को फॉलो करता है।

सर , आपके लेखों में एक विशिष्ट प्रकार की ऊर्जा निहित होती है । उनको पढ़ने से मन को बड़ा सुकून मिलता है । आपके लेख सदैव ही एक सकारात्मक ऊर्जा का संचार कर जाते हैं। 

सर बस कुछ करना चाहता हूँ , इसी उद्देश्य से तैयारी शुरू की , तो पहला उत्तर लिखने की कोशिश की और आपसे चेक करवाने और प्रतिपुष्टि प्राप्ति का इच्छु था।

सर सिविल के लिए विगत एक वर्ष से कुछ सीमित संसाधनों के साथ अध्ययनरत हूँ , अब मैन्स की तैयारी के साथ ही बाकी तैयारी करना चाहता हूँ । 

बस आशीष सर आपका मार्गदर्शन और आशीष प्राप्त होता रहेगा तो निश्चित ही मैं अपने लक्ष्य को स्पर्श कर सकूँगा।

धन्यवाद सर 
आपका 
आनन्द कुमार


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इस ब्लॉग को काफी लोग पसंद करते है , मुझे गूगल प्लस में फालो भी करते है और प्राय मेरे पोस्ट शेयर भी करते रहते है . आप सभी लोगों का हार्दिक आभार . हिंदी में ब्लॉग लिखना बहुत समय जन्य कार्य है . सभी जगह को मिलाकर ५०० से अधिक पोस्ट हो गयी है . अगर संभव हो तो आप पोस्ट को पढ़े , टिपण्णी करे , शेयर भी करे , प्लीज . शेयर करने के लिए पोस्ट के लास्ट में काफी आप्शन है फेसबुक पर भी शेयर कर सकते है . thank u very much . I welcome more answer writing & ur mail. my mail is ashunao@gmail.com. 

सोमवार, 25 जनवरी 2016

love at present time

प्रेम और रेवड़ी :कौन सस्ता ,कौन महँगा  ???

विषय थोड़ा सा अमर्यादित लग सकता है आपको ,मैं पूरी कोशिश करुँगी इसे मर्यादित तरीके से लिखने की। फिर भी अगर कलम कहीं फिसल जाये तो आप सब से मुआफ़ी चाहती हूँ। घबराइये नहीं ;मैं आपको कचरा नहीं परोसने जा रही हूँ।  आपकी मानसिक तंदुरुस्ती का ख़्याल रखना मेरी जरूरत भी है और जिम्मेदारी भी। 
    प्रेम के सन्दर्भ में दो बातें अक्सर मेरे दिमाग में कौंधती हैं -एक तो यह कि भारत जैसे देश में जहाँ प्रेम के प्रतीक स्वरूप राधा -कृष्ण को वर्षों से पूजा जाता रहा है ;वहाँ प्रेम को इतना अनैतिक क्यों समझा जाता है। किसी और को क्या कहूँ मैं ख़ुद इस विषय में कुछ भी कहने या सुनने से कतराती हूँ। ऐसा लगता है कि जैसे आत्मा अपवित्र हो रही हो। और जो दूसरी बात है वह यह है कि हमारे यहाँ लोगों को दाल -सब्जी मयस्सर हो न हो ;प्रेम हर किसी को प्राप्त है। यहाँ हर आदमी के पास अपनी प्रेम कहानी है और वह भी एक -दो नहीं ;दर्जनों की संख्या में। हास्यास्पद लगता है ;सोचती हूँ कभी-कभी कि  क्या प्रेम रेवड़ी से भी ज्यादा सस्ता हो गया है। 
   मेरे घर के पास में ही वीरबहादुर सिंह नक्षत्रशाला है और उसी से लगा भीमराव अम्बेडकर पार्क भी है। काफी खुली जगह है यह। लगभग हर शाम मैं यहाँ जाती हूँ।मेरे थोड़े -बहुत सामाजिक ज्ञान के लिये शाम के वक्त की यह सैर ही जिम्मेदार है ;क्योंकि बाहर की बौरायी हुयी हवाएँ हमारे घर की चहारदिवारी को लाँघ नहीं पातीं। हर रोज़ कुछ हैरत भरा देखने -सुनने को मिलता है और मैं अवाक् रह जाती हूँ। लेकिन अब बुरा नहीं लगता ;शायद आदी हो गयी हूँ। 
   ऐसे ही एकदिन का वाक़या है -पार्क में टहलते वक्त मैंने देखा एक जगह ५-७ युवा लड़के  बड़ी एकाग्रता पूर्वक कुछ सुन रहे थे। थोड़ा नजदीक  जाने पर ज्ञात हुआ कि ,उनमें से एक अपनी तथाकथित प्रेमिका से बातें कर रहा था और बाकी के उन बातों के मजे ले रहे थे। मैंने मन ही मन सोचा बेचारी भोली -भाली लड़की को उल्लू बना रहे हैं। कुछ दिनों बाद  एक और घटना देखने को मिली ;फर्क मात्र इतना था कि अबकी बार उन लड़कों की जगह कुछ चमकती सूरत लिये बेहद नाजुक दिखने वाली लड़कियां थीं। शायद ये सब कुछ बेहद आम है और अंडरस्टुड भी। अगर मुझे घुटन हो रही है तो दोष मेरा है। 
   ये टाइम पास के नये तरीके हैं ;जिन्हें हमारी आजकल की मॉडर्न और एक्स्ट्रा जीनियस जनरेशन प्यार  का नाम देती है। यह प्रेम सचमुच बेहद सस्ता है और सर्वसुलभ भी ;परन्तु उतना ही घटिया और सर्वथा हेय। मेरी समझ से प्रेम अत्यंत दुर्लभ है। वह यूँ  गली ,नुक्कड़ ,चौराहे पर भटकता हुआ न मिलेगा। भटकता हुआ इस तरह का प्रेम महज़ गुमराह कर सकता है। प्रेम की अनुभूति की जा सकती है परन्तु अभिव्यक्ति नहीं। अभिव्यक्ति के बाद प्रेम ,प्रेम न रह कर कलंक बन जाता है और सर्वथा दुखदायी ही होता है। कहते हैं जिस विषय की उचित मालूमात न  हो उस विषय पर जुबान नहीं खोलनी चाहिए। अतः अब मुझे तरीकन मौन हो जाना चाहिए। 
   चैतन्य रहिये ..... खुश रहिये

द्वारा :- एक प्रबुद्ध पाठिका ( s.d.g.) 



द्वारा :- एक प्रबुद्ध पाठिका ( s.d.g.) उनकी रिक्वेस्ट पर उनका नाम गोपनीय रखा गया है . 

( यदि आपके पास भी कोई अच्छा सा लेख हो तो उसे मुझे मेल ashunao@gmail.com  पर भेज सकते है . ) 



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