पिछले दिनों जब घर उन्नाव गया तो पड़ोस के एक मित्र ने कहा और ब्रो ........ जब तक मै कुछ समझता बन्धुवर ने पूछा कैसे हो डयूड.........। अब भाषा का ऐसा रूप देख कर बडा़ आश्चर्य हुआ। मुझे लगा मै रहता हूॅ मेगा सिटी में तो बन्धु मुझसे इतनी अपेक्षा तो कर ही सकते थे कि मैं ब्रो और डयूड जैसे आधुनिकता दर्शाने वाले शब्दों को प्रयोग कर ही रहा होउगाॅ। नही मित्र ऐसी शब्दावली मेरे बस की नही। बस डर इस बात का है कि बोली से ही भाषा उपजती है और आने वाली हिन्दी भाषा का रूप विकृत न हो जाय.
आज के समय में हर कोई आधुनिक बनने , दिखने की कोशिश में लगा है। पता नहीं हमको क्या हो गया है कि हम अपनी जड़ो को भूलते जा रहे है। दरअसल पश्चिमी संस्कृति में इस तरह लिप्त हो गए है कि हम अपने संस्कारो को ही भूलते जा रहे हैं। अपनी बोली , भाषा की मिठास , भला अंग्रेजी क्या मुकाबला कर पायेगी। इसलिए जब तक जरूरी न हो हिंदी में बात करना ही उचित होगा।