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शनिवार, 22 जून 2019

kabir singh : a story


01 . कबीर सिंह : एक कानों सुनी , बिलकुल ताजी घटना 

हाँ , यह बात कबीर सिंह फिल्म की ही है। कल की बात है , मैंने किसी को फ़ोन पर इसके बारे में बात करते हुए सुना। जब उसकी बातें खत्म हो गयी तो मैंने पूछा "यार कबीर सिंह को लेकर क्या बात हो रही थी ( मैंने मूवी का काफी पहले ट्रेलर देखा था तब लोग बात कर रहे थे कि  यह सलमान खान की भारत मूवी से ज्यादा पॉपुलर हो रहा है ) . साथी ने बताया कि यार वाइफ का फ़ोन था कह रही थी कबीर सिंह मूवी देखने चले। अब जब वाइफ , पति से डिमांड करे वो भी जोकि सिविल सेवा का मैन्स देने वाली हो , जिसका पल पल कीमती हो तो जाहिर है मूवी बहुत खास होगी। मैंने साथी से पूछा कि तो फिर जा रहे हो क्या ? नहीं यार मैंने उसे समझा दिया कि दुनिया में दो ही तरह के लोग होते है - शासित व शासक। अब तुम्हें निर्णय लेना है कि तुम्हें क्या बनना है ? कबीर सिंह , फकीर सिंह तो आते जाते रहेंगे तुम्हें शासक बनना है कि नहीं, तुम कहाँ इन तुच्छ बातों में पड़ी हो । जाहिर है कि अब इतनी उच्च , दार्शनिक बातें सुनकर भाभी जी क्या ही बोली होंगी। हम दोनों बहुत देर तक इस बात को लेकर हसँते रहे। अगर कोई सिविल सेवा की तैयारी कर रहा हो तो वो भी इस बात से प्रेरणा ले सकता है कि तुम्हें बनना क्या है - शासक या शासित।

[मेरे नियमित पाठकों को पता है कि मैं इतनी छोटी पोस्ट नहीं लिखता फिर  इतने दिनों बाद लिखा है तो  नैतिक दबाव है कि कुछ और भी लिख ही दूँ। ]

०२. "अब जिंदगी में कोई उद्देश्य बचा नहीं "

यह कहानी दो ऐसे लोगों कि है जो दुनिया की सबसे कठिन समझी जाने वाली ( पता नहीं यह बात कब से और कैसे विरासत में चली आ रही है ) और जो हर साल देश के सबसे योग्य युवाओँ का दिमाग का दही करने वाली प्रतियोगी परीक्षा को पास कर चुके है। जी यह सिविल सेवा परीक्षा की बात हो रही है। जिन दो लोगों की बात हो रही है , उनमें एक ने अपने अंतिम प्रयास में यह परीक्षा पास की है , वो आईएएस नहीं बना फिर भी वो मुक्त हो गया, UPSC  ने उसे आजाद कर दिया कि अब तुम मोक्ष्य को पा  चुके , 9 साल तक गुलाम रहे अब अपनी जिंदगी जियो। दूसरे के पास एटेम्पट है पर उसे आईएएस मिल गया तो वो भी मुक्त हो गया। संयोग से दोनों रूम पार्टनर है। एक जनवरी से सोच रहा है कि अब क्या किया जाय , उसे पुरे साल सिविल सेवा की तैयारी की आदत पड़ गयी थी अब एकाएक सब खत्म। दूसरे को इसी साल आईएएस मिल गया। जिस दिन रिजल्ट आया और रैंक से आईएएस मिलना निश्चित हो गया , उसी दिन से वो भी मुक्त हो गया।  

तो अब ऐसे लोगों के जीवन पर नजर डालते है , दोनों ने ही तमाम कल्पना की थी कि बस एक बार UPSC से मुक्ति मिले तो जिंदगी में ऐश ही ऐश करेंगे पर दोनों करते क्या है - कल रात की बात है , जिसे आईएएस मिला है वो बोलता है यार अब जिंदगी में कोई उद्देश्य नहीं बचा है , दूसरा बोलता है हाँ भाई मैं तो जनवरी से यही सोच रहा हूँ। फिर दोनों टिक टॉक पर भारत के नए उभरते हुए एक्टर एक्ट्रेस की फूहड़ एक्टिंग देखते है। बीच बीच में बोलते है कि देश का युवा किस किस तरह की बकैती में लगा है ( अगर अपने आप टिक टॉक के वीडियो नहीं देखे तो आप उन बचे हुए दुर्लभ लोगों में है जिनकी प्रजाति तेजी से खत्म हो रही है ) ----दूसरा बोलता है - हाँ भाई सही कह रहे हो।  फिर दोनों एक दो घंटे तक अपने अपने फ़ोन में डूबे रहते है , एक हल्के होने के लिए उठता तो अहसास होता है कि रूम में ac ठंठक कम  कर रही है , रूम में दो ac है। दोनों में 18C तापमान कर दिया गया है। कंबल ओढ़ लिए क़र  फिर एक ने बोला -भाई जिंदगी में अब कोई उद्देश्य नहीं बचा , हाँ भाई मैं तो जनवरी से यही सोच रहा हूँ। रात के 1 बज गए है। अब मोबाइल से मन भर गया है। एक बोलता है कि भाई कौन सी मूवी दिखाओगे ? अब ipad  खुल गया। यू tube पर तिग्मांशु धुलिया की 'हासिल' फिल्म देखी जा रही है। रात  3 बजे दोनों का सोना शुरू हुआ पता नहीं कब सोये। सुबह 10  बजे उठे वो भी इसलिए कि इसके नाश्ता न मिलेगा। वापस आकर फिर सो गए।  दोपहर 1 बजे दोनों उठे - दोनों फिर एक बार दोहराया - "यार जीवन में अब कोई उद्देश्य नहीं बचा है।" ऐसी ही जिंदगी चल रही है। आप सोच रहे होंगे कि भला जीवन में उद्देश्य कैसे खत्म हो सकते है , मेरे ख्याल से  दोनों के पास अब  सिविल सेवा की परीक्षा जैसा तगड़ा उद्देश्य नहीं बचा है, इसलिए ही वो इस तरह से जी रहे हैं। यह  कहानी याद जरूर रखना , क्या पता उनके जीवन के बाद के भी कभी अपडेट लिखे जाय।  

फुटनोट : उक्त कहानी पूर्णतः काल्पनिक है, किसी जीवित या मृत व्यक्ति से इसका सम्बन्ध मात्र एक संयोग होगा। काफी दिनों बाद कुछ लिखा है, लिखना कुछ और ही था और सोचा था कि जो भी लिखूंगा वो अपने दो खास मित्रों को समर्पित करूंगा। महर सिंह ( भारतीय सुचना सेवा 2011 बैच ) व शिवेंद्र मिश्रा ( IRS - IT 2016 बैच ) आप दोनों को यह पोस्ट समर्पित है , आप दोनों ही  मेरे लिखे बड़े चाव से पढ़ते है और बीच बीच में लिखते रहने के लिए प्रोत्साहित करते रहते है , उम्मीद करता हूँ यह पोस्ट भी पसंद आएगी। 

रचनाकाल : रात 1 बजे, 23 जून 2019 , दिल्ली।  

© आशीष कुमार, उन्नाव उत्तर प्रदेश।  

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