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BOOKS
गुरुवार, 9 सितंबर 2021
Motivational quotes
शनिवार, 7 मार्च 2020
NO AGE LIMIT
मंगलवार, 17 दिसंबर 2019
motivational : Two aspirant
गुरुवार, 7 नवंबर 2019
Three years in college
कॉलेज के वो तीन साल ।
हम वहाँ से आते है मतलब जहां आपको सब कुछ खुद ही करना है, गाइडेन्स नाम की कोई चीज नही होती है। बहुत समय से सोच रहा हूँ कि इस पर लिखू पर लगता था कि कॉलेज की आलोचना होगी पर कभी न कभी लिखना ही था।
मैंने भी तमाम लोगो की तरह की बीएससी की है। गणित, भौतिक विज्ञान व कंप्यूटर एप्लिकेशन में। स्वीकार करना कठिन है पर सच है कि तीनों ही में मुझे कुछ भी नही (स्नातक स्तर का ) आता। हमने ऐसे कॉलेज में एडमिशन लिया था जहाँ वर्षो से एक विकट समस्या चली आ रही थी। अध्यापक क्लास इस लिए नही लेते थे क्योंकि उन्हें शिकायत होती कि छात्र पढ़ने ही नही आते और छात्रों का कहना था कि अध्यापक पढ़ाने नहीं आते इसलिए वो क्लास नही जाते । ऐसे में होता यह कि अध्यापक अपने कॉमन रूम में बैठकर देश दुनिया का चिंतन करने में , समाज के नैतिक पतन, नेताओं की मक्कारी पर अपना कीमती समय देते। इससे उन्हें सन्तोष रहता कि वो हराम की कमाई नहीं ले रहे है। दूसरी ओर छात्र अपनी युवा ऊर्जा अन्य जगहों पर लगाते। हम जैसे कुछ जो गांव देहात से आते अपना ट्यूशन पढ़ाने जैसे कार्यों में लग जाते ताकि घर पर बोझ न बने।
मैं पूरे साल साईकल लेकर घर 2 ट्यूशन पढ़ाता रहता फिर एग्जाम के समय दुपतिया ( अलग 2 नामों से बिकती है जैसे कानपुर यूनिवर्सिटी में इजी नोट्स चलते है ) जैसी पतली किताबें पढ़कर पेपर देने जाते। पहले साल तो दुपितया लिया पर अगले साल वो भी न ली तब भी पास हो गया यह मेरे लिए भी खुद रहस्य है आखिर कैसे ? । तीसरे साल प्रैक्टिकल होते हैं ।
मेरे पिता जी को कुछ चीजों का बढ़िया ज्ञान था। उनकी सलाह के अनुसार एक गुरु जी के घर प्रैक्टिकल वाले दिन सुबह 2 देसी माठा ( छाछ ) , कुछ ताजे करेले लेके दे आया। उनका बेटा निकला तो उसको बोला कि पापा से बोल देना कि आप का स्टूडेंट हूँ नाम आशीष है।
इसी तरह से कंप्यूटर के प्रैक्टिकल वाले सर को मधुशाला की प्रति दी। ( यह सलाह एक नेक मित्र की थी।) यहाँ मेरे टीचर भड़क गए बोले कि यह बिल्कुल गलत है पर प्रैक्टिकल वाले सर ने किताब रख ली यह कहते हुए कि लड़कें की भावना समझो। हो सकता है कि मैंने उन्हें यह भी बोला हो कि sir मैं लेखन करता हूँ आदि आदि ) । प्रैक्टिकल के नाम पर 100 -100 रुपये भी जमा कराए गए थे। अब यह मत कहना कि आपने कभी नही जमा किये प्रैक्टिकल के नाम पर रुपये।
गणित में 45 में 42 अंक दिए गए। 40 से कम किसी को कम नही मिले थे। 2 अंक गुरु की सेवा के थे या नही कह पाना मुश्किल है। कंप्यूटर वाले सर ने कम अंक दिए थे। इसमें मुँह दिखाई ज्यादा चली थी। मेरी मधुशाला काम न आई। बाद के वर्षों में मुझे इस बात का बेहद अफसोस होता रहा कि मैंने तीन सालों में एक पन्ने (बीएससी से जुड़ी )की भी पढ़ाई न की। न तो मुझे किसी बुक का नाम पता था और न ही कौन 2 से पेपर होते हैं। हालांकि इस धक्का परेड डिग्री के विषयों की उपयोगिता कभी समझ न आई। अंकगणित मेरी बहुत अच्छी थी , इंग्लिश में सर के बल मेहनत की। gk में बचपन से बहुत मजा आता था। बस इन्ही के दम पर तमाम नौकरी मिली।
यह कड़वी सच्चाई है पर कुछ नामचीन यूनिवर्सिटी को छोड़ दे यथा इलाहाबाद / प्रयागराज, BHU, DU तो सब जगह की स्थिति ले देकर उक्त सी है। और नामचीन जगहों पर पढ़ने वाले लोग पूरे देश के ग्रेजुएट का कितना परसेंट होंगे। माफ करना यह 15 साल पुरानी बात है। हो सकता अब काफी बदलाव हो गया हो। क्योंकि अब देश में बदलाव की बयार आयी है हो सकता हो अब उन कॉलेज में उस वर्षो से चली आ रही समस्या का समाधान हो गया हो।
© आशीष कुमार, उन्नाव, उत्तर प्रदेश ।
7 नवंबर 2019, दिल्ली
शनिवार, 11 मई 2019
Happy mother's day
मां तुम्हें नमन
बच्चों की उपलब्धि उनके संस्कारों पर निर्भर करती है। संस्कार, परिवार से मिलते हैं। परिवार की नींव मां होती है। मुझे बचपन से याद है कि मेरी माँ की सबसे बड़ी चिंता, हमारी पढ़ाई थी। बेहद संघर्ष भरे दिनों में हमारे परिवार की आखिरी उम्मीद, हम बच्चें ही थे। कैसे भी करके कोई भी छोटी मोटी सरकारी नौकरी का सपना, बचपन से डाल दिया गया था।
शुरू के कुछ सालों तक यानी कक्षा 8 तक हम पढ़ने में काफी ठीक माने जाते थे, फिर धीरे धीरे उम्मीदें टूटने लगी। हम खुद तो कभी अपने को कमजोर न समझे पर समाज मे बुद्धिमत्ता के प्रतिमान जैसे कि 10वी, 12 में प्रथम दर्जे से पास होना, पर खरे न उतर सके।
10 में जब सेकंड डिवीज़न आयी तो एक रिश्तेदार ने बोला कि तुमको जो बनना था बन गए। आगे भी सेकंड ही आता रहा। लोग ऐसे ही बोलते रहे। मां ने कभी उम्मीद न छोड़ी।
कभी निजी भावनायें, ऐसे सार्वजनिक करने की आदत न रही पर आज मदर डे पर उनको ऐसे नमन करना बनता ही है। मेरी तमाम सफलताओं की नींव मेरी माँ ही रही हैं। मुझे गर्व है कि वो काफी पढ़ी है और अपने बच्चों को बहुत अच्छे संस्कार दिए हैं। देश की सबसे कठिन समझी जाने वाली सिविल सेवा परीक्षा में सफल होने का सपना और उसे हकीकत में बदलने का जज़्बा मेरा जैसा सामान्य स्टूडेंट अगर कर सका है तो उसके पीछे मां के असीम आशीर्वाद,प्रेरणा ही रही है।
-आशीष
रविवार, 7 अप्रैल 2019
Apana time ayega..
जिनको अभी भी और संघर्ष करना है
तमाम सफल लोगों के बीच उन लोगों भी याद करना लाजमी है जो लगातार संघर्ष करने के लिए बाध्य हैं या कहे कि अभिशप्त से हो गए हैं ।
इस बार जब से सिविल सेवा का रिजल्ट आना था , तब से मन मे बार 2 आ रहा था कि यार इस बार उन दोनों का जरूर हो जाय। दो लोग है, हिंदी माध्यम से। नाम नहीं लिख रहा हूँ पर लगभग उनको बहुतायत लोग जान ही जायेंगे । दोनों लोग राजस्थान से है।
पहले मित्र jnu से है, इतिहास विषय से देते है। शायद उनका 5 या 6 लगातार इंटरव्यू था पर न हुआ। पिछले साल 1 या 2 अंको से चयन रह गया था।
दूसरे साथी काफी अच्छे लेखक है, दैनिक जागरण, दैनिक भाष्कर आदि तमाम पेपर में उनके लेख आते रहते हैं।शायद भूगोल विषय है उनका। पहले दिल्ली में थे अब जयपुर में शिफ्ट हो गए हैं। उनका लगातार तीसरा इंटरव्यू था।
जिस दिन रिजल्ट आया , उनका दोनों के नाम एक मित्र से सर्च करवाया पर दोनों का ही न हुआ। सबसे खलने वाली बात यह है कि दोनों अभी किसी वैकल्पिक करियर को न बना सके है, इसलिए उन पर तमाम तरह के दबाव भी। अभी बात करने की हिम्मत न हुई उनसे। मुझसे बहुत ज्यादा गहरे , अंतरंग संबंध भी न है। बाद वाले साथी से कभी मिलना भी न हुआ, jnu वाले मित्र भी एक आध बार इंटरव्यू के दौरान upsc परिसर में भेट हुई है पर दोनों संर्घष के चलते अपने से लगते है।
मित्रों हो सकता है कि आप इस पोस्ट को पढ़े या कोई आप तक इसे पहुँचा दे। अब आप लोग उस स्तर पर है कि ज्यादा कुछ कहने या समझाने का अर्थ नही बचता। बस समय का फेर है, यह बस हिंदी माध्यम का बुरा दौर है। अभी आप दोंनो के प्रयास बचे है , अंतिम प्रयास में भी सफ़लता मिलती है, इसलिए एक और प्रयास सही। गुनगुनाते हुए लगिये- अपना टाइम आएगा ।
- आशीष कुमार
उन्नाव, उत्तर प्रदेश।
रविवार, 19 अगस्त 2018
Success tips for upsc
अगर आप कोचिंग कर पाने में सक्षम नही हैं तो 2 चीजे जरूर ध्यान रखना
1. किताबें जितनी ज्यादा खरीद सको, खरीदते रहना।
2. जितना ज्यादा पढ़ सकते तो पढ़ते रहना
एक मजेदार तरीके में कहूं तो मैंने अपने वजन के 10 गुना ज्यादा किताबें खरीदी होंगी और उनमें कुछ 4 या 5 बार से ज्यादा पढ़ी गयी होंगी।
-आशीष कुमार
सोमवार, 14 मई 2018
story of a UPSC ASPIRANT
मंगलवार, 8 मई 2018
UPSC FINAL RESULT 2017
CONTRACT- ASHUNAO@GMAIL.COM
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