जीन संवर्धित सरसों
हाल में ही पर्यावरण मंत्रालय से संबद्ध जेनेटिक इंजीनीररिंग अप्रूवल कमेटी ने जीन संवर्धित सरसों के व्यवसायिक उपयोग के लिए अनुमति दी है। इसके साथ ही एक बार फिर इस बात की चर्चा शुरू हो गयी है कि जी एम फसलें हमारे लिए उपयोगी है या नहीं।
भारत में अभी तक जीन संवर्धित कपास को ही अपनाया गया है। बी टी ब्रिंजल यानि बैगन को अनुमति नहीं दी गयी थी। जीन संवर्धित फसलों की उपयोगिता, उनके उत्पादकता में वृद्धि तथा प्रतिरोधकता को लेकर होती है। यह सूखा से भी निपटने में सहायक होती है। देखा जाय तो जनसख्या में वृद्धि के साथ साथ खाद्य सुरक्षा के मद्देनजर जीन संवर्धित फसल हमारे समय की मांग है।
विश्व के कुछ देशो यथा अमेरिका में जहां जीन फसलों को सफलतापूर्वक उगाया जा रहा है तो कुछ देशो में इसका विरोध भी किया जाता रहा है। भारत जैसे देश जहां पर आज भी बहुतायत भाग कृषि पर निर्भर है और निम्न फसल उत्पादकता है, जीन परिवर्धित फसल एक अच्छा विकल्प साबित हो सकती है।
वस्तुतः कोई भी तकनीक अच्छी या बुरी हो सकती है। यह निर्भर करता है कि आप उसे कैसे प्रयोग करते है। जीन फसलों के विरोध के सबसे महत्वपूर्ण कारको में एक, इसका विदेशी कम्पनी मोनसैंटो द्वारा इन फसलों के बीज पर एकाअधिपत्य को लेकर भी रहा है। भारत के कई किसानों की यह चिंता स्वाभाविक है कि भारत की कृषि , विदेशी कम्पनी के अधिपत्य में न चली जाय। महाराष्ट में कपास उत्पादकों द्वारा की गयी कुछ आत्महत्यों से उक्त शंका निराधार नहीं कही जा सकती है।
ऐसे में सरकार द्वारा सावधानी पूर्वक कदम उठाये जाये चाहिए। सर्वोच्च न्यायालय ने भी इस मसले पर कहा कि जनता की सहमति सर्वोच्च होनी चाहिए। अभी इस जीन परिवर्धित सरसों को पर्यावरण मंत्री की सहमति के बाद कृषि मंत्रालय द्वारा इसकी फसल की उपयोगिता का एक पूर्व आकलन किये जाने के बाद ही यह आम जन के लिए उपलब्ध कराई जाएगी। एक अनुमान के मुताबिक इसमें ४ से ५ वर्ष लग जायेगे तब तक भारत में इन फसलों के प्रति आम सहमति बना ली जाय तो अच्छा होगा। चुकि यह परिवर्धित सरसों भारत के सरकारी संस्थान की उपलब्धि है इसलिए कम से कम किसानो को , इसके दाम को लेकर ज्यादा आशंकित नहीं होना चाहिए।
आशीष कुमार ,
उन्नाव , उत्तर प्रदेश।