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सोमवार, 6 मई 2024

Unnao ki Yaden

 उन्नाव की कुछ यादें

 

 

अतीत बड़ा सम्मोहक होता है। यूँ तो उन्नाव को छोड़े बरसों बीत गए। पहले अहमदाबाद के दिनों में कानपुर होते हुए घर जाना होता तो उन्नाव में एक दो रात रुकना हो जाता था। अब जब छुट्टी ही एक दिन की मिलती है तो सीधा गाँव वाले घर में आराम फरमाना सबसे सुकूनदायक लगता है। 

 

कल शाम एक पार्टी में जाते हुए , उन्नाव की दिनों यादें आने लगी। सबसे पहले याद आयी कचहरी वाली अंजलि स्वीट्स की दुकान , उसके समोसे , खस्ता और आलू की सब्जी। उसके जैसा स्वाद कहीं न मिला। मुझे ऐसा लगता है व्यक्ति के स्वाद का उसके परिवेश , क्षेत्र का काफी असर होता है। जब कभी टूशन पढ़ाकर लौटे और भूख लगी तो दो खस्ते खा लिए।  डिमांड इतनी की हर वक़्त , गरमा गर्म मिल जाते थे। उसके बगल में एक बहुत छोटा सा ढाबा भी हुआ करता था , जिसमे मटर पनीर और तंदूरी रोटी , मेरा हमेशा का आर्डर होता था।

 

एक दुकान GIC स्कूल के सामने अंण्डे वाले की थी। जिसका ऑमलेट बहुत डिमांड में रहता , उसकी टमाटर वाली चटनी के लिए लोग काफी दूर से आते थे। चुकि मै उन दिनों केवटा तालाब में रहा करता था और अंडे वाले का घर पास में ही था। उसके घर को देख लोग कहा करते थे कि बहुत पैसे छाप रहा है।

 

एक पानी के बताशे की दुकान राजकीय पुस्तकालय के ठीक पास लगती थी , जिसके दही वाले बताशे बहुत डिमांड में रहते थे। दरअसल एक रिश्तेदार जिन्हे हम लोग काफी बड़े (तथाकथित एलीट ) मानते थे , उनको वह पानी पूरी खाते देखा तो काफी हैरानी हुयी। दरअसल स्ट्रीट फ़ूड लगता था आम लोगों के लिए ही होता है, उन दिनों पानी के बताशे , दाल फ्राई फालतू चीजें लगती थी। अब दोनों ही चीजे मेरी पर्सनल fov है। 

 

एक दुकान  एग्गरोल वाले की थी नाम शायद सुरुचि एग्गरोल कार्नर था। पहले पहल जब एगरोल खाया मजा आ गया। उसके यहाँ शाम को ही दुकान खुलती थी और बहुत देर रात तक खुली रहती थी। लाइन में लोग अपनी बारी का वेट करते थे। साफ सफाई का वो विशेष ध्यान रखता था। बाद के दिनों में वहां एक अंकल , ने प्रॉपर नॉन वेज का ठेला खोला। उनकी बिरियानी मेरा कई रातों का डिनर बना।

उन्नाव रेलवे स्टेशन के ठीक सामने बस अड्डे के पास बाबा होटल हुआ करता था जो शाकाहारी भोजन के लिए बहुत अच्छा था। एक लोहे के जीने से ऊपर चढ़कर जाना पढ़ता था पर यहां भी बहुत भीड़ हुआ करती थी। पुदीने वाली चटनी और प्याज के साथ गर्म गर्म तंदूरी रोटी और पनीर , बहुत संतुष्टिदायक होता था। 

 

मनोरंजन स्वीट्स काफी पुरानी दुकान थी , मेरे ख्याल से जोकि उन्नाव के सबसे पहले रेस्टोरेंट में गिनी जा सकती थी। काफी भीड़ होती थी , कई बार गया भी पर उनकी कोई विशेषता याद न आती है।

 

एक नॉनवेज की और दुकान आ रही थी जो पेट्रोल टंकी (राजा शंकर स्कूल के सामने ) छोटी दुकान में चलती थी। उसका स्वाद आज भी जुबान पर याद है। 

और अंत में जोकि इन सबमे सबसे बाद जुड़ा - छपरा वाला होटल , कहचरी उन्नाव। इनकी चाय , कचौडी अति डिमांड में रहती। असली स्वाद चाय का था जोकि शुद्ध दूध , चाय पट्टी को पत्थर वाले कोयले पर बनती थी। उस चाय शोधापन बहुत मुश्किल  से मिलता है। 


अब ये सब दुकानों का अस्तित्व है या नहीं मुझे पता नहीं। शहर काफी बदल गया होगा। हर दुकान की अपनी एक कहानी बन सकती है पर कोशिस कि यादों का दबाव कम से कम समय में सब समेट ले। ये कहानी 2003 से 2010 के बीच की है। दरअसल ये अड्डे है जहाँ स्वाद की ललक बार बार ले जाती थी। बेरोजगारी के दिनों , ये सब लक्ज़री से कम न था। समय के साथ शहर बदले , लखनऊ , अहमदाबाद से अब दिल्ली पर उन्नाव के सिवा अड्डे जैसे कही और न बन सके। मुझे ऐसा लगता है हर व्यक्ति जिससे अपना शहर पीछे छूट गया , उनको भी अपने शहर की ऐसी ही यादें जेहन में आ ही जाती होंगी। 

 

©आशीष कुमार , उन्नाव।

6 May 2024.

 

 

 

 

 

 

 

रविवार, 14 नवंबर 2021

Different people

भांति भांति के लोग

कुछ रोज हुए पर बात है कि जेहन से उतर ही नही रही। कोई तो था, सामने जो बातों में तल्लीन इस कदर था कि उसे जरा भी होश न था कि जाने अनजाने में क्या कर रहा है..

हम चाय या कॉफी पी रहे थे। सामने नमकीन भी थी, मिठाई भी थी। सामने बैठे शख्स के हाथों पर नजर गयी तो वो काजू कतली का एक टुकड़ा उठा कर मुँह में रखा, फिर चाय सिप की। यह घटनाक्रम फिर उसने दोहराया।
उस वक़्त से लेकर अभी तक यह न समझ आया कि यह कोई नया ट्रेंड तो न चल पड़ा है या फिर वो बातों में बहुत गहराई से डूब गया था। मीठी चाय के साथ मिठाई ..भगवान ही जाने ...यह नई लीला।

© आशीष कुमार, उन्नाव।
14 नवंबर, 2021।

शनिवार, 24 जुलाई 2021

strange issue

अनोखी समस्या 

उसका एकहरा शरीर था। पढ़ते 2 आंखे कमजोर हो गयी। ऐनक बनवाया गया। कुछ पैसे बचाने के चक्कर मे उसका फ्रेम जरा भारी ही रखा गया।
 अब जब चश्मा लगता है तो उसके भार से नाक पर जोर पड़ता है नाक पर दर्द और न लगाया जाय तो सर में दर्द। 

#सुना हुआ यथार्थ
©आशीष कुमार, उन्नाव।
24 जुलाई, 2021।

शनिवार, 3 अप्रैल 2021

खजोहरा

खजोहरा 

होली के अभी कुछ दिन ही बीते हैं, खजोहरा का विचार होली वाले दिन आया था। दरअसल एक गुरु जी सामने पड़ गए थे तो याद आया कि ये तो बहुत पीटने वाले अध्यापक थे अपने जमाने में। शिक्षक तो अभी भी हैं पर पता नहीं अब पहले की तरह से क्लास में पिटाई करते हैं कि नहीं। 

खजोहरा बचपन में किसी बड़े रहस्य की तरह था। क्लास के कुछ खुरापाती छात्र अक्सर इसके बारे में बात किया करते थे। खजोहरा के बारे में कहा जाता था कि जो कोई उसे छुएगा, उसे बहुत ज्यादा खुजली होने शुरू हो जाएगी। खुजलाते खुजलाते अंग लाल पड़ जायेगा।


Class में पीछे बैठने वाले छात्र, जिन पर हर गुरु जी कुछ ज्यादा ही पीटने के लिए उत्सुक रहा करते थे, अक्सर ऐसे plan बनाया करते थे कि किसी दिन खजोहरा लाकर गुरु जी की कुर्सी पर डाल देंगे, फिर गुरु जी की खुजली कर करके जो हालत पतली होगी, वो दर्शनीय होगी।

जैसा कि सार्वभौमिक तथ्य है कि क्लास में आगे बैठने वालों और पीछे बैठने वालों में कभी नहीं बनी, मेरी भी उनसे कभी नहीं बनी। गुरु जी के प्रिय विद्यार्थियों में हमेशा रहा पर खजोरहा के लिए न जाने क्यों उत्सुकता बनी रही।

हमेशा सोचा करता कि कैसा होता होगा खजोहरा। शायद एक बार गांव के पास जंगल में घूमते हुए किसी ने खजोहरा का पेड़ दिखाया था। कुछ काले भूरे रंग की रोयेंदार फली थी, बताया गया कि यही खजोरहा है। मैंने सोचा कि लोग इसको कैसे लेते होंगे, मान लो उसको खुद ही लग गया तो ? 

खैर खजोरहा के साक्षात प्रयोग तो न देखे पर उससे जुड़ी stories बहुत सुनता रहा कि अमुक को किसी ने खजोरहा डाल दिया था तो ऐसा हुआ वैसा हुआ ..आदि आदि। 

होली में अक्सर यह कयास लगाये जाते कि अमुक मोहल्ले वाले लड़कों के पास खजोरहा है, उनसे रंग नहीं खेलना, उनसे बचके रहना...हालांकि यह कयास कभी सच न साबित हुआ।

आज यह post लिखते वक्त भी यह संदेह हो रहा है कि वास्तव में खजोहरा जैसी कोई चीज सच में होती भी है या फिर यह किदवंती मात्र है। 

© आशीष कुमार, उन्नाव।
03 अप्रैल, 2021।

गुरुवार, 19 मार्च 2020

My introduction with libraries

दो शब्द पुस्तकालयों के संदर्भ में 

पुस्तकालय से पहला परिचय मौरावां में हुआ, मेरे इंग्लिश की कोचिंग वाले रितेश सर ( गुड्डू भैया ) ने मुझे वहाँ की सदस्यता दिलवा दी। शायद 50 रुपए सदस्यता शुल्क था। बात कक्षा 11 की थी। इसके पहले गांव में यहाँ वहां से इधर उधर की किताबें जुटा कर पढ़ा करता था जिसमें प्रायः  मेरठ से छपने वाले सस्ते उपन्यास हुआ करते थे। वेद प्रकाश, ओम प्रकाश, रीता भारती, गुलशन नंदा आदि आदि। गांव में ये किताबे कौन लेता पता न चलता पर आदान प्रदान के जरिये पूरा गांव पढ़ा करता था। गर्मी की दोपहरी में दुछत्ती पर चारपाई में लेटकर पढ़ने का सुख, रात में चोरी से किरोसिन के दीपक में इन प्रेम, रहस्य, रोमांच, अपराध, मार धाड़ से लबरेज किताबों में डूबने के सुख को वही समझ सकते है जो इसे भोग चुके हैं।

मौरावां में भैया ने सदस्य बनवाने के साथ तमाम किताबे सुझाई जिनमें मंटो, शरत चन्द , इस्मत चुगताई जैसे कुछ नाम याद आते हैं। दो साल उस कस्बे में रहा और मेरे ख्याल से 200 से 250 किताबें पढ़ी होंगी। पिता जी ने पहले डॉट लगाई थी फिर बाद में वो भी मेरे कार्ड पर किताबें निकलवाने लगे, कई शाम हम दोनों किसी मोटी किताब लिए अपने अपने में डूबे रहते। इसका परिणाम मेरे 12वी के अंकों पर पड़ा, गणित में बस 100 में बस 37 अंक। खैर इससे फर्क क्या पड़ता था, पिता जी इसमें खुश थे कि पास हो गए यही क्या कम है।

इसके बाद उन्नाव के जिला मुख्यालय में स्नातक के लिए जाकर रहना शुरू हुआ। वहाँ जिला पुस्तकालय में सदयस्ता लेने के लिए बड़ी जहमत उठानी पड़ी,तमाम चीज़ो के साथ कचहरी से एफिडेविट भी मांगा गया। मुझे पढ़ने का इतना नशा कि उसी दिन दौड़ भाग कर सारी खाना पूर्ति की। शाम तक दो किताबें मेरे हाथ में थी, सोचो कौन सी ? देवकीनंदन खत्री कृत चंद्रकांता के दो भाग। वहां के तमाम किस्से , अलग अलग टुकड़ो में पहले लिख चुका हूँ। एक कार्ड पर दो किताबें निकलती थी, बाद में मैंने अपने दो कार्ड बनवा लिए और ताबड़ तोड़ ( सच में ) किताबें पढ़ी, शायद 300 से 400 के बीच।

उन्नाव में एक गांधी पुस्तकालय भी है जो शाम व सुबह के समय ही खुलता है शिवाय सिनेमा के पास। बाद में यह मेरे लिए ज्यादा अनुकूल पढ़ने लगा। शाम को ट्यूशन पढ़ाकर लौटते वक्त अपनी साइकिल वही रुकती और पुस्तकालय बन्द होने तक वही रहता। मेरी साईकल के हैंडल पर एक कैरियर लगा होता जो विशेषतौर पर इन्हीं किताबों के लिए लगवाया गया था। यहाँ भी दो कार्ड बने 200 से 300 किताबें पढ़ी गयी। बाद में कार्ड भाईयों को दे दिया और वो निकलवा कर पढ़ते रहे।

फिर अहमदाबाद में अलग अलग जगहों पर पुस्तकालय गया। मेमनगर वाली सरकारी लाइब्रेरी,शुभ लाइब्रेरी, स्पीपा की लाइब्रेरी, विवेकानंद लाइब्रेरी, राणिप, और आखिरी वो जहां से आखिरी अटेम्प्ट देना हुआ। यहाँ पर साहित्य की एक भी किताब न पढ़ना हुआ। सब में अपनी किताबें ले जाकर पढ़ना होता था। 2012 से 2019 तक अहमदाबाद के पुस्तकालयों में सिविल सेवा की ही किताबें पढ़ी गयी।

इसके बाद दिल्ली आना हुआ,  मेरी अकादमी का सरदार पटेल नाम से एक समद्ध पुस्तकालय हैं।यहाँ फिर से साहित्य पढ़ना शुरू हुआ। अब अपनी मन की किताबें यहाँ बोल कर ख़रीदवाई जा सकती थी। कुछ महत्वपूर्ण किताबे जो पढ़ने से रह गई, वो लिस्ट बना कर दे दिया। सब खरीदी गई। जब भी उधर जाना होता, इंचार्ज बोलते कि पढ़ तो बस आप ही रहे हो। अब मोटे उपन्यास की जगह पत्रिकाओं ने जगह ले ली, शायद समयाभाव।

इस लंबे चौड़े अतीत लेखन का उद्देश्य पोर्ट ब्लेयर के अनुभव को लिखना मात्र था।दरअसल अभी तक सभी पुस्तकालयों में किताबें लेने के लिए तमाम ताम झाम , मगजमारी करनी पड़ती थी। पोर्ट ब्लेयर में समय कट न रहा था। नेट स्पीड की मध्यम गति से परेशान , समय काटे न कटे। पुस्तकालय का ख्याल आया पर लगा कि मेंबर बनना काफी तामझाम रहेगा। 

खैर एक रोज पहुँच गए, परिचय दिया। इतना काफी था बड़ी गर्म जोशी के साथ स्वागत और यह छूट कि आप को जो भी, जितनी भी किताबें पढ़नी है निकलवा लीजिए। "आप लोगों के लिए अलग रजिस्टर है  नाम व मोबाइल no दे दीजिए बस" 
ऐसे समय में अपने पद व उसके साथ मिलने वाले इस तरह के विशेषाधिकार बड़े सुखद अनुभूति देते हैं, कहाँ तो वो दिन कि जब 2 किताबें के लिए दुनिया भर की कागजी कार्यवाही और अब ये दिन।

ऊपर दूसरे फ्लोर पर किताबें तलाश रहा था और साथ आया बन्दा, वहाँ बैठी सहायक को निर्देश देकर गया कि साहब की चुनी किताबें, लेकर नीचे साथ आना। यद्यपि मैंने उस सहायक को विनम्रतापूर्वक  अपनी किताबें उठाने से मना कर दिया तथापि पोर्ट ब्लेयर के मुख्य पुस्तकालय के कर्मचारियों की गर्मजोशी सदैव के लिए मानस पटल पर अंकित हो गयी।

© आशीष कुमार, उन्नाव 
दिनांक 19 मार्च, 2020
(हैडो, पोर्ट ब्लेयर)


शनिवार, 7 मार्च 2020

NO AGE LIMIT

"न उम्र की सीमा हो "

लिखने वाले के लिए यह जरूरी नहीं वो हमेशा अपने ही अनुभव लिखे। पिछले दिनों मुझे दूसरों के जरिये कुछ बड़े गजब के अनुभव सुनने को मिले, उन्हीं में से यह एक ..

तमाम लोगों को काम करने का इतना गहरा चस्का होता है या कुछ और ..जिस उम्र में शांति से घर में आराम करना चाहिए वो हिलते डुलते काम में लगे रहते हैं। मैं बात सरकारी सेवा की कर रहा हूँ। एक अकादमी में एक साहब   पढ़ाने आते थे। बहुत ज्यादा ही योग्य, जितनी हमारी उम्र उससे दोगुना उनका अनुभव । कितनी ही किताबें प्रकाशित हो चुकी थी। जब वो पढ़ाते तो खड़े खड़े काँपने लगते। थोड़ी में उनकी साँसे फूलने लगती,बेचारे बड़ी ही मेहनत से पढ़ाते अब यह अलग बात है कि साहब 15 क्लास में 5 पन्ने की भी विषयवस्तु न पढ़ाई होगी। वो खुद बताया करते कि उनके बच्चे मना करते है कि अब आप पढ़ाने न जाया करिये, मैं खुद न मानता हूँ। इस बीच क्लास में पीछे से आवाज आती कि हां हम लोग तो फालतू हैं, जाहिर है साहब के जर्जर हो चूके कानों  तक ये मजाक न पहुँच पाता।

खैर आज एक बहुत ही बड़े साहब की कहानी बतानी है। साहब इतने बड़े इतने बड़े हैं कि पुछो ही मत और उनकी अवस्था क्या हो चुकी है वो आप आगे पढ़ने जा रहे हैं।

जिनके मुख से मैंने यह घटना सुनी वो साथी भी सिविल सेवक हैं। मित्र का प्रशिक्षण चल रहा था। उन्हें पता चला कि बड़े वाले साहब का उनके क्षेत्र में दौरा है, साथी , साथी के बॉस सब लोग आनन फानन में क्षेत्र पहुँच गए। मित्र अपनी गाड़ी से उतर कर, बहुत बड़े वाले साहब के पास पहुँचे। बड़े वाले साहब अपनी कार से उतर ही रहे थे। मित्र ने जाकर अभिवादन किया और बड़े साहब उतर कर खड़े हुए। मित्र ने बड़े साहब से बताया कि सर अपने पिछले वर्ष  मेरे UPSC वाले साक्षात्कार में सदस्य थे, 

अब इसे संयोग कहे या क्या कहे ठीक उसी समय साहब की पैंट उतर ( दरअसल सरक ज्यादा उचित शब्द है) कर नीचे जूतों पर जा टिकी। मजे की बात यह कि साहब को इसका आभास ही नहीं, मित्र को बताना पड़ा कि साहब आपकी पैंट उतर गयी है। इसी बीच उनका सहायक आ गया और बड़े साहब की पैंट में दोनों तरफ से अंगुली फ़साई और कमर में लाकर टिका दी। ( आपको हेराफेरी फ़िल्म के बाबूराव याद आ रहे होंगे, बाबूराव थोड़ा जवान थे कम से कम झुक सकते थे पर ये साहब इस दशा में थे कि झुक भी न सकते थे )

मेरा हँस हँस कर पेट फूल गया और मैंने तिखार तिखारकर (तिखारना एक बैसवाड़ी बोली,अवधी का शब्द है जिसका अर्थ है खोद खोदकर/रस ले लेकर  पूछना ) खूब पूछा, विस्तृत जानकारी ली मसलन कि क्या साहब ने बेल्ट न पहनी थी या तुम्हारे कहते ही कि उन्होंने उसका साक्षात्कार लिया था, उनकी पैंट सरक गयी और उन्होंने आपके बोलने पर क्या बोला था आदि आदि।

हालांकि बड़े साहब की टीम बहुत ही बढ़िया कार्य में लगी है पर आप ही सोचिए ऐसा भी क्या जुनून कि इस अवस्था में कार्य करते रहा जाय। अनुभव व योग्यता कितनी ही अधिक क्यों न हो क्या देश के अन्य लोगों के लिए बड़े साहब को जगह खाली न कर देनी चाहिये। 

( अपनी बात : इन दिनों हम 4g चलाने वाले लोग, भटकते भटकते 2g स्पीड वाली जगह में चले आये हैं, अब तमाम चीजों के साथ हम लिखने पढ़ने वालों लोगों को मन्थर, जर्जर गति के नेट स्पीड से बड़ी दिक्कत हो रही है। रचनात्मकता उछाल मारती जा रही है पर नेट स्पीड है कि उसे दबाये ही जा रही है। तमाम मजेदार अनुभव संग्रह हो गए है, ऊपर वर्णित घटना इस कदर भायी कि लगा इसे पाठकों को कैसे भी हो जरूर पहुँचनी चाहिये।
कहानी सुनाने वाले मित्र बहुत डरे कि लिखना मत, मुझे टैग मत करना, वरना बड़े साहब तक अगर बात गयी तो मेरी पैंट उतरवा देंगे। हमने उन्हें भरोसा दिया कि शरलक होम्स भी आएंगे तो भी जान न पाएंगे कि बड़े साहब कौन थे, बशर्ते आप मुँह न खोले ) 

( उक्त रचना काल्पनिक है, किसी नाम, घटना से इसका कोई लेना देना नहीं है )

© आशीष कुमार, उन्नाव। 
8 मार्च, 2020 ( पोर्ट ब्लेयर से ) 

सोमवार, 9 जुलाई 2018

How am i spending my time after selection in UPSC

कैसे समय गुजर रहा है सफलता के बाद ?

"कभी कभी जब करने के लिए कुछ खास न हो तो हम सबसे ज्यादा ऊबे हुए होते है "

उन दिनों जब मैं सिविल सेवा में असफल था, एक सवाल मन में बार बार आता था कि सफलता के बाद कैसा लगता होगा।2 महीने गुजर गए है दरअसल गुजरे नही है, सच कहूँ कि मैं ही जानता हूँ कि कैसे घिसट घिसट के काटे जा रहे है। 9 सालों से upsc में इस कदर घुस गया था कि बस वही दुनिया नजर आती थी। समय कम पड़ता था किसी के लिए भी। न कही जाना, न फ़ोन कॉल। किसी के लिए भी वक़्त नहीं था। कुछ बेहद अहम, कोमल रिश्ते, upsc की तैयारी में भेंट चढ़ गए। तमाम लोगों की नजर में मैं एक स्वार्थी इंसान था। मुझे अक्सर झूठ बोलना पड़ता था । यह शादी के मामले में होता था, कुछ मित्र बड़ी उम्मीद से कार्ड देते और मैं बोलता कि जरूर आऊँगा पर कभी न जा पाया। मेरा  pre, mains और इंटरव्यू का चक्र पूरे साल चलता रहता और जॉब तो थी ही, लेखन भी निरन्तर चलता रहता। खैर अब उन बातों को क्या याद करना, सांझेप में मैं दुनिया का सबसे व्यस्त इंसान था।

अब मैं कुछ भी नही करता। पूरा दिन बोरियत भरा गुजरता है। जॉब में भी इस समय लोड जरा कम है। सारा दिन मैं फोन पर तमाम दोस्तो से बातें करता हूँ। अमेज़ॉन प्राइम पर कुछ मूवी देखता हूँ। फेसबुक पर कुछ लोगों ने बात करने के लिए no दिए थे, मैं तमाम सालों से जो मुझे पता था, उसमें उन्हें गाइड करता आ रहा हूँ पर पता नही क्यों अब जरा भी मन नही होता कि कोई मुझसे upsc की तैयारी की बात करे। समझ नही आता कि बोरियत बढ़ती क्यों जा रही है। तमाम लोगों ने ऑफिस में सलाह दी छुटी ले लो अब इस टाइम को एन्जॉय करो। मैं जानता हूँ कि अगर छुटी ली तो करने के लिए कुछ भी न बचेगा। अभी आफिस जाता हूं, तो लगता है कि कुछ घंटे कट जाए जाएंगे। लौटते वक्त  शाम को पूल में 1 घंटे तक तैरता हूँ। काफी तरोताजा महसूस होता है , इसके बावजूद मन एक प्रकार से ढीला सा पड़ा है। रात में नावेल पढ़ता हूँ, प्रायः सुरेंद्र मोहन पाठक के , कभी कभी इंगलिश अगस्त्य जैसा स्तरीय नावेल भी। 

बड़ा अजीब है कि नावेल खत्म नही कर पा रहा हूँ कोई भी। कुछ पन्ने पढ़ने के बाद छोड़ देता हूँ। घूमने भी काफी जगह जा रहा हूँ पर मजा नही आ रहा है। सफल मित्रों ने तमाम व्हाट ap पर ग्रुप बना दिये है -फाउंडेशन, हॉबी, सर्विस, स्टेट वाइज । सब एन्जॉय कर रहे है और इंतजार कर रहे है-? अब लिखने का भी मन नही होता, इसी साल मार्च में कुरुक्षेत्र हिंदी में एक बड़ा आर्टिकल लिखा था। एक बाल कहानी भी। उसके बाद कुछ अन्य महत्वपूर्ण जगहों से कहानी के लिए आफर आये पर उन संपादक को एक थैंक्यू लेटर भी न लिखा गया। हो क्या गया है , मुझे। शायद मैं इतने सालों के अनवरत थकान के लिए आराम के मोड में हूँ। पता नही कब तक यह आराम चलेगा पर यह अटल सत्य है कि मैं फिर एक रोज उठूँगा और कुछ नए मुकाम के लिए , नई योजनायों के साथ।

तमाम बातों के बीच एक सवाल जरूर आ जाता है कि कब आ रहा है सर्विस एलोकेशन ? ठीक वैसे जैसे - होली कब है , कब है होली ?


© आशीष कुमार, उन्नाव, उत्तर प्रदेश।

सोमवार, 14 मई 2018

story of a UPSC ASPIRANT


कहानी : upsc आशिक की 


एक शाम उनके पास पहुंचा तो अजीब मनस्थिति में उन्हें पाया। वो  एक गिटार लिए थे और कहने लगे कि अब बस इसी का सहारा है। iit से थे और एक बहुत अच्छी जगह जॉब कर रहे थे। 2 बार से उनका आईएएस pre नहीं निकल रहा था। एक pre एग्जाम के दौरान ही मुलाकात हुयी थी। 

उस दिन उनके  सरकारी आवास पर मुझे काफी चीजे अलग लगी। वो कहने लगे कि अब शाम को यही बजाता हूँ और ये जो तुलसी का पेड़ है यह मेरा संगीत सुनता है और प्रसन्न होता है। मैंने पूछा कैसे ? वो बोले अपने पत्तों से यह मुझे जबाब देता है। मुझे उस वक़्त यही लगा कि एक होनहार बंदा , upsc के मकड़जाल में उलझ कर अपनी चेतना खो बैठा है। कुछ पल को मुझे लगा कि वो मजाक कर रहा है पर वो पूरा गंभीर था। 

उसके साथी भी तैयारी करते थे और बगल के फ्लैट में रहते थे। उनसे भी बात हुयी तो वो बोले कुछ नहीं पर मुझे true caller पर उस दोस्त का नंबर सर्च करने को  कहा। true कॉलर ने जो नाम बताया वो देख कर मुझसे कुछ कहा न गया। उस पर उनका नाम upsc आशिक दिखा रहा था। पता नहीं यह किसकी कलाकारी थी जो दोस्त का नाम इस तरह से सेव कर रखा था। आपको पता ही होगा true कॉलर कैसे काम करता है। मैं बगैर कुछ  बोले वहाँ से चला आया।  

फुटनोट :- वो मित्र अगले प्रयास में भारतीय सिविल सेवा में सफल हुए और इन दिनों एक बेहद महत्वपूर्ण सिविल सेवा में है। पिछले दिनों एक काम  के चलते उनसे सम्पर्क हुआ तो मुझे यह प्रसंग याद आ गया।   


कॉपी राइट - आशीष कुमार , उन्नाव , उत्तर प्रदेश।  

गुरुवार, 19 अप्रैल 2018

That air hostess


वो अशिष्ट एयर होस्ट्रेस 


13 अप्रैल 2018 की दिल्ली के एयरपोर्ट - टर्मिनल 3 से जेट एयरवेज की अहमदाबाद को जाने वाली रात 11 बजे की फ्लाइट।


यह लगातार  तीसरी रात थी  मैं चाह कर भी सो नहीं पा रहा था। पिछले 72 घंटो में 1 घंटे भी सो नहीं पाया था। फ्लाइट कुछ देर से आयी थी। पहली बार जेट एयरवेज की फ्लाइट ली थी इसलिए हर चीज पर गौर कर रहा था। विमान में इंडिगो की तुलना में सीट में ज्यादा स्पेस था। मेरे पड़ोसी दो बुजुर्ग पति पत्नी थे और मैं यह ऑब्ज़र्व कर चूका था कि वो पहली बार उड़ने जा रहे है। मैं बुरी तरह से थका , निढाल था। हमेशा की तरह मेरी विंडो सीट थी . मै चुपचाप आँखों को बंद कर बैठा था। विचारों की अनगिनत , अनवरत कड़ियाँ। इन विचारों के चलते ही अनिंद्रा का शिकार हो चूका हूँ। 

तभी इमरजेंसी लैंडिंग से जुडी डेमो देने की बारी आ गयी। न जाने क्यू मेरी नजर पीछे की तरफ चली गयी। मै बस देखना चाह रहा था कि एयर होस्ट्रेस कहां खड़ी होकर डेमो देंगी। मैंने नोटिस किया उनमें से एक के मुहँ के पास सफेद पाउडर सा कुछ लगा है। ऐसा लगा कि वो कुछ खा रही थी और हड़बड़ाते हुए जल्दी से डेमो देने के लिए आ गयी हो।  


इंडिगो की फ्लाइट में कुछ भी मुफ्त नहीं मिलता , जिसको जो खाना हो खरीद कर खाओ। इस फ्लाइट में हर किसी के लिए लाइट नाश्ता था। वो एयर होस्ट्रेस वेज , नॉन वेज का ऑप्शन पूछती हुयी नाश्ता देती हुयी आ रही थी। मुझे लगा कि अपने बगल की बुजुर्ग यात्रियों की मदद करनी चाहिए। मेरी सीट के पास आकर भी वही पूछा - वेज / नॉन वेज। मैंने कहा -आप इन्हें शाकाहारी / मांसाहारी में पूछिए, ऐसे समझ नहीं पायेगें।  वो बोली क्यों समझ नहीं पाएंगे। अब मैं उससे बहस नहीं करना चाहता था। वो नाश्ता देकर आगे बढ़ गयी। मैंने नोटिस किया कि उसने टी के लिए मिल्क , सूगर के पैकेट, स्टिक  और कप तो दिए है पर गर्म  पानी तो दिया ही नहीं। मैंने उसे टोका तो बोली - पानी गर्म है कही किसी के ऊपर गिर न जाये और वो जल जाये इसीलिए नहीं दे रही हूँ।उसके जबाब में हिकारत सी नजर आयी। ऐसा लगा कि कह रही हो कहाँ - कहाँ से आ जाते है। उसने मुझसे पूछा कि क्या मैं उन बुजुर्ग दंपति के  साथ हूँ। मैंने कहा -नहीं।   


गलती होना अलग बात है पर किसी को  बेवकूफ बनाना या समझना मुझसे बर्दाश्त नहीं होता। ये क्या लॉजिक हुआ कि पानी गर्म है कोई जल सकता है। सीधे सीधे बता सकती थी कि गर्म पानी खत्म हो गया। मैंने नास्ता करते हुए देखा कि वो बुजुर्ग सैंडविच में वो सफेद मिल्क पावडर डाल कर खाने की कोशिस कर रहे थे। मैंने उन्हें रोका और बताया कि यह ड्राई मिल्क है टी बनाने के लिए। इससे पहले कि वो पूछते कि टी कैसे बनानी है , मैंने उन्हें पूरी बात समझायी कि गर्म पानी नहीं मिला इसलिए चाय भूल जाओ। 

सच कहूं तो मेरा चाय पीने का जरा भी मन न था क्यूँकि चाय के बाद मुझे नींद और भी न आती मुझे रह रह कर  उन बुजुर्गों के साथ जो बदतमीजी की गयी थी पर गुस्सा आ रहा था। मैं उस अशिष्ट एयर होस्ट्रेस से बहस करने के मूड में नहीं था दरअसल थकान से मेरा बदन टूट रहा था। हाँ , मन में एक ख्याल जरूर आ रहा था कि इसको सबक जरूर सिखाना है। कुछ देर बाद कचरा लेने सीट के पास आयी। मैंने विन्रमता से उसका नाम पूछा - पल्लवी - उसने कहा।  

इसके बाद बारी थी अपने  सहयात्रियों से जानकारी जुटाने की। बातों ही बातों में पाता किया। वो उत्तर प्रदेश के बागपत जिले से थे। सिंचाई विभाग से हाल में ही सेवानिवृत हुए थे। गांधीनगर , गुजरात में उनका बेटा रहता था जो इंडियन नेवी में काम करता है। उनका नाम ओमप्रकाश ( शायद ,क्यूँकि मैंने बस अपने मन में नोट किया था ) था। फ्लाइट लैंड करने के समय एक बार फिर मैंने पुरे ध्यान से सुना - पल्लवी। आज की फ्लाइट के केबिन क्रू मेंबर के तौर पर यही नाम दोहराया गया। 

कहानी पूरी सच्ची है पर अपने कोई निष्कर्ष निकला या नहीं। क्या आप बता सकते है कि पल्लवी के मुँह पर मैंने जो  सफेद सा पावडर देखा था वो क्या था ? अरे , एक बात तो बताना भूल ही गया मैंने अपनी प्लेट में सुगर और मिल्क पाउडर खोले बगैर ही छोड़ दिया था। 


माननीय प्रधानमंत्री जी ने उड़ान ( उड़े देश का आम नागरिक ) योजना के तहत हवाई यात्रा के किराये काफी सस्ते कर दिए हैं। यह भी सच है कि  हवाई चप्पल पहनने वाला भी आज उड़ सकता है पर विमान के अंदर जो आम आदमी के साथ हिकारत , बदतमीजी होती है उसका क्या। कभी डॉक्टर को पीटा जाता है , मच्छर की शिकायत करने पर उसे उतार दिया जाता है। 

प्रिय दोस्तों ,  उन बुजुर्ग के साथ जो हुआ , उसकी पुनरावृति दोबारा न हो। इसलिए इस पोस्ट को जमकर शेयर करे ताकि जेट एयरवेज अपने केबिन क्रू मेंबर की अभिवृति में बदलाव लाने पर मजबूर हो। मेरा जेट एयरवेज को यही सुझाव है कि वह अपने क्रू मेंबर को ड्राई मिल्क पाउडर एक्स्ट्रा दिया करे ताकि वो यात्रियों से चोरी करने और चुरा कर खाने के लिए बाध्य न हो। 

धन्यवाद। 


आशीष कुमार 
उन्नाव , उत्तर प्रदेश।  

























गुरुवार, 14 दिसंबर 2017

Pushpashpant ji ki ek book

पुष्पेश पंत जी की एक बुक

पहले पहल इनके लेख किसी पेपर में पढ़े थे । बहुत अच्छे लगे थे । फिर इन्हें एक रोज शुक्रवार पत्रिका में कढ़ी के बारे बताते पढ़ा तो चौक गया , लगा कि ir का एक्सपर्ट  आदमी  ये क्या  करने लगा पर कुछ लोग बहुआयामी पतिभा के धनी होते है । पंत जी का लेखन भी बहुआयामी है ।
ये किताब मैंने जून 17 में अमेज़न से ली थी । बुक के आर्डर में भी एक बवाल हो गया था सोचा था उस बवाल पर अलग से पोस्ट लिखूंगा पर वक़्त न मिला । आज जिक्र हुआ तो कुछ बता देता हूँ दरअसल ये बुक का प्राइस 125 रूपये था और डिलीवरी चार्ज 175 रूपये, जबकि मैंने कई बुक एक साथ ली थी ताकि फ्री डिलेवरी मिले । जब आर्डर दिया था तब अमेज़न ने फ्री डिलेवरी दिखाया था ।
मैंने इसके बिल को भी सभाल कर रखा था ताकि अपने तमाम पाठको को अमेज़न की लूट दिखा सकूँ वो किस तरह से ठगते है ।
खैर , मेरी प्रवत्ति तो 10 रूपये भी बर्बाद न करने की है यहाँ तो बात 175 की थी। यह तो वही मसल हो गयी 9 की लकड़ी और 90 रूपये चिराई । अब ज्यादा विस्तार में न बताने का वक़्त नही है बस अंत में हुआ ये कि मुझे सेलर ने सम्मानपूर्वक 175 रूपये का चेक भेज दिया साथ में यह आग्रह कि उसे मैं अमेज़न पर 5 स्टार दे दू । गनीमत यह है उसका नाम नही बता रहा हूँ यही काफी है ।
अब पुस्तक के बारे में।कुछ पुस्तके होती सरल है पर आप चाह कर भी तेजी से नही पढ़ सकते वजह उनमे ज्ञान दबा दबा कर भरा जाता है।इस पुस्तक में बहुत से कांसेप्ट है जो बेहद सरलता से समझाये गए है,
मजा आ गया पढ़ कर , यह अलग बात है देखने में यह बुक बेहद पतली है पर इसको पढ़ने में काफी वक़्त लग गया । कम से कम एक दर्जन बैठक में खत्म हो पायी है । यह पुस्तक सीधा सीधा upsc के mains के gs के कोर्स से जुडी है पर आप इसे शौकिया तौर भी पढ़ सकते है ।

आशीष , उन्नाव ।

सोमवार, 22 मई 2017

First rain


पहली वर्षा   


बारिश शुरू से ही लेखन के लिए पसदींदा विषय रहा है। मैंने भी इस पर लगभग हर वर्ष कुछ न कुछ लिखता रहा हूँ। दरअसल पहली बारिश बहुत अनुभूतिक विषय होता है। तपते दिनों से परेशान मन में स्वतः उल्लास उमड़ता है। 

इस शहर में रहते 5 वर्ष हो गए। यह मेरा आखिरी साल है शायद अब इस शहर में न रहूं। पर जाते जाते एक यादगार बारिश से मुखातिब होकर जाऊंगा। दरअसल कल ही काफी मौसम खराब हो गया था। काफी दिनों से कही निकलना न हुआ था। मन सुबह से कह रहा था कि अब कहीं घूम कर आओ वरन यह ऊबन तुम्हारी उत्पादकता को प्रभावित करेगी। दोपहर में एक मित्र का फ़ोन आया कि शाम एक मित्र की शादी है अगर खाली  हो तो चले। मन की मुराद अक्सर पूरी होती रही है यह संयोग कोई विशेष न लगा। 

शाम को पार्टी में  जाते बहुत मौसम खराब हो गया। अभी मानसून आने में समय है फिर भी खूब आंधी , तूफान , धूल। लगा कि जाना कैंसिल कर दू पर दोस्त ने जोर दिया तो निकल लिया। बारिश तो कहने को हुयी पर बिजली बहुत कड़की। रात ११ बजे लौटते वक़्त सब कुछ साफ हो चूका था। 



पिछले कुछ दिनों से मन में एक विचार आ रहा था कि कितना वक़्त हुआ ओले न देखे बारिश में। आज अचानक शाम को मौसम सुहाना हुआ और खूब तेज आंधी आने लगी। पहले पानी की बड़ी बड़ी बुँदे फिर तेज बारिश। अचानक ओले भी गिरने लगे और खूब जमकर गिरे। मै अभी तक सोच रहा हूँ कि क्या वाकई ओले गिरे है ? ओले गिरे और उन्हें उठाकर चखा न जाये तो फिर आप बारिश का मतलब नहीं समझते है। बारिश यानि बचपन में जाना (जगजीत सिंह भी कह चुके है वो कागज की कश्ती और  बारिश का पानी ) . 

बाहर खड़े थे तो एक मित्र ने चलो चाय और दाल बड़ा ( गुजराती ) खा कर आते है। यह तो सबसे अच्छी पेशकश थी। बारिश में चाय -पकोड़े किसी को पसंद नहीं आते। साथी ने कुछ ज्यादा ही प्रसिद्ध और व्यस्त दुकान ले गए। दूर से ही दिख गया कि सारा शहर ही दाल बड़ा खाने के लिए टूट पड़ा है. 2 दर्जन आदमी की लाइन लग चुकी थी। साथी की बड़ी गाड़ी , काफी देर पार्किंग खोजते रहे। जैसे तैसे सड़क पर ही पार्क कर , पैदल दुकान गए। तय हुआ कि अब दाल बड़ा तो मिलने से रहे , बड़ा पाव खा कर काम  चलाया जाय। 
इस चार रास्ते की चाय सबसे प्रसिद्ध है ऐसा दोस्त ने बोला। मन और जिव्हा विचार करने लगी ऐसा क्या है चाय फेमस है। चाय में भीड़ थी पर यह दुकान काफी व्यवस्थित थी।दरअसल चाय  पुदीने वाली थी। 15 रूपये में यह निश्चित ही उत्तम कही जा सकती है। अभी भी जुबान पर टेस्ट बरकरार है। मुझे अब इस बात पर ज्यादा विचार नहीं करना कि ऐसा कैसे होता है कि जो सोचते है वो हो जाता है , मसलन बारिश और ओले वाली बात। शुक्र है मैंने पाओ कोहलो की अलकेमिस्ट पढ़ रखी है। 

आशीष कुमार 
उन्नाव , उत्तर प्रदेश।    

शनिवार, 14 जनवरी 2017

A story from Agra




पिछले दिनों मुझे किसी काम से Agra जाना हुआ . सुबह जब Ahmedbad से मेरी ट्रेन आगरा फोर्ट पर रुकी तो मैंने पाया इस शहर में बहुत ही ठंढ हो रही है . मै इसके लिए तैयारी से ही गया था . फोर्ट के बाहर जैसे ही आप निकलेंगे तो पाएंगे कि वहां पर बहुत ही ज्यादा भीड़ है . ऑटो वाले आपको प्लेटफोर्म से ही पकड़ने लगते है खैर यह तो हर जगह की कहानी है . बाहर निकल कर मैंने अपना उबेर एप ( डिजिटल इंडिया ) खोल कर देखा इस शहर की क्या पोजीशन है . पहले तो मुझे कुछ गाड़ी दिखी पर फिर बाद में न जाने क्या हुआ एप चला ही नही ( free jio service , न जाने कब धोखा दे जाये . ) 

फोर्ट स्टेशन से १०० मीटर की दुरी पर एक चौराहा है . वही से मुझे ऑटो पकड़ना था अपने एक रिश्तेदार के घर जाना था . बहुत भीड़ वाली जगह थी . चारो तरह लाइन से ऑटो खड़े थे . एक ऑटो में जा कर बैठ गया . 

(अब यहाँ से एक विचार मेरे मन में चलने लगा जो बड़ा ही रोचक है . आपको लगेगा यह गलत तरीका है पर फिर भी आप इसके लिए कोई सही तरीका नही सोच पायेगे . ) 

मै पीछे की सीट में बैठा था . मुझ को मिला कर ३ लोग बैठे थे . तभी एक लडकी आई पुरी तरह से पैक ( चेहरे को कपड़े से ढकना पता नही सही है गलत . यह तो कोई बुद्धिजीवी ही बता सकता है . आपको क्या लगता है ?) दूसरी साइड से आकर कुछ बोली . जब तक मै समझता ऑटो वाला लड़का आकर बोला कि आगे पीछे होकर बैठ जाओ  पीछे ४ लोग बैठते है . यह आगे पीछे वाला तरीका पहली बार नही सुन रहा था . पर शायद सालो बाद ऐसा करना पड़ रहा था . खैर आगे पीछे होकर सारे लोग सेट हो गये . आगे भी चालक को मिला कर ४ लोग थे . एक साइड २ सवारी , राईट साइड में १ सवारी . भगवान ही जाने वो कैसे बैठे थे . 

पिछली सीट में मेरे मन में बहुत सी चीजे चल रही थी . Smart City हम कितनी दूर खड़े है . मुझे एक चक्र महसूस हो रहा था . ऐसा तो नही है कि पुलिस , परिवहन विभाग के नजर में यह बात नही होगी . उनका हफ्ता बंधा होगा . एक चीज और भी सोचने वाली बात है कि लोग इस तरह की बदतर व्यवस्था को अस्वीकार क्यों नही करते . इसके पीछे भी वही बात है , हर कोई जल्दी में है . कोई बाद से ऑटो से नही आना चाहता है . अगर कोई चाहे भी तो कम से कम चौराहे से तो उसे ऑटो वाले नही मिलेंगे . उनका संगठन ऐसा न करने देगा . तो अपने देखा कि इस चक्र में हर कोई खुश लग रहा है . ऑटो वाले , यात्री , सरकार ( पुलिस, परिवहन विभाग ) . 

अब मान लो आप ऐसे किसी शहर में प्रशासक बन कर पहुचते हो तो आप एक चक्र को कैसे तोड़ोगे . क्युकी इसमें हर कोई खुश है . आपके नवाचारी परन्तु प्रक्टिकल सुझाव जरुर सुनना पसंद करूंगा . वैसे आपको भी आगे पीछे होकर बैठना  आता है कि नही . ( इसे ही desi bhasha me जुगाड़ कहा जाता है . ) 


Copyright _ Asheesh Kumar . 

आपके लिए एक जरूरी सुचना है , मैंने अपना फेसबुक पेज फिर से activate कर दिया है . आप फेसबुक पर इसी  ias ki preparation hindi me नाम से इसे खोज कर जुड़ सकते है . अपने पाठको से मै कभी नही कहता कि मेरी पोस्ट शेयर करो या लाइक करो पर मै हमेशा उनकी टिप्पणी की अपेक्षा करता हूँ . अगर आप टिप्पणी देना सीख जाते है तो एक दिन आप भी अच्छे लेखक बन सकते है . keep reading & be in touch. 

सोमवार, 18 अप्रैल 2016

THAT OLD LADY'S BLESSINGS



हर किसी के जीवन में वो दौर जरूर आता है जब वो बहुत ज्यादा परेशान होता है। हर तरफ निराशा ही निराशा ही नजर आती है। मेरा भी वही दौर चल रहा था परीक्षा पर परीक्षा दिए जा रहा था पर सफलता दूर दूर तक नही नजर आ रही थी।
ऐसे ही मै किसी परीक्षा को देकर लखनऊ से वापस उन्नाव आ LKM से वापस आ रहा था।  सामने की सीट पर एक छोटा सा बच्चा अपनी दादी के साथ बैठा था।  बहुत चंचल था वो।  थोड़ी देर में मुझसे हिल मिल गया।  उसकी दादी से बात होने लगी और बातो बातो में पता चला कि वो एक मुश्किल से गुजर रही है।  दरअसल वो जल्दबाजी में लखनऊ से चलते वक्त अपनी पर्स , बाथरूम ( जिस घर वो गयी थी )  में छोड़ आई थी और इस समय उनके पास १ रुपया भी नही था।  उन्होंने ने बताया कि ट्रेन की टिकट  भी नहीं ली है। उनकी मुश्किल यह थी कि  वह कानपुर सेंट्रल में उतरने के बाद आगे कैसे जाएगी। हालांकि वह कह रही थी कि कोई ऑटो कर लेंगी जो उन्हें उनके घर तक छोड़ आएंगे और घर पहुंच कर पैसे दे देगी।

                                     THAT  OLD KIND LADY  BY  IAS KI PREPARATION HINDI ME


महिला सभ्रांत घर की लग रही थी। मुझसे बात करते वक़्त कुछ परेशान सी लग रही थी। मेरा स्टेशन उन्नाव आने वाला था। मेरे पास उस वक़्त २० या ३० रूपये से अधिक नहीं रहे होंगे पर मेरे दिल ने कहा  इनकी कुछ हेल्प करनी चाहिए। मैंने उनसे पूछा कानपुर से आपके घर तक टेम्पो से जाने में कितने रूपये लगेंगे उन्होंने कहा १० रूपये।  मैंने उन्हें १० रूपये देते हुए कहा  यह रख लीजिए। उन्होंने बहुत मना किया पर मैंने उनके पोते को यह कहते हुए पकड़ा दिए कि आप इसको बिस्कुट दिला देना।

यह कोई बड़ी बात नहीं थी पर असल बात उसके बाद शुरू  होती है। ठीक उसी रात , एक साथी ने अलाहाबाद से फ़ोन किया कि  मेरा DATA ENTRY OPERATOR ( SSC ) में AIR 108 के साथ सिलेक्शन हो गया है . यह सफलता में पहली  सुचना थी उसके बाद एक के बाद एक बहुत सारी सफलताये मिली . अब आप भी समझ रहे होंगे कि उपर की घटना क्यू महत्वपूर्ण थी .

मै कभी भी किसी भिखारी को भीख नही देता . कितना भी दयनीय क्यू न हो अगर वो रूपये मांग रहा है तो मुझसे एक रुपया भी नही पा सकता है ( यह अलग बात है कि मेरा दिल जब करता है तो किसी को भी स्वेच्छा से हेल्प कर देता हूँ . )

जैसा कि आप जानते है कि मै गावं से हूँ . मै 9 और १० अपने घर से 8 KM  दूर स्कूल से किया है . मेरी उम्र थी 13 - 14 साल . रोज साइकिल चला कर आता जाता था . एक रोज मुझे रास्ते में एक उम्रदराज आदमी मिला था . गर्मी में पैदल चला जा रहा था . मैंने उसको अपनी साइकिल में  बैठाकर अपने गाव की बैंक तक छोड़ा था . मन को बहुत खुशी मिली थी .

आज भी मैंने कुछ ऐसा ही काम किया है जिससे मन को बहुत संतोष मिला है और दिल कहता है कि उसका आशीर्वाद कुछ नया लेकर आएगा . उसकी कहानी फिर कभी जब उसका फल मिलेगा तब . पर सभी पाठकों से यह जुरूर कहना चाहूँगा कि भले मंदिर , मस्जिद , गुरुद्वारा मत जाईये  पर आपके जीवन में अगर कभी कुछ अच्छा काम करने का मौका मिले तो उसे छोड़ना मत. अगर आपके जीवन में कुछ ऐसा हुआ है तो जरुर शेयर करिये . याद रखिये यह ऐसे काम है जिनसे दुनिया खुबसूरत बनी हुयी है बाकि तो मोह माया है .





सोमवार, 15 फ़रवरी 2016

ABOUT CHINTAK JI

     चिन्तक जी के बारे में बहुत से लोगो ने पूछा है पर एक पाठक को वह कहानी इतनी भायी कि मुझे ३ – ४ मेल लिखे . मैंने उन्हें हमेशा जबाब दिया कि समय मिलते है पोस्ट करूगां . पास लिखने के लिए बहुत से विचार होते है पर समय के आभाव में उन्हें लिख नही पाता हूँ . वैसे भी लिखने के लिए फ्री mind होना चाहिए जो आज के दौर में बहुत कम होता है
 .    ABOUT  CHINTK  JI  BY  IAS KI PREPARATION HINDI ME
ज्यादातर लोगो को यह जानने कि उत्सुकता रही है कि चिन्तक जी इन दिनों क्या कर रहे है तो समय आ गया है जब आप को जानकारी दे दू चिन्तक जी ने दिसम्बर १५ में uppcs lower का इंटरव्यू दिया है . पहली बार इंटरव्यू दिया है और उम्मीद की जानी चाहिए उनका सिलेक्शन हो जायेगा .
चितंक जी के तेवर अभी भी वैसे है जैसे पुराने दिनों में हुआ करते थे अब मेरी उनसे बातचीत बहुत कम ही हो पाती है महीने या २ महीने में एक बार पर जब भी बात होती है मुझे ख़ुशी होती है कि अभी भी उनमे बहुत कुछ बाकि है २००६ में पहली बार में आईएएस का pre निकालने के बाद , काफी कोशिस के बाद भी उनका कभी pre नही निकला .

२०१५ में जब ias का पैटर्न फिर से बदला उन्होंने पुरे जोर शोर से , दम लगा कर एग्जाम दिया . एग्जाम के बाद मेरी उनसे फ़ोन पर बात हुई पता चला उनका स्कोर मात्र ८० अंक है यानि इस बार भी उनका होना नही था .. इस बार भी वो ias का मैन्स देने से वंचित रह गये ...अच्छा स्कोर ने कर पाने के कारण भी बताये थे जो मुझे अब याद नही ... वैसे भी आपको पहले की कहानियों से चिन्तक जी के बारे में एक बात बहुत अच्छे से समझ में आ गयी होगी वह बहुत गंभीरता से सोचते और समझते है ..

वो ias के एग्जाम से भले दूर रहे हो पर हमेशा २०१३ में भी मुझसे ias मैन्स के पेपर मागे थे ताकि समझ ले कैसे प्रश्न पूछे जा रहे है इलाहाबाद में उनके परिचितों में दूर दूर तक कोई मैन्स लिखने वाला नही था .. मैंने भी समय निकल कर पेपर्स की कॉपी करवा कर पोस्ट कर दी थी हलाकि यह बहुत झंझट का काम लगा था ..

२०१४ में भी मैन्स के पेपर मागते रहे जब भी बात होती थी वह यह डिमांड करना नही भूलते थे पूरे  साल मै टालता रहा वजह साफ थी मुझे ऐसा लग रहा था कि जब मैन्स लिखना ही नही है तो मैन्स के पेपर के विश्लेष्ण करके  क्या करोगे ... पर उनसे सीधे सीधे कैसे कहूँ कि अब ias  का पैटर्न  बिलकुल बदल गया है .. अब इसमें COMPETITION  भी बहुत बढ़ गया है .

अभी जनवरी में फिर उनसे बात हुई तो बोले होली जब घर आना तो २०१४ और २०१५ के मैन्स के पेपर लाना मत भूलना ... मतलब अभी भी वो ias को छोड़ेगे नही .....मेरे ख्याल से अभी भी उनके २ या ३ चांस बचे है .....देखो क्या होता है ......( अगर कोई पाठक इलाहाबाद से हो और चिन्तक जी ias मैन्स के पेपर उपलब्ध करा सके तो प्लीज संपर्क करे क्यूकि चिंतक जी अभी भी सिंपल फ़ोन रखते है और उनका कोई फेसबुक , जीमेल अकाउंट नही है ..मैंने नेट पर देखने कि सलाह दी थी तो उनका कहना था कि हार्ड कॉपी में देखना ज्यादा अच्छा होता है .....उनके तर्को को मै कभी काट नही पाता हूँ ... उनसे जुडी शेष कहनियाँ फिर कभी ........)

चिंतक जी से जुडी पुरानी पोस्ट यहाँ पर पढने के लिए क्लिक करिये .

शुक्रवार, 5 फ़रवरी 2016

That day at charbagh railway station

मदद कही से मिल सकती है

वो भागीदारी भवन , Lucknow के दिन थे . बहुत ही तंगहाली मुफलिसी में गुजर रहे थे . hostel  में ज्यादातर लोग इलहाबाद से थे , उनसे बहुत से चीजे सीखी . आपको याद हो मेरी चिन्तक जी से यही मुलाकात हुई थी . इसी जगह पर रह कर मैंने सिखा कि पढाई के लिए कितना त्याग किया जा सकता है .

 Dipawali का Festival  था . कोई इलहाबाद अपने घर नही जा रहा था . मै भी नही जाना चाह रहा था क्यूकि मेरे पास बहुत कम रूपये बचे थे . घर आने जाने में १०० रूपये तक खर्च हो जाने थे . दोपहर तक मै अनिश्चय में था कि घर जाऊ या यही रह कर दिवाली मना लू . शाम होते होते , घर जाने की ललक खूब जागी. मैंने अपना एक बैग लिया और चारबाग रेलवे स्टेशन पहुच गया .

टिकट काउंटर में बहुत लम्बी लम्बी लाइन लगी थी . मै भी एक लाइन में लग गया . मेरे आगे ४०/४५ आदमी रहे होंगे . तभी एक नेपाली जोकि फौजी ड्रेस में था , मेरे पास आकर कुछ कहने लगा .. उसको कोई टिकट कैंसिल करानी थी , जल्दी में था और चाह रहा था कि उसे टिकट खिड़की पर सबसे पहले लग जाने दिया जाय . उसने अपनी मजबूरी बताई कि उसकी वाइफ कही दूसरी जगह वेट कर रही है और उसे जल्दी से जाना है . उसने बोला कि मै लाइन में सबसे से पूछ कर आगे जाना चाहता हूँ ..ताकि उसे कोई गाली न दे ..उसके अनुसार यहाँ के लोग बहुत गन्दी गन्दी गाली देते है ..
मै तो लाइन में बहुत पीछे था मुझे क्या फर्क पड़ता मैंने मुस्कराते कहा भाई जरुर ले लो आपको जल्दी है तो ले लो ... मैंने देखा वो नाटा , गोरा फौजी लाइन में लगे कुछ और लोगो की सहमती लेता हुआ ....आगे तक गया ...
अच्छा ...अगर को कोई लखनऊ या उत्तर प्रदेश को अच्छे से जानता हो तो आसानी से अनुमान लगा सकता कि लाइन पर सबसे आगे आदमी ने ..उस फौजी को क्या जबाब दिया होगा ..

“ घुसो @#%$ के ...लाइन में आओ ..ये कहानी और किसी से पेलना ....” ऐसा ही कुछ जबाब रहा होगा क्यूकि मैंने पीछे से देखा कि आगे माहौल गर्म होने लगा ...  लम्बी लाइन में लगे भले से भले आदमी का मूड भी अल्टर हो जाता है ..

भारत में गाली – गलौच बेहद आम बात है ..आम जन जीवन से लेकर साहित्य ( कासी का असी –कशीनाथ सिंह ) , सिनेमा (  gangs of wasseypur) में यह रची और बसी है .. इनके प्रयोग से प्रयोगकर्ता कुछ विशेष हनक महसूस करता है ..
मुझे हैरानी तब हुई जब वो गोरखा फौजी जो कि गाली न देने की दुहाई दे रहा था.... तैश में आकर गाली देने लगा .. उसकी टिकट कैंसिल नही हो पाई तो वो लाइन में लगे लोगो को अपनी टिकट दिखा कर बोला ... लो इसे बत्ती बना कर अपनी @#$% में डाल लो ..” उसमे अपनी टिकट लपेट कर जमीन में फेक दी और गाली देता हुआ .. वहां से चला गया ..
इस संसार में सबसे जादुई चीज है दिमाग .. ...यह तमाशा तो बहुतो ने देखा पर दिमाग में घंटी मेरे तुरंत बजी ... मुझे टिकट cancellation  के बारे में पूरी तरह से पता नही था फिर भी मैंने जल्दी से वो टिकट उठा ली और लाइन में अपनी बारी की बहुत आराम से प्रतीक्षा की . अपनी बारी आने पर मैंने वो फौजी वाला टिकट .. clerk  को कैंसिल करने को  दिया मुझे लग रहा था कि वो कोई डिटेल या id मागेगा पर उसने बगैर कुछ बोले बताया कि २४० रूपये वापस होंगे ... मैंने उससे अपनी ख़ुशी छुपाते हुए ..एक उन्नाव के लिए टिकट मागी .. उनसे मुझे उन्नाव की टिकट से साथ २२५ रूपये वापस कर दिए ...
मेरी ट्रेन अभी भी कुछ देरी से थी . मै स्टेशन से बाहर आ गया .. मैंने बहुत गहरी सकून भरी साँस ली .. चारबाग के सामने कोने पर एक छोटी सी गुमटी है ...उसके बहुत सी स्वादिष्ट जायकेदार चीजे ..जैसे ब्रेड पकौड़ा , समोसे , छोले  भटूरा ..मिलती है .. . आज याद नही पर उस रोज जो कुछ भी खाया .. बहुत लजीज रहा होगा .

जयपुर में एक दोपहर

रविवार, 31 जनवरी 2016

an ias motivational story in hindi


डेल्ही का मुखर्जी नगर ......और इलहाबाद .......यह दोनों ही जगह मुझे बहुत प्रिय रही है पर अफ़सोस यहाँ पर कभी लम्बा प्रवास नही रहा बस एक या २ दिन . युवा शक्ति को समझना .. अपनी बारीक़ नजर से देखने के लिए यह सबसे माकूल जगह है ..
सफल – असफल लोगो की कितनी ही कहानियाँ ..कितने ही मिथक .. किस्से इतने रोचक रोचक कि बस आप सुनते ही रहे .

                                        



आज एक भूली – बिसरी कहानी याद आ रही है .. जो किसी ने कही सुनी थी और मुझे सुनाई थी तो इस सुनी सुनाई कहानी की शुरआत होती है डेल्ही के मुखर्जी नगर से ..
कथानायक डेल्ही में रह कर काफी दिनों से तैयारी कर रहे थे कभी pre से बाहर होते तो कभी मैन्स से तो कभी इंटरव्यू से .. काफी हताश हो चुके थे .. तभी उनके जीवन में प्रेम का अंकुर जगा .. उन्हें अपनी नायिका मिल गयी .. तो कथानायक सीनिएर थे और नायिका जूनियर थी .... नायक सारा साल नोट्स , gudience ,, नायिका को उपलब्ध कराते रहे .. और जब अंत में रिजल्ट आया तो आप समझ सकते थे क्या हुआ होगा ... नायिका की रैंक १०० के अंदर थी .. आईएएस बन गयी थी .और कथानायक COMPULSORY  इंग्लिश में फ़ैल हो गये थे ( सबसे से निराशाजनक समय )
इसी दौरान नायक ने किसी मित्र के रूम में रोते हुए अपनी दुःख भरी कहानी शेयर की थी संयोगवश उस रूम में वो साथी भी मौजूद थे जिहोने ने यह कथा हमे सुनाई थी ..
कहानी का यह हिस्सा काफी मार्मिक है .. नायक जब नायिका को बधाई देने गये तो उसने बहुत बेरुखी दिखाई इतना अपमान किया कि वो बेचारे उसी शाम अपने घर कि टिकट कटा कर हमेशा के लिए डेल्ही छोड़ने का मन बना लिया . अपनी बोरिया बिस्तर ले कर स्टेशन भी पहुच गये . ट्रेन में भी बैठ गये तब उनके मन में एक विचार आया इस तरह से वो हार कर , अपमानित हो कर लौट नही सकते ... वो ट्रेन से उतर आये ( निश्चित ही उनके मन में उस समय फैसल खान जैसे विचार रहे होंगे – बाप का,, दादा का ,,, सबका बदला लेगा तेरा फैसल ..)
आगे की कहानी किसी हीरो सी रही ....... उनकी रैंक पता कितनी थी ......अंडर -१० ............ तो इस तरह से उनके दिन बदले ......यह पता नही कि उनकी नायिका ने इस पर क्या टिप्पड़ी थी या फिर नायक ने उसे माफ़ किया या नही .........पर यह कहानी .. मुखर्जी नगर में हजारों के लिए अम्रत सरीखी थी .. और कहानी परम्परागत तरीके से साल दर साल चलती चली आ रही है 



fort william college/ फोर्ट विलियम कॉलेज
भारतेंदु युग की 'नए चाल की हिंदी'
सरस्वती पत्रिका
CALL TO ACTION
BHARTENDU MANDAL / भारतेंदु मंडल
SUCCESS TIPS BY NISHANT JAIN IAS 2015 ( RANK 13 )
MISSION EKLAVYA
IAS MAINS 2015
Maila Anchal : by renu
ADOLESCENCE / किशोरावस्था
Nolan Committee in Hindi
Good Governance in India
  

बुधवार, 23 सितंबर 2015

SUCCESS TIPS BY NISHANT JAIN IAS 2015 ( RANK 13 )

मुझे किसी भी  सफल व्यक्ति की सबसे महतवपूर्ण बात उसके STRUGGLE  में दिखती है . इस साल के हिंदी माध्यम के टॉपर निशांत जैन की कहानी बहुत प्रेरणादायक है . आज उनके दिए TIPS  जिसे मैंने उनसे जुड़े विविध विडिओ और उनकी POST के आधार पर तैयार किया है .

  • समाज में सक्रिय रहिये , बंद कमरे में रह कर ज्यादा कुछ हासिल नही होता है। 
  • सरकारी स्कूल में पढ़ाई की है।  
  • ENGLISH से डरने की जरूरत नही है। 
  • हिंदी माध्यम से स्टूडेंट  किसी भी तरह के पूर्वाग्रह से बचे।   
  • SOCIAL SITES  पर सक्रिय रहिये।  
  • वैकल्पिक करियर जरूर रखिये 
  • तैयारी इतनी खामोशी  से करे कि  अपने परिवेश को भी पता न चलने दे। 
  • कर्म करे फल की इच्छा न करे।  
  • अनेकांतवाद यानि दूसरो के विचारों का आदर करें।  
  • हमेशा बड़ा सोचे। 
  • कमरे में बल्ब उंचाई पर लग कर ही ज्यादा LIGHT दे पाता है।  
  • संवेदनशील बने। 
  • सोचे SOCIETY  के लिए  क्या लिए क्या करना है। 
  • अपने कोर्स के आलावा पुस्तके जरूर पढ़े। अहा जिंदगी , कदंबनी जैसी MAGAZINE पढ़ कर अपनी सोच , समझ विकसित करे। 
  • किताबों सूची  
  • कुछ वक़्त POST OFFICE में भी कार्य किया है।  
  • हिंदी कविता लेखन और मंच पर कविता पाठ का शौक है।  
  • इसके पूर्व पहले प्रयास में PRE  में असफल हो गए थे।  
  • लोक सभा सचिवालय में हिंदी विभाग में कार्यरत थे।  
  • हिंदी विषय में , दिल्ली विश्वविद्यालय से M.FIL किया है।  
  • असफल होने के सपने भी आ जाते थे।  
  • बहुत अधिक घंटे पढ़ने की जरूरत नही है , बस  समझदारी की जरूरत है।  




रविवार, 6 सितंबर 2015

My reward : a sweet message from our reader....

 काफी समय पहले , इंटरनेट पर हिंदी से जुडी सामग्री और मार्गदर्शन के आभाव की पूर्ति हेतु मैंने ब्लॉग/पेज  बनाया पर लिखने लगा।  इस दौरान मुझे सैकड़ो मित्रो से बातचीत का अवसर मिला , संवाद हुआ। कभी कभी कुछ अनजान लोग भी , बहुत सुन्दर प्रतिक्रिया देते है तब बहुत अच्छा FEEL होता है।  कल मुझे एक मैसेज मिला। मेरे लघु प्रयास को ऐसे प्रोत्साहन से महती संबल मिलता है। साथ में जुड़ने के लिए सभी को पुनःश्च शुक्रिया।



आदरणीय आशीष सर,

मैं नहीं जानता आप कौन हो ? जब मैनें सर्च इंजिन में 'आईएएस हिंदी' खोजा तो आपका पेज खुल गया ! पेज को स्कीप करने ही वाला था कि मेरी नज़र एक पोस्ट जिसमें इकॉनोमिक्स के 'इम्पोर्टेंट टॉपिक' पर पड़ी ! मैनें उल्लेखित उन सारे अध्यायों की सूची पढ़ी ! पढ़कर खुशी इस बात की हुई की आपका चयन बिल्कुल सटीक है और दु:ख इस बात का कि काश: मैं आपके पेज को पन्द्रह दिन पहले पढ़ लेता तो इस वर्ष की प्रांरभिक परीक्षा का एक प्रश्न जिसके बारे में मैनें कहीं नहीं पढ़ा था "बासल- 3" सही हो जाता (यानी 2.67 अंक का फ़ायदा) !
यहाँ उल्लेखनीय है कि महोदय, मैनें इसी वर्ष स्नातक किया है और महज दो महीने की गभींर तैयारी (स्वाध्याय) से इस साल की सिविल सेवा की प्रांरभिक परीक्षा में प्रविष्ट हुआ और मेरा स्कोर 92 (जीएस पेपर में, कैटेगिरी- ओबीसी) बन रहा है ! मुझे नहीं मालूम प्रा. परीक्षा उतीर्ण कर पाऊँगा कि नहीं पर मेरी यह धारणा पहले से अधिक प्रबल हो गयी है कि "हाँ, मैं कर तो सकता हूँ !"
महोदय, आपका कार्य नि:संदेह बेहतरीन और सराहनीय है ! हिंदी माध्यम के छात्रों के लिए उपयोगी सामग्री और लक्ष्योन्मुखी मार्गदर्शन का आज भी अभाव है ऐसे समय में आपका कार्य और भी श्रेयस्कर हो जाता है ! जिस तरीके से आप लिखते हो, साहित्यिक पृष्ठभूमि झलक रही है ! हाँ, इतनी गंभीर मानवीय संवेदनाएं, परिपक्व अनुभव, चयनात्मकता और विश्लेषित मार्गदर्शन साहित्य ही दे सकता है ! महोदय, मैं साहित्य से तो नहीं हूँ पर सिविल सेवा के मुख्य परीक्षा के लिए मेरा यही विषय है ! बहुत लगाव है हिंदी रग-रग में बसती है ! सिविल सेवा एकमात्र लक्ष्य है, सामर्थ्य भी है (बोर्ड परीक्षा में राजस्थान टॉपर रह चूका हूँ) और जूनून भी है मगर पारिवारिक और आर्थिक परिस्थितियां बहुत विपरित है ! मेरे माता-पिता नरेगा में दिहाड़ी-मजदूरी कर परिवार चलाते है ऐसे में बहुत बार किताबें खरीद पाना भी मुश्किल हो जाता है !
खैर, सफ़लता कोंचिग फ़ैक्टियों और भारी भरकम स्टडी मैटेरियल की भी मोहताज़ नही होती, सीमित संसाधनों में भी अक्सर अवसर तलाश लिए जाते है ! मौलिक बुद्धि और आंतरिक ऊर्ज़ा का दोहन अत्यावश्यक है ! "जब निकल पड़ा है प्यासा तो ये ज़रूरी नहीं है कि हर जगह शुष़्क जमीं ही आए, दरिया भी ज़रूर आयेगा !" महोदय, आपसे विनम्र प्रार्थना रहेगी कि आप हमारा सतत् मार्गदर्शन करते रहें और जामवंत की भूमिका निभाते रहे ! अाख़िर में आपके नि:स्वार्थ कार्य और मार्गदर्शन के लिए धन्यवाद और एक बड़ा सारा सलाम ! - विकास कुमार लम्बोरिया गाँव- खरसण्डी, त. नोहर, जिला- हनुमानगढ़ (राज.)

गुरु की कहानी

बुधवार, 2 सितंबर 2015

Interesting story of IRA SINGHAL , IAS TOPPER 2015



पिछले दिनों ERA मैडम अहमदाबाद में एक स्टूडेंट सेमिनार में भाग लेने के लिए आई थी। वहाँ पर बहुत सारे COMPETITIVE STUDENT  के प्रश्नों के जबाब देते हुए एक बहुत ही रोचक बात का पता चला।  वैसे भी मैडम के अपने जितने भी इंटरव्यू सुने , पढ़े या देखे होंगे उससे आपको अंदाजा हो गया होगा। मैडम हमेशा इस बात पर जोर देती रही है कि वह भी एक आम स्टूडेंट की तरह ही तैयारी करती थी। बस इस बार उन्होंने अपनी STRATEGY  में कुछ बदलाव किया और TOPPER बन गयी।  

मैडम ने अपने पिछले एटेम्पट ( २०१४ ) के मुख्य परीक्षा में एक सवाल पर बड़ी रोचक बात बताई। एक पेपर में एक क्वेश्चन IT ACT के बारे में पूछा गया था।  दरअसल IT  का मतलब INFORMATION  TECHNOLOGY  से था।  मैडम ने इस INCOME TAX समझ लिया था और खूब बना बना कर उत्तर लिखती गयी।
HOW TO START PREPARATION, SOME USEFUL TIPS

ऐसा हम लोगो के साथ भी होता है , जब हमे उत्तर पता नही होते हम यूं ही लिखते जाते है अनाप शनाप। और आशा करते है कि हमें कुछ न कुछ अंक तो EXAMINER दे ही देगा। जबकि इस बात का हमेशा ध्यान रखे , आप भारत की सबसे महत्वपूर्ण परीक्षा में भाग ले रहे है।  आप इस तरह से सफल होने की उम्मीद न रखें।  वस्तुतः इस तरह के तुक्के पर आधारित उत्तर , परीक्षक के मन में NEGATIVE IMPACT डालते है।  

अपने सुना या देखा होगा , बहुत बार किसी किसी को किसी किसी पेपर में १० अंक , २० अंक भी मिलते है। उसकी वजह भी ऊपर वाली ही  होती है। आपको कभी भी कोई यह बात स्वीकार करते नही मिलेगा जबकि गलतियाँ सबसे होती है।  

एक और घटना आपको बताता हूँ आप सब ने MRUNAL का नाम जरुर सुना होगा . उनकी वेबसाइट बहुत प्रसिद्ध है . उन्होंने भी अपनी के बड़ी कमी का उल्लेख अपनी एक पोस्ट में किया है . २००९ के मैन्स में उनको  निबंध में २० /२०० अंक मिले . अपनी पोस्ट में उन्होंने इतने कम मार्क्स आने की  वजह भी उन्होंने साफ की . 


आज के लिए इतना ही . आशा है आप सभी की  मैन्स के लिए पढाई अच्छी चल रही होगी . अपनी राय और टिप्पणी से अवगत जरुर करियेगा . 




रविवार, 5 जुलाई 2015

Civil service exam 2014 result



सिविल सेवा में चुने गये सभी मित्रो को हार्दिक बधाई ..........

सिविल सेवा .....इस सेवा जैसा कोई नही नशा नही . इरा मैडम को पूरा भारत जान गया . जिस वक्त रिजल्ट आया उस वक्त उनकी फेसबुक id पर कुछ फोल्लोवेर दिख रहे थे . अभी उनको १०००० लोग फालो कर रहे है .

यह ऐसी परीक्षा है जिसमे आप सफल तो जय जय और अगर असफल तो आप अकेले ही सारा तनाव झेलते है . जितना आनंद आप को सफल होने पर मिलता है उससे कही ज्यादा दर्द झेलना पड़ता है असफलता में .

आप की किस्मत ( माफ़ करना यह शब्द पयोग करना पड़ रहा है पर इसकी व्याख्या बाद में करता हूँ ) अच्छी है तो पहली  बार में सफल हो जाते है वरना आप को भी असफलता का स्वाद चखना पड़ता है . यही ऐसी परीक्षा है जिसमे अगर आप असफल होते है तो आप किसी से भी बता नही सकते है कि आप ने भी एग्जाम / इंटरव्यू दिया था पर असफल हो गये .

किसी किसी की किस्मत ऐसी भी होती है . एक मित्र की कहानी काफी पहले लिखी थी जो पहले एक्साइज में irs होते है फिर अगले साल इनकम टैक्स में . इस बार उनको ips मिलेगा . अब ias बनने के लिए एक साल और शायद .. समझ नही आता उनको बधाई दू तो क्या कह कर दू ........हर किसी की चाह होती है आईएएस ही मिले उसे . पर कई बार रास्ते बहुत लम्बे , उब भरे ....हो जाते है .

एक बहुत करीबी मित्र ने इंटरव्यू दिया था . चौथा प्रयास था . नही हुआ .......... मुझे काफी दुःख हुआ वजह क्युकि मै जानता हूँ उसने किस situation  में यहाँ तक पहुचा था .सरकारी नौकरी में होते हुए तैयारी करना बेहद मुश्किल होता है . जो पिछली बार उससे कम अंक लाये थे इस बार टॉप ५० में है . उसके अनुसार वजह सिर्फ इतनी है कि वह सारा साल पढ़ते रहे और मै उन दिनों जॉब करता रहा . अब उसे दर्द क्यों  न होगा .

हर बार जब रिजल्ट आता है  बहुत से लोग जो सफल होते है मुझसे पहले से जुड़े होते है उनकी टाइम लाइन पर उनके रिजल्ट को देख कर बहुत अच्छा लगता है . कल के रिजल्ट में भी कुछ लोग ऐसे थे . जब रिजल्ट देखा कुछ नाम पहचाने से लगे . एक पर्सन के  सरनेम से मुझे लगा कि शायद ये मुझसे जुड़ा है ......फेसबुक पर चेक किया तो वाकई वो मुझसे जुड़ा था ..और उससे पहले चैटिंग भी हुई थी . कल नंबर ले कर बात की . उसकी भी वही कहानी थी .

पहले अच्छी जॉब करता था . तैयारी के लिए जॉब छोड़ थी तो सारे रिश्तेदार उसे ताने मारते थे कि दिल्ली में क्या टाइम पास कर रहे हो . उसको अपने गाव जाने में डर लगता था कि लोग कभी उससे पूछ न बैठे कि क्या कर रहे हो इन दिनों . .. कभी लम्बी बातचीत होगी तो उनकी पूरी कहानी बताऊंगा ......कल उनकी रिक्वेस्ट थी कि मेरा नाम मत लेना .......वो तो इस पेज की पहली शर्त ही है किसी के नाम को लिए बगैर कहानी बताना .........उनका के पुराना मैसेज पढ़ता हूँ
"bhai tumne meri profile dekhi hogi,tumri tarah mai bhi apne sapno ke liye koshish kr raha hun.pichhli bar intrvw diya tha ,eske pahle m p me bijali vibhag me sdo tha par man nahi lagta tha esliye ias ki tyri karne laga ;"

यह २०१२ के समय का है .

अब समय इजाजत नही देता कि और बाते की जाये ......फिर किसी रोज कुछ ऐसी बाते होंगी . ..मन में बहुत कुछ है लिखने के लिए पर ....समय नही मिल पाता है कि पुरे मन से कुछ लिखू .....तैयारी जारी रखिये .....असफलता अगर आपको तोडती है तो यह आपको कुछ जोश भी दिलाती है .......ias बनने के लिए , टॉप करने के लिए कुछ भी विशेष होने की जरूरत नही होती है .....मेरे विचार से बस सारी चीजे सही तरीके से , सही समय पर फिट होने से होती है .........इस बार के topper  से बहुत कुछ सीखा जा सकता है ......

नीचे वाली भी पोस्ट पढ़ कर देखिये .....यह आपके बहुत काम की है .........
एकांतवास का महत्व



























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SUCCESS TIPS BY NISHANT JAIN IAS 2015 ( RANK 13 )

मुझे किसी भी  सफल व्यक्ति की सबसे महतवपूर्ण बात उसके STRUGGLE  में दिखती है . इस साल के हिंदी माध्यम के टॉपर निशांत जैन की कहानी बहुत प्रेर...