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बुधवार, 20 जून 2018

International Yoga Day : A Story


अन्तर्राष्ट्रीय योग दिवस 


   'किशोरावस्था बड़े संघर्षतनावतूफान तथा विरोध की अवस्था है।स्टेनले हॉल

अगर आपको उन्नाव से सीधे अहमदाबाद आना हो तो एक ही ट्रेन है - साबरमती। सबसे पहले उसी ट्रेन से अहमदाबाद आया था। शुरू के १ साल तक उसी से आना और जाना। उस ट्रेन का रास्ता बहुत घुमावदार है। ऐसे अहमदाबाद से उन्नाव की दुरी 1200 km है पर साबरमती आपको 1700 km का सफर करा कर लाएगी। बाद में मुझे अन्य विकल्प मिल गए - एक जयपुर -आगरा हो के दूसरा वाया  दिल्ली। पिछले २ साल से तो इंडिगो की डायरेक्ट फ्लाइट का साथ रहा। यानि अब 90 मिनट में अहमदाबाद से लखनऊ पहुंचा जा सकता है। बात उन दिनों की है जब मैं साबरमती ट्रेन से सफर करता था यानि आज से 6 साल पहले।  

मेरी ट्रेन वडोदरा में काफी देर तक रूकती है। वही से वो चढ़ा था। वो रात का वक़्त था इसलिए उसे ज्यादा नोटिस न किया। सुबह उसने अपनी छाप सहयात्रियों पर छोड़ी। वो 16 या 17 का गोल मटोल लड़का था। जोर जोर से अपनी बातें बता रहा था। उसी दौरान उसने वो बात कही थी जो मेरे  मन में आज तक घूमती रहती है। वो मेरी तरफ नीचे वाली सीट पर बैठा था। सामने एक अंकल और आंटी थी। उस तरफ ऊपर सीट पर कोई लड़की थी जो सुबह के 10 बजे तक सोती रही थी. अपने आप को थोड़ा अलग मानने के चलते वो ज्यादा घुलना मिलना नहीं चाहती थी। इधर अपने गोलू ने तरह तरह की बातें सुनानी जारी रखी। तमाम बातें। अब ऊपर वाली लड़की से रहा न गया वो भी नीचे आकर बातों में शामिल हो गयी। 

वो क्रेद्रिय विद्यालय में टीचर थी। मथुरा के आस -पास की रहने वाली थी और यहां वड़ोदरा के पास कहीं जॉब कर रही थी। सारे लोग अपने अपने अनुभव बता रहे थे , दरअसल हम सब अपने सफर की बोरियत को कम करने के कोशिश कर रहे थे। अचानक गोलू ने योग के बारे में बात शुरू की और बोला वह नियमित योग करता है और तभी वो इतना फिट है। मैंने उसके शरीर के ओर देखा और मुस्कराया। उसने कहा - आपको यकीन नहीं आ रहा है पर सच यही है। योग से मुझे बहुत खुशी मिलती है। तुम समझ नहीं सकते इसमें कितना मजा मिलता है। सच कह रहा हूँ इसमें सेक्स से ज्यादा मजा आता है। अब सबके कान खड़े हो गए। मैंने गोलू से कहा चुप हो जाओ सब ने मान लिया है कि तुम योग करते हो। 

सब श्रोता धीरे धीरे अपने आप में बिजी होने का दिखावा करने लगे। गोलू ने मेरी तरफ झुक कर कान में कहा - भइया सही कह रहा हूँ योग सेक्स से ज्यादा मजा देता है।  "तुमने किया है क्या " मैं फुसफुसाया। उसने कहा -नहीं बस मुझे लगता है। योग में चरम आनंद मिलता है। मैंने कहा- जब तक तुम दोनों चीजे नहीं करते कैसे दावा कर सकते हो कि योग में ज्यादा मजा मिलता है। वो विचार में पड़ गया। उसने मुझसे पूछा- आप अपना अनुभव बताओ। आपको क्या लगता है कौन ज्यादा मजा देता है। मैंने कहा मुझे दरअसल योग का अनुभव नहीं है। उसने कहा - मतलब ? मतलब आप सोच लेना अब मुझे सोना है। मैं मुस्कराता हुआ उसे चिंतित छोड़ कर ऊपर की सीट पर लेटने चला गया। 

©  आशीष कुमार, उन्नाव उत्तर प्रदेश।   














शनिवार, 16 जून 2018

Scoop : A kuldip Nayar Book


Scoop : कुलदीप नैयर की एक पुस्तक

प्रकाशक  हार्पर कॉलिंस (2006 )  

मैं सत्य व्यास की बनारस टाकीज और निखिल सचान की नमक स्वादनुसार किताबें कमिश्नर सर से वापस लेकर निकल रहा था कि कपिल जैन मिल गए और कहने लगे कौन सी किताब दे रहे हो पढ़ने के लिए। मेरे मुँह से निकला - किताब के बदले किताब चाहिए। वो बोले बड़ी खुशी से। तो इस तरह Scoop और ओरिजिनल सिन किताबें मिली। कपिल की खास हिदायत थी कि स्कूप पढ़ कर वापस जरूर कर देना । इसलिए इसे जल्दी पूरा करने का दबाव भी था ।

214 पेज की किताब में विभाजन से आजतक (2000) की महत्वपूर्ण घटनाएं है। स्कूप का मतलब ही रोचक समाचार होता है। मुझे सबसे अच्छी बात इस किताब में यह लगी कि हर टॉपिक 3 या 4 पन्नों में खत्म कर दिया गया। 35 टॉपिक है पहला 30 जनवरी 1948 (गाँधी जी की हत्या ) और आखिरी टॉपिक  लाहौर बस यात्रा ( 20 फरवरी 1999 ) है। मुझे सबसे रोचक शास्त्री जी मौत से जुड़ा टॉपिक लगा। इस बारे में लंबे समय से मैटर तलाश रहा था। आपातकाल भी अच्छा लगा। इससे पहले मैंने रामचंद्र गुहा की दोनों किताबें  इंडिया आफ्टर गांधी और इंडिया आफ्टर नेहरू पढ़ी थी। गुहा की किताबों में विस्तार अधिक है तो स्कूप में संक्षिप्त और सारगर्भित लेख है।
ज्यादातर घटनाओं में नायर खुद मौजूद रहे है चाहे गांधी की हत्या हो या फिर लौहार बस यात्रा में अटल बिहारी जी के वो साथ रहे। इसलिए स्कूप बहुत सजीव व रोचक बन पड़ी है। गुहा की किताबें शोध पर आधारित है और वो इतिहासकार है इसलिए उनकी लेखन शैली अलग है। अगर कम समय में आपको आजादी के बाद की तमाम कहानी जाननी हो तो इसे जरूर पढियेगा।

- आशीष कुमार 
उन्नाव, उत्तर प्रदेश।

(  16 जून 2018 , अहमदाबाद)

गुरुवार, 14 जून 2018

Gajiyabad : Raj Nagar


मुझे जाना पड़ेगा 

आशीष कुमार 


कहते है शब्द जुबान से और तीर कमान से निकल जाने के बाद वापस नहीं लिए जा सकते है। उस रोज मुझे अपने शब्दों पर बड़ा खेद हुआ , झेप हुयी।  

इसी अप्रैल की बात है। एक मित्र रामकृष्ण है जो इंटरव्यू की तैयारी के दौरान सम्पर्क में आये थे। राजनगर , गाजियाबाद में रहते है। मै दिल्ली में था। मित्र से मुलाकात करने के लिए दिल्ली से गाजियाबाद निकला। पहली बार जा रहा था , खोजते पूछते उनके पते पर पहुंच ही गया। वो बीएसएनएल में काम करते थे और बोला था कि राजनगर में बीएसएनएल का टावर देखते हुए आ जाना। उस टावर के पास मुझे बीकानेरी स्वीट की एक दुकान दिखी। मन हुआ चलो देखे कुछ खाने का कोई बढ़िया आइटम मिल जाये। उत्तर भारत में खास कर अगर दिल्ली में होता हूँ तो तमाम चीजे खाने की कोशिस करता हूँ जो अहमदाबाद , गुजरात में नहीं मिलती। मिलती भी तो उनका टेस्ट अलग होता है।  

बीकानेरी स्वीट की दुकान , कार्नर पर ही है। अंदर जाकर देखा तो दिल खुश हो गया। एक तो बाहर की उमस , गर्मी से मुक्ति मिली और सैकड़ो आइटम थे। मिठाई के साथ नमकीन के भी व्यंजन। लगा कि मित्र  घर बाद में जायेगा कुछ वक़्त यही गुजारा जाये। इधर उधर काउंटर में तमाम चीजे देखी। दही बड़े खाने का प्लान बनाया। पता चला कि पहले बिल काउंटर पर पेमेंट करने के बाद ही खाने को मिलेगा। बिल काउंटर पर सेल्सबॉय  और सेल्स गर्ल थी। मैंने बिल कटाया और उससे पूछा कि वाशरूम कहाँ है ? मुझे बहुत जोर से आयी थी। उसने कहा - दूसरे फ्लोर पर। मेरे मुँह से निकला - वहाँ ही जाना पड़ेगा क्या ? एक पल को वो भी हैरान हो गया कि मैं क्या बोल रहा हूँ। तब तक मैं समझ गया कि ये बड़ी फनी स्थति हो गयी है।

 मन में तुरंत बात बनाने की कोशिस  कि नासा  वालो ने कुछ गोलियाँ बना ली है जिसे खाकर न भूख प्यास लगती है और न वाशरूम जाने की जहमत उठानी पड़ती है पर लगा कि शब्द जुबान से निकल गए है उनको सुधारा नहीं का सकता है। सेल्सबॉय मुस्कराते हुए कह रहा था कि सर अभी कोई ऐसा अविष्कार नहीं हुआ है कि आप इस काम के लिए किसी दूसरे को नियुक्त कर दे। मैंने एक नजर उठा कर देखा सेल्स गर्ल भी मुस्करा रही थी। मैंने जल्दी से बिल लेकर दही बड़े खाये और दूसरे फ्लोर जाने की जहमत न उठायी। दोस्त का  बताया टावर पास में ही दिख रहा था। अगले 10 मिनट में , दोस्त के गेट पर खड़ा था। दोस्त ने गेट खोला और पूछा कैसे हो ? मैंने कहा - भाई वाशरूम किधर है ? 


© आशीष कुमार 
( १४ जून २०१८  अहमदाबाद)

मंगलवार, 12 जून 2018

An evening in Mt. Abu

असली है क्या ?
आशीष कुमार 

कभी कभी हमारे जीवन में कुछ ऐसी बाते होती है जो होती बहुत सामान्य है पर आप उनको हमेशा सोचते रहते हो। वो चीजे मन मस्तिष्क से गुजरते ही मुस्कराने पर बाध्य कर देती है। उस छोटी सी घटना के 3 साल पुरे होने वाले है पर  मैं अब भी उस शाम की वो बात अक्सर याद करता रहता हूँ और सोचता हूँ आखिर उसने ऐसा क्यूँ कहा था ? उसके मन में क्या चल रहा था ? 

माउंट आबू में दो सन सेट पॉइंट है ( ज्यादा भी हो सकते है पर मैंने दो ही देखे ) . नक्की झील के आगे जो रोड जाती है उधर वाला ज्यादा फेमस और भीड़ भाड़ वाला होता है। उस शाम को मैं सन सेट पॉइंट पर ठीक 10 मिनट पहले ही पहुँचा था। खूब भीड़ थी। आगे लोग जगह घेर कर खड़े थे पीछे लोग सट कर बैठने लगे थे। ठीक बगल में 10 फिट ऊंची जगह पर बंदरों की एक टोली भी बैठी थी। मैं बार बार यही सोच रहा था कि अगर ये ऊपर से नीचे कूद गए और भगदड़ मच गयी तो ? हिल स्टेशन में सन सेट पॉइंट में होना और सूर्य को ढलते देखने का अपना आनंद होता है। तमाम लोग इसी आनंद के लिए जुटे थे पर लोग तो लोग होते है। इस भीड़ में भी उन्हें अलग से पहचाना जा सकता है। 

आप कुछ भी कहे - क्यों होता है , कैसे होता है पर मैं वो चीजे देख लेता हूँ , सुन लेता हूँ जो अनोखी होती है। जिन पर लिखा जा सकता है। दूसरे शब्दों में यह कह सकते है कि मेरी नजर व कान ऐसी चीजें देख व सुन ही लेते है। उस भीड़ में तमाम अंग्रेज पर्यटक भी थे। मेरे ठीक नीचे एक अंग्रेज किशोरी बैठी थी। उसके पीछे , उसकी माँ थी। बगल में एक आंटी ( वय 40 वर्ष बहुत सम्भव राजस्थान/गुजरात से ) बैठी थी। दरअसल थे तो तमाम लोग और एक दूसरे से सटे हुए पर बात इन्हीं पात्रो की ही है। अंग्रेज किशोरी के बाल पुरे गोल्डन थे और कर्ली थे ( कर्ली थे या उसने खास डिज़ाइन करवा रखी थी कहना मुश्किल है, काफी लम्बे और बहुत ही करीने से पूरी पीठ पर फैले हुए ) उसके बाल निश्चित तौर पर किसी का भी ध्यान खींच सकते थे। सूर्यास्त होने कुछ मिनट ही बचे थे शोर गुल बढ़ने लगा था। तभी मुझे सुनाई पड़ा - असली है क्या ? 

मैंने देखा- मेरी बगल की आंटी , उस किशोरी के बाल अपने हाथ में लेकर पूछ रही थी। किशोरी ने घूम कर देखा और जब तक कुछ समझती आंटी ने फिर उससे पूछा -असली है क्या। किशोरी और उसकी माँ थोड़ा सा हैरान थी। उस एक मिनट की घटना , मुझे तमाम चीजे सोचने पर बाध्य कर गयी। सबसे पहली बात आंटी ने बगैर यह समझे कि यह हिंदी समझेगी नहीं पुरे विश्वास से  हिंदी में पूछ रही थी। दूसरी बात आखिर आंटी को कितनी चुलबुली हुयी कि सूर्यास्त देखने के बजाय गोल्डन बालों की खूबसूरती देख कर उनसे रहा न गया जो बगैर हिचके उस किशोरी के बाल हाथ में पकड़ ली थी। सूर्य आधा ढल चूका था। प्रकृति ने आकाश में अपनी अनोखी छटा बिखेर रखी थी। थोड़ा और नीचे एक देसी लड़का कोई सस्ता सा चश्मा लगाता / हटाता और उसी सुनहरे बालों वाली किशोरी का ध्यान अपनी और खींचने का प्रयास करते हुए सस्ती सी घटिया हरकत कर रहा था। उस देसी लड़के की विदेशी दिखने की  हरकते , किसी सज्जन को भी शर्मिंदा कर सकती थी। मुझे  अतिथि देवो भव के तमाम विज्ञापन / आमिर खान  बहुत याद आये।   


फुटनोट :- इधर हमारे समाज में लड़कियों में गोल्डन बालों की लट रंगवाने का खूब चलन बढ़ा है( अब यह मत पूछना मुझे सब कैसे पता मैंने पहले भी बताया और लिखा भी है कि मेरा वर्तमान ऑफिस बहुत हाई फाई जगह पर है जहाँ लड़कियाँ बगैर हिचके हर समय सिगरेट पीते दिख जाती है, फिर गोल्डन कलर वाली लट तो बहुत आम बात है ) क्या पता उस फैशन  शुरुआत उन्हीं आंटी से हुयी हो जो माउंट आबू से लौट कर अपने बाल सुनहरे करवा लिए हो। 


©आशीष कुमार 
उन्नाव , उत्तर प्रदेश।  

( 12 जून 2018, अहमदाबाद  )  

रविवार, 10 जून 2018

Be alert

आप सतर्क रहना

एक बात है जो मुझे काफी घुटन दे रही है। दरअसल पिछले दिनों एक कोचिंग से फोन आया, मेरे हिंदी साहित्य के नंबर पूछे और फ़ोन रख दिया। बताने की जरूरत नही कौन कोचिंग हो सकती है। यह सच है कि मैंने वहां  mains की टेस्ट सीरीज जॉइन की थी , पर मुझे लगता नही कि उनको मेरे नंबर का क्रेडिट लेना चाहिए और उसके नाम पर अन्य लोगों को अपनी टेस्ट सीरीज जॉइन करवाने का व्यापार करना चाहिए।
7 टेस्ट की सभी उत्तर में सिर्फ very good, और good के अलावा कोई रिमार्क नहीं । बहुत ज्यादा असंवेदनशील है वो। fee का कोई reciept भी न दी। मुझे बस देखना था कि क्या वो सर्विस टैक्स चार्ज कर रहे है और क्या वो उस पर टैक्स भी भर रहे है। बातें तमाम है क्या क्या कहूँ। हिंदी साहित्य में दूसरा विकल्प भी बहुत दुखी करने वाला है, वो कॉपी खुद चेक करते है पर मॉडल उत्तर नही उपलब्ध कराते । जहां मैंने जॉइन की थी वो किसी नए लड़के से ही कॉपी चेक कराते है और उसे fee भी शायद बहुत कम देते है।
ये अनुभव इसलिए हुए क्योंकि मैंने gs के लिए विज़न की टेस्ट सीरीज जॉइन की थी। fee reciept तुरंत मेल कर दी। कॉपी में खूब रिमार्क देते थे। पता चला कि वो एक कॉपी चेक करने के 800 रुपए देते है। स्टूडेंट से 1000 से 1200 per टेस्ट फी लेते है और बड़ा हिस्सा कॉपी चेक करने वाले को दे देते है।

हिंदी माध्यम में प्रचार प्रसार में पैसा फूक देंगे पर क्वालिटी के नाम पर कुछ न करेंगे। यही बड़ा कारण है कि हिंदी माध्यम की कोचिंग तो अमीर होती जा रही है पर रिजल्ट गिरता जा रहा है।

अपने हिंदी के अंकों का बड़ा श्रेय इग्नू के नोट्स, कुछ अच्छी किताबों के साथ गहरी रुचि, हिंदी लेखन की आदत को ही दूंगा। आप व्यापार करने वाली जगहों में फंस मत जाना। उनके असंवेदनशील व्यवहार को आप हमेशा कोसते रहोगे। मुझे इस बात की हमेशा खुशी रहती है कि मैंने कभी उनके भीड़ वाले class room प्रोग्राम का हिस्सा न था।

गुरुवार, 7 जून 2018

Some Important things

कुछ जरूरी बाते 

आशीष कुमार 


27 अप्रैल 2018  की शाम मेरे जीवन की सबसे महत्वपूर्ण शाम थी। उस दिन सिविल सेवा का रिजल्ट आया था। मेरा अंतिम प्रयास था। तमाम तनाव और मुश्किलों के बीच सफलता की खबर ने मुझे संजीवनी सी दे दी। पिछले 9 सालों से इसके भवँर में था। 

सोचा था कि एक पोस्ट लिखूंगा कि देश के सबसे मुश्किल एग्जाम को पास करने के बाद के 1 महीने कैसे गुजरते है। महीना तो गुजर गया , आलस के चलते कुछ भी न लिखा। दरअसल सच कहूँ तो दिन अब बहुत बोरिंग से गुजरते है। खूब मेहनत करने की आदत पड़ गयी थी। ऑफिस का काम बहुत तेज करके समय बचा लेना , काफी पहले सीख लिया था। बचे टाइम में पढ़ना , लिखना चलता रहता था। अब न तो पढ़ना है और लिखने का मन होते हुए भी गर्मी से आक्रांत हूँ इसलिए चुपचाप पड़ा रहता हूँ। a.c. की इतनी बुरी लत लग गयी है कि जरा भी गर्मी बर्दास्त नहीं होती।

रिजल्ट के बाद 1 महीना कैसे गुजरा यह तो कभी फुर्सत में में ही लिखूंगा ( न जाने वो फुर्सत कब आएगी ) पर कुछ बातें कर लेता हूँ। तमाम लोग , किताबें , तैयारी के लिए संपर्क करने का प्रयास किया और मैंने यथा संभव उनकी मदद भी की। पर दिल से कहूँ तो मेरा हमेशा से यह मानना रहा है कि सफल व्यक्ति से भी ज्यादा अच्छे और गहराई से एक संघर्षरत , असफल व्यक्ति ज्यादा दे सकता है और उससे ज्यादा सीखा जा सकता है। 

पर नहीं दुनिया सिर्फ चमक के पीछे ही भागती है। मैंने पिछले ४ सालों के दौरान तमाम बहुत अच्छी और बढ़िया पोस्ट लिखी। उसमें हर चीज है बूकलिस्ट , टिप्स , लिंक आदि। बहुत बार लोगों से कहता था कि मैन्स के आंसर लिखो , मै चेक कर दूंगा। अपवादों को छोड़ दे तो कोई खास रिस्पांस न मिला। अब जब मैं कुछ न करता , सारा दिन यूँ ही अपना टाइम काटता रहता हूँ तो तमाम लोग उम्मीद करते है कि मै उन्हें कोई बढ़िया टिप्स दे दूंगा। भाई जब सच तो यही है कि मेरी पुरानी पोस्ट ही बड़े काम की है। अब जो कुछ बताऊंगा या लिखूंगा वह जमीनी हकीकत से परे ही होगा अब न तो मुझे एग्जाम देना है और न ही मैं अपने आप को अपडेट रख रहा हूँ । दरअसल अब मन भी ज्यादा नहीं होता। 

काफी लोगों को मेसेज का रिप्लाई भी नहीं दे पाता। कई बार बड़ी कोफ़्त भी होती है जब कोई फेसबुक पर बूकलिस्ट /टिप्स मांगता है , उसकी टाइम लाइन पर जा कर देखो तो पता चलेगा कि देश की राजनीती /प्रेम मोहब्बत का सारा ज्ञान , उन्हीं महानुभाव के पास है। कहने का आशय यह है कि यार तुम शायरी /जाति /धर्म /समुदाय/राजनीति  से अभी नहीं उठ पाए हो तो तुम अभी नादान हो। कम के कम सफल व्यक्ति की टाइम लाइन पर जाकर देखो - क्या वो भी वही करते है क्या ? सिविल सेवा गंभीरता मांगती है। मेरी तमाम असफलताओं के पीछे सिर्फ सिर्फ  एक ही वजह थी - मेरा upsc के लेवल का गंभीर न होना।  



-आशीष कुमार 
( सिविल सेवा 2017 में हिंदी माध्यम से चयनित )

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