BOOKS

सोमवार, 11 मई 2020

story of Crane

" सारस"

आज  प्रीतम सिंह की फेसबुक पोस्ट में सारस के जोड़े की तस्वीर  देखी तो मन फिर village की ओर लौट गया। वर्षो से सारस न दिखी, वैसे वर्षो से गांव से नाता भी टूट सा गया है। साल में 10 से 15 दिन से ज्यादा जाना न होता है। हालांकि जब भी घर जाना होता है, खेत तरफ जरूर जाता हूँ।
पहले सारस बहुतायत दिख जाते थे। सारस के बारे में कहा जाता है कि वो अकेले नही दिखेगा। अगर एक साथी मर गया तो दूसरा भी अपने प्राण त्याग देता है। 

खेतों के पास एक छोटा सा जंगल था। उससे लगता एक pound था उसे वीरा का ताल कहते थे। वैसे वो एक गहरा खेत था। कभी जब ज्यादा बारिश हुई तो उसमें 2- 3 फ़ीट पानी भर जाता था। उस समय कभी कभी सिंघाड़े की खेती भी कर ली जाती थी। उसके पास में तमाम तरह के साग मिल जाता करता था।

 मुझे ठीक से याद है एक बार उसमें सारस ने eggs दिए थे। जोड़े ने लकड़ी, खर पतवार से जमीन पर उसी तालाब के बीचों बीच अपना घोंसला बनाया था। उस समय तालाब में पानी सूख गया था। तालाब की सतह पर कीचड़ के बजाय घास रहा करती थी।

(चित्र : प्रीतम सिंह, उन्नाव )


बचपन में उत्सुकता बहुधा चरम पर होती है। उसी के चलते उसके घोंसले के पास अंडे देखने का मन हुआ करता था। सारस हमेशा उसी के पास रहते। कितनी ही बारिश हो, उनमें एक हमेशा अंडो पर बैठी रहती थी। एक grandfather अपनी भैंसे उधर चराया करते थे। एक बार वो गलती से उसके घोंसले के पास चले गए, सारस ने उन्हें दौड़ा लिया। अपने बच्चों के लिए किसी भी मां की तरह सारस किसी से भिड़ सकती थी।

मुझे याद आता है कि सारस अक्सर धान की फसल के समय दिखायी पड़ते थे। कभी 2 वो कई जोड़ो में दिखते। शाम को जब वो वापस लौटते दिखसई पड़ते तो देखने से लगता वो काफी नीचे उड़ रहे है। उस समय धेले से उनको मारने का असफल प्रयास भी किया.. पर वो बस देखने मे ही लगता कि नीचे है बाकी वो काफी ऊपर उड़ा करते थे। सारस India के कुछ सबसे बड़े पक्षियों में एक है। उत्तर प्रदेश में इसे विशेष पहचान दी गयी है। यह अलग बात है अब के समय इनको रूबरू कम लोग ही देख पाते हैं ...

बात पक्षियों की हो रही है तो यह बात जरूर साझा चाहूंगा कि मैंने गिद्ध (अब विलुप्त के कगार पर ) भी देखा है. गाँव में इन दिनों जहां अब cricket खेला जाता है, पुराने दिनों में वहां गांव के मरे जानवर डाल दिये जाते थे, पहले कस्बे से कुछ खाल निकलने वाले लोग आकर खाल निकाल ले जाते तब गिद्ध बड़ी संख्या में दिखते.. पिछले सालों तक वहां जो एक सूखा पेड़ था, जिसे  क्रिकेट के खिलाड़ियों ने हटा दिया ( वजह उसकी वजह से तमाम छक्के , चौके रुक जाते थे ) उसी में वो झुंड बना कर बैठे रहते थे। अगर अपने प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी की है तो आपको यह प्रश्न जरूर मिला होगा कि गिद्ध कैसे विलुप्त हुए ..वो इंजेक्शन भी गाँव में खूब बिका करता था, उसे भैसों को लगा कर दूध निकला जाता था..

पोस्ट जरा लम्बी हो रही है पर तमाम बातें याद आती चली जा रही है..नाना के घर में छत के पीछे दीवाल के पास peacock का घोसला व अंडो को भी मैंने देखा है..मैंने अपने महुए के पेड़ के पुराने कोटर में parrot के अंडो, बच्चों को देखा है। मैंने बबूल के पेड़ों में तमाम बगुलों को खूब जोर से आवाज करते देखा है, उनके पेड़ो के नीचे की जमीन ऐसे सफेद होती जैसे कि उस पर चुना किया गया हो 

नीलकंठ का नाम सुना व देखा जरूर होगा। साल में कोई दिन होता है जिस दिन उसको देखना बहुत शुभ माना जाता है। उस दिन हम अपनी टोली के साथ निकलते.. जिन साथी ने ये शुभ वाला ज्ञान दिया था, उस पक्षी को देखते  अपनी आँख बंद करके अपना हाथ पक्षी की ओर दिखा कर चूमा करते..मैं भी देखी देखा ऐसा करता। उनसे पूछता कि क्या मांगा तो बोलते अपनी मन्नत बताई नही जाती। मैं उन दिनों बस यह मांगा करता कि आज जो ऐसे घर में बिना बताए घूम रहे हैं उसके लिए घर जाकर में कुटाई न हो..उन दिनों upsc के सपने न थे , इसलिए मन्नतों में upsc कभी न रहा 😁😉

बाकी फिर कभी ...

© आशीष कुमार, उन्नाव
12 मई, 2020 ( पोर्ट ब्लेयर) 



सोमवार, 4 मई 2020

बेला के फूल


बेला के फूल 

यूँ तो गुलाब के फूल ही बेजोड़ होते हैं पर बेला के फूल अपनी धवलता के साथ, अनूठी खुसबू के लिए जाने जाते हैं। 
इन दिनों शाम को टहलते वक़्त रोज उसके पेड़ो के पास से गुजरता हूँ। हाथों में कुछ फूल लेकर मुट्ठी बन्द कर लेता हूँ। बन्द मुठी को नाक के पास लाकर, उनकी खुसबू को भीतर तक महसूस करना, मेरा प्रिय सगल बन चुका है। यूँ तो पहले भी तमाम बार फूलों की खुसबू को भीतर महसूस किया है पर इन दिनों यह कृत्य बड़ा रुचिकर व सुखदायी प्रतीत होता है।


मुझे यह ध्यान, योग की तरह लगता है। मन भीतर से हल्का, प्रसन्न व शांत हो जाता है। कोरोना के इन दिनों की उदासी को, यह क्रिया बड़ी सुखदायक प्रतीत होती है।

© आशीष कुमार, उन्नाव
3 मई, 2020 

रविवार, 3 मई 2020

OLD Days

   इमलियाँ पक चुकी हैं 

उस रोज शाम को टहलते समय सामने पेड़ पर निगाह गयी तो लगा कि जैसे कि तमाम इमली लटक रही हो। हालांकि यकीन न हो रहा था कि इतनी दूर , यहां की जलवायु में भी इमली का पेड़ भी हो सकता है। 

दूसरे दिन सुबह देखा तो यह इमलियाँ ही थी। कुछ तलाश करने पर कुछ पकी इमली भी पड़ी मिल गयी। उन इमली को ज्यों स्वाद के लिए मुख में रखा, मन बचपन की में खो गया।

मेरी बाग में इमली का बहुत पुराना पेड़ था।उसका तना बहुत मोटा था। मेरे दुबले पतले हाथों में वो क्या ही आता पर उसके बावजूद में मैं उस पर चढ़ जाता था। दरअसल इमली के पेड़ की डालियाँ बहुत ही ज्यादा मजबूत होती हैं। डाल पकड़ कर उल्टा होकर चढ़ना, किसी करतब से कम न था।

उसमें चढ़कर सबसे ऊपर जाकर मैं बैठ जाता था। वहाँ से सामने रोड साफ साफ नजर आती। इसमें कच्ची इमली बहुत लगती थी। उनको नमक के साथ खाना बड़ा स्वादिष्ट लगता था। पेड़ में कुछ रोग लग गया था। उसमें पकी हुई इमली शायद ही कभी अच्छी मिली हो। पकने के साथ ही वो इमली अजब तरीक़े से सूख जाती । 

बाद में पेड़ सूख गया। जब मेरी बी.एड.की फीस जमा करनी थी। पिता जी ने एक करीबी रिश्तेदार से 20 हजार रुपये उधार लिए थे। वैसे तो वो रिश्तेदार काफी सम्रद्ध थे पर उनसे इतंजार न हुआ। पिता जी ने कहा था कि जब मेरी fd टूटेगी तब वो रुपये लौटा देंगे। अगर दुनिया में रिश्तेदार इतने ही बढ़िया होते तो  उन पर इतने मजाक क्यों बनाये जाते..

हमारे रिश्तेदार अपवाद न थे, इतना चरस बोया कि पेड़ कटवा कर बेच दिए गए और उनके रूपये चुका दिए गए। इस तरह इमली का सूखा पेड़, मेरी पढाई की भेंट चढ़ गया।

अब कहने वाले कहते है कि मैं बड़ा घमंडी हो गया हूँ, किसी रिश्तेदार, नातेदारों से बात नहीं करता .. सच में.. ?
अक्सर लोग पर्दे के पीछे का सच जाने बगैर ही अपने  मत/ अनुमान स्थापित कर देते हैं। वैसे इमली के पेड़ पर चढ़ने के सुख किसने किसने भोगा है ?

© आशीष कुमार, उन्नाव 
3 मई, 2020 ( पोर्ट ब्लेयर)

Featured Post

SUCCESS TIPS BY NISHANT JAIN IAS 2015 ( RANK 13 )

मुझे किसी भी  सफल व्यक्ति की सबसे महतवपूर्ण बात उसके STRUGGLE  में दिखती है . इस साल के हिंदी माध्यम के टॉपर निशांत जैन की कहानी बहुत प्रेर...