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बुधवार, 25 जनवरी 2017

3 drama for ias mains Hindi sahitya

सिविल सेवा में हिंदी साहित्य में कुल 3 नाटक पढ़ने है ।
भारत दुर्दशा  -भारतेन्दु हरिश्चन्द
स्कन्दगुप्त   -जयशंकर प्रसाद
आषाढ़ का एक दिन - मोहन राकेश

तीनों इसी क्रम में रचे गए और उन पर तत्कालीन समय की मांग के अनुरूप विषय वस्तु रखी गयी । पहले 2 में गीतो की बहुलता है तो तीसरे में कोई गीत नही होते हुए भी आंतरिक लय उपलब्ध है ।

भारतेंदु का नाटक आत्मबोधक, लोगों को गुलामी के शासन के प्रति उद्देलित करने वाला है । यह मंचन की दृष्टि से सरल है ।

प्रसाद के नाटक की भाषा तत्सम बहुल , गुप्तकालीन संस्कृति को दिखलाती है । यह नाटक अपने विविध काल विस्तार, लंबे स्वगत कथन के चलते अभिनय की दृष्टि से जटिल रहा है ।

मोहन राकेश का नाटक की विषय वस्तु अतीत की है पर उसमें वर्णित प्रश्न समकालीन संदर्भ में महत्वपूर्ण रहे है । मंचन की दृष्टि से यह सबसे सफल रहा है ।

शुक्रवार, 6 नवंबर 2015

दिव्या : यशपाल का उत्कृष्ट उपन्यास

दिव्या
  • 1945   में लिखित बौद्धकालीन उपन्यास 
  • ' दिव्या ' इतिहास नही , ऐतिहासिक कल्पना मात्र है 
  • इतिहास विश्वास की नही , विश्लेष्ण की वस्तु है . 
  • मनुष्य भोक्ता नही करता है . 
  • यशपाल जी मार्क्सवादी विचारधारा के लेखक है , इस नावेल में इसी विचारधारा की पुष्टि होती है।  
  • बौद्ध धर्म , हिन्दू धर्म की विसंगतियों का चित्रण , चर्वाक दर्शन को सबसे ज्यादा महत्व 
  • ' मारिश' के विचार , एक प्रकार से यशपाल जी के विचार है।  
  • ' जन्म का अपराध ? '  कथानक के शुरु मे ही पृथुसेन के द्वारा , एक महत्वपूर्ण प्रश्न को उठाया गया है।  
  • ' देवता का विधान केवल विश्वास और अनुमान की वस्तु है ' कह कर यशपाल अपने समय की जटिल प्रश्नों से जूझने की कोशिस करते है।  
  • ' मै वर्ण का न्याय नही , धर्म का न्याय चाहता हूँ '  पृतुसेन 
  • ' मुर्ख , तू ने और तेरे स्वामी ने परलोक देखा है ? यह विश्वास ही तेरी दासता है।  तू अपने पर स्वामी के अधिकार को स्वीकार करता है , यही तेरी दासता का बंधन है। ....... तू स्वत्रंत 'कर्ता'  है।  स्वत्रंता का अनुभव करना ही जीवन है----- चर्वाकवादी मारिश का कथन 

गुरुवार, 15 अक्टूबर 2015

Maila Anchal : by renu

 मैला आँचल 





  • फणीश्वर  नाथ रेणु  द्वारा रचित 1954 में PUBLISHED 
  • कथानक - बिहार के पूर्णिया जिला का मेरीगंज गावं 
  •  " इसमें फूल भी है शूल भी , धूल भी , गुलाब भी , कीचड़ भी चन्दन भी सुंदरता भी है , कुरूपता भी - मै  किसी से दामन  बचाकर निकल नहीं पाया " 
  • " अरे , जात -धरम ! फुलिया तू हमारी रानी है , तू हमारी जाति , तू ही धरम , सबकुछ ---" सहदेव मिसिर फुलिया से।  देह भोग के लिए है। तुलनीय गोदान की  सिलिया -मातादीन 
  • आंचलिक LANGUAGE वहां की संस्कृति को दर्शाता है।
  • लोक गीत , लोक उत्सव की बहुलता -बिदापत नाच , बिदेशिया , सदाब्रिज -सुरंगा की कथा, फगुआ गीत , बौडवा , चैती  , ' सिरवा पर्व ' , ' बधना पर्व ( संथाल ) , जाट - जट्टिन  ( वर्षा के लिए आयोजन ), बारहमासा , भकतिया ( मृदंग पर देवी का गीत )
  •  
  • " ऐसी मचाओ होरी हो, कनक भवन श्याम मचाओ होरी "  
  • अंधविस्वास - गणेशी की नानी डायन 
  • "भारत माता अब भी रो रही हैं बालदेव "  बावनदास  वजह दुलार चंद्र  कापरा जैसे डाकू स्मगलर लोग कटहा थाने का सिकेटरी हो गया है।  चुन्नी गोसाई , सोसलिस्ट पार्टी में चला जाता है 
  • बावनदास जैसा त्यागी आदमी की आत्मा -जलेबी और तारावती देवी की देह भोगने के लिए लालायित हो जाता है - इसीलिए मैला आँचल  में धूल है , कीचड़ है।  
  • ऊपरी INCOME की बात गोदान में भी है , यहां भी है - " देवनाथ मल्लिक सिर्फ ५ रूपया माहवारी पर बहाल  हुए थे।  लेकिन ऊपरी आमदनी ? तीन साल बीतते -२ असि  नब्बे बीघे धनहर जमीन के मालिक बन गए थे।  ऊपरी आमदनी ही असल आमदनी है।  
  • बेगारी - मारपीट - " मारो साले  को दस जूता " 
  • बेवजह की मुकदमेबाजी , रिश्वतबाजी 
  • " पुराने तहसीलदार ( विश्वनाथ ) यदि नागनाथ थे तो यह नया तहसीलदार-हरगौरी  सपनाथ है। " 
  •  " हुजूर , लड़की की जात बिना दवा -दारू के ही आराम हो जाती है। "  बूढ़ा - 
  • वर्णनात्मक शैली , कहीं कहीं पर  छोटे छोटे संवाद के माध्यम से कथानक आगे बढ़ता है 
  •   " साला दुसाध , घोड़ी पर चढ़ेगा ! " टहलू पासवान के गुरु को सिंह जी गिरा कर जुटे मारने लगे। जातिगत शोषण 
  • ममता के LETTER में उस समय  CITY के चित्र दिखलाया गया है -" महराज महता की बेटी जो पिछले साल दूध पीने आती थी और ताली बजा कर नाचती थी------पोलिस ने 'सिटी ' के एक पार्क में उसे कराहते हुए पाया--- फूलमतिया का बयान है - टेढ़ी नीम गली के पास एक मोटर गाड़ी रुक गयी और दो आदमियों ने पकडकर उसे मोटर में बिठा दिया --- बड़े बड़े बाबू लोग थे ! "   उस समय और आज के TIME में कोई बदलाव नही दिखता--- 
  • ' विदेशी WINE की दस दुकाने खुल गयी है ' 
  • अमलेश सिन्हा अपनी ही चचेरी बहन वीणा के पीछे हाथ धोकर पीछे पड़ गया 
  • मगला देवी - ' अबला नारी हर जगह अबला ही है।  रूप और जवानी ? … नही यह भी गलत  औरत होना चाहिए , रूप और उम्र की कोई कैद नही -- एक असहाय औरत देवता ने संरक्षण में भी सूख -चैन से नही सो सकती। मंगलादेवी के लिए जैसा घर वैसा बाहर - 
  • " अरे, कांग्रेसी राज है तो क्या जमीदारो को घोलकर पी जायेगा ?" हरगौरी 
  • संथाल टोली में मादल  बज रहा है - डा डिग्गा , डा डिग्गा  ! रि  रि  ता धिन ता !
  • " गरीबी और जहालत - इस रोग के दो कीटाणु है - डॉ प्रशांत 
  • घाघ की सूक्ति - मुसिन पूछे मुस से कहाँ के  रखबधन " 


रविवार, 11 अक्टूबर 2015

NOVEL Mahabhoj : BY Mannu bhandari


महाभोज 


  • 1979  में मन्नू भंडारी द्वारा रचित , 
  • रचनाकार ने अपने परिवेश के प्रति ऋण शोध के तौर पर लिखा है -
  • " घर में जब आग लगी तो। …… "  उस समय के समाज -राष्ट का स्पष्ट चित्र खीचने की आकांक्षा 
  • POLITICS , अपराध , MEDIA , POLICE की साठ -गाठ से किस तरह से लोकत्रांतिक मूल्य विघटित हुए है इसका सटीक वर्णन। 
  • " महाभोज " का अर्थ किसी की मौत पर दिए गए भोज  से होता है। इस NOVEL में बिसू  नामक  दलित की मौत  होती है। 
  • पर महाभोज उसकी मौत का न होकर , आजादी के बाद लोकत्रांत्रिक मूल्य , SOCIAL VALUE के विघटन का है।
  • INDIAN POLITICS का नग्न यथार्थ , राजनीति में जाति महत्व , 
  • राजनीति में अवसरवादिता ( राव , चौधरी ) , ELECTION में धन -बल का प्रयोग ( घरेलू कार्य योजना , सुकुल बाबू की बाद वाली सभा में रूपये और खाने के नाम पर भीड़ जुटाना )  , अयोग्य उम्मीदवार ( लखन ), पुलिसिया रॉब ( थानेदार ) , बयान लेने का दिखावा ( सक्सेना ) , मीडिया का बिकना ( मशाल के सम्पादक दत्ता बाबू  ) , बुद्धिजीवी वर्ग की  निष्क्रियता ( महेश बाबू ), दलित चेतना ( बिसू , बिंदा ) , शोषक वर्ग ( जोरावर सिंह ) , परजीवी वर्ग ( बिहारी भाई , काशी , पांडे जी ),  पदलोलुप नौकरशाह ( सिन्हा ) , विपक्ष की स्वार्थपूर्ण नीति ( सुकुल ) , ईमानदार राजनीति करने वाले का कोई मूल्य नही ( लोचन बाबू ) , सत्ता दल में की शक्ति एक व्यक्ति में , गैर लोकत्रांत्रिक ( दा साहब ) , 
  • संवाद बेहद चुस्त , चरम नाटकीयता की व्याप्ति , उचित गति में NOVEL आगे बढ़ता है।  
  • यथार्थ के चित्र होने के चलते नावेल में नकारात्मकता ज्यादा जगह दिखती है , इसके बावजूद , सक्सेना के माध्यम से एक आशा अभी जी जीवित है।  " अग्निलीक जो बिसू , बिंदा के बाद खत्म नही होती वरन सक्सेना में समा जाती है। 
  • लेखिका ने उन चिरकालिक मुद्दों को उठाया है जिससे नावेल की प्रासंगिकता सदैव बनी रहेगी। 
  •   " सरोहा " गावं पर शहर से नियंत्रित 
  • "मशाल" , गोदान के " बिजली " से तुलनीय  
  • लोचन बाबू  , मैला आंचल के " बावनदास " से तुलनीय , दोनों ही आदर्शवादी पर मुख्य धारा से परित्यक्त 
  • गोदान के " राय साहब " मैला आंचल के " विश्वनाथ " और महाभोज के " जोरावर सिंह " में समता , तीनो ही जनता का शोषण कर रहे है बस स्वरूप अलग अलग है।  
  • हरिजनों को जलाये जाना का इशारा , नागार्जुन ने भी ऐसी ही INCIDENT पर " हरिजन गाथा " लिखते है।    



बुधवार, 7 अक्टूबर 2015

GODAN : A NOVEL BY PREMCHAND



गोदान


  • प्रेमचन्द्र द्वारा १९३६ में रचित , उनका अंतिम और MOST IMPORTANT NOVEL 
  • ग्रामीण संस्कृति , उत्सव , पर्व 
  • धार्मिक कुरीतियाँ , अशिक्षा , अन्धविश्वास 
  • महाजनी , उधार  लेने की प्रवत्ति 
  • ग्रामीण -शहर के मध्य का अंतर -गोबर की चेतना में बदलाव इसके चलते दातादीन को सिर्फ ७० रूपये देने की बात करता है 
  • परस्त्री गमन 
  • दलित चेतना -ब्राह्मण मातादीन को हरखू और चमारों  द्वारा हड्डी मुँह  में डालना 
  • बालमन का सूक्ष्म , सटीक चित्रण -रूपा और सोना के संवादों में 
  • JOINT FAMILY र का टूटना - गोबर को झुनिया का शहर ले जाना 
  • सास-बहू  का झगड़ा -झुनिया -धनिया 
  • उस समय की HEALTH सुविधाओं की कमी का जिक्र - धनिया के २ पुत्र बीमारी में मर गए 
  • तंखा -दलबदलू , दलाल वर्ग के प्रतिनिधि 
  • दहेज की समस्या - रायसाहब की बेटी का विवाह 
  • बेवजह की मुकदमेबाजी , कमीशनबाजी -राय साहब से खन्ना का कमीशन मांगना 
  • " मगर यह समझ लो कि  धन ने आज तक नारी के ह्रदय पर विजय नही पायी , और न कभी पायेगा।  "  मालती  का खन्ना को जबाब - प्रेम की व्याख्या 
  • मुहावरो का बहुलता से USE - अपना सोना खोटा तो सोनार  दोस , 
  • लोकगीत - हिया जरत रहत दिन रैन , आम की डरिया  कोयल बोले , तनिक न आवत चैन " होरी 
  • पूँजीवाद - जिंगरी सिंह जोर से हसा -तुम क्या कहते हो पंडित , क्या तब संसार बदल जायेगा ? कानून और न्याय उसका है , जिसके पास पैसा है। 
  • मुठी भर अनाज के लिए सिलिया -मातादीन में विवाद 
  • बाल विवाह , CHILD MARRIAGE 
  • बेमेल विवाह --नोहरी -भोला ( नोहरी ने मारे जूतों के भोला की चाँद गंजी कर दी.) मीनाक्षी ने दिग्विजय पर सटा सट हंटर जमाये।  
  • मरजाद - " खेती -बारी  बेचने की मै सलाह न दूंगी। कुछ नही है , मरजाद तो है। " दुलारी होरी से कहती है। धनियां -" यह तो गौरी महतो की भलमनसी है ; लेकिन हमें  भी तो अपने मरजाद का निबाह करना है। "  जरा सोच लेने दो महराज ! आज तक कुल में कभी ऐसा नही हुआ।  उसकी मरजाद भी तो रखना है। होरी का दातादीन से कथन जब वह रूपा का विवाह रामसेवक से करना चाहते थे। 
  • जवान रूपा का किसी लड़के से कोई RELATION  न बन जाये इसका भी डर होरी को है 
  • बेटा अपने पिता को लातो से मारता है वजह पिता ने बुड्ढे होने के बावजूद दूसरी शादी कर ली ( कामता -भोला प्रकरण )
  • नारी के मन का बहुत बारीकी से चित्रण - "नोहरी मर्दो को नचाने की कला जानती थी।  अपने जीवन में उसने यही विद्या सीखी थी। "
  • मिल मजदूर -हड़ताल की समस्या 
  • ह्दय परिवर्तन -गोबर का झुनिया के प्रति , खन्ना का गोविंदी के प्रति , मेहता का मालती के प्रति 
  • प्रेमचंद की परखी नजर का एक उदाहरन -" सिलिया जब सोना के घर रात में गयी तो उसे मथुरा ने रात में दबोचना चाहा " . मानव के चरित्र का जितना सटीक चित्रण गोदान में है उतना और कहाँ। मथुरा लम्पट न था फिर भी 
  • नारी परीक्षा नही प्रेम चाहती है - मालती मेहता से 
  • पीढ़ीगत अंतर - रायसाहब - रुद्र्पाल, होरी -गोबर 
  • " संकटों में ही हमारी आत्मा को जाग्रति मिलती है बुढ़ापे में कौन अपनी जवानी की भूलो पर दुखी नही होता " मिर्जा खुर्सेद के विचार , वेशाओ की नाटक मण्डली खोलना 
  • " जो अपना धरम पाले , वही  ब्राह्मण है , जो धरम से मुँह  मोड़े  , वही  चमार "- मातादीन के कथन में सामाजिक बदलाव की झलक 
  • गोदान में तात्कालिक भारत का सम्रग चित्र , देखा जा सकता है। 
  • सारा कथानक " मरजाद " यानि मर्यादा के परिधि में घूमता है , किसान टूट गया है फिर भी " मरजाद " के लिए विचलित है।  

मंगलवार, 22 सितंबर 2015

BHARTENDU MANDAL / भारतेंदु मंडल

भारतेंदु मंडल
  •   भारतेंदु हरिश्चंद के समय लेखक और कवियों का एक GROUP तैयार हो गया था जो आपस में साहित्य लेखन पर चर्चा , परिचर्चा करता था . इसे ही हिंदी साहित्य के इतिहास में भारतेंदु मंडल कहा जाता है . 
  • इसके MEMBER में भारतेंदु हरिश्चंद , प्रताप नारायण मिश्र , बालकृष्ण भट्ट , ठाकुर जगमोहन सिंह , अम्बिका चरण व्यास , राधा चरण गोस्वामी , बद्री नारायण चौधरी 'प्रेमघन ' आदि थे . 
  • आधुनिक हिंदी साहित्य के उत्थान में इन सभी ने महती ROLE निभाई . 
  • किसी ने कविता ने तो किसी ने ESSAY , किसी ने DRAMA को क्रेंद में रख कर उस विधा का उन्नयन किया . 
  • इसी मंडल से ही ' समस्या पूर्ति " नामक विधा को गति मिली जिसमे POETS  को किसी दिए गये विषय पर / पंक्ति को COMPLETE करना होता था . जैसे -  " चित चैन की चादनी चाह भरी , चर्चा चलिबे  की चलियेया  न " प्रेमघन की प्रसिद्ध  समस्या पूर्ति है . 
  • "  यह ब्यारि तबै बदलैगी कछू, पपिहा जब पूछिहै पीव कहाँ? '' प्रताप नारायण मिश्र की  समस्या पूर्ति है . 
  • इन सभी ने बोल चाल की ब्रज भाषा का USE किया है . 
  • इस समय से PROSE में खड़ी बोली पर प्रयोग होने लगा था . 
  • WRITING SKILL

रविवार, 20 सितंबर 2015

सरस्वती पत्रिका

सरस्वती पत्रिका 
  • सन १९०० में नागरी प्रचारणी सभा , काशी की सहायता से प्रकाशन 
  • संपादक - श्याम सुंदर दास , किशोरी लाल गोस्वामी , कार्तिक प्रसाद खत्री 
  • AIM - HINDI भाषा का परिमार्जन 
  • १९०३ से इसका सम्पादन - आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी  
  • इस पत्रिका में विविध विषयो यथा जीवन चरित् , प्रकति , यात्रा वर्णन , फोटोग्राफी , विज्ञानं के बारे में भी लेख लिखने को प्रोत्साहन दिया गया।  
  • दिवेदी जी ब्रज भाषा के बजाय खड़ी बोली पर गद्य और पद्य में लिखने पर जोर दिया।  
  • भाषा का परिष्कार तथा मानकता पर जोर दिया। 
  • हिंदी की शब्दावली निर्माण पर जोर दिया। 
  • अरबी , फ़ारसी , उर्दू के प्रचलित शब्दों को HINDI LITERATURE  में शामिल करने से कोई संकोच नही किया।  
  • भारतेंदु युग में जिन नई विधाओ की हिंदी साहित्य में शुरुआत हो चुकी थी उन्हें इस काल  में " सरस्वती " के माध्यम से विकास के नई भूमि मिली।  
  • पण्डिताऊपन तथा गँवारूपन से खड़ी बोली को मुक्त कर इसे MORDERN संवेदना को व्यक्त करने सक्षम बनाया।  
  • बैगर कोचिंग कैसे सफलता पाये ?

मंगलवार, 15 सितंबर 2015

भारतेंदु युग की 'नए चाल की हिंदी'


भारतेंदु युग की 'नए चाल की हिंदी'


भारतेंदु युग को संभवत आधुनिक युग का प्रवेश द्वार भी कह सकते है,यह एक तरह से प्राचीन तथा नवीन का संधि काल था। भारतेंदु ने अपने समय की परिस्थितयों का यथार्थ चित्रण किया है।यहाँ साहित्य की भाषा, शिल्प,प्रवृतियां तथा चिंतन में वृहद बदलाव देखने को मिला।1873 में भारतेंदु जी ने कहा था की 'हिंदी नई चाल से चली है'।


1. हिंदी में खड़ी बोली का प्रयोग- मध्यकालीन युग में साहित्य की भाषा के रूप में अवधी, बृज भाषा तथा मैथिलि का प्रयोग होता था वहीं आधुनिक साहित्य या भारतेंदु युग में खड़ी बोली साहित्य में समाती गई।केवल गद्द में ही नही पद्द में भी खड़ी बोली का विकास प्रारम्भ हो गया।उनके कहने का अर्थ था की हिंदी साहित्य का स्वरूप अब निरंतर परिवर्तन की ओर बढ़ चला है।

2. जहाँ मध्यकालीन साहित्य का विषय प्रकृति, राजा, भगवान या अलौकिक संसार था वही भारतेंदु युग में साहित्य के केंद्र में मानव तथा मानवता रहा बाकि विषय मानो हाशिये पर चले गए थे।
जैसे भारतेंदु मंडल के कवि आयोद्धा सिंह द्वारा 'प्रिय प्रवास' खड़ी बोली का FIRST महाकाव्य माना जाता है। भारतेंदु की पत्रिका कवि वाचन खड़ी बोली में नवीन चेतना के प्रसार का कार्य कर रही थी।

3.NEW विषय राष्ट्रीयता की भावना तथा देशभक्ति साहित्य रचनाओं के CENTER  रहे।

 
4. हिंदी का USE साहित्य में सामाजिक कुरीतयों तथा उपनिवेशिक शासन के विरुद्ध योद्धा के रूप में किया जा रहा था।

5.. हिंदी में अब ज्ञान -विज्ञान का प्रसार बढ़ा था।
 6. साहित्य का समाजीकरण हो रहा था तथा समाज चेतना का विस्तार हो रहा था। जैसे भारतेंदु का नाटक-नील देवी, भारत दुर्दशा 7.नारी उत्थान तथा दलित जीवन आदि भी इस समय साहित्य के केंद्र में थे।
आईएएस के लिए सही कोचिंग का चुनाव कैसे करे ?
 
इस तरह खड़ी बोली तथा परिवर्तित विधाएँ तथा चेतनाएं आधुनिकता के साथ साथ भारतीय साहित्य में में प्रवेश कर गयी।हिंदी में आ रहे इन्ही परिवर्तनों के आधार पर भारतेंदु जी हिंदी के विकास को 'हिंदी की नई चाल' के नाम से उद्घाटित करते हैं।

fort william college/ फोर्ट विलियम कॉलेज

फोर्ट विलियम कॉलेज 

  • १८०० में लार्ड वेलेजली द्वारा स्थापित 
  • अंग्रेजो को INDIAN LANGUAGE  के ज्ञान पाने में सहायता हेतु 
  • प्रशासन , कानून , तथा खड़ी बोली के बारे में शिक्षा दी जाती थी। 
  • कर्मचारियों की नैतिक दशा सुधारना , देश की भाषा , रीति -रिवाज से परिचित करना , उन्हें ADMINISTRATION में कुशल बनाना इसका AIM  था 
  • कंपनी  भाषा नीति जोकि  फ़ारसी पर आधारित थी , अब हिंदी को IMPORTANCE देने लगी थी। 
  • १८२५ में विलियम प्राइस ( हिंदी विभाग के प्रमुख ) ने पहली बार हिंदी भाषा  को हिंदुस्तानी से अलग एक प्रमुख भाषा के तौर पर स्वीकारा।  
  • १८२६ में इससे जुड़े प. गंगा प्रसाद शुक्ल ने हिंदी भाषा का एक शब्दकोष तैयार किया।  
  • १८०७ में बाइबिल का हिंदी अनुवाद प्रकाशित हुआ।  
  • १९५४ में डलहौजी के समय इसे CLOSE कर दिया गया। 
  • उल्लेखनीय है कि हिंदी के प्रारंभिक विकास में , इस कॉलेज ने महती भूमिका निभाई।  
  • एकांतवास का महत्व 

सोमवार, 31 अगस्त 2015

Hindi Literature syllabus for upsc in hindi

हिंदी साहित्य – पहला पेपर – खंड क

टॉपिक १  अपभ्रंश , अवहट्ट और प्रारंभिक हिंदी का व्याकरणिक और अनुप्रयुक्त स्वरूप

टॉपिक २  मध्यकाल में ब्रज और अवधी का साहित्यिक भाषा के रूप में विकास 

टॉपिक ३  सिद्ध नाथ सहित्य , खुसरो , संत साहित्य , रहीम आदि कवियों और दखनी हिंदी में 
           खड़ी बोली का प्रारंभिक स्वरूप

टॉपिक ४  १९ शताब्दी में खड़ी बोली और नागरी लिपि का विकास

टॉपिक ५  हिंदी भाषा और  नागरी लिपि का मानकीकरण

टॉपिक ६ स्वत्रंता आन्दोलन का दौरान राष्टभाषा के रूप में हिंदी का विकास

टॉपिक ७ भारतीय संघ की राजभाषा के रूप में हिंदी का विकास

टॉपिक ८. हिंदी भाषा का वैज्ञानिक और तकनीकी विकास

टॉपिक ९  हिंदी की प्रमुख बोलियाँ और उनका परस्पर संबध

टॉपिक १० . नागरी लिपि की प्रमुख विशेषताएँ  और इसके सुधार के प्रयास तथा मानक हिंदी का                 स्वरूप 

टॉपिक ११  मानक हिंदी  की व्याकरणिक संरचना

हिंदी साहित्य पहला पेपर खंड ख

टॉपिक १. हिंदी साहित्य की प्रासंगिकता और महत्व तथा हिंदी साहित्य के इतिहास लेखन की              परम्परा

टॉपिक २ . आदिकाल सिद्ध , नाथ और रासो साहित्य , चंदबरदाई , खुसरो , हेमचंद , विद्यापति

टॉपिक ३  भक्ति काल- संत काव्य धारा , सूफी काव्य धारा , कृष्ण भक्ति धारा , राम भक्ति धारा,             कबीर , जायसी , सुर और तुलसी

टॉपिक ४ . रीतिकाल : रीति काव्य , रीतिबद्ध काव्य , रितियुक्त काव्य , केशव , बिहारी , पद्माकर           और घनानंद

टॉपिक ५ . नवजागरण , गद्य का विकास , भारतेंदु मंडल

५ ब : भारतेंदु , बालकृष्ण भट्ट और प्रताप नारायण मिश्र

५ स : आधुनिक हिंदी कविता की मुख्य प्रवत्तियां , छायावाद , प्रगतिवाद , प्रयोगवाद , नई कविता , नवगीत , समकालीन कविता , और जनवादी कविता

५ ड : मैथलीशरण गुप्त , जयशंकर प्रसाद , सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला , महादेवी वर्मा , दिनकर , अज्ञेय , मुक्तिबोध , नागार्जुन

टॉपिक ६ : कथा साहित्य

क – उपन्यास और यथार्थवाद

ख – हिंदी उपन्यासों का उदभव और विकास

ग – प्रमुख उपन्यासकार – प्रेमचंद , जैनेद्र , यशपाल , रेणु और भीष्म साहनी

घ – हिंदी कहानी का उदभव और विकास

च – प्रमुख कहानीकार – प्रेमचंद , प्रसाद , अज्ञेय , मोहन राकेश और कृष्णा सोबती

टॉपिक ७ : नाटक और रंगमच

क – हिंदी नाटक का उदभव और विकास

ख – प्रमुख नाटककार – भारतेंदु , प्रसाद , जगदीश चन्द्र माथुर , राम कुमार वर्मा , मोहन राकेश

ग – हिदी रंगमच का विकास

टॉपिक ८ : आलोचना – उदभव और विकास

          सिधान्तिक , व्यवहारिक , प्रगतिवादी , मनोविश्लेष्णवादी , आलोचना और नई समीक्षा

टॉपिक ८ ख : प्रमुख आलोचक ; रामचंद शुक्ल , हजारी प्रसाद दिवेदी , राम विलास शर्मा , नागेद्र

टॉपिक : ९ हिंदी गद्य की अन्य विधाए – ललित निबंध , रेखाचित्र , संस्मरण , यात्रा व्रतांत

हिंदी साहित्य – दूसरा पेपर – खंड क


टॉपिक ०१ . कबीर – गुरुदेव को अंग , सुमिरन को अंग , विरह को अंग

टॉपिक ०२ : सूरदास – भ्रमर गीत सार सम्पादक रामचंद्र शुक्ल

टॉपिक ०३ : तुलसीदास : रामचरित मानस ( सुन्दर कांड ) , कवितावली ( उत्तरकांड )

टॉपिक ०४:  जायसी : पद्मावत ( सिंघल द्वीप खंड ) नागमती वियोग खंड

टॉपिक ०५ : बिहारी रत्नाकर

टॉपिक ०६ : मैथली शरण गुप्त : भारत भारती ( १९१२ )

टॉपिक ०७ : जयशंकर प्रसाद – कामायनी ( चिंता और श्रधा सर्ग )

टॉपिक ०८ : सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला : राग विराग ( राम की शक्ति पूजा और कुकुरमुत्ता )

टॉपिक ०९ : दिनकर : कुरुक्षेत्र

टॉपिक १० : अज्ञेय – आंगन के पार द्वार ( असाध्य वीणा)

टॉपिक ११ : मुक्तिबोध – ब्रम्ह राक्षस ( चाँद का मुख टेढ़ा है )

टॉपिक १२ : नागार्जुन : बादल को घिरते देखा है , अकाल और इसके बाद , हरिजन गाथा


हिंदी साहित्य – दूसरा पेपरखंड ख


1.       भारतेंदु हरिश्चंद – भारत दुर्दशा

2.       मोहन राकेश – अषाढ़ का एक दिन

3.       रामचंद शुक्ल : चिंतामणि ( भाग १ ) , कविता क्या है , श्रधा भक्ति

4.       निबंध निलय – बालकृष्ण भट्ट, प्रेमचंद , गुलाब राय , हजारी प्रसाद दिवेदी , राम 
      विलास शर्मा , अज्ञेय , कुबेर नाथ राय

5.       प्रेमचंद : गोदान , प्रेमचंद की सर्वश्रेद्थ कहानियाँ सम्पादक अम्रत राय

6.       स्कन्दगुप्त – प्रसाद

7.       दिव्या – यशपाल

8.       मैला आंचल – रेणु

9.       एक दुनिया  समानांतर – राजेद्र यादव

10.    महाभोज : मन्नू भंडारी




एक प्रेरणादायक पोस्ट



रविवार, 30 अगस्त 2015

famous stories of premchand in hindi ( FOR UPSC )

मंजूषा : प्रेमचंद की सर्वश्रेस्ठ कहानियाँ ( अम्रतराय द्वारा सम्पादित ) 



  1. कफन 
  2. पूस की रात 
  3. बूढी काकी 
  4. ईदगाह 
  5. गुल्ली डंडा 
  6. बड़े घर की बेटी 
  7. सदगति 
  8. निमंत्रण 
  9. सभ्यता का रहस्य 
  10. अल्गोझ्या 
  11. नया विवाह 
  12. रानी सारंधा 
  13. शतरंज के खिलाडी 
  14. मुफ्त का यश 
  15. दूध का दाम 
  16. गिला  

' कहानी में नाम और सन के सिवा और सब कुछ सत्य है , और इतिहास में नाम और सन   सिवा  कुछ भी सत्य नही  ' 
' हर एक काल्पनिक रचना में मौलिक सत्य मौजूद रहता है। " 

प्रेमचंद ने अपनी कहानीयों  में किसी न किसी मनोवैज्ञानिक रहष्य को खोलने का प्रयास किया।  वह कहानी के माध्यम से सत्य , निस्वार्थ सेवा , न्याय आदि देवत्त्व के जो अंश है वो जगाना चाहते थे।  वह मानते थे कि  सांस्कृतिक विकास  के लिए सरल साहित्य उत्तम कोई साधन नही है। इस लिए उनकी कहानियों में भाषागत सरलता है। सरल शब्द , सरल वाक्य -विन्यास , इसके चलते वह अपने पाठको से सहजता से संवाद कर पाते है। भाषा सरल , सजीव और व्यवहारिक। अंग्रेजी , फ़ारसी तथा उर्दू के प्रचलित शब्दों का प्रयोग। भाषा का सटीक , सार्थक और व्यंजनपूर्ण प्रयोग।

  • अधिकतर कहानियों में निम्न व माध्यम वर्ग का चित्रण
  • विषय और शिल्प की विविधता 
  • किसान , मजदूर , दलित  आदि की समस्याओ का मार्मिक चित्रण 
  • युग प्रवर्तक रचनाकार 
  • पात्र  अक्सर वर्ग के प्रतिनिधि के तौर पर आते है 
  • हिंदी कथा साहित्य को मनोरंजन के स्तर से उठाकर जीवन की अनुभूितियों से जोड़ते है








सोमवार, 24 अगस्त 2015

एक दुनिया समानांतर -राजेन्द्र यादव


संपादक - राजेंद्र यादव 

                          एक दुनिया समानांतर,  राजेद्र यादव द्वारा सम्पादित नयी कहनियों का सबसे चर्चित संग्रह है . इसमें एक लम्बी भूमिका लिख कर राजेदं जी ने नयी कहानी के लिए के वैचारिक धरातल दिया .  इसमें आजादी के बाद के नये कलेवर वाले लेखको की कहानियाँ है . हमे सबसे पहले यह जानना होगा कि नयी कहानी से क्या मतलब था . यह कहानिया किन मायने में नयी थी . विषय , भाषा, लेखन शैली , संवाद, संवेदना , यथार्थ, परिवेश , वस्तु शिल्प  के स्तर पर यह कहानी अपने से पूर्व की कहानी से बहुत भिन्न थी . 

आजादी से पूर्व की कहानी विशेष कर प्रेमचंद , प्रसाद , आदि की कहानी में आदर्श वाद , नायक/ नायिका की उपस्थिति होती थी . नयी कहानी में आदर्श को एक तरह रख कर यथार्थवाद को क्रेंद में रख कर कहानी लिखी गयी . आजादी के बाद किस तरह से मध्य वर्ग के सपने टूटते है , रिश्ते मतलब पर आधारित हो जाते है , नयी कहानी के विषय है . 



  1. इस संग्रह की पहली कहानी " जिन्दगी और जोक " अमरकांत के प्रसिद्ध कहानी है . यह कहानी समाज के खोखलेपन का जीवंत दस्तावेज मानी जाती है . समाज के हाशिये पर रहने वाले का किस तरह से शोषण होता है . इस सब के बावजूद रजुवा अपनी  जिन्दगी में जीने के मायने तलाशता रहता है . 
  2. मछलियाँ -उषा प्रियंवदा , कहानी में प्रेम की प्रतिस्पर्धा  दिखाई गयी है . 
  3. मेरा दुश्मन - कृष्ण बलदेव वैद 
  4. बादलों के घेरे -कृष्ण सोबती 
  5. खोई हुई दिशाएं -कमलेश्वर 
  6. गुल की बन्नो - धर्मवीर भारती गुलकी बन्नो में धर्मवीर भारती ने नारी के मन की व्यथा खोलते नजर आते है . पति कितना ही सताये , फिर भी पत्नी के नजर में वो म्ह्त्वपूर्ण बना रहता है .   
  7. परिंदे - निर्मल वर्मा - कई आलोचकों ने इस कहानी से नई कहानी की शुरूआत मानी  है। इस कहानी में नायिका लतिका , अपने अतीत के प्रेम को विस्मृत नही कर पाती है। अतीत की यादों में , अपने वर्तमान को सार्थक समझती है।  
  8. सामान- प्रयाग शुक्ल 
  9. तीसरी कसम उर्फ़ मारे गए गुलफाम -फणीस्वर नाथ रेणु 
  10. चीफ की दावत - भीष्म साहनी 
  11.  यही सच है -  मुन्नू भंडारी यही सच है -( मन्नू भंडारी ) में नायिका अंत तक अपने वास्तविक प्यार को लेकर उलझी रहती है . उसे अपने प्रेमी और अपने मित्र के बीच का भेद समझने में मुश्किल होती है . 
  12. दूध और दवा - मार्कण्डेय 
  13. एक और जिंदगी - मोहन राकेश एक और जिन्दगी -मोहन राकेश  की सबसे महत्वपूर्ण कहानी मानी गयी है . इसका नायक अपनी पहली शादी फिर तलाक , दूसरी शादी में उलज कर रह जाता है . 
  14. विजेता -रघुवीर सहाय 
  15. शबरी - रमेश बक्शी 
  16. टूटना - राजेंद्र यादव टूटना -राजेद्र यादव ने एक पुरुष और स्त्री के अहं के टकराव को दिखाया है . कहानी के अंत में नायक जीत कर भी अपनी हार महसूस करता है . 
  17. सेलर - रामकुमार 
  18. एक नाव  के यात्री - शानी 
  19. नन्हों - शिव प्रसाद सिंह 
  20. बदबू - शेखर जोशी 
  21. प्रेत मुक्ति - शैलेश मटियानी 
  22. भोलाराम का  जीव - हरिशंकर परसाई  
  • स्वत्रंत भारत का मोहभंग तथा निराशा इन कहानी का केद्रीय तत्व है . 
  • भोगा हुआ यथार्थ 
  • कहानी के माध्यम से जीवन , जीवन के माध्यम से कहानी . 


अगर आप हिंदी साहित्य विषय को लेकर upsc की तैयारी कर रहे हैं , तो आप अपने प्रश्न कमेंट में पोस्ट कर सकते हैं , मै उनका जबाब देने की कोशिस करूँगा। 


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