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बुधवार, 31 अक्टूबर 2018

A CUP OF COFFEE


अ कप ऑफ़ कॉफी 


" चाय/कॉफी सिर्फ पेय पदार्थ नहीं है वरन मैत्री , अपनत्व , घनिष्ठता जतलाने के उपक्रम भी है। "

इस साल गर्मियों में मैं पुणे में था। वहाँ से महाबळेश्वर घूमने गया था। पहले की एक पोस्ट (पुरन्दर का किला ) में इसका जिक्र किया है कि यह यात्रा पुणे के एक मित्र नवनाथ गिरे के साथ बाइक पर की थी। जब मैं पहाड़ियों के बीच से गुजर रहा था तो मैंने एक साइन बोर्ड देखा - भारत का पहला पुस्तक गावँ भिलार ।  

मुझे कुछ कुछ इसके बारे में याद आया। वास्तव में पुस्तक गांव से क्या आशय था मुझे पता न था पर यह जानकर बहुत खुशी हो रही थी कि भिलार गांव मेरे रास्ते में ही था। यह एक प्रकार से बोनस था मैं तो बस महाबळेश्वर घूमने जा रहा था बीच में पुस्तक गांव मिलना सुखद आश्चर्य सरीखा था। वैसे भी जब यह इस तरह की बात हो कि भारत में पहला , तो उत्सुकता और बढ़ जाती है कि आखिर वहाँ है क्या। 

बाइक होने के अपने फायदे थे जहाँ मन हो वहाँ रुको, जिधर जाना है उधर जाओ। पुस्तक गाँव पंचगनी पहाड़ियों के पास था। यह मुख्य रास्ते से हट कर था , मुझे लगता है कि 3 या 4 किलोमीटर भीतर होगा। गाँव पहुंचने पर मुझे कुछ बोर्ड दिखे , उनको फॉलो करते हुए हम आगे बढ़े। उधर इतनी चढ़ाई थी कि दोनों लोग एक साथ बैठकर बाइक से चढ़ पाना मुश्किल था। ऊपर चढ़े तो कुछ दिखा नहीं , एक और बोर्ड था। लगा कि वापस लौट  लिया जाये क्योंकि थोड़ी थोड़ी बारिश भी होने लगी थी , ज्यादा देर करने का मतलब था कि महाबळेश्वर के लिए देरी करना। बोर्ड को फॉलो करते आगे बढ़े तो एक सूंदर सा मकान दिखा। 

बाहर एक नौकर कार धो रहा था। हम लोगों ने बाइक खड़ी की और आने का उद्देश्य बताया। दरअसल उस समय तक हमे जरा भी पता नहीं था कि पुस्तक गांव का मतलब क्या था। इस निर्जन में बने सुंदर बड़े  घर में पुस्तकों से जुड़ा  कुछ नजर न आ रहा था। नौकर ने इंतजार करने को बोला।



तब तक मकान मालिक बाहर आ गए। उनका नाम अनिल भिलारे था।  मकान के एक कोने में एक अच्छा सा कमरा था जहाँ बड़ी आरामदायक कुर्सी पड़ी थी। अनिल भिलारे  जी ने पुस्तक गांव का उद्देश्य बताया। 

उनके अनुसार महाराष्ट्र सरकार के किसी मंत्री ( शायद संस्कृति ) ने अपनी ब्रिटेन यात्रा के दौरान ऐसा ही गांव देखा था। ब्रिटेन में हे -ऑन- वे नामक जगह का विकास कुछ ऐसा ही किया गया है। इस गाँव में लगभग 25 लोगों को तमाम किताबें व आधारभूत ढांचा यथा अलमारी , फर्नीचर आदि के लिए सरकारी सहायता उपलब्ध कराई गयी है। कही पर नाटक , किसी घर में कविता , संगीत आदि के लिए ऐसे इंतजाम किये गए है।

भिलारे जी ने अपने घर में परीक्षा की तैयारी से जुडी किताबें के लिए व्यवस्था की थी। उनका कहना था कि आस पास के गाँव के होनहार लड़कों को एक जगह पर परीक्षा विशेष कर महाराष्ट्र सिविल सेवा  से जुडी तमाम किताबें मिल जाये , उनका यही उद्देश्य था। नवनाथ जी जब जिक्र किया कि मैंने संघ लोक सेवा आयोग की परीक्षा पास की है तो वो बड़े खुश हुए। मैंने उनसे कहा कि अगर उनकी इच्छा हुयी और मेरा इधर प्लान बना तो मैं वहां के युवाओं को सिविल सेवा के लिए सहर्ष लेक्चर दे सकता हूँ।


( बीच में अनिल भिलारे जी, पुणे के मित्र नवनाथ और मैं  ) 

 दरअसल उस जगह गए तो अनजान बनकर थे पर बात कुछ ऐसी छिड़ी कि लगा हम वर्षो के मित्र है। अनिल जी वास्तुकार हैं, युवा अवस्था में उन्होंने खूब मेहनत की , पैसे कमाए। पिछले कुछ समय से उनको बैकबोन की प्रॉब्लम है इसलिए अपने काम से अपने को अलग कर लिया। उनकी बेटियाँ किसी अच्छी जगह पढ़ रही है। अब वो अपने कार्य से मुक्त होकर यहां समाज सेवा के साथ सकून की जिंदगी जी रहे है। यह उनका पैतृक घर था। घर के सामने ही उनका स्ट्राबेरी का बाग था।

चारों तरफ हरियाली , असीम शांति की जगह थी वो। तमाम बातें हुयी , साथ में फोटो खींची गयी। हमने चलने की इजाजत मांगी तो उन्होंने कहा " एक कप कॉफी तो पीकर जाइये " और अपने पत्नी को आवाज दी कि कॉफी बना लाओ। थोड़ी न नुकुर के बाद हम तैयार हो गए। सच कहूँ उस वक़्त मुझे , इस अपनत्व को लेकर ख़ुशी हो रही थी। अपने घर से कितनी दूर , इस अनजाने जगह पर इस तरह की मैत्री हो गयी। 

चाय / कॉफी सिर्फ पेय पदार्थ नहीं है वरन मैत्री , अपनत्व , घनिष्ठता जतलाने के उपक्रम भी है। अनिल जी का रोड पर कहीं गेस्ट हॉउस/मिनी होटल  भी है उन्होने वहाँ रुकने का ऑफर भी दिया। मैंने उनको धन्यवाद दिया और बोला फिर कभी आना होगा तो जरूर रुकेंगे।

© आशीष कुमार , उन्नाव , उत्तर प्रदेश। 

गुरुवार, 19 जुलाई 2018

Purandar Fort, Pune


पुरन्दर का किला नहीं देखा तो कुछ नहीं देखा (01 )

आशीष कुमार 

सिविल सेवा में जब आखिरी एटेम्पट देना होता है तो बहुत सी चीजे मन में चलती रहती है , खास तौर पर जब आप लगातार मैन्स और इंटरव्यू के चक्र से गुजर चुके हो। मेरे मन में भी तमाम चीजे चला करती थी। उन सबके बीच एक ख्याल रह रहकर  जरूर आता कि एक बार सारे चरण पुरे हो जाये तो मुक्ति मिले और मैं खूब दूर घूमने निकल जाऊ। सिलेक्शन हो या न हो , बस अब घूमना है। मन में विचार आता था कि मैं ग्रामीण पर्यटन में रुझान के चलते राजस्थान के किसी गाँव में घूम रहा हूँ। मैंने पुरानी पोस्ट में , एक बात पर जोर दिया है कि मुझे अक्सर भविष्य की चीजों का आभास हो जाता है। मन में राजस्थान घूम रहा था पर यह महाराष्ट्र के गाँव थे जहाँ मैं वास्तव में गया था।  

पिछले महीने , पुणे से एक यूनिवर्सिटी से सिविल सेवा में सफलता के चलते बुलावा आया तो लगे हाथ वहाँ घूमने का प्लान बना लिया। मेरी फेसबुक की मित्रता सूची बड़ी लम्बी और विस्तृत है। मैंने फेसबुक में लिखा कि पुणे आ रहा हूँ और कोई मिलना चाहता है ? इस तरह मुलाकात हुयी नवनाथ गिरे जी से। उनसे कभी कोई बात न हुयी थी , न कोई परिचय था।  सच कहूँ तो मुझे याद भी नहीं कि उनसे कब दोस्ती हुयी थी. इसके बावजूद क्या खूब आतिथ्य किया। घूमते तो बहुत से लोग है , पर  यायावरी करना सबके बस की बात नहीं होती। लोकल व्यक्ति के होने से बड़े फायदे होते है , खास तौर पर अगर आपको वहाँ की भाषा , संस्कृति , इतिहास , भूगोल के बारे में अच्छे से जानना हो। नवनाथ जी ने विशेष रूप से मेरे लिए दो दिन की छुट्टी ली और मुझे जगह जगह घुमाते रहे।    

पुणे में बड़े बस अड्डे का नाम स्वारगेट (जब तक वहाँ नहीं पहुँचा तब तक बहुत परेशान था कि स्वारगेट आखिर क्या चीज है ?) है।  वहाँ नवनाथ जी के साथ भोर के लिए नॉन स्टॉप बस ली। उन्होंने कहा कि- सर कार भी है पर मैंने बाइक को ही वरीयता दी।  झूठ मूठ को काहे ख़र्च बढ़े और दो लोगो के लिए बाइक भी अच्छा साधन है।  पहले दिन महाबळेश्वर गए जिसका विवरण किसी अन्य पोस्ट में करूंगा आज दूसरे दिन की यात्रा विवरण लिखने का मन है। 

पहाड़ी जगह पर बाइक से 100 /150  किलोमीटर चलना और घूमना काफी थकानदायक होता है , इसलिए महाबळेश्वर से लौटने पर काफी थकान थी। रात में बड़ी अच्छी नींद आयी। अगर आपको  रोटी का स्वाद वाली पोस्ट याद हो , तो यह वही रात थी। अगले दिन , नवनाथ गिरे जी कहा कि आज पुरन्दर का किला देखने चलना है , रास्ते में एक डैम , कुछ नए मंदिर , कुछ ऐतिहासिक मंदिर भी देखना था। सुबह जल्दी निकल लिए पहले भोर में एक ऐतिहसिक जगह देखी। नाम याद नहीं आ रहा। कोई हवेली थी। जब पहुँचा तो वहाँ कोई शूटिंग खत्म हुयी थी। हवेली अक्सर बाहरी लोगों के लिए बंद रहती है , मैं सौभाग्यशाली था जो अंदर तक देखने का अवसर पाया। लकड़ी का काम बहुत सुन्दर है। शूटिंग वाले अपना पैकअप करके जा चुके थे और अपने पीछे बहुत गंदगी छोड़ गए थे।  चौकीदार , भून- भुना रहा था। मैंने उसे सहानुभूति के दो शब्द उससे कहे और निकल आया। बाहर एक गेट बना था जिस पर राजा रघुनाथ राव लिखा था अंदर तहसीलदार का भी ऑफिस था जो हवेली वालों ने दान दे दिया है।
#हवेली

रास्ते में बालाजी का काफी बड़ा मंदिर था। चुकि मै थका था , इसलिए किला देखने का ही ज्यादा मन था। नवनाथ जी कहा अभी जल्दी है इसलिए मंदिर भी चला गया। सुबह के  ९  बजे थे। मंदिर में भीड़ जरा भी नहीं थी पर वहां की व्यवस्था देखा , लग रहा था यहाँ हजारों आदमी आते है। मंदिर में निःशुल्क भोजन की व्यस्था थी। टिंडे (कुछ और भी हो सकता है , ठीक से समझ नहीं पाया ) की रसेदार सब्जी , चावल और साउथ की चटनी। खाना बड़ा ही साफ सुथरा,स्वादिष्ट , सुपाच्य था। दिल खुश हो गया। उनकी कैंटीन बहुत ही व्यस्थित थी।  

#बाला जी का मंदिर 


जारी>>>>> 

© आशीष कुमार , उन्नाव।  

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