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रविवार, 11 अक्टूबर 2015

NOVEL Mahabhoj : BY Mannu bhandari


महाभोज 


  • 1979  में मन्नू भंडारी द्वारा रचित , 
  • रचनाकार ने अपने परिवेश के प्रति ऋण शोध के तौर पर लिखा है -
  • " घर में जब आग लगी तो। …… "  उस समय के समाज -राष्ट का स्पष्ट चित्र खीचने की आकांक्षा 
  • POLITICS , अपराध , MEDIA , POLICE की साठ -गाठ से किस तरह से लोकत्रांतिक मूल्य विघटित हुए है इसका सटीक वर्णन। 
  • " महाभोज " का अर्थ किसी की मौत पर दिए गए भोज  से होता है। इस NOVEL में बिसू  नामक  दलित की मौत  होती है। 
  • पर महाभोज उसकी मौत का न होकर , आजादी के बाद लोकत्रांत्रिक मूल्य , SOCIAL VALUE के विघटन का है।
  • INDIAN POLITICS का नग्न यथार्थ , राजनीति में जाति महत्व , 
  • राजनीति में अवसरवादिता ( राव , चौधरी ) , ELECTION में धन -बल का प्रयोग ( घरेलू कार्य योजना , सुकुल बाबू की बाद वाली सभा में रूपये और खाने के नाम पर भीड़ जुटाना )  , अयोग्य उम्मीदवार ( लखन ), पुलिसिया रॉब ( थानेदार ) , बयान लेने का दिखावा ( सक्सेना ) , मीडिया का बिकना ( मशाल के सम्पादक दत्ता बाबू  ) , बुद्धिजीवी वर्ग की  निष्क्रियता ( महेश बाबू ), दलित चेतना ( बिसू , बिंदा ) , शोषक वर्ग ( जोरावर सिंह ) , परजीवी वर्ग ( बिहारी भाई , काशी , पांडे जी ),  पदलोलुप नौकरशाह ( सिन्हा ) , विपक्ष की स्वार्थपूर्ण नीति ( सुकुल ) , ईमानदार राजनीति करने वाले का कोई मूल्य नही ( लोचन बाबू ) , सत्ता दल में की शक्ति एक व्यक्ति में , गैर लोकत्रांत्रिक ( दा साहब ) , 
  • संवाद बेहद चुस्त , चरम नाटकीयता की व्याप्ति , उचित गति में NOVEL आगे बढ़ता है।  
  • यथार्थ के चित्र होने के चलते नावेल में नकारात्मकता ज्यादा जगह दिखती है , इसके बावजूद , सक्सेना के माध्यम से एक आशा अभी जी जीवित है।  " अग्निलीक जो बिसू , बिंदा के बाद खत्म नही होती वरन सक्सेना में समा जाती है। 
  • लेखिका ने उन चिरकालिक मुद्दों को उठाया है जिससे नावेल की प्रासंगिकता सदैव बनी रहेगी। 
  •   " सरोहा " गावं पर शहर से नियंत्रित 
  • "मशाल" , गोदान के " बिजली " से तुलनीय  
  • लोचन बाबू  , मैला आंचल के " बावनदास " से तुलनीय , दोनों ही आदर्शवादी पर मुख्य धारा से परित्यक्त 
  • गोदान के " राय साहब " मैला आंचल के " विश्वनाथ " और महाभोज के " जोरावर सिंह " में समता , तीनो ही जनता का शोषण कर रहे है बस स्वरूप अलग अलग है।  
  • हरिजनों को जलाये जाना का इशारा , नागार्जुन ने भी ऐसी ही INCIDENT पर " हरिजन गाथा " लिखते है।    



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