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गुरुवार, 29 अप्रैल 2021

with my eyes

मेरी नजर में तुम 

तुम्हारी सूरत
जैसे सौम्य मूरत

तुम्हारी आँखे
मीठा सा शर्बत

तुम्हारी नजर
कतई जहर

तुम्हारे काले बाल
जैसे रेशमी जाल

तुम्हारी मुस्कान
बसती मेरी जान

तुम्हारे लब
लाल गुलाब
तुम्हारी सांसे 
दहकती आग

तुम्हारी बातें
शुद्ध शहद

तुम्हारी कमर
नदी का मोड़

तुम्हारे पाव 
पीपल की छांव 

तुम्हारा बदन
अनमोल रतन

तुम्हारा अहसास 
नाजुक खरगोश

तुम्हारा प्यार
असीम ताकत

©आशीष कुमार, उन्नाव
28 अप्रैल 2021


शुक्रवार, 2 अप्रैल 2021

Last Meeting

आखिरी मुलाकात

सुनों
एक दिन
अनायास ही कहोगी
कि अब यह हमारी
अंतिम मुलाकात है

याकि फिर 
एक रात देर में
करोगी आखिरी फ़ोन
बतलाने के लिए
कि अब न हो सकेगी
कभी हमारी बात 
उस दिन, उस रात
के संवेदनशील क्षणों 
में आपको जरा 
भी ख्याल न रहेगा
कि कैसे तुम
मिटा रही हो
एक अमिट प्रेम को

अपने सुखद भविष्य
के सुखद सपने
देखते हुए,
 जब तुम आखिरी
विदा लेने की
असफल कोशिस
कर रही होगी

उस वक़्त
मैं चुपचाप
खामोशी से
तुम्हारे उस 
आखिरी फैसले 
पर सहमति दूँगा
हमेशा की तरह

क्योंकि मैं
जानता हूँ
कि 
अनन्य प्रेम
को यूँ ही एकायक
खत्म न किया
जा सकता है

और प्रेम
में आखिरी
बात, मुलाकात
जैसा कुछ न होता है

सुनो प्रिय
तुम्हारे आखिरी
फैसले पर मेरी
खामोश सहमति
हमेशा बाध्य 
करती रहेगी

तुम्हें वापस
लौटने को
अनन्य प्रेम
की अनन्त, 
असीम गलियों में। 

©आशीष कुमार, उन्नाव
दिनांक- 02 अप्रैल 2021। 



बुधवार, 29 जुलाई 2020

तुम से दूर

यहाँ तुम से दूर 


मैंने यहाँ 
तुम से बहुत दूर
आकर जाना 
कि तुम मेरे लिए
 क्या हो,

यहाँ इतनी दूर
आकर ही समझा
कि तुम ही समझती हो
मुझे सबसे बेहतर ।

यहाँ आकर 
लगा कि जैसे
कोई मरते वक्त
याद करता है
अपने सबसे करीबी को
वैसे ही तुम मुझे याद आयी।

यही आकर समझा
कि तुम क्या हो मेरे लिए
याकि तुम्हारा होना
कितना महत्वपूर्ण है
मेरे जीवन में।

यहाँ पर आकर
खुले प्रेम के गहन अर्थ
यहाँ याद आयी 
तुम्हारी भीनी महक, 
तुम्हारी कोमल बाहें
तुम्हारे रेशमी बाल
तुम्हारी वो गोद
तुम्हारा गहरा स्पर्श
तमाम गर्म चुम्बन।


( पोर्ट ब्लेयर से, 31 जनवरी, 2020 )
© आशीष कुमार, उन्नाव। 

मंगलवार, 28 जुलाई 2020

love at corona time

कोरोना के समय प्रेम 

प्रिय मैंने कभी न सोचा था
कि मुझे करनी पड़ेगी 
इतनी लंबी प्रतीक्षा
गिनना पढ़ेगा क्षणों को

याद करता हूँ
जब जब पुरानी मुलाकातों को
बहुत याद आती है
तुम्हारी हर पल चेहरे पर
खिलने वाली मुस्कान 

याद आता है 
उन पलों का सबसे खास हिस्सा
जब हम डूबे रहते थे एक दूजे मे
तब न जाना था कि
हमें यूँ भी बिछड़ना पड़ेगा
इतने लंबे वक्त के लिए

© आशीष कुमार, उन्नाव
26 जून 2020।


मंगलवार, 14 अप्रैल 2020

Talk vs meeting

बात बनाम मुलाकात

प्रियतमा 
तुमने जो कहा
बात होते रहने 
जरूरी है बेहद

मैंने कहा बात के साथ
मुलाकात भी जरूरी है
समय समय पर

बात होने पर
भले ही तुम्हारे मधुर शब्द
मेरे अंतस में
घोलते है प्रेमरस

पर मुलाकात होने पर
तुम्हें नजरों से छुआ जा सकता है
आँखों से पिया जा सकता है
चंद पलों में 
असीम जिया जा सकता है

मादकता से भरपूर
नशे से चूर, 
तुम्हारे चन्दन बदन पर
अंगुलियों से बनाये जा सकते हैं
तमाम चमकते चाँद

पकड़ी जा सकती है पोरों से
तमाम जिंदा मछलियाँ
उगाये जा सकते है 
लाल दहकते गुलाब

© आशीष कुमार, उन्नाव।
14 अप्रैल, 2020 (लॉक डाउन दुबारा बढ़ने का दिन)



बुधवार, 1 अप्रैल 2020

POEM : HOPE

उम्मीद 

इन दिनों जबकि 
सारी दुनिया 
परेशान,बेबस व मजबूर
सी है,

इन दिनों जबकि
आदमी बेहद परेशान,
भयभीत है 
और उसको भरोसा
न रहा अपने जीवन का

ऐसे उदासी, बेजान
खामोशी भरे दिनों में
भी मैं रहता हूँ
प्रफुल्लित,जीवन्त 
उत्साह से भरा

वजह केवल इतनी
कि इनदिनों के गुजरने 
के बाद मुझे उम्मीद है
कि तुम एक रोज मेरे पास
आओगी उतने ही करीब
जितना इन दिनों के पहले थी

उम्मीद है कि फिर से
स्पर्श कर सकूँगा
तुम्हारे मन को 
अन्तःस्थल को

उम्मीद है कि
देखूँगा तुम्हारी झील सी
गहरी आँखों में,
अपने लिए
पहली सी चमक

© आशीष कुमार, उन्नाव
1 अप्रैल, 2020।


शुक्रवार, 17 जनवरी 2020

repetitions

#दोहराव के मायने 

तमाम बार जब तुम्हें
बुलाता हूँ अपने करीब
नहीं बेहद करीब 
और दोहराता हूँ 
वही बातें
कि तुम मुझे 
बेहद पसंद हो

या कि मैं तुम्हें बहुत 
ज्यादा चाहता हूँ,
करता हूँ जुनून से
शिद्दत से, तुमसे प्यार

तब तुम मेरे इन 
दोहराव से कभी
न परेशान होना
या कि ऊबना

इन तमाम दोहराव
में निहित अर्थ 
यही है कि तुम 
मेरे लिए हमेशा 
रहोगी सर्वोपरि
और मेरे तुम्हारे प्रति प्रेम
कभी न होगा जीर्ण 

© आशीष कुमार, उन्नाव।
( 17 जनवरी 2020 )

with you

#तुम्हारे साथ

मैं चाहता हूँ रहना
 हमेशा ही तुम्हारे साथ 
मैं चाहता हूँ जुनूनी प्रेम
ताउम्र तुम्हारे साथ,

मैं चाहता हूँ जीना भरपूर 
हर पल, हर क्षण
केवल व केवल 
तुम से ही , प्रिय केवल तुम्हारे साथ।

©आशीष कुमार , उन्नाव।
(17 जनवरी, 2020)

Death of love

#ठंड

कॉफी पीने के बाद वो बाहर खुली छत के किनारे खड़े थे। कई दिनों से वो मिल रहे थे तमाम बातें भी करते। दोनों ही एक दूसरे की बातें बड़े गौर से सुनते, प्रायः उनकी आंखों में खुशी की एक चमक दिखती। 
वो काफी देर से बाहर खड़े थे। लड़की अपनी धुन में बातें किये जा रही थी, लड़का हूँ हा करते हुए वो उसके गोरे, नाजुक हाथों को गौर से देख रहा था। वो बहुत देर से उन हाथों को छूना चाहता था पर अजब कसमकश थी। वो छू न पा रहा था। वो शंकित था कि पता नहीं उसके भावों को कहीं गलत न समझा जाय।लड़की ने अपने दोनो हाथ जीन्स की पॉकेट में डाल रखे थे।

लड़के से जब रहा न गया, उसने पूछा कि तुम्हारे हाथों को काफी ठंड लग रही है क्या ? 
"हां,आज काफी ठंड है । " कहते हुए उसने अपने हाथों को और भीतर कर लिया।

खलील जिब्रान ने कहा है कि जो कहा गया पर समझा नहीं  गया और जो समझा गया पर कहा न गया के बीच में तमाम मुहब्बत की मौत हो जाती है।

(17 जनवरी, 2020)
© आशीष कुमार, उन्नाव।

गुरुवार, 9 जनवरी 2020

poem :fresh rose

कविता : ताजा गुलाब 

"जब तुम मेरी करीब होती हो
मुक्त मन से, आवरण रहित,
तुम मुझे एक ताजे गुलाब 
सरीखी लगती हो
अति कोमल, नाजुक 
भीनी भीनी खुसबू से भरी"

10 जनवरी, 2020,😌
© आशीष कुमार, उन्नाव

शनिवार, 28 दिसंबर 2019

kavita 05: Hisab - Kitab

कविता 5 : हिसाब किताब 

जब मैं कहता हूँ कि
तुम्हें पाने से पहले खो चुका हूँ
तो अक्सर तुम नहीं समझ पाती
कि मेरे कथन का निहितार्थ,
दरअसल तुम ज्यादा दूर की 
सोचती ही नहीं,
नहीं बनाती हो लंबे चौड़े 
सुव्यवस्थित, सौदेश्य नियम
तुम बस वर्तमान में जीती हो
हर पल, हर क्षण का रखती हो
पूरा हिसाब - किताब । 

मैं बनाता हूँ योजनाएं,
भविष्य के लिए तमाम नियम 
सोचता हूँ हर पहलू को
विचार करता हूँ नियति व प्रारब्ध पर
मनन करता हूँ 
तुम्हारे होने या न होने पर
इसलिए मेरे पास वर्तमान का कोई
हिसाब किताब न होता है। 

प्रेम दोनों को है
बहुत गहरा,नियत व स्थायी
बस हिसाब किताब जरा सा
अलग थलग सा है। 

28 दिसंबर , 2019
©आशीष कुमार, उन्नाव, उत्तर प्रदेश।

रविवार, 31 जनवरी 2016

an ias motivational story in hindi


डेल्ही का मुखर्जी नगर ......और इलहाबाद .......यह दोनों ही जगह मुझे बहुत प्रिय रही है पर अफ़सोस यहाँ पर कभी लम्बा प्रवास नही रहा बस एक या २ दिन . युवा शक्ति को समझना .. अपनी बारीक़ नजर से देखने के लिए यह सबसे माकूल जगह है ..
सफल – असफल लोगो की कितनी ही कहानियाँ ..कितने ही मिथक .. किस्से इतने रोचक रोचक कि बस आप सुनते ही रहे .

                                        



आज एक भूली – बिसरी कहानी याद आ रही है .. जो किसी ने कही सुनी थी और मुझे सुनाई थी तो इस सुनी सुनाई कहानी की शुरआत होती है डेल्ही के मुखर्जी नगर से ..
कथानायक डेल्ही में रह कर काफी दिनों से तैयारी कर रहे थे कभी pre से बाहर होते तो कभी मैन्स से तो कभी इंटरव्यू से .. काफी हताश हो चुके थे .. तभी उनके जीवन में प्रेम का अंकुर जगा .. उन्हें अपनी नायिका मिल गयी .. तो कथानायक सीनिएर थे और नायिका जूनियर थी .... नायक सारा साल नोट्स , gudience ,, नायिका को उपलब्ध कराते रहे .. और जब अंत में रिजल्ट आया तो आप समझ सकते थे क्या हुआ होगा ... नायिका की रैंक १०० के अंदर थी .. आईएएस बन गयी थी .और कथानायक COMPULSORY  इंग्लिश में फ़ैल हो गये थे ( सबसे से निराशाजनक समय )
इसी दौरान नायक ने किसी मित्र के रूम में रोते हुए अपनी दुःख भरी कहानी शेयर की थी संयोगवश उस रूम में वो साथी भी मौजूद थे जिहोने ने यह कथा हमे सुनाई थी ..
कहानी का यह हिस्सा काफी मार्मिक है .. नायक जब नायिका को बधाई देने गये तो उसने बहुत बेरुखी दिखाई इतना अपमान किया कि वो बेचारे उसी शाम अपने घर कि टिकट कटा कर हमेशा के लिए डेल्ही छोड़ने का मन बना लिया . अपनी बोरिया बिस्तर ले कर स्टेशन भी पहुच गये . ट्रेन में भी बैठ गये तब उनके मन में एक विचार आया इस तरह से वो हार कर , अपमानित हो कर लौट नही सकते ... वो ट्रेन से उतर आये ( निश्चित ही उनके मन में उस समय फैसल खान जैसे विचार रहे होंगे – बाप का,, दादा का ,,, सबका बदला लेगा तेरा फैसल ..)
आगे की कहानी किसी हीरो सी रही ....... उनकी रैंक पता कितनी थी ......अंडर -१० ............ तो इस तरह से उनके दिन बदले ......यह पता नही कि उनकी नायिका ने इस पर क्या टिप्पड़ी थी या फिर नायक ने उसे माफ़ किया या नही .........पर यह कहानी .. मुखर्जी नगर में हजारों के लिए अम्रत सरीखी थी .. और कहानी परम्परागत तरीके से साल दर साल चलती चली आ रही है 



fort william college/ फोर्ट विलियम कॉलेज
भारतेंदु युग की 'नए चाल की हिंदी'
सरस्वती पत्रिका
CALL TO ACTION
BHARTENDU MANDAL / भारतेंदु मंडल
SUCCESS TIPS BY NISHANT JAIN IAS 2015 ( RANK 13 )
MISSION EKLAVYA
IAS MAINS 2015
Maila Anchal : by renu
ADOLESCENCE / किशोरावस्था
Nolan Committee in Hindi
Good Governance in India
  

सोमवार, 25 जनवरी 2016

love at present time

प्रेम और रेवड़ी :कौन सस्ता ,कौन महँगा  ???

विषय थोड़ा सा अमर्यादित लग सकता है आपको ,मैं पूरी कोशिश करुँगी इसे मर्यादित तरीके से लिखने की। फिर भी अगर कलम कहीं फिसल जाये तो आप सब से मुआफ़ी चाहती हूँ। घबराइये नहीं ;मैं आपको कचरा नहीं परोसने जा रही हूँ।  आपकी मानसिक तंदुरुस्ती का ख़्याल रखना मेरी जरूरत भी है और जिम्मेदारी भी। 
    प्रेम के सन्दर्भ में दो बातें अक्सर मेरे दिमाग में कौंधती हैं -एक तो यह कि भारत जैसे देश में जहाँ प्रेम के प्रतीक स्वरूप राधा -कृष्ण को वर्षों से पूजा जाता रहा है ;वहाँ प्रेम को इतना अनैतिक क्यों समझा जाता है। किसी और को क्या कहूँ मैं ख़ुद इस विषय में कुछ भी कहने या सुनने से कतराती हूँ। ऐसा लगता है कि जैसे आत्मा अपवित्र हो रही हो। और जो दूसरी बात है वह यह है कि हमारे यहाँ लोगों को दाल -सब्जी मयस्सर हो न हो ;प्रेम हर किसी को प्राप्त है। यहाँ हर आदमी के पास अपनी प्रेम कहानी है और वह भी एक -दो नहीं ;दर्जनों की संख्या में। हास्यास्पद लगता है ;सोचती हूँ कभी-कभी कि  क्या प्रेम रेवड़ी से भी ज्यादा सस्ता हो गया है। 
   मेरे घर के पास में ही वीरबहादुर सिंह नक्षत्रशाला है और उसी से लगा भीमराव अम्बेडकर पार्क भी है। काफी खुली जगह है यह। लगभग हर शाम मैं यहाँ जाती हूँ।मेरे थोड़े -बहुत सामाजिक ज्ञान के लिये शाम के वक्त की यह सैर ही जिम्मेदार है ;क्योंकि बाहर की बौरायी हुयी हवाएँ हमारे घर की चहारदिवारी को लाँघ नहीं पातीं। हर रोज़ कुछ हैरत भरा देखने -सुनने को मिलता है और मैं अवाक् रह जाती हूँ। लेकिन अब बुरा नहीं लगता ;शायद आदी हो गयी हूँ। 
   ऐसे ही एकदिन का वाक़या है -पार्क में टहलते वक्त मैंने देखा एक जगह ५-७ युवा लड़के  बड़ी एकाग्रता पूर्वक कुछ सुन रहे थे। थोड़ा नजदीक  जाने पर ज्ञात हुआ कि ,उनमें से एक अपनी तथाकथित प्रेमिका से बातें कर रहा था और बाकी के उन बातों के मजे ले रहे थे। मैंने मन ही मन सोचा बेचारी भोली -भाली लड़की को उल्लू बना रहे हैं। कुछ दिनों बाद  एक और घटना देखने को मिली ;फर्क मात्र इतना था कि अबकी बार उन लड़कों की जगह कुछ चमकती सूरत लिये बेहद नाजुक दिखने वाली लड़कियां थीं। शायद ये सब कुछ बेहद आम है और अंडरस्टुड भी। अगर मुझे घुटन हो रही है तो दोष मेरा है। 
   ये टाइम पास के नये तरीके हैं ;जिन्हें हमारी आजकल की मॉडर्न और एक्स्ट्रा जीनियस जनरेशन प्यार  का नाम देती है। यह प्रेम सचमुच बेहद सस्ता है और सर्वसुलभ भी ;परन्तु उतना ही घटिया और सर्वथा हेय। मेरी समझ से प्रेम अत्यंत दुर्लभ है। वह यूँ  गली ,नुक्कड़ ,चौराहे पर भटकता हुआ न मिलेगा। भटकता हुआ इस तरह का प्रेम महज़ गुमराह कर सकता है। प्रेम की अनुभूति की जा सकती है परन्तु अभिव्यक्ति नहीं। अभिव्यक्ति के बाद प्रेम ,प्रेम न रह कर कलंक बन जाता है और सर्वथा दुखदायी ही होता है। कहते हैं जिस विषय की उचित मालूमात न  हो उस विषय पर जुबान नहीं खोलनी चाहिए। अतः अब मुझे तरीकन मौन हो जाना चाहिए। 
   चैतन्य रहिये ..... खुश रहिये

द्वारा :- एक प्रबुद्ध पाठिका ( s.d.g.) 



द्वारा :- एक प्रबुद्ध पाठिका ( s.d.g.) उनकी रिक्वेस्ट पर उनका नाम गोपनीय रखा गया है . 

( यदि आपके पास भी कोई अच्छा सा लेख हो तो उसे मुझे मेल ashunao@gmail.com  पर भेज सकते है . ) 



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मुझे किसी भी  सफल व्यक्ति की सबसे महतवपूर्ण बात उसके STRUGGLE  में दिखती है . इस साल के हिंदी माध्यम के टॉपर निशांत जैन की कहानी बहुत प्रेर...