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गुरुवार, 6 मई 2021

RAIN

बेमौसम बारिश 

जैसे आज शाम
बेमौसम बारिश 
हुई
ठीक वैसे ही 
एक शाम
तुम मेरे जीवन
में आ गयी।

©आशीष कुमार, उन्नाव
6 मई, 2021।

गुरुवार, 29 अप्रैल 2021

with my eyes

मेरी नजर में तुम 

तुम्हारी सूरत
जैसे सौम्य मूरत

तुम्हारी आँखे
मीठा सा शर्बत

तुम्हारी नजर
कतई जहर

तुम्हारे काले बाल
जैसे रेशमी जाल

तुम्हारी मुस्कान
बसती मेरी जान

तुम्हारे लब
लाल गुलाब
तुम्हारी सांसे 
दहकती आग

तुम्हारी बातें
शुद्ध शहद

तुम्हारी कमर
नदी का मोड़

तुम्हारे पाव 
पीपल की छांव 

तुम्हारा बदन
अनमोल रतन

तुम्हारा अहसास 
नाजुक खरगोश

तुम्हारा प्यार
असीम ताकत

©आशीष कुमार, उन्नाव
28 अप्रैल 2021


सोमवार, 26 अप्रैल 2021

Unoccurred

अघटित

मेरी प्रिय
तुमको वो कविता लिख
रहा हूँ जो कई बार
लिखकर मिटा दी 


मुझे तुम वो अपने तमाम पत्र
फिर से लिख दो, 
जो तुमने तमाम बार लिखकर 
फाड् दिए थे।
दोहरा दो वो तमाम पल
जब तुमने मुझे फ़ोन करने के
लिए उठाकर 
फिर रख दिया था।

और हाँ उन्हीं कदमों को
फिर से गति दो
जो मुझसे मिलने के लिए 
बढ़ाकर रोक लिया था। 

© आशीष कुमार, उन्नाव।
26.04.2021

शुक्रवार, 2 अप्रैल 2021

Last Meeting

आखिरी मुलाकात

सुनों
एक दिन
अनायास ही कहोगी
कि अब यह हमारी
अंतिम मुलाकात है

याकि फिर 
एक रात देर में
करोगी आखिरी फ़ोन
बतलाने के लिए
कि अब न हो सकेगी
कभी हमारी बात 
उस दिन, उस रात
के संवेदनशील क्षणों 
में आपको जरा 
भी ख्याल न रहेगा
कि कैसे तुम
मिटा रही हो
एक अमिट प्रेम को

अपने सुखद भविष्य
के सुखद सपने
देखते हुए,
 जब तुम आखिरी
विदा लेने की
असफल कोशिस
कर रही होगी

उस वक़्त
मैं चुपचाप
खामोशी से
तुम्हारे उस 
आखिरी फैसले 
पर सहमति दूँगा
हमेशा की तरह

क्योंकि मैं
जानता हूँ
कि 
अनन्य प्रेम
को यूँ ही एकायक
खत्म न किया
जा सकता है

और प्रेम
में आखिरी
बात, मुलाकात
जैसा कुछ न होता है

सुनो प्रिय
तुम्हारे आखिरी
फैसले पर मेरी
खामोश सहमति
हमेशा बाध्य 
करती रहेगी

तुम्हें वापस
लौटने को
अनन्य प्रेम
की अनन्त, 
असीम गलियों में। 

©आशीष कुमार, उन्नाव
दिनांक- 02 अप्रैल 2021। 



बुधवार, 29 जुलाई 2020

तुम्हारी 'न '

प्रिय अगर तुम
मापना चाहो 
मेरे प्रेम की हद
तो सुनो

ये जो मजाक में
भी जो तुम मुझे 
अस्वीकार करती हो
या कह देती हो 'नहीं' 

यह मुझे गहरे तक 
उदास कर जाता है,
पल में लगती हो
कि तुम कितनी अजनबी
जैसे कि मेरा कोई हक 
न बाकी रहा हो।

© आशीष कुमार, उन्नाव
21 जनवरी 2020

बुधवार, 1 अप्रैल 2020

POEM : HOPE

उम्मीद 

इन दिनों जबकि 
सारी दुनिया 
परेशान,बेबस व मजबूर
सी है,

इन दिनों जबकि
आदमी बेहद परेशान,
भयभीत है 
और उसको भरोसा
न रहा अपने जीवन का

ऐसे उदासी, बेजान
खामोशी भरे दिनों में
भी मैं रहता हूँ
प्रफुल्लित,जीवन्त 
उत्साह से भरा

वजह केवल इतनी
कि इनदिनों के गुजरने 
के बाद मुझे उम्मीद है
कि तुम एक रोज मेरे पास
आओगी उतने ही करीब
जितना इन दिनों के पहले थी

उम्मीद है कि फिर से
स्पर्श कर सकूँगा
तुम्हारे मन को 
अन्तःस्थल को

उम्मीद है कि
देखूँगा तुम्हारी झील सी
गहरी आँखों में,
अपने लिए
पहली सी चमक

© आशीष कुमार, उन्नाव
1 अप्रैल, 2020।


गुरुवार, 9 जनवरी 2020

poem :fresh rose

कविता : ताजा गुलाब 

"जब तुम मेरी करीब होती हो
मुक्त मन से, आवरण रहित,
तुम मुझे एक ताजे गुलाब 
सरीखी लगती हो
अति कोमल, नाजुक 
भीनी भीनी खुसबू से भरी"

10 जनवरी, 2020,😌
© आशीष कुमार, उन्नाव

शनिवार, 28 दिसंबर 2019

kavita 05: Hisab - Kitab

कविता 5 : हिसाब किताब 

जब मैं कहता हूँ कि
तुम्हें पाने से पहले खो चुका हूँ
तो अक्सर तुम नहीं समझ पाती
कि मेरे कथन का निहितार्थ,
दरअसल तुम ज्यादा दूर की 
सोचती ही नहीं,
नहीं बनाती हो लंबे चौड़े 
सुव्यवस्थित, सौदेश्य नियम
तुम बस वर्तमान में जीती हो
हर पल, हर क्षण का रखती हो
पूरा हिसाब - किताब । 

मैं बनाता हूँ योजनाएं,
भविष्य के लिए तमाम नियम 
सोचता हूँ हर पहलू को
विचार करता हूँ नियति व प्रारब्ध पर
मनन करता हूँ 
तुम्हारे होने या न होने पर
इसलिए मेरे पास वर्तमान का कोई
हिसाब किताब न होता है। 

प्रेम दोनों को है
बहुत गहरा,नियत व स्थायी
बस हिसाब किताब जरा सा
अलग थलग सा है। 

28 दिसंबर , 2019
©आशीष कुमार, उन्नाव, उत्तर प्रदेश।

सोमवार, 26 नवंबर 2018

कविता : निष्पक्ष

निष्पक्ष

"पक्ष में होना सबसे आसान है
विपक्ष में जरा मुश्किल
पर, सबसे मुश्किल होता है
निष्पक्ष होना ।

सत्ता के साथ
अक्सर आ जाते है तमाम लोग
कम ही टिकते विपक्ष में
निष्पक्ष तो दुर्लभ से हैं ।"

© आशीष कुमार, उन्नाव, उत्तर प्रदेश।

शनिवार, 1 अप्रैल 2017

फर्क नही पड़ता है


पर सच तो यह है
कि यहाँ या कहीं भी फर्क नही पड़ता ।
तुमने जहां लिखा है ' प्यार '
वहाँ लिख दो ' सड़क '
फर्क नही पड़ता ।
मेरे युग का मुहावरा है :
' फर्क नही पड़ता '।

केदारनाथ सिंह ( नई कविता)

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