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रविवार, 29 जनवरी 2017

India's problems in hindi

भारत के समक्ष कुछ प्रमुख चुनौती

गरीबी
बड़ी संख्या में बेरोजगारी
आतंकवाद
बाढ़
अकाल
हिमस्खलन
भू स्खलन
भूकम्प
आर्थिक विषमता
भुखमरी
किसानों द्वारा आत्महत्या
खेती का लागत प्रभावी न होना
वित्तीय साधन यथा ऋण उपलब्ध न होना
ऊर्जा संकट
भरस्टाचार
जाति, धर्म पर आधारित चुनाव
भारतीय उत्पादों का विश्व के स्तर का  न होना
शिक्षा की बदहाल स्थिति
शिक्षा का समावेशी न होना
पर्यावरण संकट
जलवायु संकट
नक्सलवाद
समय पर न्याय उपलब्ध न होना

भारत विश्व का नेतृत्व करने का आकांक्षी है , उसे उक्त वर्णित चुनातियों का शीघ्र निराकरण करना होगा ।

सोमवार, 25 जनवरी 2016

love at present time

प्रेम और रेवड़ी :कौन सस्ता ,कौन महँगा  ???

विषय थोड़ा सा अमर्यादित लग सकता है आपको ,मैं पूरी कोशिश करुँगी इसे मर्यादित तरीके से लिखने की। फिर भी अगर कलम कहीं फिसल जाये तो आप सब से मुआफ़ी चाहती हूँ। घबराइये नहीं ;मैं आपको कचरा नहीं परोसने जा रही हूँ।  आपकी मानसिक तंदुरुस्ती का ख़्याल रखना मेरी जरूरत भी है और जिम्मेदारी भी। 
    प्रेम के सन्दर्भ में दो बातें अक्सर मेरे दिमाग में कौंधती हैं -एक तो यह कि भारत जैसे देश में जहाँ प्रेम के प्रतीक स्वरूप राधा -कृष्ण को वर्षों से पूजा जाता रहा है ;वहाँ प्रेम को इतना अनैतिक क्यों समझा जाता है। किसी और को क्या कहूँ मैं ख़ुद इस विषय में कुछ भी कहने या सुनने से कतराती हूँ। ऐसा लगता है कि जैसे आत्मा अपवित्र हो रही हो। और जो दूसरी बात है वह यह है कि हमारे यहाँ लोगों को दाल -सब्जी मयस्सर हो न हो ;प्रेम हर किसी को प्राप्त है। यहाँ हर आदमी के पास अपनी प्रेम कहानी है और वह भी एक -दो नहीं ;दर्जनों की संख्या में। हास्यास्पद लगता है ;सोचती हूँ कभी-कभी कि  क्या प्रेम रेवड़ी से भी ज्यादा सस्ता हो गया है। 
   मेरे घर के पास में ही वीरबहादुर सिंह नक्षत्रशाला है और उसी से लगा भीमराव अम्बेडकर पार्क भी है। काफी खुली जगह है यह। लगभग हर शाम मैं यहाँ जाती हूँ।मेरे थोड़े -बहुत सामाजिक ज्ञान के लिये शाम के वक्त की यह सैर ही जिम्मेदार है ;क्योंकि बाहर की बौरायी हुयी हवाएँ हमारे घर की चहारदिवारी को लाँघ नहीं पातीं। हर रोज़ कुछ हैरत भरा देखने -सुनने को मिलता है और मैं अवाक् रह जाती हूँ। लेकिन अब बुरा नहीं लगता ;शायद आदी हो गयी हूँ। 
   ऐसे ही एकदिन का वाक़या है -पार्क में टहलते वक्त मैंने देखा एक जगह ५-७ युवा लड़के  बड़ी एकाग्रता पूर्वक कुछ सुन रहे थे। थोड़ा नजदीक  जाने पर ज्ञात हुआ कि ,उनमें से एक अपनी तथाकथित प्रेमिका से बातें कर रहा था और बाकी के उन बातों के मजे ले रहे थे। मैंने मन ही मन सोचा बेचारी भोली -भाली लड़की को उल्लू बना रहे हैं। कुछ दिनों बाद  एक और घटना देखने को मिली ;फर्क मात्र इतना था कि अबकी बार उन लड़कों की जगह कुछ चमकती सूरत लिये बेहद नाजुक दिखने वाली लड़कियां थीं। शायद ये सब कुछ बेहद आम है और अंडरस्टुड भी। अगर मुझे घुटन हो रही है तो दोष मेरा है। 
   ये टाइम पास के नये तरीके हैं ;जिन्हें हमारी आजकल की मॉडर्न और एक्स्ट्रा जीनियस जनरेशन प्यार  का नाम देती है। यह प्रेम सचमुच बेहद सस्ता है और सर्वसुलभ भी ;परन्तु उतना ही घटिया और सर्वथा हेय। मेरी समझ से प्रेम अत्यंत दुर्लभ है। वह यूँ  गली ,नुक्कड़ ,चौराहे पर भटकता हुआ न मिलेगा। भटकता हुआ इस तरह का प्रेम महज़ गुमराह कर सकता है। प्रेम की अनुभूति की जा सकती है परन्तु अभिव्यक्ति नहीं। अभिव्यक्ति के बाद प्रेम ,प्रेम न रह कर कलंक बन जाता है और सर्वथा दुखदायी ही होता है। कहते हैं जिस विषय की उचित मालूमात न  हो उस विषय पर जुबान नहीं खोलनी चाहिए। अतः अब मुझे तरीकन मौन हो जाना चाहिए। 
   चैतन्य रहिये ..... खुश रहिये

द्वारा :- एक प्रबुद्ध पाठिका ( s.d.g.) 



द्वारा :- एक प्रबुद्ध पाठिका ( s.d.g.) उनकी रिक्वेस्ट पर उनका नाम गोपनीय रखा गया है . 

( यदि आपके पास भी कोई अच्छा सा लेख हो तो उसे मुझे मेल ashunao@gmail.com  पर भेज सकते है . ) 



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