वृद्धो की समस्या
फल न सही न दे , छाँव तो देगा
पेड़ बूढ़ा ही सही , घर में लगा रहने दीजिये।
पिछले दिनों वृद्धों पर आयी एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत में वृद्धों की संख्या तेजी से बढ़ रही है। आंकड़ों के अनुसार 2026 तक भारत में 17.5 करोड़ बुजुर्ग होंगे। 2001 से 2011 के बीच 35 % की दर वृद्धों की आबादी भारत में बढ़ी। भारत में वृद्धों की बढ़ती तादाद के अनुरूप सरकार की कोई तैयारी नही दिख रही है। 2011 में वी.मोहन गिरी समिति ने इस मसले में काफी अहम सुझाव दिए थे तथापि उस समिति की सिफारिशें धूल खा रही है। सरकार की तरफ से बुजुर्गों के लिए अटल पेंसन योजना चलायी गयी है , इसमें ब्याज दर , सरकारी पेंशन की दर से कम रखी गयी है , यह भी सरकार की उदासीनता का प्रतीक है। यही कारण है कि यह योजना ज्यादा लोगों को आकर्षित नहीं कर पायी है। 2008 में एक सुझाव के अनुसार सरकार द्वारा हर जिले में एक ओल्ड ऐज होम बनाने की योजना थी परन्तु आज तक एक भी जिले में इस दिशा में कार्य शुरू न हुआ। सरकार को इस मसले में सिंगापुर से सीख लेनी चाहिए जहां पर लड़के की आय का अनिवार्य रूप से 10 फीसदी अभिवावकों को दिया जाता है। सरकार के साथ साथ निजी क्षेत्र , गैर सरकारी संगठन को भी बुजुर्गों के अनुभव , कौशल का दोहन करते हुए उन्हें सामाजिक सुरक्षा के दायरे में लाया जाना चाहिए।
वैश्वीकरण , बाजारवाद व नव उदारवाद का दुष्परिणाम संयुक्त परिवारों के विघटन व एकल परिवारों में वृद्धि के तौर पर देखा जाता है। आज के समय लगभग एक तिहाई बुजुर्ग हिंसा के पीड़ित है, सरकार को इसलिए लिए समर्पित हेल्पलाइन , मनोवैज्ञानिक , वकील आदि की निःशुक्ल व्यवस्था करनी चाहिए। सम्रग रूप से देश में इस मसले में एक सोच विकसित करने की जरूरत है ताकि जब भारत को इस गंभीर मसले पर चुनौतियों से निपटने में सहायता मिल सके।
आशीष कुमार
उन्नाव , उत्तर प्रदेश।