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शुक्रवार, 28 दिसंबर 2018

Be helpful to everyone

कृतज्ञता का भाव

मेरे विचार से यह ऐसा भाव है जिसकी शक्ति बहुत प्रबल होती है, मैंने तमाम मौकों ओर इसे महसूस किया है। हर जाने अनजाने सहयोगी ,शुभचिंतक के प्रति मन बेहद आभार का भाव स्वतः पैदा हो जाता है और न जाने कब से आदत पड़ गयी है कि किसी के छोटे से सहयोग को भी बरसों बीत जाने के बाद भी न भूलना।

आज की दुनिया मे अक्सर सबको शिकायत होती है कि उनकी कोई हेल्प नही करता , जरा रुक कर विचार करे कि क्या आपके भीतर दूसरों की हेल्प करने की आदत है या नहीं। मुझे जीवन के हर मोड़ पर अक्सर अनजान अपरिचित लोगों से तमाम तरह की हेल्प मिलती रही । कई बार मुझे खुद आश्चर्य होता है कि आखिर ये कैसे ?

महर सिंह वाली पोस्ट पढ़ी है, पुणे जाना हुआ तो नवनाथ गिरे जैसे होस्ट मिले जो पहली बार मिल रहे थे पर इतने प्रगाढ़ व मित्रवत की पूछो मत। बाइक से महाबलेश्वर घूमना व अन्य तमाम प्रकारन आप पढ़ ही चुके है। कुछ और बड़े और महत्वपूर्ण घटनाएं आने वाले दिनों में पढ़ने को मिल सकती है ।

मुझे अब तक यही समझ आया है कि अहसान मानने की आदत बहुत प्रभावी चीज है, जितना आप इसको मानेंगे ,उसके सुखद और गहरे परिणाम दिखेंगे ।
( यूँ ही विचार आया, विस्तृत पोस्ट फिर कभी । अपने अनुभव साझा कर सकते हैं )

रविवार, 23 दिसंबर 2018

That dainty


वो अनोखा प्रसाद 


यह १० अप्रैल २०१८ की बात है , अगले दिन मेरा सिविल सेवा का इंटरव्यू था। शाम को महर सिंह का फ़ोन आया। पाठक , महर सिंह से परिचित होंगे। काफी पहले उनकी कहानी लिखी थी। एयरफोर्स में जॉब करते हुए सिविल सेवा की परीक्षा पास की थी और मेरी जानकारी में महर , हिंदी माध्यम से इंटरव्यू में 200+ अंक पाने वाले गिने चुने लोगो में से एक है। 

वो भारतीय सुचना सेवा के अधिकारी (२०१२ ) है और मेरे कुछ करीबी व अंतरंग मित्रों में एक। मैं इंटरव्यू के लिए गुजरात भवन में रुका था। सिविल सेवा में चयनित कुछ अन्य मित्रों से बात हुयी थी कि दिल्ली आना हुआ है  मुलाकात करते है। अब सिर्फ दो दिन बचे थे , किसी से मुलाकात न हुयी थी।  महर सिंह ने फ़ोन पर कहा कि "यार काफी व्यस्त था इसलिए मिलने न आ सका पर कल सुबह संघ लोक सेवा आयोग के बाहर मिलने आ रहा हूँ।"  

यह एक प्रकार से मेरे लिए  संजीवनी थी। कोई सफल मित्र न केवल मिले बल्कि आपके मनोबल को बढ़ाने के लिए आयोग के गेट पर भी आ जाये , इससे बढ़िया क्या हो सकता था। मैं बहुत खुश था। 

अगली सुबह मैं , अंकित जैन के साथ संघ लोक सेवा आयोग के बाहर खड़ा था। अंकित जैन से इंटरव्यू के ठीक पहले टेलीग्राम से सम्पर्क हुआ था। वो बागपत, उत्तर प्रदेश से थे , उनके भैया IRS-IT थे। अंकित हमारे विभाग से थे। इसलिए विभाग/मूल प्रदेश  से जुडी तैयारी के चलते काफी चर्चा परिचर्चा हो चुकी थी।  तमाम बातों के बीच एक उल्लेखनीय बात का जिक्र करना आवश्यक है वो है उनकी सर्विस  प्रेफरेंस- आईपीएस > आईएएस > दानिप्स।  कहने का मतलब उन्हें वर्दी से बढ़ा लगाव था और यूनिफार्म सर्विस की उम्मीद कर रहे थे।  

महर भाई आये  और बड़ी गर्मजोशी से अपनी मुलाकात हुयी। उन्होंने एक छोटा सा डिब्बा खोला और बोला - "भाई प्रसाद ले लो। वैसे तो मैं मंदिर ज्यादा आता -जाता नहीं पर आज आपके लिए चला गया था। " मैंने प्रसाद लिया उस वक़्त मन में तमाम विचार चल रहे थे कि आज जहाँ लोगो के पास समय की घनघोर कमी है कोई आपके खातिर मंदिर तक जाये और प्रसाद लेकर आये। अंकित ने भी प्रसाद  लिया। 

इसके बाद आयोग के नाम के साथ फोटो खिचवाने की परम्परा का निर्वाह किया गया। मै पहले भी दो बार इंटरव्यू के लिए यहाँ आ चुका था तब यह ताम झाम फालतू से लगे थे। चूँकि यह मेरा आखिरी  अवसर था तो सोचा "यार पिक्स ले ही लेते है " महर सिंह वहाँ तब तक खड़े रहे जब तक मैं भीतर न गया। अंदर के प्रकरण फिर कभी। 

रिजल्ट आया तो मैं और अंकित दोनों ही अंतिम रूप से सफल थे। कहने की बातें अलग है कि पर सच यही है कि  मैं रिजल्ट से पहले इस दशा में था कि सोच रहा था कि " भगवान , मुझे वेटिंग लिस्ट में भी सबसे आखिरी स्थान भी दिलवा दो तो भी बड़ी बात होगी ". भगवान ने हमे उससे कही ज्यादा दिया। उधर अंकित जैन ( रैंक 222 ) के साथ अपनी ड्रीम जॉब आईपीएस के लिए चुने गए। 

मैंने काफी पहले आस्था पर कुछ लिखा था आज भी वही दोहरा रहा हूँ कि यह आप निर्भर है कि आप मानो तो भगवान है न मानो तो पत्थर। क्या पता उस दिन महर सिंह की आस्था व  प्रसाद ने ही सबकुछ किया हो। ( वैसे मुझे यह मत पूछना कि महर सिंह किस मंदिर गए थे , क्योंकि यह मुझे भी नहीं पता है ) 

© आशीष कुमार , उन्नाव , उत्तर प्रदेश। 

सोमवार, 17 दिसंबर 2018

7 years in Ahmedabad



7 साल अहमदाबाद में (०१) 


जनवरी 2012 की एक रात मैंने जब साबरमती ट्रेन अहमदाबाद के लिए पकड़ी थी तो मैं पूरी तरह से निश्चित था कि बस कुछ महीने की जॉब है , जल्द ही नई नौकरी मिलेगी और मैं अहमदाबाद छोड़ दूँगा। वो  समय मेरे जीवन कुछ ऐसा समय था जब मुझे हर साल नई नौकरी मिल रही थी। एक नौकरी ज्वाइन करता तो अगली बड़ी नौकरी का रिजल्ट आ चूका होता। मैं सेंट्रल एक्साइज एंड कस्टम विभाग में इंस्पेक्टर बन चूका था। सिविल सेवा 2011 की मुख्य परीक्षा  अच्छी गयी थी और मैं उम्मीद कर रहा था कि जल्द ही परीक्षा पास कर लूँगा।  

कुछ महीने बाद इंटरव्यू कॉल भी आ गयी। अब उम्मीद बढ़ गयी थी।  मेरी वर्तमान जॉब बढ़िया थी , शहर बढ़िया था पर मन संतुष्ट न था। मैंने UPSC को कम करके आँका था। इंटरव्यू तो फेल हुआ ही , अगले साल का PRE एग्जाम भी फेल हो गया। मुझे ठीक से याद है वो जुलाई 2012  के आखिरी दिन थे। जिस दिन PRE का रिजल्ट आया , बहुत बड़ा सदमा लगा कि अब इस अजनबी शहर में रहना पड़ेगा। 

उन दिनों मैं मेम नगर एरिया में रहता था। उसी दिन शाम को हिमालया मॉल गया और क्रोमा स्टोर  से एक लैपटॉप खरीदा। उसके बाद दिसंबर 2012  तक जी भर कर फिल्में देखी। टोरेंट का दौर था। हिंदी , अंग्रेजी फिल्मों के साथ चीनी ,कोरियन , जापानी फिल्में देखता गया। मन में यह था कि इतना फिल्में देखो कि उनसे ऊब जाओ। क्या दिन , क्या रात , फिल्में चलती रही और समय गुजरता रहा।

जीवन  के साथ प्रयोग करने की पुरानी आदत थी । इससे पहले के दौर में फिल्मों की तरह नॉवेल , कथा कहानी का पढ़ने का जूनून सवार हुआ था। दिन / रात , महीने साल केवल एक ही काम पढ़ना। हिंदी , बंगाली , मलयालम , मराठी , कन्नड़ , रुसी मतलब अनुवाद में जो मिले बस पढ़ जाओ।  पहले इन चीजों का जिक्र किया करता था कि इतने नावेल पढ़ चूका हूँ पर अब लगता है कि उनका का कोई मतलब नहीं। मैंने जो भी नावेल पढ़े थे वो केवल मनोरंजन की दृष्टि से पढ़े थे। अगर आलोचनात्मक दृष्टि से पढ़ता तो शायद कुछ और ही व्यक्तित्व होता। 


अहमदाबाद मेरे लिए अजनबी जगह थी। उन दिनों मुझे इस शहर में सबसे ज्यादा जो चीज हैरान करती थी वो यह कि इस शहर में साइकिल से चलने वाले लोग न के बराबर है। सड़कों पर दो पहिया से ज्यादा चार पहिया वाले वाहन थे। घर कम थे , फ्लैट अधिक। शहर में समृद्धि हर तरफ देखी जा सकती थी। मैं उत्तर प्रदेश के एक सामान्य जिले से लम्बा ग्रामीण जीवन जीकर आया था। इसलिए शहर के साथ ताल मेल जल्द न बैठा सका। 

हम जहाँ रहते थे वहाँ से कुछ दुरी पर ही अहमदाबाद का सुप्रसिद्ध ड्राइव इन सिनेमा था। प्रायः मैं, मनोज श्रीवास्तव के साथ टहलते हुए फिल्म देखने चले जाते। मनोज श्रीवास्तव हमारे जिले उन्नाव से ही थे। हम पहले से परिचित थे और यहाँ पर भी एक ही विभाग में सहकर्मी थे। इसके चलते ज्यादा अहमदाबाद के शुरुआती साल ज्यादा कठिन न लगे।  

जहाँ मैं रहता था वहाँ से ऑफिस 2 किलोमीटर दूर था। दोनों ही साल मैं पैदल ही ऑफिस आता जाता रहा। इस समय मैं फील्ड में जॉब कर रहा था। मेरा काफी लोगों से मिलना होता , अक्सर मुझे लोग कहते कि " फिर मिलेंगे" मैं उन्हें हाँ भी करता पर मैं जानता था कि मैं उनसे कभी नहीं मिलूंगा।

कुछ दिन तक हमने बाहर होटल में खाना खाया। अहमदाबाद में मुझे एक और अनोखी चीज लगी। यहाँ पर अनलिमिटेड थाली का चलन खूब था। हर बजट के लिए थाली। 50 रूपये से लेकर 100 रूपये वाली। उन्हीं दिनों एक होटल पर  Hardik Thakker  से मुलाकात हुयी। दरअसल मैं और मनोज खाने के बाद कुछ upsc पर बात कर रहे थे। उन बातों को सुनकर हार्दिक ने हमसे बात की पहल की। हार्दिक से लम्बी और गहरी दोस्ती हुयी। उनसे जुडी इतनी बातें है कि उन पर अलग से पोस्ट लिखी जा सकती है। लिखूंगा कभी। इन दिनों वो इसरो में क्लास वन अधिकारी है। उनकी कहानी भी बड़ी मोटिवेशनल है।


बाद में मैंने अपने रूम में खाना बनाने लगे। मैं और मनोज दोनों ही खाना बनांने में कुशल थे। होटल में अधिक दिन खाना सेहत के लिहाज से अच्छा न था। उसी साल कुंदन कुमार से भी परिचय हुआ। वो हमारे विभाग में ही थे और हमसे सीनियर थे। उस साल मैं pre फेल हुआ था और उनका पहली बार मैन्स देने का अवसर था। यह भी अजीब बात है कि हम पहली बार मुखर्जी नगर के एक रूम में मिले। वो दिल्ली में कोचिंग के लिए थे और संयोग से मैं भी किसी काम से दिल्ली गया था।


 इसके बाद मुझे अपने ऑफिस के मुख्यालय में पोस्ट दी गयी। यह ऑफिस , मेरे रूम से लगभग 5 किलोमीटर दूर था। इतनी दूर पैदल जाना संभव न था। काफी दिनों से एक अच्छी साइकिल लेने का मन था। जल्द ही एक गियर वाली काफी महॅगी साइकिल खरीद ली। रेड कलर की साइकिल से घूमने में खूब मजा आता था। कुछ दिन ऑफिस उससे गया। जल्द ही मुझे अहसास हुआ कि इससे इज्जत की बाट लग जाएगी। जिस ऑफिस में बहुतायत लोग कार से आते थे और कुछ लोग मोटर साइकिल से आते थे वहां पर साइकिल से जाना मुझे अजीब लगने लगा। कभी कभी सोचता कि अगर कोई कुछ कहेगा तो बोल दूंगा कि मेरे एक महीने की सैलरी से बाइक मिल जाएगी पर जल्द ही मुझे बाइक लेनी पड़ी।

बाइक लेने का सबसे प्रमुख कारण , अहमदाबाद का ट्रैफिक था। दूसरा साइकिल बहुत नाजुक थी। अक्सर उसमें कुछ न कुछ  बिगड़ने भी लगा था। साइकिल के दिनों सबसे ज्यादा फ़ायदा मुझे अपनी बेली पर दिखा। उतना फ्लैट कभी नहीं रहा। मुझे आज भी लगता है कि फिटनेस के लिए साइकिल से बेहतर कोई चीज नहीं।

© आशीष कुमार , उन्नाव , उत्तर प्रदेश।  

बुधवार, 12 दिसंबर 2018

aatm dipo bhav


आत्म दीपो भव  


गौतम बुद्ध ने आत्म दीपो भव यानि अपना दीपक स्वयं बनो का सूत्र दिया तो उसका आशय क्या था ? अक्सर हमारे सामने बहुत सी मुश्किलें , दुविधाएं होती है और उनके हल के लिए किसी न किसी का  आसरा चाहते है पर क्या वास्तव में कोई अन्य आपकी उलझन  को ज्यादा बेहतर समझ सकता है क्या ? आपके लिए सबसे बेहतर मार्ग क्या है , यह आप से बेहतर कौन जान सकता है। 

सिविल सेवा की तैयारी के दौरान तमाम प्रश्न उठते है , वैकल्पिक विषय क्या ले ? कोचिंग करे या न करे , कहाँ से करे ? कितने घंटे पढ़े ? नोट्स कैसे बनाए ? इनके बड़े सामान्य से उत्तर है पर आप खुद सोचिये कि इनके उत्तर दूसरा भला कैसे दे सकता है। यह बात सही है कि दूसरे के ज्ञान/अनुभव से सीख का समय बच सकता है पर यह पूरी तरह से सत्य नहीं है। मैंने पहले भी कुछ ऐसे प्रकरण साझा किया है जिसमें दूसरे के कहने पर व्यक्ति ने काफी नुकसान उठाया है। 

दरअसल बात सिविल सेवा तक ही सिमित नहीं है। जीवन , बहुआयामी है। सेवा/जॉब सिर्फ एक आयाम है। जीवन के सभी आयामों में अपना दीपक बनने की कोशिश करनी चाहिए। तुम्हारे भीतर छुपी ऊर्जा / कमजोरी को तुमसे बेहतर भला और कौन जान सकता है। इसलिए आज से इस वक़्त से अपने निर्णयों पर जीने की आदत डाल लो। जो भी करोगे , उसका सुखद /दुखद परिणाम भी आप भोगोगे पर यह संतुष्टि रहेगी कि यह मेरा निर्णय था। 

© आशीष कुमार , उन्नाव , उत्तर प्रदेश।  

सोमवार, 10 दिसंबर 2018

Story of an innocent boy

एक मासूम लड़के की कहानी 

लगभग चार साल हुए होंगे यही अहमदाबाद की ही बात है। एक महीने के लिए मुझे डोरमेन्ट्री में रहना पड़ा था। वही उससे मुलकात हुयी थी। मेरे बेड के पास ही उसका बेड था। जब परिचय की बात आती है तो मेरी कोशिश रहती है कि जॉब के बारे में बात न करू। जॉब प्रोफाइल के बारे में बात न करने के कुछ विशेष कारण है -हमारे समाज में आज भी खाकी यूनिफार्म और तीन स्टार का कुछ ज्यादा ही महत्व है। पोस्ट के बारे बगैर कुछ जाने कई बार काफी लोग ने उम्मीद लगा ली कि ट्रैफिक वाला अगर पकड़ेगा तो मेरा एक फ़ोन ही काफी होगा। कुछ ऐसे प्रकरण पहले हो चुके थे इसलिए मैंने वहां बोला कि लिखता हूँ। 

बगल वाले मित्र , अहमदाबाद में बैंक की परीक्षा की तैयारी करने के लिए आये थे। कुछ किताबे उनके बेड पर पड़ी थी। मैंने उनसे एक दो सरल सवाल पूछे   वो  बता न पाए। एक दो दिन बाद शाम को मुझसे बोला कि पार्क चलते है घूमने के लिए। पार्क में जाते ही वो मित्र  कहने लगे कि आप से मुझे कुछ विशेष बात करनी है आप तो कहानी लिखते हो , मेरी भी कहानी सुन लो और बताओ मैं क्या करू ? 

उस दिन अपने कुछ सरल से सवाल पूछे थे तो मैं केवल तनाव के चलते नहीं बता पाया था। मैं इन दिनों बहुत तनाव से गुजर रहा हूँ। मैंने कहा कि आप पूरी बात बताओ। उस शाम की पार्क में बात और बाद में कई बातों को जोड़कर यह कहानी बनती है। 

वो महाराष्ट्र (गुजरात सीमा के करीब ) के रहने वाले थे. अपने परिवार के अकेले लड़के थे।  घर में खेती बारी खूब थी। गन्ने की खेती से अच्छी आय होती थी. तीन खंड का बढ़िया मकान बना था। उनकी शादी  गुजरात में रहने वाली लड़की से तय थी. मित्र बहुत ही सीधे -भोले भाले किस्म के थे। पढ़ाई ठीक ठाक कर ली थी पर जॉब करने का कोई इरादा न था। अकेले लड़के थे तो घर में रहकर ही माता पिता की सेवा करने का इरादा था। 

लड़की जरा तेज थी। उनकी इंगेजमेंट हो गयी थी। लड़की ने मित्र पर दबाव डाला कि जब तक जॉब नहीं करोगे मैं शादी नहीं करूंगा। वो बेचारे पहले कुछ दिन किसी फार्मा कंपनी में 10 -१२ हजार वाली जॉब में लग गए। घर में सालाना 10 से 15 लाख की आमदनी थी , इसके बावजूद वो लड़की के दबाव के चलते नौकरी करने लग गए। लड़की ने कहा कि सरकारी नौकरी करो। इसके लिए ही वो अहमदाबाद आये थे और बैंक की परीक्षा के लिए कोचिंग कर रहे थे।  

अब मुझे ठीक से याद नहीं आ रहा है पर पूरा प्रकरण उन्होंने बताया था। उनको पता चला कि लड़की , किसी गैर जाति के लड़के से जुडी है और उसके साथ घूमती फिरती है। इसके बाद वो खुद काफी जानकारी जुटाई थी , मुझे कई स्क्रीन शॉट दिखाई कि यह इतनी रात तक व्हाट एप पर ऑनलाइन थी और न जाने क्या क्या। सगाई , इनके साथ हुयी थी और इनको अपने गांव , समाज में इज्जत बड़ी प्यारी थी। 

मैंने कहा कि रिश्ता तोड़ दो तो वो बोले कि नहीं तोड़ सकता। दरअसल लड़के के परिवार की कोई बहन , इनके भावी पत्नी की ओर शादी की गयी थी। मित्र को डर था कि अगर मैंने रिश्ता तोडा तो मेरी बहन को परेशान कर सकते है। 

पहले लड़की मना करती रही कि उसका कोई चककर नहीं है पर एक बार मित्र जब किसी पार्क में मिलने गए तो लड़की ने स्वीकार कर लिया कि हाँ वो किसी लड़के से बहुत प्यार करती है  और उसी से शादी करना चाहती है  केवल घर वालों के दबाव में ही  सगाई की थी। लड़का यह सुनकर बहुत दुखी हुआ और सब जानने  ( दैहिक सम्बन्ध ) के बावजूद उस लड़की से बोला कि तुम्हारे कल से कोई मतलब नहीं , आज से नई रिश्ते की शुरुआत करो। प्यार अँधा होता है। लड़की मानी नहीं। वो अपने घर में कुछ न कहती पर मित्र , उसकी हरकतों से मानसिक प्रताड़ना से गुजर रहा था। 

तमाम बातें है , सबका उल्लेख करना जरूरी नहीं है। मित्र को यह भी तनाव था कि उनकी होने वाली बहू के बारे में जब उनके बूढ़े माता पिता को पता चलेगा  तो उनके परिवार की साख मिट्टी में मिल जाएगी। 

जैसा कि मैंने पहले बताया है कि मैं वहाँ बस एक माह रहा था पर मित्र बहुत गहरे से जुड़ गए थे। सम्पर्क बना रहा। मुझे सरल , सीधे साधे लोगों से जुड़ना बहुत अच्छा लगता है, होशियार , मौक़ापरशत लोगों  से जुड़ भी जाऊ तो भी रिश्ते में गर्मजोशी नहीं दिखाता। मित्र से भले काफी अंतराल तक बात भले न हो पर दिल के बहुत करीब है। दरअसल आज के समय में , सरल स्वभाव के लोग दुर्लभ से हैं।  

मित्र भी कुछ महीने बाद अपने गांव चले गए। फ़ोन पर बात करते रहते। मुझे उनकी कहानी का अंत जानने की बड़ी इच्छा थी। एक रोज उनका फ़ोन आया - आशीष भाई अमुक तारीख को मेरी शादी है आप आना जरूर है। बहुत खुश थे। मैंने पूछा - उसी लड़की से हो रही है शादी। वो बोले नहीं। मित्र ने मुझे बाद का कुछ विवरण दिया। 

जब लड़की की हरकते बहुत बढ़ गयी तब लड़के ने अपने समाज की पंचायत बुलाई। लड़की ने बड़ा हगांमा किया कि सब झूठे आरोप है पर पंचायत सभी बातों को समझकर  सगाई तोड़ने का फैसला दिया । इसके बाद मित्र ने एक गरीब घर की होनहार, सुशील  लड़की (मित्र बुलाते रहते है कि आपकी भाभी बहुत तरह की आइसक्रीम बनाना जानती है )  से दहेजरहित  शादी की। वो मित्र बहुत खुश थे। कई  दिनों के लिए  पहाड़ी जगहों पर हनीमून के लिए गए।  

पहली लड़की , अपने प्रेमी की कार , कपड़े देखकर उसे बहुत आमिर समझ बैठी थी । मित्र गांव से जरूर थे पर ठोस आर्थिक स्थिति थी उनकी। दिखावे पर यकीन न था अन्यथा उनकी हैसियत तो ऑडी /मर्सडीज की थी। 

शादी में जा न सका पर आज भी उनके यदा कदा फोन आ जाते है। अब उनका एक बेटा भी है। एक खुशहाल जिंदगी जी रहे है।  तनाव के दिनों में वो कहते थे कि आशीष भाई , मैं अपनी कहानी सावधान इंडिया / क्राइम पेट्रोल में दूँगा ताकि पता चले कि इस तरह के प्रकरणो में लड़के कितना अपसेट होते हैं। सावधान इंडिया में कहानी गयी या नहीं गयी पता नहीं पर मैंने उनसे वादा किया था कि आप की बात मैं अपने पाठकों तक जरूर पहुँचाऊँगा।

© आशीष कुमार , उन्नाव , उत्तर प्रदेश।  

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