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मंगलवार, 24 जुलाई 2018

Purandar Fort (03), Pune

पुरन्दर का किला नहीं देखा तो कुछ नहीं देखा (03 )

आशीष कुमार 

अंततः किले के दरवाजे तक पहुंच गए। अब उसमें कोई लकड़ी का दरवाजा नहीं है। पूरी तरह से सन्नाटे से भरा, अजीब सीलन से भरी महक, गेट में लोहे के पुराने कुंडे में दरवाजे के कुछ अवशेष और न जाने कितनी घटनाओं का साक्षी। इस दरवाजे तक पहुँचने में पूरी तरह से पसीने से कपड़े गीले हो चुके थे. अब  पुराने पत्थरो की सीढियाँ बनी थी. एक भी सीढ़ी चढ़ी न जा पा रही थी पर अब हम पहुंचने ही वाले थे।  ऊपर जा कर देखा तो कुछ नहीं था। बस पहाड़ , कही कही पर कुछ पुराने दीवारे। यहाँ दूर तराई में गांव छोटे छोटे दिख रहे थे।  

यहाँ से नवनाथ जी कुछ बड़ी रोचक बातें बताई , जैसे पुराने दिनों में इन किलों में हाथी भी रहा करते थे जो बहुतों को आश्चर्य का विषय लगता। लोग सोचते कि इतने ऊपर हाथी कैसे चढ़ कर आते ? दरअसल हाथी के छोटे छोटे बच्चो को ही ऊपर चढ़ा दिया जाता था और वही बाद में बड़े हो जाते थे। किले के ऊपर भी साल/२ साल तक के लिए पानी , अनाज की भी व्यवस्था हुआ करती थी। पुराने दौर में जब सेना की मजबूती घोड़े , हाथी की सेना समझी जाती थी, ऐसे किले जीतना बहुत ही कठिन था। ऊपर तक चढ़कर आने में ही सेना थक जाती फिर वो किसी भी लड़ाई में नकाम रहती। बहुत बार , जैसे ही दुश्मन का पता लगता , ऊपर से बड़े बड़े पत्थर लुढ़का दिए जाते। यही कारण था कि मराठा लम्बे समय तक अजेय बने रहे। 
(ऊपर से तस्वीर तो नहीं ले पाया पर यह ज़ूम तस्वीर बता रही है कि काफी ऊंचाई चढ़नी है )


तमाम लोगों को यह लग सकता है कि यहाँ देखा क्या जाय ? ज्यादातर जगह पथरीली थी. अच्छा हुआ जो नवनाथ जी साथ थे। उन्होंने मुझे ऊपर पानी को इकठ्ठा करने वाली जगह दिखाई। सामने एक जगह पीने का पानी था जो वर्षा से अपने आप इक्क्ठा हो जाता था। दूर पहाड़ी पर एक मंदिर दिख रहा था जो किले का हिस्सा था। वो दिखने में ही बहुत दूर लग रहा था। हिम्मत जरा भी न था कि अब वहाँ क्या जाया जाय। नवनाथ जी जोर दिया और मैंने भी सोचा कि अब यहां तक आ गए तो वहाँ तक भी चला जाय। 

(समझ सकते है कि हम कितने ऊपर चढ़ कर गए थे )

किले का ऊपरी भाग काफी हद तक समतल है। रास्तें में एक परिवार सुस्ता रहा था। हम आगे बढ़े और रास्ते में पानी को इक्क्ठा करने के कई स्थान मिले। मोबाइल बहुत याद आ रहा था कि काश ये सब जगहें , तस्वीरों में कैद कर ली जाये। नवनाथ जी तमाम बातें बताते चल रहे थे , जैसे कि आस पास के युवा कभी कभी किसी खास मौके पर आकर इन पानी की जगहों को साफ कर जाते है। ज्यादतर जगहों पर लगभग 10 लाख लीटर तक पानी जमा हो सकता था। 

मंदिर की सीढ़िया अब पास लगने लगी थी। ऊपर दो आदमी और कुछ बंदर नजर आ रहे थे। पास जाने पर पता चला कि वो दोनों सेना के जवान थे। उनकी ड्यूटी खत्म हो रही थी , अब बाद में कोई दो और जवान आएंगे। इतनी ऊंची जगह पर चढ़ना और ड्यूटी करना , सच में टफ टास्क था। यह शिव जी का प्राचीन मंदिर था। अंदर बहुत सकूँन महसूस हुआ। यहाँ पर हवा बहुत स्फूर्तिदायक थी। सारी थकान दूर हो गयी। और भी तमाम रोचक बातें है पर उन बातों को रहने देते हैं।  काफी लम्बी सीरीज हो गयी है , आप भी पढ़ते पढ़ते तक गए होंगे। बस उपसंहार पढ़ लीजिये अच्छा है। 

लौटे समय इतना थका हुआ था कि डैम देखने का प्लान कैंसिल कर दिया। भोर से पुणे की बस ली। रात 8 बजे पुणे एयरपोर्ट पर था। सबसे ज्यादा कमर और तलुवे दर्द कर रहे थे। नाइके के हलके वाले शूज होने के चलते चढ़ाई में आराम तो मिला पर पत्थरों की चुभन बहुत दर्द दे रही थी। फ्लाइट 11 बजे थी। एक जगह पर मसाज चेयर दिखी। उनके विज्ञापन पर नजर गयी। "रिलैक्स एंड गो" का दावा था कि उनकी मसाज चेयर में 5 मिनट , एक एक्सपर्ट मसाज देने वाले के 30 मिनट के बराबर है। मैंने 20 मिनट वाला , जोकि सबसे बड़ा और फुल पैकेज था , लिया और आँख बंद कर लेट गया। एक एक्सपर्ट मसाज करने वाले के दो घंटे के बराबर मसाज कराने के बाद और एक आम व्यक्ति के पुरे दिन की कमाई के बराबर रुपए देने के बाद जब उठा तो कम से कम कमर और तलुवे की हालत काफी ठीक हो चुकी थी।

पास में चाय वाले से चाय पूछी।
"80 रूपये "
"मिल्क है "
"नहीं मिल्क पावडर है "
"क्या यार इतनी मॅहगी चाय और दूध भी नहीं "
"मिल्क पावडर 600 रूपये किलो वाला है "

इसीलिए एयरपोर्ट पर कुछ लेने से , सिनेमाघर में पॉपकॉर्न खाने से बचता हूँ , उस दिन मन मार कर 600 रूपये किलो वाले मिल्कपॉवडर की चाय पी। पुणे में आखिरी अंतिम घंटे  थे. यहाँ  जीवन में तमाम नए अनुभव मिले थे।  भारत में दक्षिण की ओर इतनी दूर तक पहली बार आया था। बहुत  सारे रोमांचक, सुखद अनुभवों  के साथ यात्रा समाप्त हुयी। 

( समाप्त )

© आशीष कुमार,उन्नाव उत्तर प्रदेश।   

गुरुवार, 19 जुलाई 2018

Purandar Fort, Pune


पुरन्दर का किला नहीं देखा तो कुछ नहीं देखा (01 )

आशीष कुमार 

सिविल सेवा में जब आखिरी एटेम्पट देना होता है तो बहुत सी चीजे मन में चलती रहती है , खास तौर पर जब आप लगातार मैन्स और इंटरव्यू के चक्र से गुजर चुके हो। मेरे मन में भी तमाम चीजे चला करती थी। उन सबके बीच एक ख्याल रह रहकर  जरूर आता कि एक बार सारे चरण पुरे हो जाये तो मुक्ति मिले और मैं खूब दूर घूमने निकल जाऊ। सिलेक्शन हो या न हो , बस अब घूमना है। मन में विचार आता था कि मैं ग्रामीण पर्यटन में रुझान के चलते राजस्थान के किसी गाँव में घूम रहा हूँ। मैंने पुरानी पोस्ट में , एक बात पर जोर दिया है कि मुझे अक्सर भविष्य की चीजों का आभास हो जाता है। मन में राजस्थान घूम रहा था पर यह महाराष्ट्र के गाँव थे जहाँ मैं वास्तव में गया था।  

पिछले महीने , पुणे से एक यूनिवर्सिटी से सिविल सेवा में सफलता के चलते बुलावा आया तो लगे हाथ वहाँ घूमने का प्लान बना लिया। मेरी फेसबुक की मित्रता सूची बड़ी लम्बी और विस्तृत है। मैंने फेसबुक में लिखा कि पुणे आ रहा हूँ और कोई मिलना चाहता है ? इस तरह मुलाकात हुयी नवनाथ गिरे जी से। उनसे कभी कोई बात न हुयी थी , न कोई परिचय था।  सच कहूँ तो मुझे याद भी नहीं कि उनसे कब दोस्ती हुयी थी. इसके बावजूद क्या खूब आतिथ्य किया। घूमते तो बहुत से लोग है , पर  यायावरी करना सबके बस की बात नहीं होती। लोकल व्यक्ति के होने से बड़े फायदे होते है , खास तौर पर अगर आपको वहाँ की भाषा , संस्कृति , इतिहास , भूगोल के बारे में अच्छे से जानना हो। नवनाथ जी ने विशेष रूप से मेरे लिए दो दिन की छुट्टी ली और मुझे जगह जगह घुमाते रहे।    

पुणे में बड़े बस अड्डे का नाम स्वारगेट (जब तक वहाँ नहीं पहुँचा तब तक बहुत परेशान था कि स्वारगेट आखिर क्या चीज है ?) है।  वहाँ नवनाथ जी के साथ भोर के लिए नॉन स्टॉप बस ली। उन्होंने कहा कि- सर कार भी है पर मैंने बाइक को ही वरीयता दी।  झूठ मूठ को काहे ख़र्च बढ़े और दो लोगो के लिए बाइक भी अच्छा साधन है।  पहले दिन महाबळेश्वर गए जिसका विवरण किसी अन्य पोस्ट में करूंगा आज दूसरे दिन की यात्रा विवरण लिखने का मन है। 

पहाड़ी जगह पर बाइक से 100 /150  किलोमीटर चलना और घूमना काफी थकानदायक होता है , इसलिए महाबळेश्वर से लौटने पर काफी थकान थी। रात में बड़ी अच्छी नींद आयी। अगर आपको  रोटी का स्वाद वाली पोस्ट याद हो , तो यह वही रात थी। अगले दिन , नवनाथ गिरे जी कहा कि आज पुरन्दर का किला देखने चलना है , रास्ते में एक डैम , कुछ नए मंदिर , कुछ ऐतिहासिक मंदिर भी देखना था। सुबह जल्दी निकल लिए पहले भोर में एक ऐतिहसिक जगह देखी। नाम याद नहीं आ रहा। कोई हवेली थी। जब पहुँचा तो वहाँ कोई शूटिंग खत्म हुयी थी। हवेली अक्सर बाहरी लोगों के लिए बंद रहती है , मैं सौभाग्यशाली था जो अंदर तक देखने का अवसर पाया। लकड़ी का काम बहुत सुन्दर है। शूटिंग वाले अपना पैकअप करके जा चुके थे और अपने पीछे बहुत गंदगी छोड़ गए थे।  चौकीदार , भून- भुना रहा था। मैंने उसे सहानुभूति के दो शब्द उससे कहे और निकल आया। बाहर एक गेट बना था जिस पर राजा रघुनाथ राव लिखा था अंदर तहसीलदार का भी ऑफिस था जो हवेली वालों ने दान दे दिया है।
#हवेली

रास्ते में बालाजी का काफी बड़ा मंदिर था। चुकि मै थका था , इसलिए किला देखने का ही ज्यादा मन था। नवनाथ जी कहा अभी जल्दी है इसलिए मंदिर भी चला गया। सुबह के  ९  बजे थे। मंदिर में भीड़ जरा भी नहीं थी पर वहां की व्यवस्था देखा , लग रहा था यहाँ हजारों आदमी आते है। मंदिर में निःशुल्क भोजन की व्यस्था थी। टिंडे (कुछ और भी हो सकता है , ठीक से समझ नहीं पाया ) की रसेदार सब्जी , चावल और साउथ की चटनी। खाना बड़ा ही साफ सुथरा,स्वादिष्ट , सुपाच्य था। दिल खुश हो गया। उनकी कैंटीन बहुत ही व्यस्थित थी।  

#बाला जी का मंदिर 


जारी>>>>> 

© आशीष कुमार , उन्नाव।  

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