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शनिवार, 22 जुलाई 2017

Right to privacy

आधार कार्ड और निजता का अधिकार 

आशीष कुमार 
             हाल में सर्वोच्च न्यायालय ने निजता के अधिकार पर बहस के लिए संवैधानिक पीठ का गठन किया है। 9 सदस्यों वाली यह पीठ निजता को मौलिक अधिकार के दायरे में रखने / न रखने पर बहस कर रही है। निजता के अधिकार का प्रश्न 'आधार कार्ड ' की अनिवार्यता के मामले की सुनवाई करते वक़्त न्यायपालिका ने उठाया। 2009 में आधार कार्ड योजना की शुरुआत हुयी थी तब से लेकर आधार कार्ड के जरिये राज्य द्वारा नागरिकों के मूल अधिकारों यथा स्वत्रंता का अधिकार के हनन का आरोप लगता रहा है।   निश्चित  ही यह सही समय है कि न्यापालिका, निजता के अधिकार  पर नए सिरे से विचार करे। इससे पहले दो मामलों में न्यायपालिका ने निजता को मौलिक अधिकार नहीं माना था। यह मामले ऍम.पी. शर्मा व अन्य बनाम सतीश चन्द्र (1954 ) , खड़क सिंह बनाम उत्तर प्रदेश ( 1962 ) थे। जाहिर है तब से लम्बा समय बीत चुका है। उक्त फैसलों के बाद कई मामलों में न्यायपालिका की छोटी पीठ  ने निजता के अधिकार को स्वीकारा भी है। राज्य और नागरिक के समकालीन समय में बदले  सम्बन्धो को देखते हुए यह अपरिहार्य हो गया है कि इस पर  नए सिरे से विचार किया जाय। पिछले कुछ समय से राज्य का नागरिकों पर नियंत्रण ज्यादा बढ़ा है। विविध योजनाओं में आधार कार्ड की अनिवार्यता के संदर्भ में उक्त को समझा जा सकता है। 

           राज्य और नागरिक सम्बन्ध के बारे में पुरातन काल से विमर्श  चला आ रहा है कि इनकी सही सीमा क्या है ? राज्य के अस्तित्व के लिए , नागरिकों के अधिकारों को सीमित रखना उचित माना गया है। राज्य को अपने नागरिकों को कल्याणकारी शासन का उपलब्ध कराने का अहम  दायित्व  भी सौंपा गया है। वास्तव में राज्य को उसी सीमा तक नागरिकों के अधिकारों में हस्तक्षेप करना चाहिए जहां तक उसे अपने अस्तित्व व स्थिरता के लिए जरूरी हो। मौलिक अधिकार , राज्य की शक्ति को सीमित  करते है। संविधान ने 1978 में मेनका गाँधी मामले में अनुच्छेद 21 के तहत गरिमापूर्ण जीवन को मौलिक अधिकार मान चुकी है। यह विचारणीय होगा कि अगर नागरिक को निजता अधिकार नहीं होगा तो  उसकी गरिमा के अधिकार के क्या मायने होंगे ?  

            राज्य के तौर पर भारत को कई तरह की चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है. इन चुनौतियों में सबसे जटिल भष्टाचार की चुनौती है। 'आधार कार्ड' को इससे से निपटने का अच्छा साधन माना जा रहा है।  यह कार्ड बायो पहचान से जोड़ा गया है; इसलिए इसमें जालसाजी की कोई जगह नहीं है। आधार कार्ड किस तरह से  भष्टाचार से निपटने में सहायक होगा आईये इसे  एक उदाहरण से समझते है। पहले बैंक में खाता खोलने के लिए  जो भी दस्तावेज जरूरी थे उनको फर्जी तरीके से बनवाया जा सकता था। इस तरह एक ही व्यक्ति अलग अलग पहचान के साथ कई बैंक खाते खोल सकता था। इन खातों का कई तरह से दुरूपयोग कर सकता था। जब आधार नंबर से बैंक खाते को जोड़ दिया जायेगा तब इस तरह की जालसाजी संभव न होगी। यही बात पैन कार्ड को आधार नंबर से जोड़ने की बात की गयी है ताकि आयकर विभाग दो या अधिक पैन कार्ड रखने वालों पर रोक लगा सके। इस सरकारी निर्णय को  सर्वोच्च न्यायालय ने 9 जून 2017 को दिए अपने एक निर्णय में सही माना है। 

                इसमें दो राय नहीं हो सकती है कि अगर राज्य , नागरिकों पर अपना नियंत्रण जरा भी शिथिल करें तो नागरिकों का कुछ हिस्सा मूल अधिकारों के नाम पर , अन्य नागरिकों के अधिकारों का हनन करने लगेगा। भारत की छिद्रिल सीमाओं के चलते , अवैध नागरिकों का काफी प्रवासन होने लगा है। पश्चिम बंगाल , असम , त्रिपुरा में बड़ी तादाद में बांग्लादेशी अवैध प्रवेश कर जाते है।  के आधार पर इन राज्यों में भारतीय नागरिकता पर दावा करने लगते है। पूर्वोत्तर भारत में यह समस्या काफी गंभीर व जटिल है। यह जटिल समस्या स्थानीय नागरिकों के मूल अधिकारों का अतिक्रमण  करती है। यह  भारत की एकता, अखंडता  और आंतरिक सुरक्षा  को देखते गंभीर चिंता का विषय है कि इन राज्यों में कुछ राजनीतिक दल इन्हे वोट बैंक के तौर पर देखने लगे है। इस तरह की  गंभीर व जटिल चुनौतियों से निपटने में 'आधार कार्ड' सटीक व तीव्र भूमिका निभा सकता है। 

आधार कार्ड के माध्यम से नागरिकों ने अपनी बायो पहचान के जरिये निजता , राज्य को सौप दी है। यह राज्य का दायित्व है कि इसका दुरूपयोग होने से रोके। डिज़िटल युग में राज्य के नागरिकों को आधार कार्ड जैसी बायो पहचान उपलब्ध कराना विकसित राज्य की निशानी है। लगभग सभी विकसित देशों में अपने नागरिकों का विस्तृत डेटा बेस होता है। इसके जरिये राज्य प्रशासन में काफी सुगमता होती है। यहाँ पर गौर करने वाली बात यह है पश्चिम के विकसित राज्य में  इस तरह का डाटा , बेहद सुरक्षित और सीमित एजेंसी /संस्थान की ही पहुंच में होता है। उसके दुरूपयोग किये जाने की सम्भावना न्यून होती है।  भारत में भी आधार कार्ड की बायो जानकारी की गोपनीयता , सुरक्षा की  दिशा में विचार किया जाना चाहिए। भारत में एक निजी दूर संचार कम्पनी ने अपने नए सिम , आधार कार्ड के आधार पर ही बाटे ; अन्य निजी सेवा प्रदाता भी इस बायो पहचान के लिए जोर दे रहे है। इस तरह निजी क्षेत्र के पास भी राज्य के नागरिकों का डेटा बेस तैयार होता जा रहा है। पिछले दिनों इस निजी डेटा बेस में एक हैकर ने सेंध लगा दी और बड़ी मात्रा में लोगों की बायो पहचान इंटरनेट के जरिये सार्वजनिक कर  दी। यद्यपि पुलिस ने जल्द ही इस मसले को सुलझा लिया तथापि यह घटना लोगों की आधार कार्ड की असुरक्षा और दुरूपयोग  पर  आशंका को सही साबित करती है। 

भारत को आधारकार्ड की सही व प्रभावी उपयोगिता के लिए दो जरूरी मसलों पर विशेष ध्यान होगा। पहला इसे सभी को सुगमता से उपलब्ध करा दिया जाय। अभी भी यह शत-प्रतिशत नागरिकों को आच्छादित नहीं कर सका है। दूसरा मसला इसकी सटीक सुरक्षा का है। डिज़िटल युग में डाटा सुरक्षा , राज्य के लिए बड़ी चुनौती है। पिछले दिनों 'वानाक्राई' जैसे रैनसम वेयर तथा 'पेट्रिया' नामक वाइपर हमले ने विश्व शासन प्रणाली   के समक्ष नए प्रश्न खड़े किये है। वाना क्राई नामक रैनसमवेयर का उद्देश्य जहां बिटक्वाइन के जरिये साइबर फिरौती वसूल करना था। पेट्रिया हमले का  उदेश्य राज्य (विशेषतः यूक्रेन ) की शासन प्रणाली को पंगु करना था।  यह फाइल वापसी  के लिए कोई विकल्प न देकर उसे हमेशा के लिए नष्ट कर दे  रहा था इसीलिए इसे वाइपर हमला कहा गया। इन दोनों साइबर हमले में भारत की भी डिज़िटल प्रणाली प्रभावित हुयी। अतः भारत को आधार कार्ड के डेटा बेस को बेहद कड़ी सुरक्षा में रखना होगा अन्यथा किसी भी दुश्मन देश के हाथ भारत के नागरिको की बायो पहचान जाने का खतरा बना रहेगा। 

संवैधानिक पीठ ने इस मसले पर अपनी शुरआती सुनवाई और बहस के आधार पर कहा है कि निजता के अधिकार को सम्पूर्ण नहीं माना जा सकता है। राज्य इस पर युक्तिसंगत रोक लगा सकते है। सर्वोच्च न्यायलय की संवैधानिक पीठ का फैसला निजता के अधिकार पर जो भी आये; यह तो तय है कि भारत सरकार करोड़ो रूपये के निवेश और वर्षों की मेहनत के बाद 'आधार कार्ड ' के मसले पर अपने कदम पीछे नहीं सकती है। न्यापालिका का फैसला , आधार कार्ड से जुडी कमियों  को दूर करने में सहायक होगा। यह अहम फैसला राज्य और नागरिक संबंधो को भी नए सिरे से परिभाषित करेगा ऐसी आशा की जा सकती है.

दिनांक - 23 जुलाई 2017                                                          आशीष कुमार , उन्नाव (उत्तर प्रदेश ) 


प्रसंगवश रामधारी सिंह 'दिनकर' की कुरुक्षेत्र की 'विज्ञानं' पर कुछ पंक्तियाँ याद आती है -
सावधान मनुष्य यदि विज्ञानं है तलवार , फेंक दे इसे तज मोह स्मृति के पार।

शनिवार, 3 जून 2017

World Peace Index


विश्व शांति सूचकांक 

इंस्टिट्यूट ऑफ़ इकोनॉमिक्स एंड पीस ने हाल में विश्व शांति सूचकांक जारी किया है। इसमें पहला स्थान आइसलैंड तथा अंतिम स्थान गृहयुद्ध , आतंकवाद से ग्रस्त  सीरिया को मिला है। 161 देशों की इस सूची में भारत को 137 स्थान दिया गया है। इससे पता चलता है कि भारत को इस विषय पर गंभीरता से सोचने की जरूरत है। 
भारत को आंतरिक चुनौती यथा नक्सलवाद , आरक्षण को लेकर हरियाणा , गुजरात , आंध्र प्रदेश तथा महाराष्ट्र में गंभीर हिंसा का सामना करना पड़ा है। इसके साथ सीमा की रक्षा के लिए हर वर्ष सकल घरेलू उत्पाद का एक बड़ा हिस्सा रक्षा उपकरणों पर ख़र्च करना पड़ता है। विश्व शांति सूचकांक के माध्यम से ऊपर वर्णित सस्थान विश्व को यह बतलाता है कि वैश्विक हिंसा के चलते देश अपनी पूरी क्षमता के साथ विकास नहीं कर पा रहे है। अगर हिंसा पर रोक ला दी जाय तो सैन्य ख़र्च कम होगा जिसका इस्तेमाल खाद्य सुरक्षा , स्वास्थ्य , जलवायु परिवर्तन , गरीबी के उन्मूलन में किया जा सकता है। 

आशीष कुमार ,
उन्नाव , उत्तर प्रदेश।   

मंगलवार, 30 मई 2017

Indian Agriculture & pre mansoon

भारतीय कृषि तथा मानसून 

भारत एक कृषि प्रधान देश है. भारत की लगभग 60 प्रतिशत आबादी अभी भी आजीविका के लिए कृषि पर निर्भर है। भारत की कृषि में वर्षा का यानि अच्छे व समय से आये मानसून का बहुत महत्व है। इस साल समय से पहले मानसून आना , भारत की अर्थव्यस्था के लिए शुभ संकेत है। इसमें बंगाल की खाड़ी में आये  मोरा चक्रवात की भूमिका भी मानी जा रही है। 
भारत विश्व के उन गिने चुने देशो में एक है जहां पर अच्छी बारिश होती है। इसके बावजूद कई दशकों से , तकनीकी व आर्थिक प्रगति के बावजूद भारत में वर्षा जल के सही प्रबंधन का अभाव देखा जा सकता है। हर साल बाढ़ व सूखा से देश के कई राज्य एक साथ जूझते है। बाढ़ व सूखा से निपटने के लिए बहुत सी योजनाये बनाई गयी है , इसके बावजूद हर साल इन आपदाओं के चलते बड़ी मात्रा में जान , माल की हानि होती है। 

वर्षा जल का सही प्रयोग देश की अर्थव्यस्था में काफी योगदान दे सकता है। आने वाले समय में जल संकट बढ़ता जायेगा। कुछ विद्वानों का अनुमान है कि जल संकट को लेकर तीसरा विश्व युद्ध भी हो सकता है। इस लिए भारत को अपनी विशेष अवस्थिति का गहनता से लाभ उठाने के लिए वर्षा जल का सर्वोत्तम तरीके से प्रबंधन करना चाहिए। भारत इस संदर्भ में इजरायल से काफी सीख ले सकता है जहाँ पर बहुत सीमित वर्षा होती है। इजरायल ने वर्षा जल प्रबंधन की नवाचारी , वहनीय तकनीक विकसित की है। आशा की जानी चाहिए कि भारत इस सदर्भ में पूर्व के सबक लेते हुए , इस गंभीर विषय में उचित कदम उठाएगा।  

आशीष कुमार 
उन्नाव , उत्तर प्रदेश।  

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