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मंगलवार, 20 नवंबर 2018

Right or Wrong ?



सही या गलत ?

जब मेरा रिजल्ट आया तो आनन फानन में मीडिया में तमाम बातें आयी। कुछ खोजी , उत्साही पत्रकार मेरी बैकग्राउंड पता की और संसाधनहीनता को रेखांकित किया। मेरी पास ऐसी तमाम पेपर कटिंग है , जिसमें इस तरह की खबरे है। 

चिंतक जी आपको याद तो होंगे ही। उनकी सोच , दृश्टिकोण जमाने से अलग ही रहता है। उनकी सोच इस मुद्दे पर अलग ही थी। उनका कहना था कि आज जब तुम सक्षम हो तो फिर अपनी गरीबी , संघर्ष को क्यों  बताते हो। तुम्हारी कहानी से न जाने कितने ही लोग बर्बाद हो सकते है। 

मैनें उनसे कहा कि पहली बात मैं इस बात पे कही जोर नहीं देता कि मैं आज सक्षम नहीं हूँ। पत्रकार लोग ही ऐसी चीज चाहते है , जिससे उनसे खबरे बिके। दूसरी बात यह है कि प्रेरणा तो संघर्ष , गरीबी , जुझारूपन से ही मिलती है। 

हालांकि मैंने अपनी बात रखी  थी और आज भी उस बात पर कायम हूँ पर कही  न कही चिंतक जी की बात भी सही लगती रही। यही कारण है कि धीरे धीरे मैं इस पेज पर कम सक्रिय होने लगा। मुझे अक्सर इस चीज का अहसास होता है कि आम लोग या सीधा कहूँ तो गरीब युवा , मुझे उस स्तर का जुझारूपन  दिखता ही नहीं है जो आईएएस की परीक्षा में जरूरत होती है।

यह बात बिलकुल सच है कि जब मैंने सिविल में पहला एटेम्पट दिया तो मैं बेरोजगार था और जब सफल हुआ तो 7 साल एक बहुत ही अच्छी नौकरी करते हो चुके थे । आज मेरा स्टेटस पहले की तुलना में बहुत बदल चूका है पर मुझे आज की मेरी समृद्धि का , मेरे सिलेक्शन से कोई सम्बन्ध नहीं दिखाई देता है। इसीलिए मेरी नजर में उस तरह की न्यूज़ ( किसान का बेटा बना आईएएस ) में कोई खराबी नहीं दिखती। अगर ऐसी न्यूज़ न आये तो किसान के बेटा कभी आईएएस के बारे में सोच ही नहीं सकता है। 

हर व्यक्ति को अपनी जगह अच्छे से पता होनी चाहिए। अगर उसे लगता है कि उसका चयन जरूर होगा तो आर्थिक बैकग्राउंड से कोई फर्क नहीं पड़ता। लेकिन अपने विकल्प भी खोल के रखने चाहिए ताकि चिंतक जी जैसे लोग यह न सोचे कि आईएएस की तैयारी करने में कोई बर्बाद भी हो सकता है। 

समय कैसे लोगों की सोच बदल देता है इसका चिंतक जी से बढ़िया कोई उदाहरण नहीं हो सकता है। मेरे तमाम पाठकों के लिए चिंतक जी आदर्श थे क्योंकि वो गरीब होने के बावजूद हमेसा पोसिटिव रहते थे पर लगातार आईएएस pre में फ़ैल होने से उनके मन में नकारात्मक विचार भर गए है इसलिए  वो खुद इस बात को स्वीकार करने लगे है कि केवल आमिर लोग ही आईएएस के बारे में सोचे। गरीबों का सिलेक्शन इसमें नहीं होता है और  जो सफल गरीबी का रोना रोते है वो झूठे लोग होते है।

© आशीष कुमार , उन्नाव , उत्तर प्रदेश।    

गुरुवार, 24 जुलाई 2014

IAS AND STATE CIVIL SERVICES

टॉपिक ४६ 
आप क्या मारना पसंद करेंगे हाथी या चीटी ?


इससे पहले पेटा से जुड़े लोग हंगामा मचाये मै साफ कर दू ये शीर्षक सिर्फ प्रतीक मात्र है। पिछले माह शायद प्रतियोगिता दर्पण में एक इंटरव्यू पढ़ रहा था वही ये शीर्षक लिया है। दरअसल यहाँ पर हाथी का मतलब आईएएस से है और चीटी का मतलब PCS यानि प्रांतीय प्रशासनिक सेवाओ (MPSC, GPSC, HPSC, MPPCS, RAS etc.)  से है। उस इंटरव्यू में उस टॉपर से किसी ने कहा था कि जब आप हाथी मार सकते है तो चीटी क्यों मार रहे है ?

इस प्रश्न का कोई सर्वमान्य जवाब नहीं हो सकता है। क्या अच्छा है ? आईएएस और PCS एक साथ देना चाहिए या सिर्फ आईएएस ही टारगेट पर होना चाहिए। मै अपनी बात करू तो शुरू में न तो आईएएस के बारे में सोचता था न PCS के बारे में। बस ये लगता था कोई भी छोटी मोटी जॉब मिल जाय तो इस बेरोजगारी से राहत मिले। तैयारी के दिनों में धीरे धीरे मित्रो से परिचय हुआ तो आईएएस PCS  के बारे में भी सोचने लगा। शुरू के दिनों में मुझे सौभाग्य से कहु या दुर्भाग्य से कहु मुझे ऐसे गुरु मिले कि PCS से मन ही उचट गया। क्या क्या बातें बतायी जैसे इस में बहुत लेट में सलेक्शन होता है ? पोस्ट बहुत कम आती है। स्केलिंग होती है। रटने वालो का होता है। अमुक सर , ने ६ बार इंटरव्यू दिया पर चयन न हुआ। यहाँ जुगाड़ भी चलता है। अमुक सरनेम होगा तो जल्दी चयन हो जायेगा।  ये बच्चो का खेल नही है। ज्यादातर ३५ से ४० की उम्र चयन हो पता है। तुम्हारे बाल झड़  जायेंगे पड़ते पड़ते आदि आदि ( थोड़े बहुत अंतर के साथ यही समस्याये हर राज्य में है राजस्थान में भी कोर्ट में मैटर है। मध्य प्रदेश में सगे संबधी वाला विवाद , गुजरात में १० साल बार पोस्ट आई है )

  अच्छा इन गुरु से जो बातें पता चली वो अंशतः सत्य ही थी। हमारे उत्तर प्रदेश में आज भी २००८ या २००९ के कुछ रिजल्ट बाकि है। सोचिये २०१४ में ६ साल बाद भी रिजल्ट आना बाकि है। यही सब देख कर मै शुरू में PCS के फॉर्म भर कर भी नही देता था। शुरू ने कहानी ये रही की आईएएस का PRE निकल गया पर PCS में PRE से ही बाहर।  खैर बाद में कुछ LOWER और समीक्षा अधिकारी के PRE निकले तब तक मुझे सेंट्रल गवर्नमेंट में चुन लिया गया और PCS की कहानी रुक गयी। फॉर्म PCS का  हर बार भरा  पर देने का अब मन नही होता है।

आईएएस २०१० तो बहुत ठीक था। जमकर मेहनत करो और १ साल के भीतर चयन। PCS से ज्यादा पोस्ट भी आती थी।कितने ही रिक्शा वाले , मजदूर , किसान , सब्जी बेचने वालो के बेटे आईएएस बन गए। 

पर अब कहानी बदल गयी है। कल की दिल्ली की घटनाओं से मन बहुत खिन्न और उदास है। ये पोस्ट तो बहाना भर है कल की खिन्नता दूर करने की । मैंने हमेशा अपने परिचित से बड़ी सोच रखने को कहा है। पिछली पोस्ट ४४  में जिस साथी की बात कर रहा था उनसे हमेशा मै कहा करता था कि जब आईएएस बनने की क्षमता है तो क्यों PCS में पड़े हो आदि आदि। कितने ही लोगो से मैंने कहा था कि बहुत से लोग आईएएस को हौव्वा मानकर फॉर्म नही भरते है जबकि हर प्रतियोगी को आईएएस का फॉर्म जरूर भरना चाहिए चयन हो न हो पर आप उस स्तर तक सोचना तो सीख जायेंगे।

पर मौसम और समय बदल गया है। अब तो यही कह सकता हूँ कि मेहनत और सोच से ही काम नही चलने वाला है। समझदारी दिखने का वक़्त है। PCS में भी प्रयास करे खास कर जब आपके पास कोई जॉब न हो। और जो जॉब कर रहे है वो भी अगर मैनेज कर सकते है तो आईएएस के साथ साथ PCS के लिए प्रयास जारी रखे। हा मुझसे तो PCS की लम्बी तैयारी न हो पायेगी। 

( इस बात को लेकर अपने अपने बहुत से तर्क हो सकते है कुछ लोग PCS को आईएएस के लिए प्रैक्टिस के रूप में ले सकते है तो कुछ लोगो के लिए PCS , आईएएस से भटकाव भी है। आशा है आप अपनी सोच और उलझनों को शेयर करेंगे। न चाहते हुए भी अब २४ अगस्त के लिए शुभकामनाये। सर के बल खड़े होकर पढ़ाई शुरू करने का वक़्त आ गया है। एडमिट कार्ड सामने चिपका कर रात दिन पढ़ाई शुरू करिये। आपको एक पोस्ट से मतलब है।आंदोलन अपनी जगह है और एग्जाम अपनी जगह है।  सभी को हार्दिक शुभकानाए )

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