सही या गलत ?
जब मेरा रिजल्ट आया तो आनन फानन में मीडिया में तमाम बातें आयी। कुछ खोजी , उत्साही पत्रकार मेरी बैकग्राउंड पता की और संसाधनहीनता को रेखांकित किया। मेरी पास ऐसी तमाम पेपर कटिंग है , जिसमें इस तरह की खबरे है।
चिंतक जी आपको याद तो होंगे ही। उनकी सोच , दृश्टिकोण जमाने से अलग ही रहता है। उनकी सोच इस मुद्दे पर अलग ही थी। उनका कहना था कि आज जब तुम सक्षम हो तो फिर अपनी गरीबी , संघर्ष को क्यों बताते हो। तुम्हारी कहानी से न जाने कितने ही लोग बर्बाद हो सकते है।
मैनें उनसे कहा कि पहली बात मैं इस बात पे कही जोर नहीं देता कि मैं आज सक्षम नहीं हूँ। पत्रकार लोग ही ऐसी चीज चाहते है , जिससे उनसे खबरे बिके। दूसरी बात यह है कि प्रेरणा तो संघर्ष , गरीबी , जुझारूपन से ही मिलती है।
हालांकि मैंने अपनी बात रखी थी और आज भी उस बात पर कायम हूँ पर कही न कही चिंतक जी की बात भी सही लगती रही। यही कारण है कि धीरे धीरे मैं इस पेज पर कम सक्रिय होने लगा। मुझे अक्सर इस चीज का अहसास होता है कि आम लोग या सीधा कहूँ तो गरीब युवा , मुझे उस स्तर का जुझारूपन दिखता ही नहीं है जो आईएएस की परीक्षा में जरूरत होती है।
यह बात बिलकुल सच है कि जब मैंने सिविल में पहला एटेम्पट दिया तो मैं बेरोजगार था और जब सफल हुआ तो 7 साल एक बहुत ही अच्छी नौकरी करते हो चुके थे । आज मेरा स्टेटस पहले की तुलना में बहुत बदल चूका है पर मुझे आज की मेरी समृद्धि का , मेरे सिलेक्शन से कोई सम्बन्ध नहीं दिखाई देता है। इसीलिए मेरी नजर में उस तरह की न्यूज़ ( किसान का बेटा बना आईएएस ) में कोई खराबी नहीं दिखती। अगर ऐसी न्यूज़ न आये तो किसान के बेटा कभी आईएएस के बारे में सोच ही नहीं सकता है।
हर व्यक्ति को अपनी जगह अच्छे से पता होनी चाहिए। अगर उसे लगता है कि उसका चयन जरूर होगा तो आर्थिक बैकग्राउंड से कोई फर्क नहीं पड़ता। लेकिन अपने विकल्प भी खोल के रखने चाहिए ताकि चिंतक जी जैसे लोग यह न सोचे कि आईएएस की तैयारी करने में कोई बर्बाद भी हो सकता है।
समय कैसे लोगों की सोच बदल देता है इसका चिंतक जी से बढ़िया कोई उदाहरण नहीं हो सकता है। मेरे तमाम पाठकों के लिए चिंतक जी आदर्श थे क्योंकि वो गरीब होने के बावजूद हमेसा पोसिटिव रहते थे पर लगातार आईएएस pre में फ़ैल होने से उनके मन में नकारात्मक विचार भर गए है इसलिए वो खुद इस बात को स्वीकार करने लगे है कि केवल आमिर लोग ही आईएएस के बारे में सोचे। गरीबों का सिलेक्शन इसमें नहीं होता है और जो सफल गरीबी का रोना रोते है वो झूठे लोग होते है।
© आशीष कुमार , उन्नाव , उत्तर प्रदेश।