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शनिवार, 21 जनवरी 2017

He is really different




उससे मुलाकात मेरी स्पीपा में हुयी थी।  हुआ यह कि  उसको किसी ने बताया कि मेरा भी हिंदी साहित्य वैकल्पिक सब्जेक्ट है। वही मुझे खोजता हुआ आगे वाली लाइब्रेरी में आया था वो पीछे वाली लाइब्रेरी में बैठता था।  
पहली बार में मुझे लगा यह इंसान जमाने से बहुत पीछे चल रहा है।  मुझे ऐसे लोग बहुत आकर्षक लगते है।  उनमे बहुत सी चीजे खास होती है , सरलता से हद से ज्यादा होती है चिंतक जी की तरह । धीरे धीरे हम काफी अच्छे मित्र बन गए।  इसमें एक बड़ा योगदान हम दोनों का ऑफिस पास पास होने का भी था। एक दो बार उसके ऑफिस भी गया। उसके जीवन में बहुत सी बाते थी जो मेरे बड़े काम की थी।  मैंने उससे कहा  कि  तुम पर एक कहानी लिखूंगा , यह बात मैं लगभग हर किसी के कहता हूँ क्योंकि हर किसी में मुझको कुछ न कुछ खास बात दिख ही जाती है यह अलग बात है कि वयस्ततो के चलते बहुत कम लोगो पर लिख पाया हूँ।  

अब आज अचानक उस पर लिखने की वजह कल उसका फ़ोन आना है।  पता चला कि  वो अब शहर छोड़ कर जा रहा है , उसका प्रमोशन हो गया है और वो रायपुर जा रहा है।  सुनकर मुझे अच्छा न लगा वजह उसके साथ मुझे बहुत सी चीजे सीखने  को मिली थी। उसके होने से मुझे सम्बल मिलता था भले मुलाकात न हो या बात न हो।  खैर अब कुछ चीजे आपके साथ भी शेयर कर  रहा हूँ जो आपको भी लगेगी वो खास क्यों है.

 १.  किस्मत से मजदूर बनने से बच गया -  उसके गाँव  से कुछ लड़के पढ़ाई छोड़ कर गुजरात में कमाने निकल रहे थे।  यह उत्तर प्रदेश , बिहार , झारखण्ड में आम बात है , लड़के बम्बई , गुजरात , पंजाब कमाने के लिए निकलते रहते है ( यह देश की बड़ी विडम्बना है विषम विकास ) . वो भी निकलना चाहता था पर ऐन वक्त पर उसके पास पर्याप्त पैसे न इकठे हो पाए और वो वही रह गया।  समझ सकते है कि  वो किस स्तर पर था।  

२. उसकी ईमानदारी - जब उससे मुलाकात हुयी वो सेंट्रल गवर्नमेंट में अच्छी जॉब में था। इससे पहले वो इनकम टैक्स में टैक्स असिस्टेंट की तरह जॉब कर चूका था। उसकी वर्तमान पोस्ट में भी काफी पैसा है।( मैं  बहुत सी चीजे अभी लिख नही रहा हूँ पर कभी भविष्य में उस पर जरूर लिखूंगा। मैंने बहुत तरह के लोग देखे जो लंबी , चौड़ी , आदर्शवादी बातें  करते थे पर जब वो कमाई वाली सीट पर पहुँचे  तो सारी  हदे  पार कर  दी आपको जानकर बहुत हैरानी होगी चिंतक जी , जिनको हमारे बहुत से पाठक आदर्श मानते है जैसे लोग************   खैर जाने दीजिये . ) इस मित्र ने बहुत सी इस विषय में बताई जो वाकई आज समय में दुर्लभ है . बहुत विरले ही हाथ में आये पैसे को वापस लौटा पाते है . फेसबुक पर एक चर्चित युवा ias जिसके लेख आप भी पढ़ते होंगे आपको शायद यह बात सुनाई पड़ी हो उसने 300 करोड़ में शादी की है। 300  करोड़ की बात ठीक से पता नही है पर उनकी एथिक्स वाली बाते बहुत ही प्रभावी है।  यही है जिंदगी का दोहरापन ( एक पाठिका ने यह सवाल बहुत बार पूछा था अब समझ गयी न जिंदगी का दोहरापन )  
३.  प्रॉब्लम आंतरिक होती है न कि बाहरी - पिछले साल हम दोनों ने सिविल की तैयारी के लिए एक लाइब्रेरी ज्वाइन की। मैंने तो कुछ खास पढ़ाई न की पर उसके साथ काफी बातो पर चर्चा होती थी।  उसका यह लास्ट एटेम्पट था। उसने पूरी दम लगा दी। उन्ही दिनों एक बात बहुत अच्छी  बात बताई कि हमारी प्रॉब्लम आंतरिक होती न कि बाहरी।  अगर हम अपने भीतरी भाग पर विजय पा ले तो सारी चीजो पर विजय पा सकते है। पिछले साल , मेरी तैयारी सबसे शिथिल थी वो खैर हमेशा रही है पर मेरा इंटरव्यू काल आ गया। यह मेरे साथ साथ अन्य मित्रो के लिए भी हैरानी भरा था।  सच कहूँ तो मैं भी अपने हाथ पैर ढीले कर रखे थे कि मैं  सिविल के लायक नही पर यह उसकी संगति का असर था कि मैं आसानी से ही कॉल पा  गया। उसकी चीजे , अनुभव मेरे काम आये थे।  अफ़सोस , आखरी प्रयास में भी वो सफल न हो सका  . वैसे  ज्यादा अफोसजनक नही है क्योंकि वो अपनी जॉब में ही काफी ऊपर तक जाने वाला है।  


एक सैकड़ा बाते है पर अब मुझे विराम लेना होगा। भविष्य में उस पर जरूर लिखूंगा मुझे चीजे याद रहती है।  आशा है आपको इसमें कुछ बाते आपने  मतलब की मिल जाएँगी।  आपको पढ़ कर  अधूरापन लग रहा है , मेरी सबसे बड़ी शिकायत यही है मैं चीजे अधूरी छोड़ देता हूँ , मैं भी जानता हूँ कि हर पोस्ट , बहुत ही जल्दबाजी में लिखता हूँ पर कभी न कभी सब चीजे पूरी करूँगा , तुम पर भी लिखूंगा हाँ हाँ तुम पर भी 

कॉपी राईट - आशीष कुमार 

सोमवार, 12 दिसंबर 2016

That 48 hours





                आम तौर पर जब पास के मार्किट से सामान लेने जाना होता है तो पैदल ही जाता हूँ पर कभी कभी आलसवश बाइक से भी चला जाता हूँ।  ५० मीटर भी दुरी न होगी।  उस दिन मुझे दूध लेने जाना था तो बाइक लेकर गया।  दूध ले रहा था दूसरी और केले दिखे। इन दिनों केले बहुत मीठे आते है। उन्हें लेने चला गया। केले ले रहा था तो चौराहे के तीसरी ओर मुझे सेब दिखे।  काफी दिन हो गये थे सेब खाए सोचा आज ले ही लिए जाये।  फलाहार अच्छी चीज होती है मन में सोचा। सेब तौला रहा था कि मुझे बहुत सोधी खुशबू की महक आई।  यकीनन अहमदाबाद में यह खुशबू विस्मय का विषय थी।  ऐसा लगा कि up वाली स्टाइल में कही पास आलू की टिक्की बनाई जा रही हो। इसमें लेश मात्र झूठ नही , उसकी दुकान मैंने खुशबू से ही खोजी।





मार्केट में उसकी दुकान दिखती नही थी क्युकी उसकी ठेलिया पीछे लगती थी। मैंने अपने हाथो में दूध , केला और सेब लिए उसके पास पहुच गया। ५ मिनिट में सारी जानकारी ले डाली।  इटावा का आदमी था , पहले चंडीगढ़ में आलू टिक्की बेचा करता था अब ३ महीने से यही है।  मैंने उससे हर चीज जानने की कोशिस की कितनी लागत लगती है , बिक्री कितनी होती है , बचत कितने की होती है।  उसके किराये के तौर पर कितने रूपये देने पढ़ते है। इन सब के पीछे वजह यह थी कि मुझे अपने प्रान्त का आदमी मिल गया था और अपने घर जैसा कुछ खाने को मिलता। २० रूपये में दो टिक्की दिया।  बहुत स्वादिष्ट थी।  कुल मिलाकर वो ३ चीजे बेच रहा था।  मैंने बाकि चीजे दुसरे दिन खाने का वादा करके चला आया। चलते चलते उसे कुछ बिजनेस से जुड़े कुछ टिप्स भी दिए।  आपको पता ही होगा सरकारी आदमी , हमेशा धंधे की ओर आकर्षित होता है और धंधे वाला आदमी , सरकारी नौकरी के प्रति आकर्षित रहता है। वैसे भी इन दिनों स्टार्ट up का खूब चलन है मैंने उसे ऐसे ज्ञान दिया जैसे मै आईआईएम , अहमदबाद से पढाई करके निकला हूँ।  उसकी दुकान से जब चला तो मेरे मन में यह बात घूम रही थी मान लो यह आदमी का धंधा खूब चल निकला और इसने अपनी ठेलिया की चैन सीरिज खोल दी तो। 


अगले दिन में ऑफिस न जाकर , फील्ड पर जाना था।  गाड़ी लेने आई थी।  सारा दिन काम किया और रात में देर तक पढाई की। अगले दिन भी गाड़ी लेने आई। फिर सारा दिन काम किया और रात में पढाई की। तीसरे दिन मुझे ऑफिस जाना था।  सुबह देर से उठा पता न क्या सुझा सोचा आज खाना भी बना लिया जाय। खाना बनाते बनाते ११ बज गया।  जल्दी से खाना पैक कर , हेलमेट उठा कर नीचे गया। मेरा नया रेड कलर का हेलमेट बड़ा प्यारा है इसलिए इसे बाइक के साथ न रख फ्लैट में रखता हूँ।  

नीचे जाकर देखा तो बाइक न दिखी। एक पल को यकीन न हुआ। आखे मीच कर देखा तो भी बाइक न थी।  मेरी जान सूख गयी। सोसाइटी में कैमरे भी लगे है , सोचा यहाँ से कौन ले जा सकता है। इतना तो यकीन था जो भी बाइक की चोरी की होगी पकड़ा तो जायेगा ही।  हाथ में हेलमेट लिए मै गेट तक आ गया।  दिमाग पर जोर डालने लगा , कही मै ही तो बाइक नही ले गया था। अगर गया भी होगा तो पास तक ही।  सच में , दोस्तों आपको अजीब लग रहा होगा मुझे जरा भी याद नही आ रहा था कि बाइक कब और कहाँ तक ले गया था।  पता नही किस विश्वास से मै चौराहे तक आ गया।  मुझे दो जगह की संका हो रही थी या तो मै दूध लेने गया होऊंगा या फिर अगले चौराहे तक होटल में खाना खाने। 

चौराहे के दूसरी ऑर एक गन्दी सी बाइक दिखी। मुझे अपनी बाइक पहचाने में जरा भी देर न लगी।  पुरे ४८ घंटे वह वही खड़ी रही। मैंने डेरी वाले से बोला मेरी यह बाइक है और मै ले जा रहा हूँ। उसने कहा ले जाओ तुम्हारी ही है न ? मै ने उसे यकीन दिलाया हा मेरी ही है।  बाइक उठाते वक्त , मैंने चारो तरह नजर डाली , बाइक डेरी के बाहर लगे एक कैमरे के दायरे में थी। शायद किसी ने उसे उस जगह तक खिसका दिया था।  


Copyright - ASHEESH KUMAR 

( दोस्तों , कैसी लगी यह घटना ( यह कहानी नही हकीकत है . ) ................ क्या आप भी कभी इस तरह कुछ भूले है . ) 





शुक्रवार, 11 नवंबर 2016

That old man :how sad


वो बुढा आदमी



पिछले दिनों मेरा kanpur से Ahmedabd bus से आना हुआ . हैरान मत हो इतने लम्बे सफर के लिए भी बस चलती है ओर बहुत बार यह रेल से कम समय भी लेती है . festival season था इसलिए यही पकडनी पड़ी . २५ से २७ घंटे के सफर में बस बहुत जगह रूकती हुयी चलती है .

ऐसे ही एक जगह (होटल ) पर  बस  रुकी थी . सभी लोग जल्दी से उतर रहे थे . किसी को चाय पीने की जल्दी थी तो किसी को हल्का होना था . मै भी जल्दी से wash room की ओर गया . hotel अच्छा था . बाथरूम काफी साफ था . उसी समय मैंने कुछ ऐसा देखा जो बहुत ही वीभत्स था .

एक बुढा आदमी कमोड के निकलने वाले पानी को हाथो में लेकर , अपना मुह धो रहा था , साथ ही साथ देसी स्टाइल में कुल्ला भी कर रहा था . जाहिर है वो आदमी कमोड और वाश बेसिन में फर्क नही कर पा रहा था . दरअसल उन्ही कमोड के बगल में , एक wash basin भी लगा था ओर लोग वहा मुह धो रहे थे . शायद उस बूढ़े आदमी को लगा कि कमोड भी इसी लिए बने है वैसे भी उनमे उपर से पानी गिर रहा था जिसे वो आदमी अपने हाथो के सहारे रोक कर अंजुरी भर रहा था .

ऐसे में किसी को टोकना , उसे अपमानित करने सरीखा होता है वो आदमी भडक सकता है पर मुझसे रहा न गया . मैंने उसे बोला यह क्या कर रहे हो . नीचे मूत रहे हो और उपर के पानी से कुल्ला कर रहे हो . उस आदमी ने मेरी ओर देखा और बगैर कुछ कहे वाशरूम से निकल आया .

भारत में काफी दिनों से स्वच्छ भारत अभियान चल रहा है . मेरी समझ में साफ - सफाई की समझ के लिए लोगों को शिक्षित करना बहुत जरूरी है . वो आदमी , अपने मुह की सफाई तो कर रहा था पर अनजाने में शायद कुछ बीमारी को invite कर रहा था .


- by Asheesh kumar 

मंगलवार, 25 अक्टूबर 2016

How to audit your life ?

अपनी जिंदगी का लेखा जोखा कैसे करे ?

By Asheesh kumar

           शायद पिछली पोस्टों में बताया होगा कि इन दिनों मैं ऑडिट में काम कर रहा हूँ । ऑडिट यानी लेखा जोखा । कम समय में ज्यादा चीजों का निरीक्षण करना । mistakes को जल्दी पकड़ना यही है लेखा जोखा ।

जैसा कि मैं बहुत बार कह चूका हूँ thoughts मुझे सोने नही देते । हर night मैं न जाने क्या क्या सोचते हुए सोता हूँ । एक रोज ख्याल आया कि हर किसी को अपनी life का भी ऑडिट करते रहना चाहिए ।

मेरे ज्यादातर पाठक, दोस्त 20 से 25 वर्ष वाले उम्र के है । मेरी नजर में यह जिंदगी का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा होता है । 20 की आयु से आप कुछ प्रयोग करना शुरू कर देते है और 25 तक आप को अपने प्रयोगों के results आना शुरू हो जाते है ।
हमारी लाइफ एक है और जिंदगी में करना बहुत कुछ । मसलन पढ़ाई, सामाजिक सम्बन्ध , भावनात्मक सम्बन्ध , पर्यटन , अपनी पहचान बनना, धन कमाना आदि आदि । करना बहुत कुछ और समय बहुत थोडा ।

जिंदगी का सबसे बड़ा सबक मेरी नजर यही है कि आप संतुलन कैसे साधते हैं ? एक वाकया जोकि एक मित्र ने ही बताया , संक्षेप में बताता हूँ । उनके कोई मित्र 40 साल की आयु में SDM बने और इच्छा कि marriage करेंगे तो किसी षोडसी यानी 16 साल की बाला से । समझा जा सकता है कि उनकी ऐसी चाहत क्यू हुयी होगी । सारी उम्र पढ़ने में ही खत्म कर दी । पता नही उनका क्या हुआ पर अगर उनकी desire पूरी भी हो गयी होगी तो उनकी दशा प्रेमचंद की कहानी " नया विवाह " के पात्र लाला डंगामल जैसी ही होगी ।

अब एक प्रश्न उठता है कि संतुलन कैसे बनाये । इस प्रश्न को कभो आराम से विचार करेंगे आज आपको आपकी जिंदगी का ऑडिट करने का तरीका बताते है ।

आप अपनी dairy ( मेरे सभी पाठक डायरी जरूर लिखते होंगे यह अपेक्षा रखता हूँ ) में अपनी आयु लिखे ।
15 वर्ष से पहले
15- 25
25-40 वर्ष

आप अपने तरीके से इसे बाट सकते है और इनके सामने दो कॉलम बनाये । आप को क्या करना था और आप ने क्या किया । सभी बाते बिंदुवार लिख ले । देखे कि आप ने क्या खोया और क्या पाया ?

विषय अच्छा है और मेरे पास विचार भी बहुत अच्छे अच्छे है पर मैं सफर में हूँ और रात के 12 . 30 हो गए है इसलिए विराम लेता हूँ । अंत एक मजेदार वाकये से - भागीदारी भवन लखनऊ में बहुत से पढ़ाकू और टेलेंट लड़के मुझसे एक चीज से काफी परेसान रहते थे वजह मैं सबसे एक ही बात कहता था कि मैंने छोटी उम्र में ही खूब मजे कर लिए और उनके चेहरों पर उदासी छायी रहती कि वो पढ़ाई से इतर कुछ भी न कर पाये । कहने कि जरूरत नही कि वो मजे का मतलब प्रेम प्रसंग से लिया करते थे जबकि मेरा सन्दर्भ आपने विविधता भरे, बहु आयामी अनुभवों और नई नई चीजों में दक्ष होने से हुआ करता था । जैसी जिसकी सोच- बागा(तारक मेहता का उल्टा चश्मा )

कॉपीराइट - asheesh kumar

* l m thankful to my special readers , who remind me that सर बहुत दिन हो गए लिखा नही अपने कुछ अच्छा सा, अलग सा ।






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