कविता : बाबा नागार्जुन
ताड़ का तिल है तिल का ताड़ है
पब्लिक की पीठ पर बजट का पहाड़ है
किसकी है जनवरी किसका अगस्त है
कौन यहाॅ सुखी है कौन यहाॅ मस्त है।
सेठ ही सुखी है सेठ ही मस्त है।
मंत्री ही सूखी है मंत्री ही मस्त है।
उसी की जनवरी है उसी का अगस्त है।
जनता मुझसे पूछ रही है क्या बतलाउ
जनकवि हॅू मैं साफ कहुॅगा क्यूॅ हकलाउ।।
जनकवि बाबा नागार्जुन द्वारा रचित