यात्रा वृतांत: चलो नर्मदा के तीरे ( 02 )
दूसरी ओर खिचड़ी बनायी जा रही थी। मैंने कहा कि सब्जी मैं ही बनाऊंगा। पाठक जानते ही होंगे कि मुझे अच्छा खाना खाने के साथ साथ , लजीज स्वादिष्ट खाना बनाने का का बहुत शौक है। आलू , टमाटर , गाजर की रसेदार सब्जी बननी थी। लगभग 10 लोग के लिए मेरे लिए पहली बार खाना बनाना था। ज्यादातर लोगों के लिए यह पहली बार अनुभव था। प्याज , आलू , गाजर , अदरक काटने में कुछ और लोगों को लगवाया। उधर दूसरी टीम ने खिचड़ी पका ली थी। इसके बाद मैं उधर बैठा , बाकि दो लोगों को चूल्हा जलाने के लिए लगाया। सबसे बड़ी मुश्किल यही थी। उधर पनिया भी पक चुकी थी। हम प्याज भूनने में ही लगे थे।
मैं अपनी टीम मेमबर को समझा रहा था कि रसेदार सब्जी बनाने में सबसे महत्वपूर्ण होता है , प्याज को अच्छे से भूनना। इसमें बड़े धर्य की जरूरत होती है। सारे दिन की थकान के साथ अब धैर्य किसी पास न बचा था. एक मित्र आकर कहने लगे सब एक साथ डाल दो। नहीं अब मसाला पकाना , फिर टमाटर गलाना तब गाजर उसके बाद आलू पड़ेगी। उधर पनिया ठंडी होने लगी थी। सब्जी बनने में 40 मिनट लगा होगा। सबने खाने की तारीफ की। सब्जी इतनी अच्छी बनी थी कि कम पड़ गयी दूसरी ओर खिचड़ी लेने के लिए कोई भी इच्छुक न था। हमने आलू भी भुने थे।
खाने के बाद पास की पहाड़ी पर हाईकिंग करनी थी। रात गहरी थी पर चाँद साथ दे रहा था। पहाड़ी पर खड़ी चढ़ाई थी। ऊपर पहुंचने में पूरी दम निकल गयी। सॉस फूल गयी। ऊपर पहाड़ी पर से नर्मदा के पानी पर चाँदनी की छटा , अद्भुत , अविस्मरणीय व बड़ी ही मोहक लग रही थी। ऊपर 30 मिनट रुके और अपने वजूद को जानने , पहचाने की कोशिस की। नीचे आते आते पूरी तरह से थक चुके थे।टेंट के स्लीपिंग बैग में पहली बार सोया, काफी देर तक जमीन की चुभन महसूस होती रही और अंततः गहरी नींद में चला गया।
सुबह उठा तो सूर्य निकल चूका था। सूरज , की छवि , नर्मदा के पानी पर बड़ी सुंदर लग रही थी। दूर कुछ छोटी नावों में मछुवारे मछली पकड़ रहे थे। हमने टी चाय बनाई , ब्रेड सैंडविच , केले आदि का नाश्ता किया। एक बार हम फिर उसी पास वाली पहाड़ी के ऊपर तक गए , कुछ देर ऊपर रुके। नीचे आकर अपनी पैकिंग शुरू कर दी। जब हम बोट में अपनी समान चढ़ा रहे थे तब मैंने उसमे तीन बड़ी मछलियाँ देखी। बोट में एक तराजू भी लगा था। कल मैं जब बोट में आया था तो उस वक़्त भी जिज्ञासा हुयी थी कि इसकी यहाँ क्या जरूरत।
जब हम वापस लौट रहे थे तो किनारे से छोटी नाव लेकर कुछ लड़के हमारे बोट की तरफ आते, वो हमारे बोट मालिक को मछली बेचते। इस तरह से हमारा बोट मालिक दोहरे काम में लगा था। वापस हम अपनी गाड़ी के पास और उसमें सामान लादा। मुझे लगा कि हमारा टूर खत्म हो गया है पर भी दिन में एक एक्टिविटी होनी थी.
हम करीब १ बजे एक जगह पहुंचे जहाँ हमे स्क्रबंलिंग करनी थी। स्क्रैम्ब्लिंग मतलब किसी हाथों व पैरों के सहारे चढ़ाई करना। जगह का नाम ठीक से पता नहीं पर यह अभी कम व्यस्त जगह है। सामने चट्टानी पहाड़ दिख रह था।
( जहाँ हमने स्क्रेम्लिंग की )
नीचे हमने वहाँ के परिवार से खाना बनवाया। खाना खाकर , हम तुरंत पहाड़ी पर चढ़ने चले गए। यह काफी थकान भरा कार्य था और काफी हद तक जोखिम से भरा। कई बार जूते फिसले , हाथों में खरोच आयी पर रोमांच के लिए थोड़ी से चोट की परवाह किसे। काफी ऊपर तक गए पर सबसे ऊपर तक न जा सके क्योकि शाम होने को आयी। ऊपर कुछ देर रुककर हम वपिस नीचे आ गए। हम बुरी तरह से थक कर चूर थे।
रास्ते में हमने एक जगह रुक चाय पी। लौटते वक़्त हम सब काफी मुखर हो चुके थे। तमाम हुयी फिल्मों पर , सीरियल पर , गानों पर। जब हम अहमदाबाद पहुंचे तो रात के 10.30 बजे थे। मुझे घर पहुंचते -पहुंचते 12 बज गए। इस तरह से हमारी दो दिन की रोमांचक यात्रा का अंत हुआ।
दूसरी ओर खिचड़ी बनायी जा रही थी। मैंने कहा कि सब्जी मैं ही बनाऊंगा। पाठक जानते ही होंगे कि मुझे अच्छा खाना खाने के साथ साथ , लजीज स्वादिष्ट खाना बनाने का का बहुत शौक है। आलू , टमाटर , गाजर की रसेदार सब्जी बननी थी। लगभग 10 लोग के लिए मेरे लिए पहली बार खाना बनाना था। ज्यादातर लोगों के लिए यह पहली बार अनुभव था। प्याज , आलू , गाजर , अदरक काटने में कुछ और लोगों को लगवाया। उधर दूसरी टीम ने खिचड़ी पका ली थी। इसके बाद मैं उधर बैठा , बाकि दो लोगों को चूल्हा जलाने के लिए लगाया। सबसे बड़ी मुश्किल यही थी। उधर पनिया भी पक चुकी थी। हम प्याज भूनने में ही लगे थे।
मैं अपनी टीम मेमबर को समझा रहा था कि रसेदार सब्जी बनाने में सबसे महत्वपूर्ण होता है , प्याज को अच्छे से भूनना। इसमें बड़े धर्य की जरूरत होती है। सारे दिन की थकान के साथ अब धैर्य किसी पास न बचा था. एक मित्र आकर कहने लगे सब एक साथ डाल दो। नहीं अब मसाला पकाना , फिर टमाटर गलाना तब गाजर उसके बाद आलू पड़ेगी। उधर पनिया ठंडी होने लगी थी। सब्जी बनने में 40 मिनट लगा होगा। सबने खाने की तारीफ की। सब्जी इतनी अच्छी बनी थी कि कम पड़ गयी दूसरी ओर खिचड़ी लेने के लिए कोई भी इच्छुक न था। हमने आलू भी भुने थे।
खाने के बाद पास की पहाड़ी पर हाईकिंग करनी थी। रात गहरी थी पर चाँद साथ दे रहा था। पहाड़ी पर खड़ी चढ़ाई थी। ऊपर पहुंचने में पूरी दम निकल गयी। सॉस फूल गयी। ऊपर पहाड़ी पर से नर्मदा के पानी पर चाँदनी की छटा , अद्भुत , अविस्मरणीय व बड़ी ही मोहक लग रही थी। ऊपर 30 मिनट रुके और अपने वजूद को जानने , पहचाने की कोशिस की। नीचे आते आते पूरी तरह से थक चुके थे।टेंट के स्लीपिंग बैग में पहली बार सोया, काफी देर तक जमीन की चुभन महसूस होती रही और अंततः गहरी नींद में चला गया।
सुबह उठा तो सूर्य निकल चूका था। सूरज , की छवि , नर्मदा के पानी पर बड़ी सुंदर लग रही थी। दूर कुछ छोटी नावों में मछुवारे मछली पकड़ रहे थे। हमने टी चाय बनाई , ब्रेड सैंडविच , केले आदि का नाश्ता किया। एक बार हम फिर उसी पास वाली पहाड़ी के ऊपर तक गए , कुछ देर ऊपर रुके। नीचे आकर अपनी पैकिंग शुरू कर दी। जब हम बोट में अपनी समान चढ़ा रहे थे तब मैंने उसमे तीन बड़ी मछलियाँ देखी। बोट में एक तराजू भी लगा था। कल मैं जब बोट में आया था तो उस वक़्त भी जिज्ञासा हुयी थी कि इसकी यहाँ क्या जरूरत।
जब हम वापस लौट रहे थे तो किनारे से छोटी नाव लेकर कुछ लड़के हमारे बोट की तरफ आते, वो हमारे बोट मालिक को मछली बेचते। इस तरह से हमारा बोट मालिक दोहरे काम में लगा था। वापस हम अपनी गाड़ी के पास और उसमें सामान लादा। मुझे लगा कि हमारा टूर खत्म हो गया है पर भी दिन में एक एक्टिविटी होनी थी.
हम करीब १ बजे एक जगह पहुंचे जहाँ हमे स्क्रबंलिंग करनी थी। स्क्रैम्ब्लिंग मतलब किसी हाथों व पैरों के सहारे चढ़ाई करना। जगह का नाम ठीक से पता नहीं पर यह अभी कम व्यस्त जगह है। सामने चट्टानी पहाड़ दिख रह था।
( जहाँ हमने स्क्रेम्लिंग की )
नीचे हमने वहाँ के परिवार से खाना बनवाया। खाना खाकर , हम तुरंत पहाड़ी पर चढ़ने चले गए। यह काफी थकान भरा कार्य था और काफी हद तक जोखिम से भरा। कई बार जूते फिसले , हाथों में खरोच आयी पर रोमांच के लिए थोड़ी से चोट की परवाह किसे। काफी ऊपर तक गए पर सबसे ऊपर तक न जा सके क्योकि शाम होने को आयी। ऊपर कुछ देर रुककर हम वपिस नीचे आ गए। हम बुरी तरह से थक कर चूर थे।
रास्ते में हमने एक जगह रुक चाय पी। लौटते वक़्त हम सब काफी मुखर हो चुके थे। तमाम हुयी फिल्मों पर , सीरियल पर , गानों पर। जब हम अहमदाबाद पहुंचे तो रात के 10.30 बजे थे। मुझे घर पहुंचते -पहुंचते 12 बज गए। इस तरह से हमारी दो दिन की रोमांचक यात्रा का अंत हुआ।
(समाप्त )
© आशीष कुमार , उन्नाव , उत्तर प्रदेश।