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सोमवार, 28 अगस्त 2017

75 years of Quit India Movement


भारत छोड़ो के 75 साल 


हाल में ही भारत छोड़ो आंदोलन के 75 वर्ष पुरे हुए है। इस विशेष अवसर पर हमारे प्रधानमंत्री ने आज के युवा वर्ग से एक आह्वान करते हुए कहा कि आज भारत को कई समस्याओं यथा गरीबी , कुपोषण , जातिवाद को भारत से छोड़ने के लिए बाध्य करना है। इस अवसर पर एक विशेष कार्यक्रम 'संकल्प से सिद्धि ' की घोषणा भी की गयी। ऐसी आशा की गयी कि अगर हम आज उक्त वर्णित समस्याओं को दूर करने का संकल्प ले तो 2022 में भारत इन समस्याओं से आजाद हो जाएगा। जैसे 1942 के ठीक 5 वर्ष  बाद 1947  में भारत को ब्रिटिश शासन से आजादी मिल गयी थी।  

प्रधानमंत्री ने पिछले दिनों देश के जिलाधिकारियों से सीधे संवाद किया। उन्हें फाइलों से भारत निकल कर जिले की हकीकत को देखते हुए काम करने को कहा गया। हर किसी को अपने स्तर पर लक्ष्य तय करने को कहा गया। निश्चित ही यह प्रशासन के परम्परागत रूप से काफी बदला नजर आता है। भारत को आजाद हुए 70 साल होने को है , इसके बावजूद भारत कुछ गंभीर विसंगतिओं का देश कहलाता है। एक भारत महाशक्ति कहलाने का आतुर दिखता है और कुछ मायने में महाशक्ति कहा भी जाने लगा है तो दूसरी ओर भारत में सबसे जयादा कुपोषित , गरीब , स्वास्थ्य सुविधाओं से वंचित आबादी रहती है। 

 जब भारत आजाद हुआ था तब भारत के समक्ष बेहद गंभीर चुनौती थी - शरणार्थी मुद्दा , राज्यों की एकता , भाषायी चुनौती , कश्मीर का मसला। निश्चित ही भारत ने आजादी के बाद काफी प्रगति की है। शिक्षा , खाद्य सुरक्षा , सीमा रक्षा , तकनीक  ऊर्जा के मसलों पर भारत ने सापेक्ष रूप में खूब प्रगति की है। भारत इन सालो में एक जटिल समस्या से जूझता रहा वह है विषमता। चाहे यह वर्गगत हो या क्षेत्रगत , भारत दोनों ही नजरिये से असफल रह है। ऑक्सफैम की रिपोर्ट के अनुसार , आजादी से समय से अब तक भारत में अमीर और गरीब के बीच की खाई और चौड़ी हुयी है। आखिर इसकी वजह क्या हो सकती है ?

दरअसल विकास के लाभ , भ्रस्टचार के चलते कुछ वर्गो तक ही सीमित रहे या कहे उनके द्वारा लपक लिए गए। भारत में अक्सर नीति पंगुता बनाम क्रियान्वयन असफलता पर बहस की जाती है। मेरे हिसाब से दोनों ही मसलों में भारत असफल रहा। लाइसेंस राज में लोग अपने उद्योग के विकास के बजाय मंत्रालय में जोड़ -तोड़ में लगे रहे। इसी तरह देश के एक प्रधानमंत्री ने खुद स्वीकारा कि दिल्ली से आने वाले 1 रूपये में मात्र 15 पैसे ही गरीब को पहुंच पाते है। आशा की जानी चाहिए कि  प्रधानमंत्री जी के इस नए, जोशीले नारा 'करेंगे और करके रहेंगे ' मात्र एक वाक्य न बन कर रह जाये।  समस्त देशवासी इस दिशा में गंभीरता से प्रयास करेंगे।

आशीष कुमार
उन्नाव , उत्तर प्रदेश।  

शनिवार, 12 अगस्त 2017

20 years OF BIMSTEC


बिम्सटेक के 20 वर्ष 


हाल में ही नेपाल में बिम्सटेक के विदेश मंत्री स्तर की बैठक संपन्न हुयी। पिछले कुछ सालों में यह क्षेत्रीय संगठन भारत तथा पड़ोसी देशों के लिए सबसे लोकप्रिय , उपयोगी मंच बनकर उभरा है। 1997 में स्थापित यह बहुआयामी मंच , सार्क के विकल्प के तौर पर देखा जा रहा है। विदित हो कि आंतकवाद, सम्पर्क के मसले पर पाकिस्तान के अड़ियल रुख के चलते सार्क की उपयोगिता कम होती जा रही है। पिछले सार्क की बैठक जोकि पाकिस्तान में होनी थी , भारत के साथ साथ श्रीलंका , भूटान के विरोध के चलते स्थगित हो गयी थी।  

बिस्मटेक के नेपाल बैठक में आतंकवाद के प्रति कड़ा रुख अपनाये जाने , क्षेत्रीय सहयोग वृद्धि , शांति व स्थिरता के लिए मिलकर काम करने की बात कही गयी है।  बिम्सटेक के इस साल अपनी स्थापना के 20 वर्ष पूरे हो रहे है। इन दो दशकों में इस संगठन ने आपसी सहमति , सहयोग के मसले पर काफी प्रगति की है। विज्ञानं , तकनीक , क्षेत्रीय सुरक्षा , आतंकवाद , व्यापार , सम्पर्क जैसे महत्वपूर्ण मसलों पर काफी प्रगति हुयी है। 2014 में ढाका में इसका सचिवालय स्थापित किया गया था।  2016 में भारत ने गोवा में आयोजित ब्रिक्स देशों की बैठक के साथ इस संगठन के सदस्य देशो को आमंत्रित कर , इसके बढ़ते महत्व को प्रतिबिम्बित किया था।  

बिम्सटेक , भारत की एक्ट ईस्ट , नेबरहुड फर्स्ट पालिसी के नजरिये से काफी महत्व रखता है। भारत , म्यांमार , थाईलैंड के बीच त्रिपक्षीय मार्ग बनाने की बात की जा रही है। भारत -म्यांमार -कलादान मल्टीमॉडल मार्ग को भी स्थापित किया जाना है। यह भारत के पूर्वोत्तर भाग में नए विकास -प्रगति के लिए काफी महत्वपूर्ण साबित होगा। भारत ने इस साल साउथ एशिया सेटेलाइट को लांच किया है जो इस क्षेत्र के देशों को निःशुल्क उपग्रह सेवाओँ के लाभ प्रदान करेगा। आशा की जा सकती है कि भारत , इस मंच को अपने अनुभव , प्रगति को साझा करते हुए नई उचाईयों तक ले जायेगा। 

आशीष कुमार 
उन्नाव , उत्तर प्रदेश।  

मंगलवार, 8 अगस्त 2017

WOMEN SECURITY : ANALYSIS


 महिला सुरक्षा : एक विश्लेषण 

चंडीगढ़ में एक आईएएस की बेटी के साथ हुयी घटना , उस पर पुलिस की ढीली कार्यवाही से एक फिर भारत की परम्परागत , रूढ़िगत सोच दिखाई दे रही है। निश्चित ही उस लड़की ने बेहद साहस दिखाते हुए पुलिस में रिपोर्ट दर्ज करवाई। आमतौर पर इस तरह की पीछा किये जाने की , गंदे कमेंट करने की गतिविधि एक भारतीय लड़की के लिए आम बात है। प्रायः लड़कियों को इस तरह के मामलों को अनसुना करने की हिदायत दे दी जाती है। पुलिस के पास , आम नागरिक कतराता है वजह पुलिस का असहयोग और उदासीनता का रवैया। चंडीगढ़ के उक्त मामले में भी पुलिस ने दबाव में कार्यवाही में शिथिलता बरती। वास्तव में पुलिस अक्सर सही धारा में केस नहीं दर्ज करती। रिपोर्ट में सारे खेल छुपे होते है। लड़की ने अपहरण के प्रयास के तहत रिपोर्ट दर्ज करानी चाही पर पुलिस ने सिर्फ छेड़खानी का मामला दर्ज किया। इससे केस कमजोर पड़ गया और आरोपी को जमानत मिल गयी। अपहरण के केस में उसे जमानत न मिलती।  पुलिस को कई CCTV  में कोई भी फुटेज न मिली। पुलिस की इसी तरह की गतिवधियों के चलते उनकी समाज में छवि खराब हुयी है। पुलिस सुधार के लिए बनी कई समितियों में यह कहा गया है कि उसे राजनीतिक दवाब में काम नहीं करना चाहिए। यहां पर यह जान लेना उचित है कि पुलिस , राजनीतिक दबाव में कार्य क्यू करती है ? उत्तर है कि  पुलिस अधिकारियों के कार्यकाल की कोई निश्चित सुरक्षा नहीं है। सुप्रीम कोर्ट ने भी पुलिस सुधार पर चर्चित मामले प्रकाश सिंह में इस दिशा में कई महत्वपूर्ण निर्देश दिए थे जिनका अनुपालन नहीं किया गया। 

किसी भी राष्ट की प्रगति के लिए जरूरी है कि वहां पर महिलाओं की सभी तरह की गतिविधिओं में समान भागीदारी बढ़े। भारत का मानव विकास सूचकांक , ग्लोबल जेंडर गैप इंडेक्स में बेहद निम्न स्थान है। इसका के बड़ा कारन , भारत में महिलाओं की सुरक्षा की लचर स्थति है।  केवल आर्थिक विकास ही , भारत के लिए महत्वपूर्ण नहीं है। सरकार को समाजिक विकास पर भी ध्यान देना होगा। इस तरह की घटनाओं में ही नहीं वरन सभी घटनाओ में जहाँ न्याय की अवहेलना होती हो , सक्रिय भूमिका निभानी होगी। समाज में इस तरह की घटनाये न हो , इसके लिए केवल पुलिस या सरकार का ही दायित्व नहीं है। आमजन को भी अपनी परम्परागत सोच में बदलाव लाना होगा। हमें पितृसत्तामक सोच से निकलना होगा। महिलाओं के लिए सामान अधिकारों की बात करनी होगी। तभी समाज में शांति व स्थिरता आएगी और देश सम्पूर्ण , समावेशी प्रगति के पथ पर गतिमान हो सकेगा।  

आशीष कुमार 
उन्नाव , उत्तर प्रदेश।   

50 years of ASEAN


आसियान के 50 साल 

इस वर्ष आसियान , अपनी स्थापना के 50 साल मना रहा है। 1967 में स्थापित यह 10 देशों का संगठन , विश्व के सबसे सफल क्षेत्रीय संगठन बनकर उभरा है। आसियान देशों ने आर्थिक , सामरिक , संस्कृतक मसलो पर अच्छी , सफल भूमिका निभाई है। इसने अपने सदस्य देशों के आन्तरिक मसलों पर भी हस्तक्षेप किया ताकि संगठन में मजबूती व स्थिरता बनी रहे। इसका अच्छा उदाहरन म्यामार है , जहाँ पर सैनिक शासन की जगह  लोकत्रांतिक शासन की शुरुआत हुयी है। इसके रीजिनल इकनोमिक कॉम्प्रिहेंसिव पहल में कई देश शामिल होने के लिए उत्सुक है। भारत भी इसका सदस्य बन चूका है। भारत तथा अन्य दक्षिण एशिया के देशों को अपने क्षेत्रीय पहल सार्क को , इस तरह की सफलता नही मिल पाई है। साफ्टा पर सहमति बनने के बावजूद , अभी भी इन देशों के बीच संपर्क और व्यापार को ज्यादा सफलता नही मिल पाई है। सार्क देशों को भी , आसियान से प्रेरणा लेते हुए , आपसी मतभेद को भुला कर अपने आर्थिक , सामरिक तथा राजनीतिक संबंधो को वरीयता देनी चाहिए।  

आशीष कुमार , 
उन्नाव , उत्तर प्रदेश।  

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