लिखने वाले के लिए यह जरूरी नहीं वो हमेशा अपने ही अनुभव लिखे। पिछले दिनों मुझे दूसरों के जरिये कुछ बड़े गजब के अनुभव सुनने को मिले, उन्हीं में से यह एक ..
तमाम लोगों को काम करने का इतना गहरा चस्का होता है या कुछ और ..जिस उम्र में शांति से घर में आराम करना चाहिए वो हिलते डुलते काम में लगे रहते हैं। मैं बात सरकारी सेवा की कर रहा हूँ। एक अकादमी में एक साहब पढ़ाने आते थे। बहुत ज्यादा ही योग्य, जितनी हमारी उम्र उससे दोगुना उनका अनुभव । कितनी ही किताबें प्रकाशित हो चुकी थी। जब वो पढ़ाते तो खड़े खड़े काँपने लगते। थोड़ी में उनकी साँसे फूलने लगती,बेचारे बड़ी ही मेहनत से पढ़ाते अब यह अलग बात है कि साहब 15 क्लास में 5 पन्ने की भी विषयवस्तु न पढ़ाई होगी। वो खुद बताया करते कि उनके बच्चे मना करते है कि अब आप पढ़ाने न जाया करिये, मैं खुद न मानता हूँ। इस बीच क्लास में पीछे से आवाज आती कि हां हम लोग तो फालतू हैं, जाहिर है साहब के जर्जर हो चूके कानों तक ये मजाक न पहुँच पाता।
खैर आज एक बहुत ही बड़े साहब की कहानी बतानी है। साहब इतने बड़े इतने बड़े हैं कि पुछो ही मत और उनकी अवस्था क्या हो चुकी है वो आप आगे पढ़ने जा रहे हैं।
जिनके मुख से मैंने यह घटना सुनी वो साथी भी सिविल सेवक हैं। मित्र का प्रशिक्षण चल रहा था। उन्हें पता चला कि बड़े वाले साहब का उनके क्षेत्र में दौरा है, साथी , साथी के बॉस सब लोग आनन फानन में क्षेत्र पहुँच गए। मित्र अपनी गाड़ी से उतर कर, बहुत बड़े वाले साहब के पास पहुँचे। बड़े वाले साहब अपनी कार से उतर ही रहे थे। मित्र ने जाकर अभिवादन किया और बड़े साहब उतर कर खड़े हुए। मित्र ने बड़े साहब से बताया कि सर अपने पिछले वर्ष मेरे UPSC वाले साक्षात्कार में सदस्य थे,
अब इसे संयोग कहे या क्या कहे ठीक उसी समय साहब की पैंट उतर ( दरअसल सरक ज्यादा उचित शब्द है) कर नीचे जूतों पर जा टिकी। मजे की बात यह कि साहब को इसका आभास ही नहीं, मित्र को बताना पड़ा कि साहब आपकी पैंट उतर गयी है। इसी बीच उनका सहायक आ गया और बड़े साहब की पैंट में दोनों तरफ से अंगुली फ़साई और कमर में लाकर टिका दी। ( आपको हेराफेरी फ़िल्म के बाबूराव याद आ रहे होंगे, बाबूराव थोड़ा जवान थे कम से कम झुक सकते थे पर ये साहब इस दशा में थे कि झुक भी न सकते थे )
मेरा हँस हँस कर पेट फूल गया और मैंने तिखार तिखारकर (तिखारना एक बैसवाड़ी बोली,अवधी का शब्द है जिसका अर्थ है खोद खोदकर/रस ले लेकर पूछना ) खूब पूछा, विस्तृत जानकारी ली मसलन कि क्या साहब ने बेल्ट न पहनी थी या तुम्हारे कहते ही कि उन्होंने उसका साक्षात्कार लिया था, उनकी पैंट सरक गयी और उन्होंने आपके बोलने पर क्या बोला था आदि आदि।
हालांकि बड़े साहब की टीम बहुत ही बढ़िया कार्य में लगी है पर आप ही सोचिए ऐसा भी क्या जुनून कि इस अवस्था में कार्य करते रहा जाय। अनुभव व योग्यता कितनी ही अधिक क्यों न हो क्या देश के अन्य लोगों के लिए बड़े साहब को जगह खाली न कर देनी चाहिये।
( अपनी बात : इन दिनों हम 4g चलाने वाले लोग, भटकते भटकते 2g स्पीड वाली जगह में चले आये हैं, अब तमाम चीजों के साथ हम लिखने पढ़ने वालों लोगों को मन्थर, जर्जर गति के नेट स्पीड से बड़ी दिक्कत हो रही है। रचनात्मकता उछाल मारती जा रही है पर नेट स्पीड है कि उसे दबाये ही जा रही है। तमाम मजेदार अनुभव संग्रह हो गए है, ऊपर वर्णित घटना इस कदर भायी कि लगा इसे पाठकों को कैसे भी हो जरूर पहुँचनी चाहिये।
कहानी सुनाने वाले मित्र बहुत डरे कि लिखना मत, मुझे टैग मत करना, वरना बड़े साहब तक अगर बात गयी तो मेरी पैंट उतरवा देंगे। हमने उन्हें भरोसा दिया कि शरलक होम्स भी आएंगे तो भी जान न पाएंगे कि बड़े साहब कौन थे, बशर्ते आप मुँह न खोले )
( उक्त रचना काल्पनिक है, किसी नाम, घटना से इसका कोई लेना देना नहीं है )
© आशीष कुमार, उन्नाव।
8 मार्च, 2020 ( पोर्ट ब्लेयर से )