नीला चाँद
कल रात में अंततः इस उपन्यास का पठन पूरा हो गया। शिव प्रसाद सिंह द्वारा लिखे गए इस बहुचर्चित उपन्यास की विषय वस्तु 11 वी सदी के समय राजा विद्याधर के पौत्र कीर्ति वर्मा के द्वारा अपने खोये राज्य की वापसी का प्रयास है। उस समय काशी में दो राजा थे एक कलचुरी शासक कर्ण , दूसरा गहड़वाल मदन। उपन्यास में तमाम उतार चढ़ाव हैं ।
पुस्तक का शीर्षक " नीला चाँद " बड़ी रोचकता जगाता है।मन में बड़ी उत्सुकता थी कि आखिर क्या है नीला चांद। इसका खुलासा उपन्यास की इन आखिरी पंक्तियों में होता है -
" .. बेटे , जैसे हर व्यक्ति के अंदर एक आंगन है, एक तुलसी चौरा है, वैसे ही सबके छोटे छोटे आकाश में एक नीला चाँद भी होता है। ढकोसलों से नहीं, नियति को जानने वाले दाम्भिकों की भविष्यवाणी से नहीं, तू खुद कालिमा में डूब कर अपने मन के आंगन में जगमगाता नीला चाँद देख लेगा, उसका नाम है अमोघ इच्छा शक्ति । "
यहाँ से उपन्यास खत्म हो जाता है। दरअसल कीरत ( कीर्ति वर्मा ) का शुरू में समय बेहद कठिन, संकट पूरित होता है जो वो समयांतर में अपने रण कौशल, अनुभव व जमीन से जुड़े लोगों के सहयोग से सुखांत में बदल देता है।
इस पुस्तक पढ़ने के पीछे की एक कहानी है। एक दिन मैं अपने वरिष्ठ के कक्ष में बैठा था। मैंने सर से पूछा कि आपके नाम के पीछे जो डॉ लगा है वो चिकित्सा वाला है या पीएचडी वाला। सर ने बताया कि उन्होंने साहित्य में पीएचडी की है। तीन उपन्यास को आधार बनाकर बनारस के पूर्व, मध्य व आधुनिक समाज को पिरोया है। उसमें " नीला चाँद " भी एक पुस्तक थी।
उन्हीं दिनों पुस्तकालय जाना हुआ, संयोग से यह उपन्यास सामने दिख गया। व्यास सम्मान, शारदा सम्मान (?) व साहित्य अकादमी पुरस्कार द्वारा इस कालजयी उपन्यास को पढ़ने के लिए काफी समय के साथ साथ हिंदी की बहुत अच्छी जानकारी होनी चाहिए। इसी उपन्यास से ऐसे 10 शब्दों के साथ तमाम हिंदी प्रेमी पाठकों को छोड़ रहा हूँ, इनमें एक का भी अर्थ मुझे पता न था।
स्तबक -
धम्मिल -
षंड-
प्रातराश-
क्वाथ-
धारायन्त्र -
वेशवास-
नागरमोथा-
प्रसेव-
त्वष्टा-
© आशीष कुमार, उन्नाव
12 अप्रैल, 2020।