सोमवार, 30 जून 2025

सड़क जो आगे से बंद है

सड़क जो आगे से बंद है 

आशीष कुमार

     दिल्ली में जब आप कभी यमुना नदी और अक्षरधाम मंदिर के पास से गुजरते है तो आपको दोनों के बीच में एक बड़ी सी सोसाइटी दिखती है। कहते है जब भारत में राष्ट्रमंडल खेल हुए थे तो यह खिलाड़ियों के रुकने के लिए इसे बनाया गया था। अगर आप गूगल करेंगे तो पाएंगे कि इसमें एक एक फ्लैट की कीमत 6 करोड़ रूपये तक है। इन दिनों इसमें सरकारी अफसरों के साथ साथ निजी लोग भी रहा करते हैं। पिछले दिनों समाचारों में पढ़ा कि भारत के मुख्य न्यायधीश का भी एक फ्लैट इसी सोसाइटी में है। सुना तो यह भी है एक प्रसिद्ध पंजाबी गायक का भी फ्लैट इधर है। 

    आज कहानी सोसायटी की नहीं वरन उसके बाहर से गुजरने वाली सड़क की है , सड़क आगे से बंद है , हालांकि एक रास्ता जरूर है जो घूम के अक्षरधाम मेट्रो तक पहुँचता है। ये जो सड़क है , इसकी खूबसूरती इसकी हरियाली , निजता व सफाई से है। सड़क के अंत में शाम को लोग बैडमिंटन खेलते है। वही कभी कभी कोई  कार , स्कूटी चलाना सीख व सिखा रहा होता है।  इसी सड़क पर तमाम लोग  सुबह शाम वाक , रनिंग भी करते है। साइकिलिंग के लिए भी यह जगह मुफीद है। तमाम बार इस सड़क पर प्रेमी जोड़े , अपनी क्षमता के अनुसार , स्कूटी , बाइक व कार में दिख जाते है। तमाम बार यह रील बनाने के लिए , बर्थडे मनाने के लिए भी दूर दराज से लोग आ जाते है।  तमाम बार कार में नशे करने ज्यादातर शराब , सिगरेट के लिए भी लोग दिख जाते है।



    
     धूप के दिनों में ओला , उबेर के ड्राइवर अपनी कार खड़ी करके खाना व् नींद लेने के लिए इसका उपयोग करते है। रोड काफी चौड़ी है , 6 लेन की रोड , उस पर कोई नियमित ट्रैफिक नहीं है , इसीलिए यह रोड उक्त वर्णित कामों में प्रयोग होती है।  तमाम बार पुलिस भी गश्त लगाते दिखती है , अक्सर मै देखता हूँ वो किसी जोड़े को पकड़ के पूछताछ कर रहे होते है, लड़के से पूछताछ चल रही होती है , लड़की दूर खड़ी होती है। रनिंग या साइकिलिंग के दौरान अक्सर मै यह सब देखता हूँ और तमाम बातें सोचा करता हूँ। 

    अक्सर यह नजारा भी होता है कि लड़की , लड़के पर चिल्लाती रहती है , लड़का चुपचाप सुनता रहता है। कई बार ऐसी चीजे देख के वो कहानियाँ भी याद आ जाती है कि लड़के ने लड़की  शादी पर दबाब डालने पर उसे मार डाला। पिछले दिनों एक लम्बी रेस करते हुए मैंने ऐसा ही सीन देखा , मन कर रहा था कि रुक के समझाऊं , लड़की लड़के पर चिल्लाये जा रही थी पर मै रुका नहीं। लोग खुद समझदार होते है , उन्हें क्या ही समझाना। 

    कई बार जब शाम होती है , मेरा मन होता है ऐसे प्रेमी जोड़ो को बोल दूँ कि सतर्क रहना पुलिस शादी वर्दी में घूम रही है पर मै बोलता नहीं , मै जानता हूँ इन बातों का कोई मतलब नहीं। हर रोज की यही कहानी है। तो भले भी यह चौड़ी सड़क आगे से बंद है , फिर हमेशा जीवंत रहती है। 

- आशीष कुमार , उन्नाव 
30 जून 2025 . 













शुक्रवार, 20 जून 2025

महुवे का पेड़

महुवे का पेड़

आशीष कुमार

तमाम बार उस रात की याद आयी , तमाम बार दिल किया लिखुँ उस रात के बारे में पर आलस में लिख न पाया। कल रात "कोहरे में कैद रंग" उपन्यास पढ़ रहा था। शुरू के पन्नों में ही जो घटना थी , जहाँ लड़के को उसका पिता कस्बे जाने के लिए अकेले आधे रास्ते में छोड़ देता है और लड़का शव यात्रा को देख डर सा जाता है। मुझे फिर से वहीं महुवे के पेड़ के नीचे गुजारी एक सर्द  रात याद आ गयी।  

मेरे गांव के पास एक क़स्बा है पुरवा , वहाँ से नहर गुजरती है। उसी नहर से एक छोटी नहर मेरे गांव के पास से गुजरती है। इस छोटी नहर से छोटी छोटी नाली निकली थी। जिनसे मेरे खेतों तक पानी आता था। खेतों में पानी लगाना भी उन दिनों काफी बड़ा काम हुआ करता था। तमाम लोग दिन में लगा लेते थे , कुछ लोगो को रात में बारी मिलती थी। एक शाम खेतों में मैं , मम्मी और पापा थे। पता चला कि आज रात में अपने खेतों में पानी लगेगा। कुछ सूखी लकड़ियाँ, पुवाल आदि  महुवे के पेड़ के नीचे डाल दी गयी. उसके बाद हम सब घर चले गए।  

वो सर्दी की एक अँधेरी रात थी। मैं , पापा के साथ घर से कुछ खाना लेकर खेतों की ओर चला। मुझे ठीक से याद नहीं पर उम्र 6 - 7 साल ही रही होगी। मैंने एक लाठी ले रखी थी , अपने चारो तरफ कम्बल लपेट रखा था जो बार बार  जमीन में घिसट रहा था. एक हाथ में स्टील वाला तीन खाने का टिफिन भी था। पापा के पास वो तीन सेल वाली एक टॉर्च थी. हम बात करते चले जा रहे थे। बातें हमारी घूम फिर कर कुछ निश्चित विषयों पर होती थी। पिता जी के अपने परिवार और उनके रिश्तेदारों ने उनका बहुत कभी कोई सहयोग या  सम्मान न किया। उन्ही दिनों से सोचा करता था कि बड़ा होकर उन सबसे बदला लूंगा।  

महुवे के पेड़ के पास पहुँच कर लकड़ी जला दी गयी। सर्दी काफी बढ़ गयी थी। चारों ओर घना अँधेरा था। पिता जी ने नाली में जाकर पानी का बहाव देखा। पानी में कुछ पत्ते या घास तोड़ के डाल कर देखा तो पता चला पानी कम आ रहा है। दरअसल नाली के ऊपरी हिस्से में दूसरे किसान भी भी पानी काट लेते थे , कई बार इधर का बहाव ही बंद कर देते थे। उन दिनों खेतों में पानी लगाने को लेकर लड़ाई हो जाया करती थी। पिता जी ने बोला मैं आगे तक जाकर आता हूँ। मुझे वहीं महुवे के पेड़ के नीचे रुके रहने को बोला। वो चले गए। मैं अकेला वहीं रुका रहा। कुछ देर तक आग जलती रही फिर वो मंद पड़ती गयी। 




पिता जी को गए काफी देर हो गयी। अँधेरा काफी था। मुझे डर लग रहा था। एक उम्मीद में कि थोड़ा आगे ही पिता जी होंगे मैं कुछ दूर आगे तक गया। आवाज भी लगाई पर बदले में पिता जी की कोई आवाज न आयी. मैं परेशान था कि कम से कम महुवे के पेड़ के नीचे कुछ हद तक सुरक्षित था। जगह क्यू ही छोड़ी। जब मैं परेशान , डरा हुआ वापस लौट रहा था , मुझे लगा कोई मेरा  पीछा कर रहा है. मैं जैसे तैसे महुवे के पेड़ के पास पहुँचा। पुवाल में कंबल ओढ़ के रोता हुआ सो गया। मुझे पता नहीं कब पिता जी लौटे और कब सुबह हुयी।  

वो महुवे का पेड़ सूख गया। उसके कटने के बाद वहां काफी जगह निकल आयी। आज जब खेत जाना होता है तो कार खड़ी व मोड़ने  की जगह वही है। चीजें बहुत बदल गयी है। बड़े वाले बोरवेल हो गए है। अपने साथ साथ पड़ोसियों का भी भला हो रहा है।  

 पिता जी असमय 2010 में चले गए। चीजे बदलना बस  उसी  वक़्त शुरू हुयी थी। 2010 में पहली सरकारी नौकरी लगी थी। मन में कसक सी रहती है कि उन्होंने अपने बदले हुए दिन ज्यादा न देख पाए। उनके संघर्षो के जिम्मेदार लोगों से बदला लेने के मेरे पास दो रास्ते थे एक हिंसक , दूसरा उन्हें सामाजिक आर्थिक तौर पर इतना पीछे छोड़ देना कि जब भी सामने पड़े तो खुद ही नजरे न मिला पाएं। मैंने दूसरा रास्ता चुना।  कहते है समय के साथ लोगों को माफ़ कर देना चाहिए, तमाम बार सोचा कि सब भूल जाऊ और शायद काफी हद तक भूल भी चूका हूँ पर तमाम बार करीबी रिश्तेदार , पारिवारिक लोगों को ये समझ न आता है कि मै इतना रिज़र्व क्यू रहता हूँ। वजह उपर वर्णित कुछ ऐसी ही यादें है , जो गाहे , बगाहे याद आ जाती है। 

©- आशीष कुमार , उन्नाव।  

20 जून 2025 









 

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