सफलता में दृढ़ इच्छाशक्ति का महत्व यदि हमारा लक्ष्य बहुत महत्वपूर्ण है तो हमें इसके महत्व को सदैव स्मृत रखना चाहिये। इच्छा जितनी प्रबल होगी हमारा प्रयास उसी अनुपात में गहरा होगा। मार्ग के अवरोधकों को समझिये, वक्त में अपने लक्ष्य को पा लीजिये। शिथिलता लाने से प्राय: हमें असफलता ही मिलती है। अपनी निश्चय क्षमता को पुन: प्रबल करिये ऐसे निर्णय लेना प्रारभ्भ करें कि आप डिगे नहीं। शनै: शनै: अपनी शक्ति का नमूना दिखार्इ पडेगा।
गुरुवार, 3 अक्टूबर 2013
HINDI BHASHA
भारतीय संस्कृति को हिन्दी द्वारा ही विश्व तक पहुंचाया जा सकता है किंतु भारतीय संस्कृति विश्व में तब तक प्रतिषिठत नहीं हो सकती है जब तक हिंदी अपने देश में प्रतिषिठत नहीं होती
भारत के बाहर हिन्दी बोलना आसान है, भारत में नहीं।
अटल बिहारी बाजपेर्इ
बुधवार, 7 अगस्त 2013
SOME IMPORTANT WEB LINKS FOR UPSC MAINS EXAMS
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AND YES, ALL THE VERY BEST FOR ALL ONE WHO CLEARED THIS YEAR UPSC (PRE) EXAM.
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बुधवार, 10 जुलाई 2013
लघु कथाः गिरगिट
लघु कथाः गिरगिट
आशीष कुमार
गिरगिट आमतौर पर पेड़ों या झाडि़यों पर नजर आता है, पर उस दिन सिंह साहब के लाॅन में जाने कहाॅ से आ गया था। उस समय सिंह साहब लाॅन में बैठकर एक गभ्भीर समस्या पर विचार कर रहे थे। सुबह पत्नी का नर्सिंग होम से फोन आया था, कह रही थी ‘‘ जाॅच करा ली है। इस बार भी लड़की है, अबार्सन करवा लें क्या?‘‘ पूछा था। दो लड़की पहले से ही हैं और अब फिर ! समस्या वाकई गम्भीर थी। इतने बड़े शहर के एस.पी. रहते सिंह साहब का कितने ही अपराधियों से सामना हुआ था, कभी परेशान नहीं हुए। आज पसीना आ रहा था।
अरे ! सिंह साहब चैंक गये, गिरगिट यहाॅं कहाॅं से आ गया? अजीब होता है यह! कभी इस रंग में कभी उस रंग में! सिंह साहब ने गिरगिट को भगाना चाहा पर जाने क्या सोचकर रूक गये। शायद वह गिरगिट को रंग बदलते देखना चाह रहे थे।
पर वह समस्या़...........! वैसे जहाॅं दो लड़कियाॅ हैं वहाॅं एक और सही। यॅू भी आजकल लड़का लड़की में भेद कहॅ रहा। भ्रूणहत्या होगी तो पाप भी सिर पर आयेगा। पर .....लड़के की बात ही कुछ और होती है।
अरे! गिरगिट ने वाकई रंग बदल लिया था। सिंह साहब गिरगिट को हरी घास के रंग में देखकर चकित हो गये। किस फिराक में है यह! पास में जरूर कोई शिकार होगा।
सिंह साहब ने पुनः सोचा-आजकल लड़की को पालना पोसना कितना कठिन हो गया है। सबसे कठिन शादी करना। कंगाल हो जाउॅगा मैं दहेज चुकाते चुकाते।सिंह साहब ने सिगरेट ऐश ट्रे में कुचल दी।
गिरगिट ये किस रंग में हो गया है कुछ लाल पर पीलापन लिये। अरे हाॅ पास में ही तो वह झींगुर है।शायद उसे ही खायेगा.... । सिंह साहब ने उठकर गिरगिट को कुचल देना चाहा। पर.......छोड़ो भी, खाने दो। सभी खाते हैं, इस बेचारे का तो भोजन है। सिंह साहब पुनः कुर्सी पर बैठ गये।
......आजकल तो बेटा होना ही सबसे बड़ी सम्पत्ति है। लड़का होना तो आजकल स्टेटस सिम्बल भी बन चुका है। कितनी आशा थी मिसेज सिंह को। इस बार जरूर लड़का होगा। कितनी ही बार कह चुकी थी। गिरगिट ने अपनी करीब एक फुट लम्बी जीभ निकालकर झींगुर को निगल लिया। सिंह साहब ने यह भी देखा। जाने क्या सोचा। तभी मोबाइल की रिंगटोन बज उठी।
मिसेज सिंह कह रही थी-‘‘ अबार्शन करा लिया।‘‘ सिंह साहब प्रसन्न हो गये। पत्नी ने समाजशास्त्र में पी.एच.डी. की है। इस बात का अहसास आज वास्तव में हो रहा था।
(अविराम त्रैमासिक में प्रकाशित)
©Asheesh Kumar
बुधवार, 26 जून 2013
Weekend Tour : Aaksherdham Temple , Gandhinagar
पिछले सप्ताहांत अपने सहकर्मी मुकल के साथ मउडी जैन मन्दिर गया था। इस मन्दिर की खास बात यह है कि यहाॅ जो प्रासाद मिलता है उसे मन्दिर में खाना होता है वापस आते समय अपने कपड़ों को भी साफ़ करके आना होता है।वापस लौटते समय अमरनाथ वाटर पार्क गया। गाॅधीनगर से बाहर जंगल के बीच बना यह वाटर पार्क अपनी सुन्दरता के लिये दूर दूर तक जाना जाता है।
फिर गाॅधीनगर के विश्व प्रसिद्व अक्षरधाम मन्दिर गया। यहाॅ मैं दूसरी बार गया था। इस बार वी आई पी गेट से प्रवेश करने का अवसर मिला तो काफी समय बच गया। मन्दिर बहुत ही सुन्दर, आकर्षक और शान्त वातावरण वाला है। इसका निर्माण कुछ इस तरह से किया गया है कि कितनी ही भीड़ क्यों न हो यहाॅ पर कभी अव्यवस्था न फैले। शाम को लेजर शो देखा। बहुत ही मनोरम दृश्य थे। तकनीक और आध्यात्म के अद्भुत संगम का परिचायक है यह लेजर शो।सच में यह एक शानदार,यादगार सप्ताहंात था।
Baba Nagarjun Ki kvita,
कविता : बाबा नागार्जुन
ताड़ का तिल है तिल का ताड़ है
पब्लिक की पीठ पर बजट का पहाड़ है
किसकी है जनवरी किसका अगस्त है
कौन यहाॅ सुखी है कौन यहाॅ मस्त है।
सेठ ही सुखी है सेठ ही मस्त है।
मंत्री ही सूखी है मंत्री ही मस्त है।
उसी की जनवरी है उसी का अगस्त है।
जनता मुझसे पूछ रही है क्या बतलाउ
जनकवि हॅू मैं साफ कहुॅगा क्यूॅ हकलाउ।।
जनकवि बाबा नागार्जुन द्वारा रचित
शुक्रवार, 21 जून 2013
लग्गड़ की दौड़
लग्गड़ की दौड़
आशीष कुमार
राग दरबारी में एक पात्र है लग्गड़। जो कि तहसील में एक दस्तावेज की नकल पाने के लिये महीनों चक्कर लगाता है। नकल देने वाला बाबु कुछ रिश्वत की माॅग करता है न मिलने पर लग्गड़ को चक्कर लगवाता रहता है।
कुछ ऐसा ही घटित हुआ हमारे साथ। 19 जून 2010 को मेरे पिता जी की आकस्मिक मृत्यु हो गयी थी। सरकारी योजना के तहत परिवार को एकमुश्त 20000 रू की मदद मिलनी थी। उस वक्त धन की वाकई बहुत जरूरत थी। फार्म भर दिया गया। अच्छा गाॅव में कुछ व्यक्ति इस तरह की दौड़ भाग में बहुत दक्ष होते है। कई लोग बता गये कि पाॅच सात हजार खर्च कर दो हम दिलवा देगें। मै उन्नाव जिले के मुख्यालय में काफी समय से रह रहा था। मुझे यकीन था कि कुछ न कुछ जुगाड़ कर मै रिश्वत देने से बच जाउगाॅ। उन्नाव के विकास भवन के पास में ही मै रहता था। अपने कनिष्ठ बन्धु को मैने समझा दिया कि रोज विकास भवन जाकर बाबू से मिलते रहो एक न एक दिन काम जरूर हो जायेगा।
वर्ष 2010 के अंत से शुरू हुई दौड़ भाग अनवरत चलती रही। हमने भी सोच रखा था कि रिश्वत नही देनी है पैसा मिले चाहे न मिले। मैं सरकारी सेवा में आ गया। परिस्थितियाॅ काफी बदल चुकी थी। अब पैसा का कोई मतलब न था पर दौड़ भाग जारी थी। मेरे छोटे दोनो भाई चक्कर काटते रहे पर पैसा न मिला। बाबू ने भाई से एक मार्कर भी माॅग लिया।एक भाई ने दिमाग लगा कर सूचना के अधिकार के तहत दबाव बनाना चाहा। पता नही उनकी आर टी आई कहीं दूसरे विभाग पहुॅच गई। इससे भी बात न बनी।
कनिष्ठतम भाई ने अभय ने हार कर एक बाबू से रिश्तेदारी निकाली उनको 500 रू दिये। यह वर्ष 2012 की बात है। कई बार धन उन्नाव से गाॅव की बैंक तक भी पहुॅच गया पर बैंक मैनेजर ने उसे पुनः उन्नाव भेज दिया। समझ न आ रहा था किया क्या जाय।
घटनायें बहुत है उनका विश्लेषण किया जाना यहाॅ सम्भव नही। एक आम आदमी तक किसी सरकारी योजना का धन पहुॅच पाना बहुत कठिन है। विशेषकर जब आप लग्गड़ की तरह नियम से सरकारी काम कराना चाहे। 19 जून 2013 को पिता जी के निधन को 3 वर्ष हो गये। भाई ने खबर दी आज ही पूरे 20000 रू बैंक में माता जी के खाते में आ गये हैं।
विडम्बना यही है कि कभी इतने रू मेरे परिवार की वार्षिक आय भी न हुआ करती थी। सोचिये उस वक्त इस सहायता की कितनी जरूरत थी। आज यह मेरे 15 दिन का वेतन है। अब इसका मूल्य नहीं।
यक्ष प्रश्न यह है कि क्या प्रशासन आने वाले लग्गड़ों की दौड़ को आसान कर सकेगा ?
©ASHEESH KUMAR, UNNAO
©ASHEESH KUMAR, UNNAO
संत और बेरोजगार
बहुत रोज से कुछ लिखना चाह रहा था पर लिख न पा रहा हॅू क्योंकि अब चिंतन मनन के लिये समय न मिल पाता है। कुछ पुरानी प्रकाशित रचनाओं को ही सोचा डिजटिल रूप में एकत्र कर लूॅ।इसी कडी़ में एक लघु कथा प्रस्तुत है। यह दैनिक जागरण में 2003 में प्रकाशित है। वर्ष 2008 में दैनिक जागरण की साहित्यिक वार्षिकी ’पुनर्नवा’ में इसका पुर्नप्रकाशन हुआ है।
लघु कथा :संत और बेरोजगार
विजय जी बेरोजगार थे। अविवाहित थे। आयु चालीस पार कर चुकी थी। इस पर वह बहुत सनकी थे। एक महफिल में किसी से उलझ गऐ। ज्यादातर लोग विजय जी की बात स्वीकार कर लेते थे पर वह न माना। वह भी बेरोजगार था। तर्क पर तर्क करता चला गया। विजय जी को अपशब्द भी कहना शुरू कर दिया। आखिरकार विजय जी ही शान्त हो गये। वह भी लड़-झगड़ कर महफिल से चला गया। उसके जाने के बाद विजय जी अपने रंग में आ गए। उसे पीठ पीछे जमकर कोसा। अन्य लोगों से कहने लगे मुझ जैसे संत को गाली दी है, इसकी या इसके परिवार में कोई मौत के करीब है। उस बेरोजगार को विजय जी की बातें जाननें को मिल गयी पर वापस उलझनेे नहीं आया।
महीने भर बाद बेरोजगार के अध्यापक पिता मर गए, दिल का दौरा पड़ा था। बेरोजगार खुश था क्योंकि उसे अपने पिता की जगह नौकरी मिल गई थी। नौकरी मिलते ही बेरोजगार सभ्य हो गया। विजय जी के अहसान को बेरोजगार ने भुलाया नहीं। उसकी कोशिशों से विजय जी कोसने वाले संत के रूप में विख्यात हो गए।
©आशीष कुमार
बुधवार, 19 जून 2013
Change In Hindi Language
पिछले दिनों जब घर उन्नाव गया तो पड़ोस के एक मित्र ने कहा और ब्रो ........ जब तक मै कुछ समझता बन्धुवर ने पूछा कैसे हो डयूड.........। अब भाषा का ऐसा रूप देख कर बडा़ आश्चर्य हुआ। मुझे लगा मै रहता हूॅ मेगा सिटी में तो बन्धु मुझसे इतनी अपेक्षा तो कर ही सकते थे कि मैं ब्रो और डयूड जैसे आधुनिकता दर्शाने वाले शब्दों को प्रयोग कर ही रहा होउगाॅ। नही मित्र ऐसी शब्दावली मेरे बस की नही। बस डर इस बात का है कि बोली से ही भाषा उपजती है और आने वाली हिन्दी भाषा का रूप विकृत न हो जाय.
आज के समय में हर कोई आधुनिक बनने , दिखने की कोशिश में लगा है। पता नहीं हमको क्या हो गया है कि हम अपनी जड़ो को भूलते जा रहे है। दरअसल पश्चिमी संस्कृति में इस तरह लिप्त हो गए है कि हम अपने संस्कारो को ही भूलते जा रहे हैं। अपनी बोली , भाषा की मिठास , भला अंग्रेजी क्या मुकाबला कर पायेगी। इसलिए जब तक जरूरी न हो हिंदी में बात करना ही उचित होगा।
सोमवार, 25 मार्च 2013
NEW CHANGES UPSC MAINS 2013
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