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गुरुवार, 7 नवंबर 2019

Three years in college

कॉलेज के वो तीन साल ।

हम वहाँ से आते है मतलब जहां आपको सब कुछ खुद ही करना है, गाइडेन्स नाम की कोई चीज नही होती है। बहुत समय से सोच रहा हूँ कि इस पर लिखू पर लगता था कि कॉलेज की आलोचना होगी पर कभी न कभी लिखना ही था।

मैंने भी तमाम लोगो की तरह की बीएससी की है। गणित, भौतिक विज्ञान व कंप्यूटर एप्लिकेशन में। स्वीकार करना कठिन है पर सच है कि तीनों ही में मुझे कुछ भी नही (स्नातक स्तर का ) आता। हमने ऐसे कॉलेज में एडमिशन लिया था जहाँ  वर्षो से एक विकट समस्या चली आ रही थी। अध्यापक क्लास इस लिए नही लेते थे क्योंकि उन्हें शिकायत होती कि छात्र पढ़ने ही नही आते और छात्रों का कहना था कि अध्यापक पढ़ाने नहीं आते इसलिए वो क्लास नही जाते । ऐसे में  होता यह कि अध्यापक अपने कॉमन रूम में बैठकर देश दुनिया का चिंतन करने में , समाज के नैतिक पतन, नेताओं की मक्कारी पर अपना कीमती समय देते। इससे उन्हें सन्तोष रहता कि वो हराम की कमाई नहीं ले रहे है। दूसरी ओर छात्र अपनी युवा ऊर्जा अन्य जगहों पर लगाते। हम जैसे कुछ जो गांव देहात से आते अपना ट्यूशन पढ़ाने जैसे कार्यों में लग जाते ताकि घर पर बोझ न बने।

मैं पूरे साल  साईकल लेकर घर 2 ट्यूशन पढ़ाता रहता फिर एग्जाम के समय दुपतिया ( अलग 2 नामों से बिकती है जैसे कानपुर यूनिवर्सिटी में इजी नोट्स चलते है ) जैसी पतली किताबें पढ़कर पेपर देने जाते। पहले साल तो दुपितया लिया पर अगले साल वो भी न ली तब भी पास हो गया यह मेरे लिए भी खुद रहस्य है आखिर कैसे ? । तीसरे साल प्रैक्टिकल होते हैं ।
मेरे पिता जी को कुछ चीजों का बढ़िया ज्ञान था। उनकी सलाह के अनुसार एक गुरु जी के घर प्रैक्टिकल वाले दिन सुबह 2 देसी माठा ( छाछ ) , कुछ ताजे करेले लेके दे आया। उनका बेटा निकला तो उसको बोला कि पापा से बोल देना कि आप का स्टूडेंट हूँ नाम आशीष है।

इसी तरह से कंप्यूटर के प्रैक्टिकल वाले सर को मधुशाला की प्रति दी। ( यह सलाह एक नेक मित्र की थी।) यहाँ मेरे टीचर भड़क गए बोले कि यह बिल्कुल गलत है पर प्रैक्टिकल वाले सर ने किताब रख ली यह कहते हुए कि लड़कें की भावना समझो। हो सकता है कि मैंने उन्हें यह भी बोला हो कि sir मैं लेखन करता हूँ आदि आदि ) । प्रैक्टिकल के नाम पर 100 -100 रुपये भी जमा कराए गए थे। अब यह मत कहना कि आपने कभी नही जमा किये प्रैक्टिकल के नाम पर रुपये।

गणित में 45 में 42 अंक दिए गए। 40 से कम किसी को कम नही मिले थे। 2 अंक गुरु की सेवा के थे या नही कह पाना मुश्किल है। कंप्यूटर वाले सर  ने कम अंक दिए थे। इसमें मुँह दिखाई ज्यादा चली  थी। मेरी मधुशाला काम न आई। बाद के वर्षों में मुझे इस बात का बेहद अफसोस होता रहा कि मैंने तीन सालों में एक पन्ने (बीएससी से जुड़ी )की भी पढ़ाई न की। न तो मुझे किसी बुक का नाम पता था और न ही कौन 2 से पेपर होते हैं। हालांकि इस धक्का परेड डिग्री के विषयों की उपयोगिता कभी समझ न आई। अंकगणित मेरी बहुत अच्छी थी , इंग्लिश में सर के बल मेहनत की। gk में बचपन से बहुत मजा आता था। बस इन्ही के दम पर तमाम नौकरी मिली।

यह कड़वी सच्चाई है पर कुछ नामचीन यूनिवर्सिटी को छोड़ दे यथा इलाहाबाद / प्रयागराज, BHU, DU तो सब जगह की स्थिति ले देकर उक्त सी है। और नामचीन जगहों पर पढ़ने वाले लोग पूरे देश के ग्रेजुएट का कितना परसेंट होंगे। माफ करना यह 15 साल पुरानी बात है। हो सकता अब काफी बदलाव हो गया हो। क्योंकि अब देश में बदलाव की बयार आयी है हो सकता हो अब उन कॉलेज में उस वर्षो से चली आ रही समस्या का समाधान हो गया हो।

© आशीष कुमार, उन्नाव, उत्तर प्रदेश ।

7 नवंबर 2019, दिल्ली

गुरुवार, 19 सितंबर 2019

Story of a disciplined man


एक सिद्धांतप्रिय व्यक्ति 

आप अगर पहली बार पढ़ेंगे तो शायद आपको अजीब लगे पर यह मेरे लिए नया नहीं है। इससे पहले इसी तरह की तीन घटनाएं लिख चुका हूँ। 

यह घटना अनायास ही पता चली थी। यह अपने पूर्व विभाग यानि कस्टम एंड एक्साइज , अहमदाबाद  की बात है. एक दिन एक सीनियर से एक पुराने अधीक्षक सर के बारे  में बड़ा दुखद पता चला।  

जहाँ मेरी सबसे पहले पोस्टिंग हुयी थी। वहाँ से बगल की रेंज में मेरा ट्रांसफर हो गया था। उस बिल्डिंग में एक डिवीज़न व 5 रेंज थी। मैं पहले से पांचवी में चला था। पहली रेंज में नए साहब आये उनके बारे में पहले अपने साथी मित्र से बातचीत किया करता था , बाद में सीधा सर से ही बात होने लगी थी। बड़े सैद्धांतिक व्यक्ति थे। उनके अपने बड़े गहरे विचार हुआ करते थे। शायद उनके बेटे ने  iit का एग्जाम दिया था , कभी कभी वो मुझसे रिजर्वेशन की बात किया करते थे कि बड़ा गलत है , मेरे बेटे के इतने नंबर है पर उसका न हुआ , अमुक कटैगरी में इतने पर ही हो गया। मैं ऐसे मसलों पर कभी तर्क करने की भूल नहीं करता हूँ , हमेशा ही उनसे सहमत रहता था। इसलिए वो खुश रहते थे। एक दिन बताया कि मेरा बेटा बिल्डिंग के नीचे वाले कार स्कूल में कार सीखने आता है। मैंने पूछा कौन सी  कार है आपके पास , बोले अभी कोई न है जब सीख लेगा तो कार भी ले लूंगा। मुझे थोड़ा अजीब ही लगा क्योकि विभाग में उनकी पोस्ट पर नौकरी करने वाले लोग आम तौर पर पूरी तरह से सेटल होते थे , कार तो बड़ी मामूली बात थी।  

खैर , अब कई सालों बाद उनके व्यक्तित्व की तमाम बातें याद नहीं आ रही है पर इतना याद है कि अगर उनके केबिन में जब भी जाना हुआ तो पकड़ कर बैठा लेते थे और अक्सर कोई न कोई मुद्दा उठाकर गरमा गर्म बहस छेड़ दिया करते थे। एक बात याद आती है। उनका जो इंस्पेक्टर था वो मेरा सबसे पहला कलीग था। हम दोनों ही इंस्पेक्टर के और पर पहली रेंज में कुछ दिन साथ रहे थे। ये जो साथी इंस्पेक्टर थे , वो भी बड़े दुर्लभ किस्म के इंसान थे। उनके बारे में पूरा का पूरा एक ग्रन्थ लिखा जा सकता है आज थोड़ा इशारा करके बढ़ते है। 

ये इंस्पेक्टर बिहार से थे , पहले मुंबई में टैक्स असिस्टेंट थे। उनको देखकर मुझे बिहार से जुडी वो कहानियाँ /लड़के याद आते जो रात दिन पढ़ाई करके अपनी किस्मत लिखते है। अगर आप उनसे मिले तो सोचेंगे कि यह इंसान किस समय में जी रहा है। बहुत ज्यादा ही सीधे , मासूम, मंद ( कार्य करने की गति ) व पिछड़े ( इसे जाति से न जोड़े , वो ज़माने से बहुत पीछे चल रहे थे ) थे। ऊपर जिन साहब की बात की है वो इनको तमाम तरह के काम सौंपते। जिसे मुझे याद आ रहा है कि एक बार उन्होंने इनसे हिंदी से जुडी रिपोर्ट तैयार करने को बोली। यह फील्ड के लिहाज से रेगुलर कार्य न था। अब इंस्पेक्टर साहब ने धीरे धीरे काम करना शुरू किया और कई हफ्ते तक उसी में व्यस्त रहे। कई साल पुरानी फाइल से हिंदी में लिखे  लेटर निकाले गए और उनका क्रमवार विवरण तैयार किया गया। दरअसल उस रेंज में कार्य न के बराबर था , इसलिए बड़े साहब इस तरह के कार्य खोजते व इंस्पेक्टर साहब अपनी मंथर गति से कार्य करते रहते। अन्य प्रकरण याद नहीं , यह भी याद आ रहा है कि उन्हें यह पता था कि मैंने upsc का इंटरव्यू दे रखा है, इसलिए वो मुझे तमाम तर्क करना चाहते थे. 

ऊपर जो अनायास वाली बात लिखी है वो इसलिए है। उस विभाग में अंतिम समय मैं ऑडिट में पोस्टेड था। वो मंथर गति वाले इंस्पेक्टर साहब भी साथ ही पोस्टेड थे। उन सीनियर से बातों बातों में पुराने साहब का जिक्र छिड़ा तो सर ने बताया कि उन्होंने तो सुसाइड कर लिया था। मैं सन्न रह गया। मेरे सामने उनका चेहरा कौंध गया। सर ने बताया कि एक रात (शायद सर्दियों की ) सुबह ४ बजे अपनी स्कूटर पर पत्नी के साथ वो साबरमती नदी ( अहमदाबाद ) के पुल पर गए, स्कूटर एक तरफ खड़ी करके पति पत्नी ने छलांग लगा दी। मेरी तरह आप सोच रहे होंगे वजह क्या रही होगी। सर के अनुसार अपने बच्चों की अनुशासनहीनता , बात न सुनने की वजह।  तमाम बार वो पढ़ाई -लिखाई को कहते पर शायद बच्चों को उनकी बात का ज्यादा फर्क नहीं पड़ता था। शायद उनके पैतृक निवास में माँ ( निश्चित नहीं ) आदि बीमार रहा करती थी। यही  मिश्रित कारण थे।

आप भी हैरान होंगे पर मैंने बाद में धीरे धीरे यह महसूस किया कि उक्त  बातें ही रही होंगी। कितनी विडंबना की बात है , संतान अपने माता पिता को कितना दुःख देती है , यह शायद ही वो कभी समझ सके। आत्महत्या से जुड़ी यह चौथी कहानी है जो पिछले दिनों अचानक याद आयी और रह रहकर बाध्य करती है कि इसको शब्दरूप में जरूर ढालों।  

( कृपया उक्त विवरण को काल्पनिक रूप में लिया जाय , किसी भी  जीवित या मृत व्यक्ति से इसका कोई लेना देना नहीं है।)

दिनांक - 19 सितंबर 2019                                                                                          ©    आशीष कुमार , 
                                                                                                                               उन्नाव उत्तर प्रदेश।

रविवार, 1 सितंबर 2019

Motivational story of amit chaudhry

सफलता की एक और प्रेरक कथा 


परसों शाम की बात है, रोज की तरह मैं अपनी अकादमी के जिम में वर्कआउट कर रहा था , रेस्ट के टाइम बीच बीच में मोबाइल चेक कर रहा था , तभी अमित का व्हाट एप पर मैसेज मिला सर , जिस  एग्जाम के बारे में आप से डिस्कस कर रहा था ,  उसमें मेरा अन्तिम  चयन हो गया है। जॉब किसी को भी मिले विशेषकर तमाम संघर्षो के बाद , मुझे व्यक्तिगत रूप में बेहद खुशी होती है। 

अमित के लिए मुझे अपार प्रसन्नता हुयी। ठीक से याद नहीं वो मुझसे कब जुड़े पर धीरे धीरे काफी करीब हो गए। मुखर्जी नगर, दिल्ली  जब भी आना होता, उन्ही के पास रुकना होता। हमउम्र ही है पर सम्मान हद से ज्यादा करते है। तमाम मसलों पर उनसे खुलकर बात होती रहती। जितना मैंने उन्हें जाना वो बहुत ज्यादा प्रतिभाशाली तो नहीं लगे पर उनके जुझारूपन की मन ही मन  हमेशा प्रशंसा करता। काफी पहले आईएएस की मुख्य परीक्षा लिखी थी , बाद में उनका pre कुछ अंको से रह जाता। दिल्ली में रहते रहते काफी समय हो गया था। घर से पैसों को दिक्क्त न थी पर उन्हें अब खुद उलझन होने लगी थी कि अब इतने समय के बाद घरवालों पर बोझ बना रहना उचित है भी कि नहीं। 

बीच बीच में मुझे फ़ोन करते व इस तरह की चीजों पर बात करते। शायद इस साल फरवरी में उनका मैसेज मिला , सर कुछ समय दीजिये। मिलने पर उन्होंने  अपनी दुविधा बताई। मध्य प्रदेश में प्रवक्ता पद की जगह निकली थी। फॉर्म पड़ा था पर वो अनिर्णय की हालत में थे। उन्हें आईएएस का pre देना था , जिसके लिए वो बहुत ज्यादा गंभीर थे। प्रवक्ता वाली परीक्षा देने का मतलब समय खराब होना। 

मैं हमेशा से इसी बात पर जोर देता हूँ कि सबसे पहले रोजगार , बाद में आईएएस। अगर बेरोजगार लम्बे समय तक बने रहो तो upsc के इंटरव्यू पर भी इसका अच्छा प्रभाव नहीं पड़ेगा। वैसे भी आईएएस में हिंदी माध्यम की सम्भावनाये काफी सीमित है, इसलिए मध्यमवर्गीय लोगों को हमेशा यही सलाह रहती है कि पहले नौकरी पक्की कर लो। अमित को भी यही समझाया कि एग्जाम दे आओ , बाकि फोकस upsc पर ही रखना। 

अब समझा सकता है कि कितना बढ़िया निणर्य था। आज वो 4800 ग्रेड पे की बढ़िया , सकून व संतुष्टिदायक पद पर चयनित है। अमित के चयन ने एक बार मेरे उस विश्वास को बढ़ा दिया। अक्सर , मजाक मजाक में कहा करता हूँ कि मेरे आस पास रहने वाले यानि मुझसे जुड़े लोग विशेषकर जो गहरी आस्था रखते है बेरोजगार नहीं रहते है , संघर्ष भले लम्बा हो पर उन्हें एक न एक दिन जॉब जरूर मिल जाती है। पता नहीं यह कैसे व क्यों होता है पर होता जरूर है। 

अमित के लिए खुशी इसलिए भी ज्यादा है क्योंकि यह पुराने दिनों के साथी है , अहमदाबाद से कभी दिल्ली आना होता तो सवाल उठता था कि रुके कहाँ ? जब से अमित जुड़े , तब से चिंता खत्म हुयी, कई बार वो अपनी एक्टिवा लेकर , मुझे अंतिम समय पर स्टेशन पहुँचाने भी गए। बातें तमाम है पर वक़्त कम है। 

मैंने काफी समय से लिखना रोक सा रखा है पर अमित से वादा किया था कि आपकी कहानी जरूर लिखूंगा। बड़ी प्रेरक है। उन्हें आँखो में कुछ प्रॉब्लम भी हो गयी है। तमाम लेंस , उपकरणों के जरिये अपनी पढ़ाई करते रहे है, उनके रूम पर जब जाना होता तो मन में एक दुआ सी उठती कि भगवान , कहीं  भी इनका सिलेक्शन जल्दी करवा दो , बहुत जूझ रहे है। वो  ज्यादा देर पढ़ नहीं पाते क्योंकि आँखो में दर्द होने लगता। 

इस परीक्षा में उन्हें पुरे मध्य प्रदेश में 41 रैंक मिली है। अभी सिविल सेवा में उनके एटेम्पट बाकि है , कुछ और अच्छे की उम्मीद की जा सकती है। बाकि पहली जॉब के अलग ही ख़ुशी होती है। उनके लिए , अच्छे भविष्य के लिए हार्दिक शुभकामनाएं। 


- आशीष कुमार , उन्नाव , उत्तर प्रदेश।  

शुक्रवार, 16 अगस्त 2019

My birthday : A thank you note

सामूहिक धन्यवाद ज्ञापन

आप सभी मित्रों, शुभचिंतकों को मेरे जन्मदिन पर , समय निकालकर अपने जो शुभकामनाएं दी, उनके लिए ह्रदय से धन्यवाद। आज कुछ बड़ी अनोखी बातें शेयर कर रहा हूँ, एक आध साल अपवाद को छोड़ दे तो कभी मैंने न तो बर्थडे केक काटा और न इसको कभी स्पेशल तरीके से ट्रीट किया। दरअसल मुझे बड़ी अजीब सी शर्म सी आती है, खासकर जब वो केक काटते समय गाने गाते है। दरअसल मुझे वो पूरा तामझाम ही बड़ा अजीब लगता है।

मैं अपने आसपास देखता हूँ तो बड़े अच्छे अच्छे लोग दिखते है , बहुत बढ़िया से अपना बर्थडे सलेब्रिट करते है। एक मित्र बर्बे कयु नेशन में जाकर पार्टी देते है, कुछ ऐसे भी लोग है जो पहले से बताएंगे कि अमुक दिन मेरा बर्थडे है और मुझे गिफ्ट क्या दोगे, इससे बढ़कर वो जो बोलकर मांगते है कि मुझे बर्थडे में अमुक चीज दे दो .उदाहरण के लिए वो I PHONE के कटे वाले हैडफोन ।

जब भी मैं अपने स्वभाव के विश्लेषण करता हूँ तो इन चीजों के उत्तर मिलते है। मैं समूह, भीड़ से अक्सर असहज रहता हूँ। मेरे एक एक कर या व्यक्तिगत संबंध हमेशा बहुत प्रगाढ़, मजबूत व आत्मीय बनजाते है पर समूह शायद ही कभी मेरे व्यवहार को स्वीकार करे ।

हर साल मुझे दो लोगों से एक विशेष तरह की शिकायत मिलती है, कि मैंने उन्हें बर्थडे विश क्यों न किया जबकि वो हर बार ध्यान से मुझे करते है। दोनों ही लोगों का बर्थडे ठीक एक दिन पहले यानी 15 अगस्त को होता है। इसबार एक लोगों का याद करके बैठा और उन्हें विश कर भी दिया पर कल शाम मुझे दूसरी शिकायत मिली। अब मुझसे कुछ कहते न बना। ये ऐसे लोग है जो पूरे साल गायब से रहते है प्रायः नाराज कि मैं बहुत बिजी रहता हूं पर बर्थडे पर विश जरूर करेंगे। उम्मीद करता हूँ कि पोस्ट लिखने से शायद मुझे अगले साल 15 अगस्त को याद रहे, कोई शिकायत न रहें।

तो दिन भले मेरा सामान्य सा गुजरे पर फेसबुक पर जब तक आप जैसे लोगों है तबतक हमारे जीवन में 16 अगस्त विशिष्ट या कहे जलवा कायम रहेगा। पुनश्च आपको बहुत बहुत शुक्रिया, आभार, अभिनंदन।

आपका - आशीष कुमार, उन्नाव ( उत्तर प्रदेश)

शनिवार, 22 जून 2019

kabir singh : a story


01 . कबीर सिंह : एक कानों सुनी , बिलकुल ताजी घटना 

हाँ , यह बात कबीर सिंह फिल्म की ही है। कल की बात है , मैंने किसी को फ़ोन पर इसके बारे में बात करते हुए सुना। जब उसकी बातें खत्म हो गयी तो मैंने पूछा "यार कबीर सिंह को लेकर क्या बात हो रही थी ( मैंने मूवी का काफी पहले ट्रेलर देखा था तब लोग बात कर रहे थे कि  यह सलमान खान की भारत मूवी से ज्यादा पॉपुलर हो रहा है ) . साथी ने बताया कि यार वाइफ का फ़ोन था कह रही थी कबीर सिंह मूवी देखने चले। अब जब वाइफ , पति से डिमांड करे वो भी जोकि सिविल सेवा का मैन्स देने वाली हो , जिसका पल पल कीमती हो तो जाहिर है मूवी बहुत खास होगी। मैंने साथी से पूछा कि तो फिर जा रहे हो क्या ? नहीं यार मैंने उसे समझा दिया कि दुनिया में दो ही तरह के लोग होते है - शासित व शासक। अब तुम्हें निर्णय लेना है कि तुम्हें क्या बनना है ? कबीर सिंह , फकीर सिंह तो आते जाते रहेंगे तुम्हें शासक बनना है कि नहीं, तुम कहाँ इन तुच्छ बातों में पड़ी हो । जाहिर है कि अब इतनी उच्च , दार्शनिक बातें सुनकर भाभी जी क्या ही बोली होंगी। हम दोनों बहुत देर तक इस बात को लेकर हसँते रहे। अगर कोई सिविल सेवा की तैयारी कर रहा हो तो वो भी इस बात से प्रेरणा ले सकता है कि तुम्हें बनना क्या है - शासक या शासित।

[मेरे नियमित पाठकों को पता है कि मैं इतनी छोटी पोस्ट नहीं लिखता फिर  इतने दिनों बाद लिखा है तो  नैतिक दबाव है कि कुछ और भी लिख ही दूँ। ]

०२. "अब जिंदगी में कोई उद्देश्य बचा नहीं "

यह कहानी दो ऐसे लोगों कि है जो दुनिया की सबसे कठिन समझी जाने वाली ( पता नहीं यह बात कब से और कैसे विरासत में चली आ रही है ) और जो हर साल देश के सबसे योग्य युवाओँ का दिमाग का दही करने वाली प्रतियोगी परीक्षा को पास कर चुके है। जी यह सिविल सेवा परीक्षा की बात हो रही है। जिन दो लोगों की बात हो रही है , उनमें एक ने अपने अंतिम प्रयास में यह परीक्षा पास की है , वो आईएएस नहीं बना फिर भी वो मुक्त हो गया, UPSC  ने उसे आजाद कर दिया कि अब तुम मोक्ष्य को पा  चुके , 9 साल तक गुलाम रहे अब अपनी जिंदगी जियो। दूसरे के पास एटेम्पट है पर उसे आईएएस मिल गया तो वो भी मुक्त हो गया। संयोग से दोनों रूम पार्टनर है। एक जनवरी से सोच रहा है कि अब क्या किया जाय , उसे पुरे साल सिविल सेवा की तैयारी की आदत पड़ गयी थी अब एकाएक सब खत्म। दूसरे को इसी साल आईएएस मिल गया। जिस दिन रिजल्ट आया और रैंक से आईएएस मिलना निश्चित हो गया , उसी दिन से वो भी मुक्त हो गया।  

तो अब ऐसे लोगों के जीवन पर नजर डालते है , दोनों ने ही तमाम कल्पना की थी कि बस एक बार UPSC से मुक्ति मिले तो जिंदगी में ऐश ही ऐश करेंगे पर दोनों करते क्या है - कल रात की बात है , जिसे आईएएस मिला है वो बोलता है यार अब जिंदगी में कोई उद्देश्य नहीं बचा है , दूसरा बोलता है हाँ भाई मैं तो जनवरी से यही सोच रहा हूँ। फिर दोनों टिक टॉक पर भारत के नए उभरते हुए एक्टर एक्ट्रेस की फूहड़ एक्टिंग देखते है। बीच बीच में बोलते है कि देश का युवा किस किस तरह की बकैती में लगा है ( अगर अपने आप टिक टॉक के वीडियो नहीं देखे तो आप उन बचे हुए दुर्लभ लोगों में है जिनकी प्रजाति तेजी से खत्म हो रही है ) ----दूसरा बोलता है - हाँ भाई सही कह रहे हो।  फिर दोनों एक दो घंटे तक अपने अपने फ़ोन में डूबे रहते है , एक हल्के होने के लिए उठता तो अहसास होता है कि रूम में ac ठंठक कम  कर रही है , रूम में दो ac है। दोनों में 18C तापमान कर दिया गया है। कंबल ओढ़ लिए क़र  फिर एक ने बोला -भाई जिंदगी में अब कोई उद्देश्य नहीं बचा , हाँ भाई मैं तो जनवरी से यही सोच रहा हूँ। रात के 1 बज गए है। अब मोबाइल से मन भर गया है। एक बोलता है कि भाई कौन सी मूवी दिखाओगे ? अब ipad  खुल गया। यू tube पर तिग्मांशु धुलिया की 'हासिल' फिल्म देखी जा रही है। रात  3 बजे दोनों का सोना शुरू हुआ पता नहीं कब सोये। सुबह 10  बजे उठे वो भी इसलिए कि इसके नाश्ता न मिलेगा। वापस आकर फिर सो गए।  दोपहर 1 बजे दोनों उठे - दोनों फिर एक बार दोहराया - "यार जीवन में अब कोई उद्देश्य नहीं बचा है।" ऐसी ही जिंदगी चल रही है। आप सोच रहे होंगे कि भला जीवन में उद्देश्य कैसे खत्म हो सकते है , मेरे ख्याल से  दोनों के पास अब  सिविल सेवा की परीक्षा जैसा तगड़ा उद्देश्य नहीं बचा है, इसलिए ही वो इस तरह से जी रहे हैं। यह  कहानी याद जरूर रखना , क्या पता उनके जीवन के बाद के भी कभी अपडेट लिखे जाय।  

फुटनोट : उक्त कहानी पूर्णतः काल्पनिक है, किसी जीवित या मृत व्यक्ति से इसका सम्बन्ध मात्र एक संयोग होगा। काफी दिनों बाद कुछ लिखा है, लिखना कुछ और ही था और सोचा था कि जो भी लिखूंगा वो अपने दो खास मित्रों को समर्पित करूंगा। महर सिंह ( भारतीय सुचना सेवा 2011 बैच ) व शिवेंद्र मिश्रा ( IRS - IT 2016 बैच ) आप दोनों को यह पोस्ट समर्पित है , आप दोनों ही  मेरे लिखे बड़े चाव से पढ़ते है और बीच बीच में लिखते रहने के लिए प्रोत्साहित करते रहते है , उम्मीद करता हूँ यह पोस्ट भी पसंद आएगी। 

रचनाकाल : रात 1 बजे, 23 जून 2019 , दिल्ली।  

© आशीष कुमार, उन्नाव उत्तर प्रदेश।  

शुक्रवार, 7 जून 2019

Brida

काफी दिनों बाद , पाउलो कोएल्हो को पढ़ने जा रहा हूँ। उनके उपन्यास अलकेमिस्ट ने मेरे व्यक्तिगत जीवन में बड़ा गहरा प्रभाव डाला था, जोकि मैंने पहली बार लखनऊ के भागीदारी भवन के पुस्तकालय में पाया था।
वैसे पिछले मैंने विनोद कुमार शुक्ल का प्रसिद्ध उपन्यास ' दीवार में एक खिड़की रहती थी ' पढ़ा। उसकी समीक्षा, मेरी उस नावेल के प्रति समझ लिखना बाकि है।
प्रसंगवश यह दोनों नावेल और शुक्ल जी का नॉवेल और भी हिंदी की प्रसिद्ध किताबें, मैंने अपनी अकादमी के पुस्तकालय में आग्रह करके मंगवाया है, धीरे धीरे उनको पढ़ना जारी रखूँगा।

शनिवार, 11 मई 2019

Happy mother's day

मां तुम्हें नमन

बच्चों की उपलब्धि उनके संस्कारों पर निर्भर करती है। संस्कार, परिवार से मिलते हैं। परिवार की नींव मां होती है। मुझे बचपन से याद है कि मेरी माँ की सबसे बड़ी चिंता, हमारी पढ़ाई थी। बेहद संघर्ष भरे दिनों में हमारे परिवार की आखिरी उम्मीद, हम बच्चें ही थे। कैसे भी करके कोई भी छोटी मोटी सरकारी नौकरी का सपना, बचपन से डाल दिया गया था।
शुरू के कुछ सालों तक यानी कक्षा 8 तक हम पढ़ने में काफी ठीक माने जाते थे, फिर धीरे धीरे उम्मीदें टूटने लगी। हम खुद तो कभी अपने को कमजोर न समझे पर समाज मे बुद्धिमत्ता के प्रतिमान जैसे कि 10वी, 12 में प्रथम दर्जे से पास होना, पर खरे न उतर सके।
10 में जब सेकंड डिवीज़न आयी तो एक रिश्तेदार ने बोला कि तुमको जो बनना था बन गए। आगे भी सेकंड ही आता रहा। लोग ऐसे ही बोलते रहे। मां ने कभी उम्मीद न छोड़ी।
कभी निजी भावनायें, ऐसे सार्वजनिक करने की आदत न रही पर आज मदर डे पर   उनको ऐसे नमन करना बनता ही है। मेरी तमाम सफलताओं की नींव मेरी माँ ही रही हैं। मुझे गर्व है कि वो काफी पढ़ी है और अपने बच्चों को बहुत अच्छे संस्कार दिए हैं। देश की सबसे कठिन समझी जाने वाली सिविल सेवा परीक्षा में सफल होने का सपना और उसे हकीकत में बदलने का जज़्बा  मेरा जैसा सामान्य स्टूडेंट अगर कर सका है तो उसके पीछे मां के असीम आशीर्वाद,प्रेरणा ही रही है।
-आशीष

शनिवार, 13 अप्रैल 2019

PRATEEK BAYAL : IAS TOPPER 2018 WHO HAS DEEP INTEREST IN FITNESS


मिलिए PRATEEK BAYAL आईएएस टॉपर 2018  से जिन्हें है  फिटनेस  का गहरा शौक 

- आशीष कुमार 




(इंटरव्यू से पूर्व परम्परा के अनुसार संघ लोक सेवा आयोग के बाहर फोटो खिंचवाते प्रतीक )

प्रिय पाठकों, आज आपको एक ऐसी PERSONALITY से मिलवाता हूँ जो इस वर्ष सिविल सेवा में अंतिम रूप से चयनित है। प्रायः ऐसा माना जाता है कि आईएएस की तैयारी करने वाले लोग फिटनेस पर ध्यान नहीं देते है या फिर उन्हें समय इजाजत नहीं देता है कि वो अपना कीमती समय फिटनेस पर दे। पर इस पोस्ट में आप  एक ऐसे युवा आईएएस  की कहानी पढ़ेंगे  जिसने विश्व की सबसे कठिन समझी जाने वाली आईएएस की परीक्षा में दो दो बार अंतिम रूप से पास की है बगैर फिटनेस से समझौता किये।  



प्रतीक बायल, मूलतः दिल्ली के रहने वाले है। IIT DELHI से मैकेनिकल इंजीनियरिंग में बी.टेक् करने के बाद वो सिविल सेवा की तैयारी करने लगे।  जनवरी 2016 में उनका चयन अस्सिटेंट कमिश्नर प्रोविडेंट फंड पद पर हुआ। उन्हें जूनागढ़, गुजरात में पोस्टिंग मिली। 2017  में वो UPSC INDIAN FOREST SERVICE  में आल इंडिया रैंक 27 के साथ  चुने गये।  इसी वर्ष भारतीय सिविल सेवा परीक्षा 2017 में रैंक 966 के साथ DANICS SERVICE में चुने गए। इस वर्ष सिविल सेवा परीक्षा 2018 में रैंक 340 के साथ चुने गए हैं  और उन्हें आईएएस मिलना तय है।  एक प्रकार से उनकी सिविल सेवा की लम्बी का तैयारी का सुखद अंत हुआ। अब वह मसूरी में  आईएएस की ट्रेनिंग के साथ-साथ फिटनेस पर पूरा समय दे सकेंगे। 

उनका मानना है कि प्रत्येक युवा को फिटनेस पर ध्यान देना चाहिए। अगर हम फिट है तो कम समय पढ़कर भी अच्छी सफलता पा सकते है। उन्होंने हर दिन , चाहे वो कही पर भी रहे वो अपने लिए दिन में कम से कम 2 घंटे जरूर निकाल लेते है।  

वो वर्कआउट में  मोटिवेशन तलाशते है। उनका कहना है कि जब वो वर्कआउट करते है तब अपने वजूद  से मिलते है। इस समय वो पूरी एकाग्रता से , पूरी तन्मयता से अपनी फिटनेस के लिए समय देते है। इसका फायदा उन्हें अपनी सिविल सेवा की पढ़ाई के समय मिलता रहा है। फिजिक्स जैसे कठिन समझे वाले विषय के साथ उन्होंने दो दो बार सिविल सेवा की परीक्षा पास की है। इस समय वो दानिक्स सेवा में दिल्ली में प्रशिक्षण ले रहे है। 

प्रतीक बायल की आदत लोगों को फिटनेस के प्रति जागरूक करना है। दानिक्स अकादमी में उन्होंने तमाम साथी अधिकारियों को भी जिम जाना शुरू करवा दिया है। उनका मानना है कि सिविल सेवकों को आज समय की तमाम चुनौतियों से निपटने के लिए मानसिक रूप से बेहद मजबूत होना चाहिए। वो माननीय प्रधानमंत्री जी के विचारों के अनुरूप हम फिट तो इंडिया फिट  ( Hum Fit Toh India Fit) पर विश्वास करते है। 






प्रतीक की कहानी भारत के लाखों युवाओं के लिए प्रेरणादायक है। प्रतीक के लिए फिटनेस हमेशा से प्राथमिकता रही  है। उनका कहना है कि फिट रहना उनके लिये उतना ही ज़रूरी था जितना की आईएएस बनने का उनका मकसद।  

कैसे रखते है दोनों में सामंजस्य  



प्रतीक के अनुसार आज के समय आलस्य हमारा सबसे बड़ा दुश्मन है। अगर हम आलस को अपनी जिंदगी में न आने दे तो कितने ही कार्यो को समय से निपटाया जा सकता है। वो अपने वर्कआउट को पूरा करने के लिए रोज सुबह 5:30 बजे उठते है। कैसा भी मौसम हो, कितनी ही ठंड पड़े वो समय से  बिस्तर छोड़ देते हैं। एग्जाम करीब होने पर भी वो वर्कआउट के लिए 1 घंटा  निकाल ही लेते है। इसके जरिये उनका एनर्जी लेवल पुरे दिन हाई रहता है। इसके चलते वो दिन के बाकि कार्य बहुत सरलता से निपटा लेते है। 

कुकिंग में भी है गहरी रूचि है 

प्रतीक बायल को वर्कआउट के साथ साथ स्वादिष्ट खाना बनाना भी बहुत पसंद है। देखा जाय तो वर्कआउट व कुकिंग दोनों ही रुचियाँ एक दूसरे की पूरक है। प्रतीक ने तमाम तरह की डिशेस को अपने वर्कआउट की जरूरत के अनुरूप बदलाव कर बनाना सीख लिया है। हमारी अकादमी में भी उनके खाने के सभी कायल हैं। 

(दानिक्स अकादमी , दिल्ली में साथी अधिकारियों  के लिए  लजीज डिश बनाते हुए तल्लीन  प्रतीक बायल )

सिविल सेवा के इंटरव्यू में भी दोनों हॉबी ने काफी मदद की 

सिविल सेवा के इंटरव्यू में उम्मीदवार से उम्मीद की जाती है कि वो हॉबी में सही चीज भरेगा। प्रतीक ने इन्हीं दोनों हॉबी को अपने DAF में दिखलाया था।  इंटरव्यू में इन चीजों पर भी बात हुयी । इंटरव्यू चेयरमैन एयर मार्शल भोंसले सर (2017 वाले इंटरव्यू में) ने तो कमरे में प्रवेश करते समय ही बोल दिया था  कि  आपको देखकर ही पता चलता है कि आप की हॉबी फिटनेस है।  


(When life puts more responsibility on your shoulders, make sure your shoulders are strong enough- Prateek )

प्रतीक ने लेखक से बात करते हुए उम्मीद की है कि आने वाले वर्षो में उनके जैसे लोग सिविल सेवा की परीक्षा पास करके आईएएस बनेंगे जो फिटनेस के प्रति समाज में अपने जीवंत उदाहरण से तमाम प्रेरणा देंगे। 




©  आशीष कुमार 

( लेखक हिंदी लेखन में गहरी रूचि रखते है वो प्रतीक बायल के बैचमेट व रूममेट  हैं )

रविवार, 7 अप्रैल 2019

Apana time ayega..

जिनको अभी भी और संघर्ष करना है

तमाम सफल लोगों के बीच उन लोगों भी याद करना लाजमी है जो लगातार संघर्ष करने के लिए बाध्य हैं या कहे कि अभिशप्त से हो गए हैं ।

इस बार जब से सिविल सेवा का रिजल्ट आना था , तब से मन मे बार 2 आ रहा था कि यार इस बार उन दोनों का जरूर हो जाय। दो लोग है, हिंदी माध्यम से। नाम नहीं लिख रहा हूँ पर लगभग उनको बहुतायत लोग जान ही जायेंगे । दोनों लोग राजस्थान से है।

पहले मित्र jnu से है, इतिहास विषय से देते है। शायद उनका 5 या 6 लगातार इंटरव्यू था पर न हुआ। पिछले साल 1 या 2 अंको से चयन रह गया था।

दूसरे साथी काफी अच्छे लेखक है, दैनिक जागरण, दैनिक भाष्कर आदि तमाम पेपर में उनके लेख आते रहते हैं।शायद भूगोल विषय है उनका। पहले दिल्ली में थे अब जयपुर में शिफ्ट हो गए हैं। उनका लगातार तीसरा इंटरव्यू था।

जिस दिन रिजल्ट आया , उनका दोनों के नाम एक मित्र से सर्च करवाया पर दोनों का ही न हुआ। सबसे खलने वाली बात यह है कि दोनों अभी किसी वैकल्पिक करियर को न बना सके है, इसलिए उन पर तमाम तरह के दबाव भी। अभी बात करने की हिम्मत न हुई उनसे। मुझसे बहुत ज्यादा गहरे , अंतरंग संबंध भी न है। बाद वाले साथी से कभी मिलना भी न हुआ, jnu वाले मित्र भी एक आध बार इंटरव्यू के दौरान  upsc परिसर में भेट हुई है पर दोनों संर्घष के चलते अपने से लगते है।

मित्रों हो सकता है कि आप इस पोस्ट को पढ़े या कोई आप तक इसे पहुँचा दे। अब आप लोग उस स्तर पर है कि ज्यादा कुछ कहने या समझाने का अर्थ नही बचता। बस समय का फेर है, यह बस हिंदी माध्यम का बुरा दौर है। अभी आप दोंनो के प्रयास बचे है , अंतिम प्रयास में भी सफ़लता मिलती है, इसलिए एक और प्रयास सही। गुनगुनाते हुए लगिये- अपना टाइम आएगा ।

- आशीष कुमार
उन्नाव, उत्तर प्रदेश।

शनिवार, 26 जनवरी 2019

Manikarnika

मणिकर्णिका

कल उक्त मूवी देखी । इतिहास आधारित फिल्मों की कड़ी में एक और बढिया मूवी का निर्माण हुआ है। रानी लक्ष्मीबाई का किरदार हमेशा से बहुत रोमांचक लगता रहा है। हम सबने वो बात जरूर पढ़ी सुनी होगी कि अपने घोड़े पर सवार होकर रानी ने अपने बच्चे को पीठ पर बांध कर झाँसी के किले से छलाँग लगा थी ।

कई साल पहले पहले झाँसी के किले में  जाने का मुझे अवसर मिला था। उस समय तमाम बातें जानने को मिली थी। गौस खान की कब्र किले में ही है। किले पर वो जगह भी देखी जहाँ से रानी ने छलाँग लगायी थी, इतनी ऊंचाई है कि यकीन करना मुश्किल है पर रानी वीरता , जाबांजी के समक्ष कुछ भी नहीं।

इतिहास का विद्यार्थी रहा हूँ और लंबे समय से यह पढ़ता आ रहा हूँ कि जनरल हुयरोज ने अपनी जीवनी में रानी के बारे में लिखा है कि 1857 के समय रानी सबसे खतरनाक विद्रोही थी और उस समय के विद्रोहियों में एकलौती मर्द थी।

सुभद्राकुमारी चौहान ने भी लिखा है -
"खूब लड़ी मर्दानी, वो तो झाँसी वाली रानी थी।"

मूवी देखकर दिल खुश हो गया। बाजीराव, पद्मावत की कड़ी में ही इतिहास आधारित एक और शानदार मूवी ।

- आशीष

शुक्रवार, 28 दिसंबर 2018

Be helpful to everyone

कृतज्ञता का भाव

मेरे विचार से यह ऐसा भाव है जिसकी शक्ति बहुत प्रबल होती है, मैंने तमाम मौकों ओर इसे महसूस किया है। हर जाने अनजाने सहयोगी ,शुभचिंतक के प्रति मन बेहद आभार का भाव स्वतः पैदा हो जाता है और न जाने कब से आदत पड़ गयी है कि किसी के छोटे से सहयोग को भी बरसों बीत जाने के बाद भी न भूलना।

आज की दुनिया मे अक्सर सबको शिकायत होती है कि उनकी कोई हेल्प नही करता , जरा रुक कर विचार करे कि क्या आपके भीतर दूसरों की हेल्प करने की आदत है या नहीं। मुझे जीवन के हर मोड़ पर अक्सर अनजान अपरिचित लोगों से तमाम तरह की हेल्प मिलती रही । कई बार मुझे खुद आश्चर्य होता है कि आखिर ये कैसे ?

महर सिंह वाली पोस्ट पढ़ी है, पुणे जाना हुआ तो नवनाथ गिरे जैसे होस्ट मिले जो पहली बार मिल रहे थे पर इतने प्रगाढ़ व मित्रवत की पूछो मत। बाइक से महाबलेश्वर घूमना व अन्य तमाम प्रकारन आप पढ़ ही चुके है। कुछ और बड़े और महत्वपूर्ण घटनाएं आने वाले दिनों में पढ़ने को मिल सकती है ।

मुझे अब तक यही समझ आया है कि अहसान मानने की आदत बहुत प्रभावी चीज है, जितना आप इसको मानेंगे ,उसके सुखद और गहरे परिणाम दिखेंगे ।
( यूँ ही विचार आया, विस्तृत पोस्ट फिर कभी । अपने अनुभव साझा कर सकते हैं )

रविवार, 23 दिसंबर 2018

That dainty


वो अनोखा प्रसाद 


यह १० अप्रैल २०१८ की बात है , अगले दिन मेरा सिविल सेवा का इंटरव्यू था। शाम को महर सिंह का फ़ोन आया। पाठक , महर सिंह से परिचित होंगे। काफी पहले उनकी कहानी लिखी थी। एयरफोर्स में जॉब करते हुए सिविल सेवा की परीक्षा पास की थी और मेरी जानकारी में महर , हिंदी माध्यम से इंटरव्यू में 200+ अंक पाने वाले गिने चुने लोगो में से एक है। 

वो भारतीय सुचना सेवा के अधिकारी (२०१२ ) है और मेरे कुछ करीबी व अंतरंग मित्रों में एक। मैं इंटरव्यू के लिए गुजरात भवन में रुका था। सिविल सेवा में चयनित कुछ अन्य मित्रों से बात हुयी थी कि दिल्ली आना हुआ है  मुलाकात करते है। अब सिर्फ दो दिन बचे थे , किसी से मुलाकात न हुयी थी।  महर सिंह ने फ़ोन पर कहा कि "यार काफी व्यस्त था इसलिए मिलने न आ सका पर कल सुबह संघ लोक सेवा आयोग के बाहर मिलने आ रहा हूँ।"  

यह एक प्रकार से मेरे लिए  संजीवनी थी। कोई सफल मित्र न केवल मिले बल्कि आपके मनोबल को बढ़ाने के लिए आयोग के गेट पर भी आ जाये , इससे बढ़िया क्या हो सकता था। मैं बहुत खुश था। 

अगली सुबह मैं , अंकित जैन के साथ संघ लोक सेवा आयोग के बाहर खड़ा था। अंकित जैन से इंटरव्यू के ठीक पहले टेलीग्राम से सम्पर्क हुआ था। वो बागपत, उत्तर प्रदेश से थे , उनके भैया IRS-IT थे। अंकित हमारे विभाग से थे। इसलिए विभाग/मूल प्रदेश  से जुडी तैयारी के चलते काफी चर्चा परिचर्चा हो चुकी थी।  तमाम बातों के बीच एक उल्लेखनीय बात का जिक्र करना आवश्यक है वो है उनकी सर्विस  प्रेफरेंस- आईपीएस > आईएएस > दानिप्स।  कहने का मतलब उन्हें वर्दी से बढ़ा लगाव था और यूनिफार्म सर्विस की उम्मीद कर रहे थे।  

महर भाई आये  और बड़ी गर्मजोशी से अपनी मुलाकात हुयी। उन्होंने एक छोटा सा डिब्बा खोला और बोला - "भाई प्रसाद ले लो। वैसे तो मैं मंदिर ज्यादा आता -जाता नहीं पर आज आपके लिए चला गया था। " मैंने प्रसाद लिया उस वक़्त मन में तमाम विचार चल रहे थे कि आज जहाँ लोगो के पास समय की घनघोर कमी है कोई आपके खातिर मंदिर तक जाये और प्रसाद लेकर आये। अंकित ने भी प्रसाद  लिया। 

इसके बाद आयोग के नाम के साथ फोटो खिचवाने की परम्परा का निर्वाह किया गया। मै पहले भी दो बार इंटरव्यू के लिए यहाँ आ चुका था तब यह ताम झाम फालतू से लगे थे। चूँकि यह मेरा आखिरी  अवसर था तो सोचा "यार पिक्स ले ही लेते है " महर सिंह वहाँ तब तक खड़े रहे जब तक मैं भीतर न गया। अंदर के प्रकरण फिर कभी। 

रिजल्ट आया तो मैं और अंकित दोनों ही अंतिम रूप से सफल थे। कहने की बातें अलग है कि पर सच यही है कि  मैं रिजल्ट से पहले इस दशा में था कि सोच रहा था कि " भगवान , मुझे वेटिंग लिस्ट में भी सबसे आखिरी स्थान भी दिलवा दो तो भी बड़ी बात होगी ". भगवान ने हमे उससे कही ज्यादा दिया। उधर अंकित जैन ( रैंक 222 ) के साथ अपनी ड्रीम जॉब आईपीएस के लिए चुने गए। 

मैंने काफी पहले आस्था पर कुछ लिखा था आज भी वही दोहरा रहा हूँ कि यह आप निर्भर है कि आप मानो तो भगवान है न मानो तो पत्थर। क्या पता उस दिन महर सिंह की आस्था व  प्रसाद ने ही सबकुछ किया हो। ( वैसे मुझे यह मत पूछना कि महर सिंह किस मंदिर गए थे , क्योंकि यह मुझे भी नहीं पता है ) 

© आशीष कुमार , उन्नाव , उत्तर प्रदेश। 

सोमवार, 17 दिसंबर 2018

7 years in Ahmedabad



7 साल अहमदाबाद में (०१) 


जनवरी 2012 की एक रात मैंने जब साबरमती ट्रेन अहमदाबाद के लिए पकड़ी थी तो मैं पूरी तरह से निश्चित था कि बस कुछ महीने की जॉब है , जल्द ही नई नौकरी मिलेगी और मैं अहमदाबाद छोड़ दूँगा। वो  समय मेरे जीवन कुछ ऐसा समय था जब मुझे हर साल नई नौकरी मिल रही थी। एक नौकरी ज्वाइन करता तो अगली बड़ी नौकरी का रिजल्ट आ चूका होता। मैं सेंट्रल एक्साइज एंड कस्टम विभाग में इंस्पेक्टर बन चूका था। सिविल सेवा 2011 की मुख्य परीक्षा  अच्छी गयी थी और मैं उम्मीद कर रहा था कि जल्द ही परीक्षा पास कर लूँगा।  

कुछ महीने बाद इंटरव्यू कॉल भी आ गयी। अब उम्मीद बढ़ गयी थी।  मेरी वर्तमान जॉब बढ़िया थी , शहर बढ़िया था पर मन संतुष्ट न था। मैंने UPSC को कम करके आँका था। इंटरव्यू तो फेल हुआ ही , अगले साल का PRE एग्जाम भी फेल हो गया। मुझे ठीक से याद है वो जुलाई 2012  के आखिरी दिन थे। जिस दिन PRE का रिजल्ट आया , बहुत बड़ा सदमा लगा कि अब इस अजनबी शहर में रहना पड़ेगा। 

उन दिनों मैं मेम नगर एरिया में रहता था। उसी दिन शाम को हिमालया मॉल गया और क्रोमा स्टोर  से एक लैपटॉप खरीदा। उसके बाद दिसंबर 2012  तक जी भर कर फिल्में देखी। टोरेंट का दौर था। हिंदी , अंग्रेजी फिल्मों के साथ चीनी ,कोरियन , जापानी फिल्में देखता गया। मन में यह था कि इतना फिल्में देखो कि उनसे ऊब जाओ। क्या दिन , क्या रात , फिल्में चलती रही और समय गुजरता रहा।

जीवन  के साथ प्रयोग करने की पुरानी आदत थी । इससे पहले के दौर में फिल्मों की तरह नॉवेल , कथा कहानी का पढ़ने का जूनून सवार हुआ था। दिन / रात , महीने साल केवल एक ही काम पढ़ना। हिंदी , बंगाली , मलयालम , मराठी , कन्नड़ , रुसी मतलब अनुवाद में जो मिले बस पढ़ जाओ।  पहले इन चीजों का जिक्र किया करता था कि इतने नावेल पढ़ चूका हूँ पर अब लगता है कि उनका का कोई मतलब नहीं। मैंने जो भी नावेल पढ़े थे वो केवल मनोरंजन की दृष्टि से पढ़े थे। अगर आलोचनात्मक दृष्टि से पढ़ता तो शायद कुछ और ही व्यक्तित्व होता। 


अहमदाबाद मेरे लिए अजनबी जगह थी। उन दिनों मुझे इस शहर में सबसे ज्यादा जो चीज हैरान करती थी वो यह कि इस शहर में साइकिल से चलने वाले लोग न के बराबर है। सड़कों पर दो पहिया से ज्यादा चार पहिया वाले वाहन थे। घर कम थे , फ्लैट अधिक। शहर में समृद्धि हर तरफ देखी जा सकती थी। मैं उत्तर प्रदेश के एक सामान्य जिले से लम्बा ग्रामीण जीवन जीकर आया था। इसलिए शहर के साथ ताल मेल जल्द न बैठा सका। 

हम जहाँ रहते थे वहाँ से कुछ दुरी पर ही अहमदाबाद का सुप्रसिद्ध ड्राइव इन सिनेमा था। प्रायः मैं, मनोज श्रीवास्तव के साथ टहलते हुए फिल्म देखने चले जाते। मनोज श्रीवास्तव हमारे जिले उन्नाव से ही थे। हम पहले से परिचित थे और यहाँ पर भी एक ही विभाग में सहकर्मी थे। इसके चलते ज्यादा अहमदाबाद के शुरुआती साल ज्यादा कठिन न लगे।  

जहाँ मैं रहता था वहाँ से ऑफिस 2 किलोमीटर दूर था। दोनों ही साल मैं पैदल ही ऑफिस आता जाता रहा। इस समय मैं फील्ड में जॉब कर रहा था। मेरा काफी लोगों से मिलना होता , अक्सर मुझे लोग कहते कि " फिर मिलेंगे" मैं उन्हें हाँ भी करता पर मैं जानता था कि मैं उनसे कभी नहीं मिलूंगा।

कुछ दिन तक हमने बाहर होटल में खाना खाया। अहमदाबाद में मुझे एक और अनोखी चीज लगी। यहाँ पर अनलिमिटेड थाली का चलन खूब था। हर बजट के लिए थाली। 50 रूपये से लेकर 100 रूपये वाली। उन्हीं दिनों एक होटल पर  Hardik Thakker  से मुलाकात हुयी। दरअसल मैं और मनोज खाने के बाद कुछ upsc पर बात कर रहे थे। उन बातों को सुनकर हार्दिक ने हमसे बात की पहल की। हार्दिक से लम्बी और गहरी दोस्ती हुयी। उनसे जुडी इतनी बातें है कि उन पर अलग से पोस्ट लिखी जा सकती है। लिखूंगा कभी। इन दिनों वो इसरो में क्लास वन अधिकारी है। उनकी कहानी भी बड़ी मोटिवेशनल है।


बाद में मैंने अपने रूम में खाना बनाने लगे। मैं और मनोज दोनों ही खाना बनांने में कुशल थे। होटल में अधिक दिन खाना सेहत के लिहाज से अच्छा न था। उसी साल कुंदन कुमार से भी परिचय हुआ। वो हमारे विभाग में ही थे और हमसे सीनियर थे। उस साल मैं pre फेल हुआ था और उनका पहली बार मैन्स देने का अवसर था। यह भी अजीब बात है कि हम पहली बार मुखर्जी नगर के एक रूम में मिले। वो दिल्ली में कोचिंग के लिए थे और संयोग से मैं भी किसी काम से दिल्ली गया था।


 इसके बाद मुझे अपने ऑफिस के मुख्यालय में पोस्ट दी गयी। यह ऑफिस , मेरे रूम से लगभग 5 किलोमीटर दूर था। इतनी दूर पैदल जाना संभव न था। काफी दिनों से एक अच्छी साइकिल लेने का मन था। जल्द ही एक गियर वाली काफी महॅगी साइकिल खरीद ली। रेड कलर की साइकिल से घूमने में खूब मजा आता था। कुछ दिन ऑफिस उससे गया। जल्द ही मुझे अहसास हुआ कि इससे इज्जत की बाट लग जाएगी। जिस ऑफिस में बहुतायत लोग कार से आते थे और कुछ लोग मोटर साइकिल से आते थे वहां पर साइकिल से जाना मुझे अजीब लगने लगा। कभी कभी सोचता कि अगर कोई कुछ कहेगा तो बोल दूंगा कि मेरे एक महीने की सैलरी से बाइक मिल जाएगी पर जल्द ही मुझे बाइक लेनी पड़ी।

बाइक लेने का सबसे प्रमुख कारण , अहमदाबाद का ट्रैफिक था। दूसरा साइकिल बहुत नाजुक थी। अक्सर उसमें कुछ न कुछ  बिगड़ने भी लगा था। साइकिल के दिनों सबसे ज्यादा फ़ायदा मुझे अपनी बेली पर दिखा। उतना फ्लैट कभी नहीं रहा। मुझे आज भी लगता है कि फिटनेस के लिए साइकिल से बेहतर कोई चीज नहीं।

© आशीष कुमार , उन्नाव , उत्तर प्रदेश।  

बुधवार, 12 दिसंबर 2018

aatm dipo bhav


आत्म दीपो भव  


गौतम बुद्ध ने आत्म दीपो भव यानि अपना दीपक स्वयं बनो का सूत्र दिया तो उसका आशय क्या था ? अक्सर हमारे सामने बहुत सी मुश्किलें , दुविधाएं होती है और उनके हल के लिए किसी न किसी का  आसरा चाहते है पर क्या वास्तव में कोई अन्य आपकी उलझन  को ज्यादा बेहतर समझ सकता है क्या ? आपके लिए सबसे बेहतर मार्ग क्या है , यह आप से बेहतर कौन जान सकता है। 

सिविल सेवा की तैयारी के दौरान तमाम प्रश्न उठते है , वैकल्पिक विषय क्या ले ? कोचिंग करे या न करे , कहाँ से करे ? कितने घंटे पढ़े ? नोट्स कैसे बनाए ? इनके बड़े सामान्य से उत्तर है पर आप खुद सोचिये कि इनके उत्तर दूसरा भला कैसे दे सकता है। यह बात सही है कि दूसरे के ज्ञान/अनुभव से सीख का समय बच सकता है पर यह पूरी तरह से सत्य नहीं है। मैंने पहले भी कुछ ऐसे प्रकरण साझा किया है जिसमें दूसरे के कहने पर व्यक्ति ने काफी नुकसान उठाया है। 

दरअसल बात सिविल सेवा तक ही सिमित नहीं है। जीवन , बहुआयामी है। सेवा/जॉब सिर्फ एक आयाम है। जीवन के सभी आयामों में अपना दीपक बनने की कोशिश करनी चाहिए। तुम्हारे भीतर छुपी ऊर्जा / कमजोरी को तुमसे बेहतर भला और कौन जान सकता है। इसलिए आज से इस वक़्त से अपने निर्णयों पर जीने की आदत डाल लो। जो भी करोगे , उसका सुखद /दुखद परिणाम भी आप भोगोगे पर यह संतुष्टि रहेगी कि यह मेरा निर्णय था। 

© आशीष कुमार , उन्नाव , उत्तर प्रदेश।  

सोमवार, 10 दिसंबर 2018

Story of an innocent boy

एक मासूम लड़के की कहानी 

लगभग चार साल हुए होंगे यही अहमदाबाद की ही बात है। एक महीने के लिए मुझे डोरमेन्ट्री में रहना पड़ा था। वही उससे मुलकात हुयी थी। मेरे बेड के पास ही उसका बेड था। जब परिचय की बात आती है तो मेरी कोशिश रहती है कि जॉब के बारे में बात न करू। जॉब प्रोफाइल के बारे में बात न करने के कुछ विशेष कारण है -हमारे समाज में आज भी खाकी यूनिफार्म और तीन स्टार का कुछ ज्यादा ही महत्व है। पोस्ट के बारे बगैर कुछ जाने कई बार काफी लोग ने उम्मीद लगा ली कि ट्रैफिक वाला अगर पकड़ेगा तो मेरा एक फ़ोन ही काफी होगा। कुछ ऐसे प्रकरण पहले हो चुके थे इसलिए मैंने वहां बोला कि लिखता हूँ। 

बगल वाले मित्र , अहमदाबाद में बैंक की परीक्षा की तैयारी करने के लिए आये थे। कुछ किताबे उनके बेड पर पड़ी थी। मैंने उनसे एक दो सरल सवाल पूछे   वो  बता न पाए। एक दो दिन बाद शाम को मुझसे बोला कि पार्क चलते है घूमने के लिए। पार्क में जाते ही वो मित्र  कहने लगे कि आप से मुझे कुछ विशेष बात करनी है आप तो कहानी लिखते हो , मेरी भी कहानी सुन लो और बताओ मैं क्या करू ? 

उस दिन अपने कुछ सरल से सवाल पूछे थे तो मैं केवल तनाव के चलते नहीं बता पाया था। मैं इन दिनों बहुत तनाव से गुजर रहा हूँ। मैंने कहा कि आप पूरी बात बताओ। उस शाम की पार्क में बात और बाद में कई बातों को जोड़कर यह कहानी बनती है। 

वो महाराष्ट्र (गुजरात सीमा के करीब ) के रहने वाले थे. अपने परिवार के अकेले लड़के थे।  घर में खेती बारी खूब थी। गन्ने की खेती से अच्छी आय होती थी. तीन खंड का बढ़िया मकान बना था। उनकी शादी  गुजरात में रहने वाली लड़की से तय थी. मित्र बहुत ही सीधे -भोले भाले किस्म के थे। पढ़ाई ठीक ठाक कर ली थी पर जॉब करने का कोई इरादा न था। अकेले लड़के थे तो घर में रहकर ही माता पिता की सेवा करने का इरादा था। 

लड़की जरा तेज थी। उनकी इंगेजमेंट हो गयी थी। लड़की ने मित्र पर दबाव डाला कि जब तक जॉब नहीं करोगे मैं शादी नहीं करूंगा। वो बेचारे पहले कुछ दिन किसी फार्मा कंपनी में 10 -१२ हजार वाली जॉब में लग गए। घर में सालाना 10 से 15 लाख की आमदनी थी , इसके बावजूद वो लड़की के दबाव के चलते नौकरी करने लग गए। लड़की ने कहा कि सरकारी नौकरी करो। इसके लिए ही वो अहमदाबाद आये थे और बैंक की परीक्षा के लिए कोचिंग कर रहे थे।  

अब मुझे ठीक से याद नहीं आ रहा है पर पूरा प्रकरण उन्होंने बताया था। उनको पता चला कि लड़की , किसी गैर जाति के लड़के से जुडी है और उसके साथ घूमती फिरती है। इसके बाद वो खुद काफी जानकारी जुटाई थी , मुझे कई स्क्रीन शॉट दिखाई कि यह इतनी रात तक व्हाट एप पर ऑनलाइन थी और न जाने क्या क्या। सगाई , इनके साथ हुयी थी और इनको अपने गांव , समाज में इज्जत बड़ी प्यारी थी। 

मैंने कहा कि रिश्ता तोड़ दो तो वो बोले कि नहीं तोड़ सकता। दरअसल लड़के के परिवार की कोई बहन , इनके भावी पत्नी की ओर शादी की गयी थी। मित्र को डर था कि अगर मैंने रिश्ता तोडा तो मेरी बहन को परेशान कर सकते है। 

पहले लड़की मना करती रही कि उसका कोई चककर नहीं है पर एक बार मित्र जब किसी पार्क में मिलने गए तो लड़की ने स्वीकार कर लिया कि हाँ वो किसी लड़के से बहुत प्यार करती है  और उसी से शादी करना चाहती है  केवल घर वालों के दबाव में ही  सगाई की थी। लड़का यह सुनकर बहुत दुखी हुआ और सब जानने  ( दैहिक सम्बन्ध ) के बावजूद उस लड़की से बोला कि तुम्हारे कल से कोई मतलब नहीं , आज से नई रिश्ते की शुरुआत करो। प्यार अँधा होता है। लड़की मानी नहीं। वो अपने घर में कुछ न कहती पर मित्र , उसकी हरकतों से मानसिक प्रताड़ना से गुजर रहा था। 

तमाम बातें है , सबका उल्लेख करना जरूरी नहीं है। मित्र को यह भी तनाव था कि उनकी होने वाली बहू के बारे में जब उनके बूढ़े माता पिता को पता चलेगा  तो उनके परिवार की साख मिट्टी में मिल जाएगी। 

जैसा कि मैंने पहले बताया है कि मैं वहाँ बस एक माह रहा था पर मित्र बहुत गहरे से जुड़ गए थे। सम्पर्क बना रहा। मुझे सरल , सीधे साधे लोगों से जुड़ना बहुत अच्छा लगता है, होशियार , मौक़ापरशत लोगों  से जुड़ भी जाऊ तो भी रिश्ते में गर्मजोशी नहीं दिखाता। मित्र से भले काफी अंतराल तक बात भले न हो पर दिल के बहुत करीब है। दरअसल आज के समय में , सरल स्वभाव के लोग दुर्लभ से हैं।  

मित्र भी कुछ महीने बाद अपने गांव चले गए। फ़ोन पर बात करते रहते। मुझे उनकी कहानी का अंत जानने की बड़ी इच्छा थी। एक रोज उनका फ़ोन आया - आशीष भाई अमुक तारीख को मेरी शादी है आप आना जरूर है। बहुत खुश थे। मैंने पूछा - उसी लड़की से हो रही है शादी। वो बोले नहीं। मित्र ने मुझे बाद का कुछ विवरण दिया। 

जब लड़की की हरकते बहुत बढ़ गयी तब लड़के ने अपने समाज की पंचायत बुलाई। लड़की ने बड़ा हगांमा किया कि सब झूठे आरोप है पर पंचायत सभी बातों को समझकर  सगाई तोड़ने का फैसला दिया । इसके बाद मित्र ने एक गरीब घर की होनहार, सुशील  लड़की (मित्र बुलाते रहते है कि आपकी भाभी बहुत तरह की आइसक्रीम बनाना जानती है )  से दहेजरहित  शादी की। वो मित्र बहुत खुश थे। कई  दिनों के लिए  पहाड़ी जगहों पर हनीमून के लिए गए।  

पहली लड़की , अपने प्रेमी की कार , कपड़े देखकर उसे बहुत आमिर समझ बैठी थी । मित्र गांव से जरूर थे पर ठोस आर्थिक स्थिति थी उनकी। दिखावे पर यकीन न था अन्यथा उनकी हैसियत तो ऑडी /मर्सडीज की थी। 

शादी में जा न सका पर आज भी उनके यदा कदा फोन आ जाते है। अब उनका एक बेटा भी है। एक खुशहाल जिंदगी जी रहे है।  तनाव के दिनों में वो कहते थे कि आशीष भाई , मैं अपनी कहानी सावधान इंडिया / क्राइम पेट्रोल में दूँगा ताकि पता चले कि इस तरह के प्रकरणो में लड़के कितना अपसेट होते हैं। सावधान इंडिया में कहानी गयी या नहीं गयी पता नहीं पर मैंने उनसे वादा किया था कि आप की बात मैं अपने पाठकों तक जरूर पहुँचाऊँगा।

© आशीष कुमार , उन्नाव , उत्तर प्रदेश।  

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