अपनी संस्कृति में बहुत सी अच्छी बाते है। हमें बचपन से ही सिखाया जाता है कि बुजुर्गो का कहना मानना चाहिए। मुझे एक सज्ज्न की दी हुई सीख बहुत प्रभावी लगी। शायद यह आपको भी बहुत अच्छी लगी ।
इस जॉब से पहले मै लखनऊ में INDIAN ARMY ऑडिटर के पोस्ट पर job करता था। अपने शहर UNNAO से रोज ट्रैन से LUCKNOW जाता था। ट्रेन में हर रोज नये नए लोग मिलते थे। सबके पास कुछ न कुछ विशेष हुआ करता था बात करने के लिये। मुझे उनके बारे ठीक से याद नही पर उनकी सलाह हमेशा याद रहेगी। मेरी नयी नयी जॉब थी। मुझे अपनी सैलरी बहुत लगती थी। २००० रूपये महीने से सीधे २२००० रुपए मिलने लगे तो ऐसा ही महसूस होता है। पर महीने के अंत में मेरे अकाउंट में कुछ भी न बचता था। ब्रांड का भूत उन दिनों बहुत हावी रहता था। Army की कैंटीन से न जाने क्या क्या खरीद लिया करता था।
उस रोज अंकल जी ने एक बात कही थी कि बेटा अभी कुछ साल बहुत सभल कर खर्च कर लो आगे बहुत मौज करोगे। कभी भी रूपये कि किल्लत न होगी। यह बात मेरे मन में बैठ गयी। उस रोज से सिर्फ जरूरत कि चीजे लेने लगा। एक example के तौर पर मुझे job करते ४ वर्ष हो गये है पर bike २ महीने पहले ही खरीदी वो भी भाई के लिए। मुझे उसकी जरूरत ही नही लगती है। ऐसी बहुत सी चीजे है पर सार यही कि जहाँ तक हो अपनी आवश्कताएं सीमित रखकर बहुत सकून पाया जा सकता है। पिता जी कि death के बाद सब कुछ मेरे पर आ गया था पर सब कुछ धीरे धीरे ठीक होता गया। आज सब कुछ बहुत अच्छा है दोनों भाइयो को job मिल गयी है बहुत ही सस्ती पढाई करके वो दोनों ही जॉब पा गये है।
Economics तो मैंने कभी नही पढ़ी पर उन अंकल जी कि सीख में सबसे बड़ी इकोनॉमिक्स economics नजर आती है। मुझे लगता है मुझे शायद ही कभी पैसे की किल्ल्त हो। बहुत अच्छा लगता जब किसी यार दोस्त को मै हेल्प कर पाता हूँ खास कर जिनसे मै कभी उधार लिया करता था। अंकल जी पता नही कहा है पर मेरा जीवन तो सदा उनका आभारी रहेगा।
© आशीष कुमार
मेरी कुछ रोचक पोस्ट
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