हर बारिश कुछ याद दिलाती है .........
हमारी संस्कृति व् साहित्य में बारिश का
मौसम बहुत ही खास माना गया है . यु तो जब से अहमदाबाद में रहने लगा तब से बारिश के
आनंद से वंचित सा रहने लगा हूँ पर इस साल हमारे शहर में खूब बारिश हो रही है . आगे
बढ़े से पहले नीरज जी वो प्रसिद्ध लाइन्स याद आ गयी
अबकी सावन में यह शरारत मेरे साथ हुयी
मेरे घर को छोड़ सारे शहर में बरसात हुयी
मुझे बारिश में लिखने का बहुत दिनों से मन हो रहा था पर टालता
रहा , पर आज रविवार ,
शाम जब सारा दिन पढ़ते पढ़ते उब गया तो
लगा अब कुछ रच ही लिया जाय . यह अच्छा संयोग है कि बेडरूम की बालकनी वाला दरवाजा
खुला है सामने जोर से बारिश हो रही है .
साहित्य में बारिश के मौसम को उद्दीपन के तौर पर देखा गया है
यानि कि इस मौसम में अपने आप ही कुछ होने लगता है .मुझे लिखने का मन होने लगा .
बहुतायत प्रेम पीड़ा से ग्रस्त लोग भी इसे बरसात का असर मानते है . जायसी ने
पद्मावत में बारिश को विरह से जोड़ कर लिखा है .
बरसे मघा झकोरी झकोरी ...............
उस दिन ऑफिस से जब लौट रहा था मैंने रास्ते में कुछ अनोखा देखा
. आगे एक्टिवा में २ लडकियाँ थी . पीछे बैठी लडकी बारिश में सेल्फी ले रही थी .
आगे एक और एक्टिवा में एक लडकी जा रही थी उसमे भी यही चल रहा था बारिश बस कहने को
हो रही थी यानी वो लडकियाँ सेल्फी खीच कर बारिश का लुफ्त के रही थी . अब
इसमें सोचने वाली बात यह है कि मुझे इसमें विचित्र क्या दिख गया . क्या करू कमबख्त
अपनी नजर ही कुछ ऐसी है जो सामान्य चीजो में असामान्य चीजे देख लेती है . मै हैरान
इसलिए था कि वो इस बात की परवाह क्यू न कर रही थी कि उनका फ़ोन खराब भी हो सकता है
पर क्या फर्क पढ़ता है .. दूसरा यह कि वो सेल्फी ले कर क्या करेगी फेसबुक में या
व्हाट एप पर डालेगी . अगर अज्ञेय जी संवत्सर निबंध पढ़े तो यह सब विचित्र ही लगेगा
. बारिश में भीगना ज्यादा महत्वपूर्ण है या सेल्फी के रूप में उन पलों को कैद करना
......
भीगने से अपने एक प्रयोगधर्मी मित्र याद आ गये जो अक्सर बारिश
में भीगने को इस तरह से वर्णित करते कि किसी का भी मन बारिश में जा कर भीगने का
होने लगे . जब भी बारिश होती वो बाइक पर निकल जाते सडक के किनारे गर्म चाय पीते .
पिछले साल की बात है . वस्त्रापुर लेक पास एक पुस्तकालय से
वापस आ रहा था कि बारिश होने लगी . मै हमेशा बारिश से बचता हूँ पर उस दिन मित्र का
वर्णन याद आ गया इसलिए बाइक रोकी नही चलता रहा . मेमनगर तक मुश्किल से २ किलोमीटर
की दुरी रही होगी पर .... . बारिश के साथ हवा भी चलने लगी मै एक सिंपल हाफ टी शर्ट
में था . मुझे उस दिन जो ठण्ड लगी हमेशा याद रहेगी . हाथ पैर दांत सब कपने लगे .
हिम्मत न हो रही थी कि बाइक रोक दूँ क्यूकि अगर रुकता तो उस दिन घर पहुचने मुश्किल
हो जाता . तब से मुझे बारिश में भीगने का मन नही होता है . हा बारिश आते ही मन
भीगने लगता है . कुछ याद आता . याद आते है गाव में बिताये दिन .
खेतो में पानी भर जाता . बड़े बड़े मेढक निकलते और जोर जोर से
आवाज लगाते . मिट्टी से बहुत सोधी सोधी खुसबू आती . इसी समय बहुत से त्यौहार होते
है . मुझे गुडिया का त्यौहार बहुत पसंद था क्यूकि इस दिन घर से छुट मिलती तालाब
में जाकर नहाने की . मेरे गावं में एक ही बढिया तालाब था जिसे बाबा का ताल कहते थे
. उसमे मैंने घर से छुप छुप कर खूब नहाया है . छुपने की वजह यह थी आस पास के गाव
में बहुत बार लडके तालाब में नहाते वक्त डूब कर मर गये थे इसलिए घर वाले कभी नही
चाहते थे कि तालाब में जाकर कलाबाजी करू . अब वो तालाब सूख गया है . उसके पास एक
खेल का मैदान है जिसमे साल में एक दो क्रिकेट के टूनामेंट होते है .
बारिश के दिनों में ही आम गुठली से छोटे छोटे पौधे
निकलना शुरु होते थे . उनसे हम सीटी बनाते थे . पता नही आज वो सिटी बनती है या नही
. इसमें भी डाट मिलती थी क्युकि बहुत बार आम की गुठली में सांप का बच्चा निकल आता
पर नही सांप ही होता या केचुआ पर घरवाले सतर्क रहते .
जब मै कक्षा ९ पहुचा तो पढने के लिए १० किलोमीटर दूर पहाडपुर
नामक गाँव जाना पड़ा . रास्ता बहुत खराब होता उन दिनों . बीच में बहुत जगह पर पानी
इस कदर भर जाता था कि साइकिल अनुमान से ही चलानी पडती थी . इस अनुमान में बहुत बार
हम रास्ते के बगल में बनी खायी में साइकिल सहित घुस गये है . जब हम घुसे तो और
दोस्त मजा लेते जब वो जाते तो हमे भी खूब मजा आता . हमारे बस्ते में एक बड़ी सी पोलीथिन
होती जो पडोस के आंगनबाड़ी से ली गयी होती जिसमे पजीरी आती . पजीरी आती गर्भवती
महिलाओ, बच्चो के बाटने के लिए होती थी पर वो अक्सर ब्लैक में बिक जाती
जिसे लोग अपनी गाय भैस को खिलाते . बहुत लोगो का दावा था कि इससे दूध में अपार
वर्धि होती है .
तो पाठकों ,
बारिश से मुझे यह सब याद आता है
................अब जब बारिश बंद हो गयी है तो हम भी लिखना बंद कर दे वरना मेरे
पास तो किस्सों की कमी नही आप भी कहेगे की बहुत समय खा गया हूँ .
all rights reserved .Ⓒ asheesh kumar
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