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शनिवार, 22 अप्रैल 2017

Prayag station : A story




ऊपर आप एक तस्वीर देख पा रहे है. ठीक है अपने क्या देखा ? नहीं मै इस काली चोटी और लम्बी डोरी की बात नहीं कर रहा हूँ। दरअसल अगर मै चाहता तो इसे tasvir se हटा भी सकता था और क्रॉप करके सिर्फ वही दिखाता जिस पर यह कहानी है। दरअसल अक्सर हम वो नहीं देख पाते है जो हमें देखना होता है। 

खैर यह तस्वीर चोरी से ली गयी थी। दरअसल आप इस तस्वीर में तारीख और समय तो खुद ही देख पा रहे है बाकि चीजे मै बता देता हूँ। उस दिन उस समय मै प्रयाग स्टेशन पर था। मेरी ट्रैन काफी लेट थी। बुक स्टाल से कुछ पत्रिका खरीदी। हंस ने मार्च में रहस्य कथा विशेषांक छापा था। बड़े चाव से खरीदा और भी कुछ मैगज़ीने खरीदी और उसी में डूबा था। इस लड़की जोकि अपनी बीमार माँ ( या चाची ) के साथ ऊब रही थी और सो जा रही थी। 
चलो अब बता भी देता हूँ आप तस्वीर को फिर से देखे। हा वही आदमी जो हँस रहा है (क्या वो वाकई हँस रहा है ). बस इसी की कहानी है आज। उस आदमी को मै काफी देर से सुन रहा था और समझ भी रहा था कि क्या हो रहा है मेरे पीछे की सीट पर। तब तक मेरे मन में उस पर लिखने का कोई विचार नहीं सुझा था और न ही तस्वीर ली थी। तभी उस आदमी ने कहा - 
" हा भाई साहब , अब को समझाता हूँ , दरअसल मै एक समय में एक आदमी को ही समझाता हूँ " बस उसकी इसी पंक्ति ने  मुझे चोरी से तस्वीर लेने पर बाध्य कर दिया।  अब मै उस आदमी पर पूरा ध्यान देकर सुनने लगा।  
दरअसल वो एक स्कीम समझा रहा था कि ९ हजार रूपये जमा करो। उससे साड़ी या लड़की के सूट पीस वगैरा खरीदो। आपके पैसे तो कपड़े लेने से ही वापस आ जायेंगे। बाकि आप आगे मेंबर बनाओ और लाखो कमाओ। मैंने एक बार फिर सोचा और सुना। यह २०१७ है और आज भी ऐसी स्कीम चल रही है मुझे सच में हैरानी हो रही थी। एक पल को लगा कि उसकी कहानी का खुलासा कर दूँ और उसे समझाओ कि ये स्कीम कैसे चलती है पर उस आदमी की मेहनत देख कर मै चुप ही रहा। दरअसल वो बहुत लगन से स्कीम समझा रहा था। मजे की बात यह थी कि उसके सुनने वाले भी रोचक लोग थे। एक ठेकेदार जो उड़ीसा से कुछ मजदूर लाया था ये मजदूर किसी ब्रिक के कारखाने में काम करने जा रहे थे।  

दरअसल मै उस आदमी को पूरी तरह से समझा नहीं पा रहा हूँ उसकी बाते बहुत रोचक थी। भाषा भोजपुरी थी। ठेठ ग्रामीण था पर शुद्ध भाषा में बात कर रहा था। बाते इतनी जोर हो रही थी एक और आदमी ने स्कीम में रूचि दिखाई। यह आदमी सरकारी नौकरी में था इसलिए उस स्कीम बेचने वाले रोचक आदमी ने अपने सर को फोन लगाया और बोला ये सरकारी आदमी है आप इनको अच्छे से समझा दीजिये।  

कभी कभी मुझे लगता है कि ज्यादा पढ़ना और ज्यादा सोचना दोनों ही घातक होता है। मै बहुत कुछ सोच रहा था। सरकार देश के लिए क्या क्या नहीं कर रही है ? मेक इन इंडिया , स्किल इंडिया , इन्क्लूसिव गोथ , १०० से अधिक स्कीम पर लोग अभी भी इस तरह की स्कीम में पड़े है।  वो आदमी बार बार बोल रहा था कि कंपनी इंटरनेट पर है देख लो , चेक कर लो। मैंने देखा दिल्ली से किसी ठग ने इसकी शुरआत की थी।  वो आदमी बार बार बोल रहा था अपनी मेहनत है चाहो तो साल में ५० लाख कमाओ।  

पिछले दिनों लोग फेसबुक पर like करने वाली कम्पनी में करोड़ो डुबो दिए। मुझे रामाधीर सिंह का वो कालजयी कथन याद है जो गैंग्स ऑफ़ वासेपुर में बोला था। 
" जब तक फिल्मे है लोग चूतिया बनते रहेंगे। " 
इसी को संसोधित करके ऐसा कहा जा सकता है -जब तक लालच है तब तक लोग---------  बनते रहेंगे। इस बीच उस आदमी ने लखनऊ में किसी को फोन लगाया और बोला कि "बहुत दिन हो गए आप से मुलाकात नहीं हुयी है मिलने आ रहा हूँ।" कहने कि जरूरत नहीं कि वो लखनऊ किस लिए जा रहा था। 

copy right - Asheesh Kumar 

friends , i think you also know such type person & company . what do you think why these are still growing ? 













शुक्रवार, 7 अप्रैल 2017

चाँदनी चंदन सदृश

" चांदनी चन्दन सदृश हम क्यों कहे,
हाथ हमें कमल सरीखे क्यों दिखे ,
हम तो कहेंगे कि चांदनी उस सिक्के सी है
जिसमें चमक है पर खनक गायब है ।"

जगदीश कुमार

नई कविता में नए उपमानों पर जोर देते हुए ।

रविवार, 2 अप्रैल 2017

बहुत सयानी है वो मुझे use करती है



एक आत्मीय जन का कल फ़ोन आया। बातों  ही बातों में कहने लगे उनके साथ एक लड़की काम करती है। बहुत सयानी है। काम निकलवाने के लिए किसी से भी दोस्ती कर लेती है देखना एक दिन pcs भी बन जाएगी।  
मित्रों , इस तरह की बाते इन दिनों बहुत स्वाभाविक है। मेरी नजर में इस तरह का सयानापन होना कोई बुरी बात नही। बस हर किसी को अपनी सीमाएं बहुत अच्छे से पता होनी चाहिए। 

अगर आप को लगता है कि कोई आप को use कर रहा है तो यह आपकी कमजोरी का लक्षण है। आखिर आप इतना कमजोर कैसे हो सकते हो ? चाहे मित्रता हो या प्रेम , भावनाओं से अधिक अपने मस्तिष्क पर जोर देना चाहिए। यह दुनिया दिनों दिन काफी जटिल होती जा रही है। हर कोई आगे आना चाहता है चाहे इसके लिए उसे किसी के ऊपर से चढ़ कर आना पड़े , चाहे किसी को कुचलना ही क्यू न पड़े। आप भगदड़ की कल्पना करे जिसमे आप गिर पड़े है और लोग आप के ऊपर से गुजर रहे है , भले ही आप कौन हो ? ऐसे में आप कहे सब मुझे use कर रहे है तो इमसें लोगो का क्या दोष हर कोई अपनी जान बचाने में पड़ा है। आप गिरते ही क्यू है ? 

जीवन में सफलता का आधार , अपनी भावनाओं पर काबू पाने से होता है। मैंने बहुतायत लोगों को देखा है लंबी & लंबी फ़ोन पर बाते , घंटो चैट। भाई , कमाल लगता है कि लोगों के पास कितना वक़्त है। एक पुरानी पोस्ट में मैंने , आपको अपनी कीमत निकालने को कहा था। मान लीजिये आप जॉब करते है और आपको महीने के ३०००० रूपये मिलते है और रोज ८ घंटे काम करते है। महीने के ४ रविवार निकाल दीजिये। २६ दिन , ८ घंटे यानि कुल २०८ घंटे।  आप आपको पता चलता है कि आपकी हर घंटे कीमत लगभग १४५ रूपये है। 

इसी तरह अगर आप जॉब न भी कर रहे हो तो भी आप अपने घंटे की कीमत निकाल सकते है , कैसे ? बताता हूँ।  example के तौर पर आप सिविल सेवा की तैयारी रहे है तो आप अपने लिए एक आईएएस का वेतन माने। एक मोटे तौर पर अगर सिर्फ सैलरी को ऊपर वाली गणित से निकाले तो यह लगभग ८०० रूपये प्रति घंटे होगा।  

तो आप कितनी देर चैट या फ़ोन पर टाइम waste करते है ? या तो आप वक़्त की कीमत समझ जाईये या फिर बर्बाद होते रहिये और रोते रहिये कि वो बहुत सायानी है हमको use करती रहती है। 

( do not forget to give your feedback . your comments are very valuable for me )

Copy right - Asheesh Kumar


  

मैंने कब कहा


मैं नया कवि हूँ
इसी से जानता हूँ
सत्य की चोट बहुत गहरी होती है ;
मैं नया कवि हूँ
इसी से मानता हूँ
चश्में के तले ही दृष्टि बहरी होती है,
इसी से सच्ची चोटे बाँटता हूँ
झूठी मुस्काने नहीं बेचता

सर्वेसवर

शनिवार, 1 अप्रैल 2017

फर्क नही पड़ता है


पर सच तो यह है
कि यहाँ या कहीं भी फर्क नही पड़ता ।
तुमने जहां लिखा है ' प्यार '
वहाँ लिख दो ' सड़क '
फर्क नही पड़ता ।
मेरे युग का मुहावरा है :
' फर्क नही पड़ता '।

केदारनाथ सिंह ( नई कविता)

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