पिछले दिनों सुप्रीम कोर्ट के जजों द्वारा अपनी ही संस्था को लेकर सवाल खड़े किये गए हैं।उन्होंने सही किया या गलत इसको लेकर अलग अलग राय हैं । मेरे विचार से हमारे देश में सर्वोच्च स्थान संविधान का है। सुप्रीम कोर्ट संविधान का संरक्षक है । उसी संविधान के हवाले से मैं एक बात की ओर ध्यान आकृष्ट कराना चाहता हूँ। संविधान की प्रस्तावना की शुरुआत में ही कहा गया है ' हम भारत के लोग ....' अर्थात जनता ही देश में सर्वोच्च है। इस लिहाज से जनता के समक्ष अपनी बात रखने में कोई बुराई नही है । भारत की न्यायपालिका के कामकाज पर दबे स्वरों में ही सही पर सवाल तो उठते रहे हैं । भाई भतीजावाद के आरोप भी समय समय पर उठते रहे है। ऐसा कई खबरों में आ चूका है कि देश के कुछ विशिष्ट गिने चुने परिवारों के सदस्य ही इस संस्था में चुने जाते हैं।ऐसे में अगर कुछ लोग साहस दिखाते हुए, खामियों को जनता के समक्ष रखते हैं तो उन पर किसी तरह से प्रश्न चिन्ह नहीं लगाना चाहिये। हमें यह भी ध्यान रखना होगा कि उन साहसी लोगों ने अपनी बात पहले चिठ्ठी लिख कर रखी थी ताकि संस्थान की छवि बनी रहे जब उस पर किसी तरह का रुख न मिला तब जाकर ही उनको अपनी बात का खुलासा मिडिया के समक्ष रखना पड़ा। देखा जाय तो इस सारे प्रकरण से जनता के समक्ष , इस संस्थान की जबाबदेही बढ़ी ही है। प्रेमचंद ने पंचो को परमेश्वर की संज्ञा दी थी। वर्तमान में भी सभी पंचो को अपनी गरिमा बनाये रखने के लिए , किसी तरह की राजनीति से परे , निष्पक्षता से अपनी दायित्वों का निर्वहन पूर्ण निष्ठा के साथ करना चाहिए।
आशीष कुमार
उन्नाव उत्तर प्रदेश।
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