आज किसी ने फ़्रेंड्स डे के लिए व्हाट्स एप पर विश किया तब ही याद आया इसके बारे में। इन दिनों इतने दिन मनाये जाने लगे हैं कि आये दिन कुछ न कुछ होता ही है।
मित्रता दिवस पर एक बात याद आ गयी। पिछले साल की बात होगी। मेरे फोन पर एक कॉल आयी। अहमदाबाद से कोई था। बोला कि " सर , आप मेरी दुकान पर चाय पीने आया करते थे, sir मैंने चाय की एक नई दुकान खोली है..बड़ी मेहरबानी होगी अगर आप उद्घाटन पर आए .." मैंने दिमाग पर बहुत जोर डाला पर याद न आया कि कौन है ये..एक गुजराती जब हिंदी बोलता है तो चीजें समझी तो जा सकती हैं पर पूरी तरह से स्पष्ट नहीं।
वो कह रहा था कि अमुक भाई ने no दिया है , आप लाइब्रेरी आया करते थे , वही मेरी दुकान है ..
मेरा मन खुशी से अभिभूत था कि उसके बुलाये में कितना प्रेम व सम्मान है .. पर मै तब तक अहमदाबाद छोड़ चुका था, इसलिए उसे विन्रमता से मना करते हुए यह वादा किया कि जब अहमदाबाद आना होगा तब उसके दुकान पर चाय पीने जरूर आऊंगा।
हालांकि आज तक न जान पाया कि वो कौन सी दुकान से था। शायद पुरानी किसी पोस्ट में अहमदाबाद की चाय की दुकानों पर लिख चुका हूँ। क्या गजब चाय बनाते हैं.. खूब गाढ़ी, कड़क , खुशबूदार। खेतला आपा ( खेत के भगवान यानी सर्प ..यही लोगो है उनका) की s.g. highway ( सरखेज- गांधीनगर राजमार्ग ) वाली दुकान तो बहुत ही नामचीन है। एक बार मे 400 - 500 लीटर के भगोने में चाय बनती है जो 10- 15 मिनट में खत्म भी हो जाती है .. टोकन के लिए लाइन लगती है। मेरे ख्याल से वो 24 घंटे खुली रहती है।
अब उसकी कई फ्रेंचाइजी खुल गयी हैं। शायद राजकोट से यह शुरू हुई थी। उनकी चाय का बड़ा यूनिक से टेस्ट है। मैं जहां तक सोच पता हूँ मेरे पास जिस दुकान का फ़ोन आया था वो शुभ लाइब्रेरी के पास थी। काफी पुरानी दुकान थी। बहुत ही कड़क चाय होती थी। वो अपने समय से ही चाय देता था, अगर जल्दी देने को कहो तो भड़क जाता था, उसका कहना था कि जल्दी के चक्कर मे टेस्ट से समझौता नहीं कर सकता।
मुझे अहमदाबाद की तमाम चाय की दुकानें याद आती हैं। स्पीपा ( गुजराती सिविल सेवा का संस्थान ) , सेटेलाइट के गेट के दिनों तरफ की दुकानों की चाय बहुत सही मिलती थी। एक पुदीना वाली चाय की बड़ी फेमस दुकान थी, जहां एक बार dr के साथ , बारिश में चाय पकौड़े खाने गए थे। न्यू राणिप , जहां मैं रहता था, वहां पर भी एक बहुत सही दुकान थी। अच्छा चाय भी बजट के अनुरूप मिल जाती थी। रेहड़ी वाले अध्दि चाय मांगते जो 5 रुपये में मिल जाती थी। वो दिन में कई चाय पीते। तमाम किस्से हैं वहां के चाय से जुड़े ..
वैसे आपको यह तो याद है ही न , हमारे माननीय के जीवन में चाय का बड़ा महत्व रहा है वो भी गुजरात से ही है और आज किस मुकाम पर हैं वो.. इसलिए जब मुझे अहमदाबाद से चाय की दुकान के उदघाटन के लिए प्रेम से बुलावा आया तो यह मेरे लिए बड़े ही सम्मान की बात थी, पर परिस्थिति वश उसमें जा न सका।
तमाम पाठकों को मित्रता दिवस की शुभकामनाएं
(सृजन वंदे भारत मिशन की ड्यूटी पर एयरपोर्ट जाते समय, )
© आशीष कुमार, उन्नाव
2 अगस्त , 2020।
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