काफी दिन दिनों से कोई कहानी न लिखी , वजह तमाम है जैसे समय का न होना , लैपटॉप व फ़ोन में आसानी से हिंदी टाइप न हो पाना और आखिरी पर सबसे महत्वपूर्ण बात इच्छा ही न होना।
तमाम नए अनुभव मिले , चीजों को बारीकी से अब भी देखता हूँ पर न जाने लिखने की अब वजह खास दिखती।
आज विशेष दिन है कोई अच्छी से कहानी तो याद न आ रही पर कुछ वाकये याद आ रहे है.
(1 )
सबसे पहली बात तो यही अजीब लगती है कि अब पायः सरकारी ऑफिस में छुट्टी भी मिलती है तो इस शर्त के साथ कि फ़ोन पर उपलब्ध रहना। समझ न आता इस शर्त के साथ छुट्टी कैसी। एक मित्र काफी दिनों बाद जैसे तैसे पहाड़ो पर जाने के लिए छुट्टी ली , शर्त जुडी थी. बेचारे अपनी पूरी छुट्टी में बैठ कर पीपीटी बनाते रहे। अब कसम खायी है कि ऐसी छुट्टी न लेंगे , भले कितना ही वक़्त गुजर जाये.
(2)
आज लैपटॉप पर फेसबुक खोला तो एक मित्र याद आ गए। आईपीएस है मध्य प्रदेश में। साथ इंटरव्यू दिया था , उनका चयन हो गया था मेरा न हुआ था। मुखर्जी नगर जाना हुआ तो मैंने रिक्वेस्ट कि सर मुलाकात हो सकती है क्या। बात बन गयी। हडसन लेन में किसी रूम में मिले। पहली बार रूबरू किसी सफल व्यक्ति से मिल रहा था। २० मिनट की मुलाकात रही होगी. तमाम बातों के बीच में मैंने देखा उन्होंने लैपटॉप पर फेसबुक खोला और देखा २ मिनट में जितनी भी उनके सामने पोस्ट आयी , सब में फटाफट लाइक करते चले गए। न तो उन्होंने बताया , मैंने पूछा कि बिना पढ़े , देखे ऐसे लाइक के क्या मायने। तमाम दिनों तो मै उसके अलग अलग अर्थ निकलता रहा जैसे ---- समय बचा रहे थे या फिर सबको सोशल दिखाने की कोशिस कर रहे थे पर अगर समय ही बचाना था तो फेसबुक खोला ही क्यू था और सोशल दिखना ही था तो कम से कम ध्यान से पढ़ते तो सही।
- आशीष , उन्नाव।
16 august , 2023